शिक्षा। एक ऐसी पद्धति, जो हमारे देश में सदियों से चली आ रही है, फिर भी इसमें नयापन तलाशने की कवायद हर बार की जाती है। बीते दिनों 'अपॉर्च्युनिटी इंडिया' ने बेंगलुरू में आयोजित 'एजुकेशन इनोवेशन समिट 2023' के दौरान इसी मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की। विषय था- "शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक को लाना आखिर इतना मुश्किल क्यों है? खासकर निवेश के मामले में किस तरह की मुश्किलें देखने को मिलती हैं?" एडटेक क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रही कंपनियों से जुड़ी कुछ हस्तियों ने इस चर्चा में हिस्सा लिया। इनके नाम हैं- 'आईएएन अल्फा फंड' के मैनेजिंग पार्टनर विनोद केनी, 'कलारी कैपिटल' के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश राजू, 'ट्राइका कैपिटल फैमिली ऑफिस' की प्रमुख सायना देनुगरा और 'इनफ्लेक्शन प्वॉइंट वेंचर्स' के पार्टनर विक्रम रामासुब्रमण्यन। इनके बेशकीमती अनुभवों से रूबरू होने के लिए पढ़िए यह लेख...
"शिक्षा के क्षेत्र में सबसे पहले निवेश करने वाली कंपनियों में 'कलारी' भी है। जब शिक्षा के क्षेत्र में प्रचार को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी, तब 'कलारी' ने कुछ अच्छी कंपनियों से संपर्क साधा, जिससे हमें काफी कुछ करने का मौका मिला। यह एक बड़ी वजह रही, जिससे हम तुलनात्मक रूप से अपने व्यवसाय को जल्दी आगे ले जाने में कामयाब हुए। बिजनेस में समय का बहुत महत्व है। अगर आपने कोई भी व्यवसाय गलत समय पर शुरू किया तो आप बहुत ज्यादा पैसा नहीं बना पाएंगे। अन्य किसी भी क्षेत्र की तरह एडटेक सेक्टर ने भी अच्छा और बुरा, दोनों ही दौर देखा है। अन्य किसी भी क्षेत्र की तुलना में यहां तकनीक का प्रयोग सबसे कम हुआ है। शिक्षा में तकनीक को लाने की राह में काफी रोड़े आते रहे हैं, जिनसे एक-एक करके बाहर निकलने के लिए हमने काफी मेहनत की है, परिणामस्वरूप आज हम यहां हैं।"
विशाल-एवरग्रीन हैं एडटेक-हेल्थटेक सेक्टर्स
"इस क्षेत्र से जुड़े अपने अनुभवों को अगर हम याद करें तो कहना होगा कि एडटेक और हेल्थटेक, दो ऐसे सेक्टर्स हैं, जहां आज भी तकनीक जितना दिखना चाहिए, उतना नहीं दिख रहा। टेक्नोलॉजी के लिए अब भी यहां काफी जगह है। हालांकि, खुद को आगे बढ़ाने के लिए इन क्षेत्रों से जुड़े लोग आज यहां लगातार प्रयासरत दिख रहे हैं। खास यह है कि दोनों ही सेक्टर्स आपको बेहतर और सक्षम बनाते हैं। साथ ही, ये दोनों मानवता से भी जुड़े हैं। एडटेक और हेल्थटेक, दोनों ही विशाल और एवरग्रीन सेक्टर्स हैं। आर्थिक रूप से यहां संभावनाएं भी काफी हैं। इकोनॉमी चाहे कितना ही ऊपर-नीचे जाए, शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टर्स ऐसे हैं, जो हमेशा ही काम करेंगे। इन दोनों सेक्टर्स में तकनीकी विकास के साथ स्टार्टअप करना आवश्यक है। हालांकि, हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि दोनों ही सेक्टर्स में तकनीक का उपयोग आसान नहीं है। वजह है- दोनों ही सेक्टर्स में काम करने वाले टीचर्स और डॉक्टर्स, अक्सर टेक्नो-सेवी नहीं होते। पिछले कई वर्षों से कोशिश की जा रही है कि इन दोनों सेक्टर्स में तकनीक को लाया जाए, लेकिन इसमें काफी मुश्किलें आ रही हैं। खासकर भारत में, इन क्षेत्रों में काम करने को लेकर बहुत ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
