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- आदिवासी छात्रों को शिक्षित कर रहा 'एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय'
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली स्थित मेजर ध्यान चंद राष्ट्रीय स्टेडियम में मेगा राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव, 'आदि महोत्सव' का उद्घाटन किया। 16 से 27 फरवरी तक चलने वाला 'आदि महोत्सव' राष्ट्रीय मंच पर जनजातीय संस्कृति को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है, जिसमें पीएम मोदी ने आदिवासी छात्रों की शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के लिए जनजातीय खान-पान की अहमियत का मुद्दा भी उठाया।
उन्होंने बताया कि आदिवासी समुदाय के छात्र महज़ भाषा ज्ञान के अभाव में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनके अंदर हुनर की कमी नहीं है और न ही उनके जोश में कहीं भी कमी दिखाई देती है, इसके बावजूद उनके लिए आगे बढ़ पाना मुश्किल होता है। यही वजह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हमने प्राथमिक शिक्षा के लिए क्षेत्रीय भाषा को आवश्यक बनाया है। इसके पीछे हमारी मंशा महज़ इतनी है कि हमारे आदिवासी छात्र भी शिक्षित हों ताकि वे खुद को दुनिया से जोड़ पाएं। इससे उन्हें ही नहीं, दुनिया को भी लाभ होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में पढ़ाई के विकल्प शामिल
पीएम ने कहा, "गुजरात में आदिवासी क्षेत्रों में पहले साइंस स्ट्रीम के स्कूल नहीं थे। सवाल यह है कि जब आदिवासी बच्चा साइंस ही नहीं पढ़ेगा तो डॉक्टर-इंजीनियर कैसे बनेगा? इस चुनौती का समाधान हमने गुजरात में आदिवासी क्षेत्र के स्कूलों में साइंस की पढ़ाई का इंतजाम करके किया। आदिवासी बच्चे, देश के किसी भी कोने में हों, उनकी शिक्षा, उनका भविष्य ये मेरी प्राथमिकता है। आदिवासी युवाओं को भाषा की बाधा के कारण पहले बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता था। लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में पढ़ाई के विकल्प भी खोल दिये गए हैं। अब हमारे आदिवासी बच्चे, आदिवासी युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे, आगे बढ़ सकेंगे।"
एकलव्य मॉडल अवासीय विद्यालयों की संख्या में पांच गुना वृद्धि
उन्होंने आगे कहा, "आज देश में एकलव्य मॉडल अवासीय विद्यालयों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है। 2004 से 2014 के बीच 10 वर्षों में केवल 90 एकलव्य आवासीय स्कूल खुले थे। लेकिन, 2014 से 2022 तक इन 8 वर्षों में 500 से ज्यादा एकलव्य स्कूल स्वीकृत हुये हैं। वर्तमान में, इनमें 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है। एक लाख से ज्यादा जन-जातीय छात्र-छात्राएं इन नए स्कूलों में पढ़ाई भी करने लगे हैं। इस साल के बजट में ऐसे स्कूलों में करीब 40 हजार से भी ज्यादा शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती की घोषणा की गई है। अनुसूचित जनजाति के युवाओं को मिलने वाली स्कॉलरशिप में भी दो गुने से ज्यादा की बढ़ोतरी की गई है। इसका लाभ 30 लाख विद्यार्थियों को मिल रहा है।"
'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास'
