खुदरा महंगाई एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के लक्ष्य से बाहर निकल गई है। इस वर्ष अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 7.79 प्रतिशत रही है, जो बीते आठ वर्षों में सर्वाधिक है। ऐसा पहली बार नहीं है कि महंगाई बेकाबू हुई है और आम लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। असल में जब भी महंगाई बढ़ती है तो इसका सीधा असर लोगों की बचत पर दिखता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान देशभर के बैैंकों ने विभिन्न बचत योजनाओं की ब्याज दरें काफी कम की हैं। कोरोना संकट के बीते दो वर्षों के दौरान तो ब्याज दरें सर्वकालिक निचले स्तर पर रही हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपनी बचत को कैसे बचाएं। आप ये उपाय कर अपनी कमाई को महंगाई की मार से बचा सकते हैं।
बचत खाते में न रखें बड़ी रकम
वह दौर गया, जब लोग अपनी गाढ़ी कमाई अपने बचत खाते या सेविंग्स अकाउंट में रखते थे, जिस पर उन्हें सालाना सात-आठ प्रतिशत तक ब्याज मिल जाता था। इससे उनकी पूंजी बढ़ती रहती थी। वह वो समय था जब महंगाई की दर बैंकों के सेविंग्स और फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट्स की दर से कम होती थी। ऐसे में महंगाई की मार झेलने के बाद भी सालाना सेविंग्स की रकम सकारात्मक ही रहती थी और आपके मूलधन पर कोई नकारात्मक असर नहीं होता था।
अब स्थिति बिल्कुल अलग है। वर्तमान में कोई भी बैंक अपनी सबसे अच्छी जमा योजना पर भी औसतन पांच प्रतिशत से अधिक ब्याज नहीं नहीं दे रहा है।
अधिकतर बचत योजनाओं में तो यह पांच प्रतिशत से कम ही है। ऐसे में महंगाई की दर कभी भी बैंकों की ब्याज दर से अधिक हुई तो इसका सीधा मतलब यह है कि बैंक की किसी भी ऐसी योजना में रकम रखना सालाना हिसाब से घाटे का सौदा है। मसलन, अगर महंगाई दर आठ प्रतिशत हो और आपको बैंक से छह प्रतिशत भी ब्याज मिल रहा हो, तो आपकी पूंजी सालाना दो प्रतिशत कम हो रही है।
यही वजह है कि जानकारों के अनुसार सेविंग्स अकाउंट में उतनी ही रकम रखनी चाहिए, जितनी आपके दो से तीन महीनों के खर्च समेत कुछ आपातकालीन खर्च के लिए र्प्याप्त हो।
निवेश के अन्य बेहतर विकल्प की करें तलाश
वर्तमान समय में निवेश के कई ऐसे विकल्प हैं, जिनमें सालाना रिटर्न महंगाई दर से कहीं अधिक है। इनमें कुछ सरकारी योजनाएं भी हैं। लेकिन शेयर बाजार से जुड़े उपकरणों ने पिछलेे कुछ समय के दौरान निवेशकों और बचतकर्ताओं को नई तरह की उम्मीदें दी हैं। कोरोना संकट जैसे मुश्किल दौर में भी शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांकों ने निवेशकों को उम्मीद से बेहतर रिटर्न दिया है।
यही वजह है कि बीते दो वर्षों के दौरान शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की संख्या में तेज उछाल देखा गया है। पिछले पांच-सात वर्षों को ही देखें, तो वर्ष 2020 के नकारात्मक 14 प्रतिशत को छोड़कर बीते सभी वर्षों के दौरान बीएसई-सेंसेक्स का रिटर्न 10 प्रतिशत के ऊपर रहा है। वर्ष 2017 में सेंसेक्स ने 17 प्रतिशत, वर्ष 2018 में 11, 2019 में 17, 2020 में -24 और 2021 में 68 प्रतिशत का रिटर्न दिया है।
म्यूचुअल फंड्स भी सही हैं, अगर...
हाल के कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड्स के प्रति निवेशकों का रुझान तेजी से बढ़ा है। खासतौर पर शेयर बाजार के चुनिंदा प्रमुख व बेहतर प्रदर्शन करने वाले सूचकांकों को फॉलो कर रहे फंड्स को निवेशकों ने हाथोंहाथ लिया है। हालांकि अभी भी बहुत से निवेशकों में इसे लेकर थोड़ी हिचक बरकरार है। लेकिन ये वैसे निवेशक हैं, जो छोटी अवधि में बड़े मुनाफे की ओर देखते हैं और शेयर बाजार में होने वाले किसी भी अचानक नकारात्मक बदलाव के समय तुरंत बाजार से निकल जाना चाहते हैं। म्यूचुअल फंड योजनाएं अमूमन शेयर बाजार के प्रदर्शन से जुड़ी होती हैं, लिहाजा इनमें उन निवेशकों के लिए बहुत ज्यादा गुंजाइश है जो लंबी अवधि के लिए नियमित निवेश करना चाहते हैं।
पूूरा निवेश एक जगह नहीं करें
वैसे तो यह बात हर तरह के निवेशकों के लिए सही है। लेकिन अधिकतर जानकार कहते हैं कि शेयर बाजार के विभिन्न उपकरणों में निवेश करने वालों को कभी भी अपना पूरा निवेश किसी एक शेयर, एक सेक्टर या एक योजना में नहीं करना चाहिए। इसकी मुख्य वजह यह है कि किसी एक शेयर या सेक्टर के लिए कोई खास समयावधि खराब हो सकती है।
ऐसे में उस सेक्टर के निवेशकों का निवेश मूल्य उस अवधि के लिए तेजी से गिर जाता है। उस सेक्टर को इस गिरावट से उबरने में समय लग सकता है। इसलिए जानकार कहते हैं कि अगर निवेश को कई शेयरोें, सेक्टर या उपकरणों में बांट लिया जाए, तो किसी खास अवधि में एक योजना से हो रहे नुकसान की भरपाई दूसरी योजना की मजबूती से हो जाती है।