"इसके अलावा एडटेक फील्ड में अच्छे कंटेट तैयार करने की जरूरत है। कंपनियों को निवेश मुहैया कराने की आवश्यकता है, ताकि छात्रों को बेहतर शिक्षा दी जा सके। हम समझते हैं कि बेहतर कंटेंट और पढ़ाने का बेहतर तरीका, हमारे व्यवसाय को मजबूत बनाता है। वहीं, यह समझना कि फिजिकल क्लास यानी क्लासरूम शिक्षा को वर्चुअल क्लास या अन्य कोई माध्यम हटा सकता है, गलत है। तकनीक का चाहे जितना भी विकास क्यों न हो जाए, क्लासरूम शिक्षा को हटाना कभी भी आसान नहीं होगा। हां, दोनों को साथ-साथ चलाया जा सकता है। शिक्षकों, कक्षाओं, स्कूल और कॉलेजों को टेक्नोलॉजी के साथ जीने की आदत डालनी होगी। यह उनके जीवन में बड़ा बदलाव लाने में मददगार होगा। उनके हर काम को कम समय में और तेजी से पूरा करने में मदद करेगा।"
वर्चुअल क्लास अपनाना है मुश्किल
"फिजिकल क्लास के बजाय वर्चुअल क्लास को अपनाना इतना मुश्किल क्यों है, यह जानने में हमें काफी समय लग गया। आखिरकार, हमें समझ आया कि इस मामले में यहां कई बैरियर्स हैं। मनोवैज्ञानिक यानी साइकोलॉजी बैरियर्स और सोच को लेकर यानी परसेप्शंस बैरियर्स। एक अन्य सच यह है कि कंप्यूटर के सामने बैठकर पढ़ाई करना पूरी तरह से बोरिंग हो जाता है। कुछ ही प्रतिशत बच्चे ऐसे होते हैं, जो वाकई सीखने की चाहत रखते हैं और आप चाहे उन्हें क्लास में रखें या कंप्यूटर के सामने या उन्हें साइबेरिया ही क्यों न भेज दें, वहां से भी वे कुछ न कुछ सीखकर ही आएंगे। जबकि ज्यादातर प्रतिशत छात्र ऐसे हैं, जो एकाग्रचित होकर मोबाइल पर घंटों गेम खेल सकते हैं, वीडियो देख सकते हैं, शॉपिंग कर सकते हैं, लेकिन चाहकर भी क्लास करते समय अपना ध्यान दो मिनट से ज्यादा केंद्रित नहीं कर सकते। ऐसे बच्चों के लिए क्लासरूम में बैठकर पढ़ाई करना ही एकमात्र तरीका बच जाता है।
"असल में, क्लासरूम में उन्हें बहुत सारे प्रेशर हैंडल करने होते हैं। एक ओर टीचर्स का डर होता है, दूसरी ओर सहपाठियों का, एक ओर उनके मन में अपने साथी छात्रों से आगे निकलने की होड़ होती है तो दूसरी ओर, सामाजिक तौर पर खुद को बेहतर दिखाने की मानसिकता। कई अन्य कारण हैं, जो ऐसे बच्चों को भी क्लासरूम में मन लगाकर पढ़ने को मजबूर कर देती हैं, जो वर्चुअल क्लास के जरिये संभव नहीं हो पाता। आज के समय में जब सबकुछ ऑनलाइन हो चुका है, चारों ओर मेटावर्स की बातें हो रही हैं, तब भी यह कहना कि वर्चुअल क्लास के जरिये हम फिजिकल क्लास को पीछे छोड़ देंगे, पूर्णतः गलत होगा। वह दौर कभी नहीं आएगा। निःसंदेह शिक्षा के क्षेत्र में आज तकनीक का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने की जरूरत है। एडटेक के फायदे गिनवाए जाएं, लेकिन फिजिकल क्लासरूम को नकारने की गलती न करें। वह हर दौर में था और हमेशा रहेगा।"
