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- आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए विकास का अग्रदूत बना एमएसएमई
भारत जैसे देश के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। एमएसएमई ने रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृषि के बाद रोजगार पैदा करने वाला यह दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। देश की कुल जीडीपी में यह क्षेत्र लगभग 33 प्रतिशत का योगदान देता है। अनुमान है कि साल 2028 तक भारत के कुल निर्यात में इससे 80 लाख करोड़ रुपये का योगदान होगा।
भारत में, देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और निर्यात में योगदान के कारण इस क्षेत्र को विशेष महत्व मिला है। देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में, उद्यमिता विकास को आगे बढ़ाने में इस क्षेत्र ने विशेष रूप से योगदान दिया है। इसने क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने समेत देश की आय व धन के समान वितरण को सक्षम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
एमएसएमई क्षेत्र में संभावनाएं और अवसर
नीति-निर्माताओं को यह अच्छी तरह से पता है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एमएसएमई क्षेत्र में संभावनाएं और अवसर काफी हैं, लेकिन नियमों व अनुपालन को आसान बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों समेत विभिन्न विभागों से इस क्षेत्र को समय पर मदद की जरूरत है। प्रौद्योगिकी अपनाने में बाधा, उच्च रसद लागत, अपर्याप्त बैकवर्ड, फॉरवर्ड लिंकेज, ऋण व जोखिम पूंजी तक पहुंच की कमी, देरी से भुगतान की बारहमासी समस्या जैसी इस क्षेत्र के सामने आने वाली भौतिक बुनियादी ढांचे से संबंधित कई चुनौतियों के बावजूद, एमएसएमई अभी भी मजबूती से खड़े हैं और इन सभी बाधाओं के बावजूद देश में महत्वपूर्ण विकास हासिल करने के लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं।
भारत में 63 मिलियन से अधिक उद्यम हैं, जिनमें से केवल 20 मिलियन उद्यम पंजीकृत हैं और शेष 43 मिलियन अपंजीकृत हैं। इनमें से अधिकांश एमएसएमई सूक्ष्म श्रेणी से नीचे हो सकते हैं, जिसमें एक या दो व्यक्तियों के साथ मिलकर वे पूरे व्यवसाय का प्रबंधन कर रहे होंगे। सभी क्षेत्रों में ज्ञान की कमी, अपर्याप्त कौशल या यहां तक कि अपने व्यवसाय में हर विवरण के प्रबंधन के लिए समय की कमी के कारण, ये उद्यम अपने इष्टतम स्तर पर प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हैं। इन अपंजीकृत एमएसएमई को घरेलू व निर्यात बाजारों में मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला के साथ एकीकृत करने के लिए अतिरिक्त ध्यान और सहायता की आवश्यकता है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को इन इकाइयों के लिए विशेष योजनाएं और नीतियां तैयार करना जरूरी है ताकि उन्हें एमएसएमई के पदानुक्रम में क्रमिक रूप से ऊपर उठाया जा सके।
हर साल 27 जून को पूरी दुनिया एमएसएमई दिवस मनाती है। इस विशेष मौके पर इस साल हमारा मुख्य ध्यान इन अपंजीकृत एमएसएमई की समस्याओं का समाधान करने और उन्हें औपचारिक चैनलों में लाना होना चाहिए। उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पादों और सेवाओं को प्रदर्शित करने के लिए हमें एक मंच भी प्रदान करना चाहिए, जिससे उनकी क्षमता निर्माण और विकास को बढ़ावा मिले और विश्व स्तर पर वे प्रतिस्पर्धी बन सकें।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सूचकांक में समग्र उछाल
इसके अलावा, चूंकि सरकार विभिन्न उपायों के माध्यम से व्यापार करने में आसानी (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) को बढ़ावा दे रही है, जिसके परिणामस्वरूप, ईओडीबी सूचकांक में समग्र उछाल आया है। एमएसएमई अभी भी कई मुद्दों से जूझ रहे हैं, जो पूर्ण सक्षमता से उन्हें अपने लक्ष्य को साकार करने से रोक रहे हैं। भारत अभी भी अनुबंधों को लागू करने (163वें) और संपत्ति के पंजीकरण (154वें) जैसे क्षेत्रों में पीछे है। ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक समय और अधिक लागत पर, इसे पंजीकृत करने में संपत्ति के मूल्य का औसतन 7.8 प्रतिशत खर्च होता है, और इस प्रक्रिया में 58 दिन का समय लगता है। ओईसीडी देशों की तुलना में किसी कंपनी को स्थानीय अदालत के माध्यम से वाणिज्यिक विवाद को हल करने में तीन गुना अधिक समय लगता है। इस संबंध में, यह अनुशंसा की जाती है कि सरकार को डिजिटल अनुबंध और विवाद समाधान के उपयोग को प्रोत्साहित करना और उसे बढ़ावा देना चाहिए। इससे एमएसएमई को संविदात्मक प्रतिबद्धताओं को बेहतर और तेजी से लागू करने में मदद मिलेगी। अनुबंधों को लागू करने की प्रक्रिया को एमएसएमई-विशिष्ट तंत्र जैसे समर्पित एडीआर तंत्र, वर्चुअल एमएसएमई ट्रिब्यूनल आदि के माध्यम से भी सरल बनाया जाना चाहिए। इस तरह के तंत्र के परिणामस्वरूप विलंबित भुगतान और अन्य विवादों के संबंध में त्वरित मध्यस्थता हो सकती है, जो बदले में कार्यशील पूंजी के मुद्दे को काफी हद तक संबोधित करेगी।
अंत में, एमएसएमई स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और मजबूत करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। वे नए विचारों को जन्म देने के उत्प्रेरक हैं। स्टार्टअप उद्यमियों को आर्थिक विकास का चालक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसमें भारत के हाशिए पर रहने वाले लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की क्षमता होगी। जैसा कि हम जानते हैं, उच्च रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए उद्यमशीलता मार्ग सबसे वांछनीय मार्ग है। उद्यम का रास्ता चुनने वाले युवाओं को राज्य, वित्तीय और अन्य एजेंसियों से हर तरह के समर्थन और प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
भारत के लिए एमएसएमई क्षेत्र के योगदान के बिना 5 ट्रिलियन डॉलर की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करना मुश्किल होगा। क्या भारत के बढ़ते एमएसएमई क्षेत्र के कारण ही इसने देश को विश्व स्तर पर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। सही समर्थन और नीतियों के साथ, भारतीय एमएसएमई क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक गति प्रदान करेगा और भारत को एक वैश्विक महाशक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह एक व्यापक रूप से स्वीकृत तथ्य है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के साथ एमएसएमई क्षेत्र 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा, जिसका लक्ष्य भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को मौजूदा 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना है। यह निष्कर्ष निकालना उचित होगा कि पिरामिड के निचले स्तर के लोगों सहित सभी के लिए उच्च आर्थिक विकास और समृद्धि प्राप्त करने की भारत की दृष्टि को इसके लचीले और गतिशील एमएसएमई क्षेत्र द्वारा आगे बढ़ाया जाएगा।
(लेखक साकेत डालमिया, पीएचडी चैंबर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री के प्रेसिडेंट हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)