इस साल के बजट में अनुसूचित जनजातियों के लिए दिया जाने वाला बजट भी 2014 की तुलना में पांच गुना बढ़ा दिया गया है। आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा रहा है। आधुनिक कनेक्टिविटी बढ़ने से पर्यटन और आय के अवसर भी बढ़ रहे हैं। देश के हजारों गांव, जो कभी वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित थे, उन्हें अब 4जी कनेक्टिविटी से जोड़ा जा रहा है। जो युवा अलग-थलग होने के कारण अलगाववाद के जाल में फंस जाते थे, वो अब इंटरनेट और इन्फ्रा के जरिए मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। ये 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' की वो मुख्य धारा है, जो दूर-सुदूर देश के हर नागरिक तक पहुंच रही है। ये आदि और आधुनिकता के संगम की वो आहट है, जिस पर नए भारत की बुलंद इमारत खड़ी होगी।
मोटा अनाज, जैसे सुपर फूड को 'श्रीअन्न' की पहचान दी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "इस वर्ष पूरा विश्व भारत की पहल पर 'इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर' भी मना रहा है। मिलेट्स, जिसे हम आमतौर की भाषा में मोटे अनाज के रूप में जानते हैं, सदियों से हमारे स्वास्थ्य के मूल में ये मोटा अनाज था। हमारे आदिवासी भाई-बहन के खानपान का वो प्रमुख हिस्सा रहा है। अब भारत ने ये मोटा अनाज, जो एक प्रकार से सुपर फूड है, इस सुपर फूड को 'श्रीअन्न' की पहचान दी है। जैसे श्रीअन्न बाजरा, श्रीअन्न ज्वार, श्रीअन्न रागी, ऐसे कितने ही नाम हैं। यहां के महोत्सव के फूड स्टॉल्स पर भी हमें श्रीअन्न का स्वाद और सुगंध देखने को मिल रहे हैं। हमें आदिवासी क्षेत्रों के श्रीअन्न का भी ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करना है।"
जंगलों की पैदावारें शारीरिक पोषण के लिए समृद्ध
"इससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ तो होगा ही, आदिवासी किसानों की आय भी बढ़ेगी। मुझे भरोसा है, अपने इन प्रयासों से हम साथ मिलकर विकसित भारत के सपने को साकार करेंगे। देशभर के हमारे आदिवासी भाई-बहन अनेक विविधतापूर्ण चीजें बना कर यहां लाए हैं। खास कर खेत में उत्पादित उत्तम चीजें। मैं दिल्लीवासियों, हरियाणा के गुरुग्राम जैसे पास के इलाके के लोगों को, उत्तर प्रदेश के नोएडा-गाजियाबाद के लोगों को आज यहां से सार्वजनिक रूप से आग्रह करता हूं, कि आप बड़ी तादाद में यहां आइए। आने वाले कुछ दिन ये मेला खुला रहने वाला है। आप देखिए दूर-सुदूर जंगलों में इस देश की कैसी-कैसी ताकतें देश का भविष्य बना रही हैं।
शारीरिक पोषण के लिए समृद्ध जंगलों की पैदावार
"जो लोग स्वास्थ्य को लेकर विशेष रूप सजग हैं, जो डाइनिंग टेबल की हर चीज के चुनाव को लेकर बहुत ज्यादा सतर्क रहते हैं, विशेष करके ऐसी माताओं-बहनों से मेरा आग्रह है कि आप आइए, हमारे जंगलों की जो पैदावारें हैं, वो शारीरिक पोषण के लिए कितनी समृद्ध हैं, आप देखिए। भविष्य में आप लगातार वहीं से अपना सामान मंगवाएंगे। जैसे नॉर्थ-ईस्ट की हल्दी, खास करके हमारे मेघालय की। उसके अंदर जो न्यूट्रिशनल वैल्यूज हैं, वैसी हल्दी शायद दुनिया में कहीं नहीं है। जब हम इसे खरीदते हैं, तो लगता है जैसे अब अपने किचन में हम यही हल्दी उपयोग करेंगे। इसलिए मेरा विशेष आग्रह है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जो लोग यहां हैं, वो यहां आएं और दिल्ली दम दिखाए कि आदिवासी भाई-बहन जो चीजें लेकर आए हैं, एक भी चीज उनको वापस ले जाने का मौका नहीं मिलना चाहिए। सारी की सारी यहां बिक्री हो जाए। इससे उन्हें नया उत्साह मिलेगा, और हमें संतोष मिलेगा।"