- राजेश राजू, मैनेजिंग डायरेक्टर, कलारी कैपिटल
एजुकेशन में इनोवेशन और पूंजी निवेश
"जहां तक शिक्षा के क्षेत्र में पूंजी निवेश की बात है तो चाहे आप सीधे तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में पूंजी लगाकर अपना स्टार्टअप शुरू करने की सोच रहे हों या किसी ऐसी ही सोच वाली कंपनी पर अपनी पूंजी लगाने की तैयारी कर रहे हों, इस बात का ध्यान रखने की ज्यादा जरूरत होती है कि आपने किन इरादों के साथ स्कूल या कोई एडटेक कंपनी शुरू की है? ज्यादातर लोग, जो कहीं स्कूल चला रहे होते हैं, उनका उद्देश्य परोपकार की भावना होती है। देश में बड़ी-बड़ी कंपनियां चलाने वाले या आर्थिक रूप से बेहद संपन्न माने जाने वाले परिवारों को अक्सर एडटेक क्षेत्र में निवेश करते हुए देखा जा सकता है। ऐसे लोग स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी तो शुरू करने की सोचते ही हैं, कई बार टीचर्स, नर्सिंग और ऐसे ही कई लोगों को प्रशिक्षण देते हुए भी देखे जाते हैं। ऐसे लोग मानते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में आना हो तो उद्देश्य, परोपकार होना चाहिए। यहां पूंजी का निवेश भी परोपकार की भावना के साथ किया जाना चाहिए।
व्यावसायिक-परोपकार का नया मॉडल
"उनका कहना है, जरूरी नहीं कि शिक्षा के क्षेत्र में व्यापारिक मानसिकता के साथ आएं और इसे एकमात्र कमाई के साधन के तौर पर शुरू करें। ऐसे में जब परोपकार के उद्देश्य से काम कर रहे इन लोगों से कहा जाता है कि आज के समय में स्कूल और कॉलेज में तकनीक को उपयोग अनिवार्य है। यह आज की जरूरत बन चुकी है। तब उनके लिए यह काफी गंभीर सवाल बन जाता है। उनके अनुसार, वे परोपकार के उद्देश्य से इन एडटेक कंपनियों को चला रहे हैं, जहां तकनीक को लाना और उस पर काम करना व इन सबसे बढ़कर इसके लिए अलग से खर्च वहन करना, उन्हें बहुत जरूरी नहीं लगता। सच यह है कि यह उनके बजट से बाहर जाने लगता है। ऐसे में एडटेक यानी शिक्षा में तकनीक को लाने के लिए वे खुद को आसानी से तैयार नहीं कर पाते। वहीं, दूसरी ओर इस जरूरत ने अब एडटेक फिल्ड में वेंचर-फिलेनथ्रॉफी यानी व्यावसायिक-परोपकार का नया मॉडल लॉन्च कर दिया है। इसके तहत आर्थिक रूप से संपन्न ये परिवार अपने स्कूलों को परोपकार के साथ-साथ व्यवसाय के तौर पर भी देखने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि यदि यह हमें कुछ प्रतिशत भी कमाई दे, तो हमारे लिए एक बेहतरीन कदम हो सकता है। इस तरह उन्हें इससे अपने निवेश का रिटर्न मिलने की आशा भी रहती है और वे इस ओर अपने कदम बढ़ाने को तैयार हो जाते हैं।"
- सायना देनुगरा, प्रमुख, ट्राइका कैपिटल फैमिली ऑफिस
शिक्षकों को टेक-सेवी बनाना ज्यादा जरूरी
"जहां तक एडटेक में निवेश की बात है तो यहां ऐसे लोग भी आते हैं, जिनका शिक्षा से पहले कभी दूर-दूर का नाता तक न रहा हो। जब हम यहां आए तो हमने इसे केवल छात्रों से जोड़कर देखा, पर यह हमारी सबसे बड़ी भूल थी। हमारे लिए टेक्नोलॉजी को पूरी तरह शिक्षा के साथ जोड़कर देखना मुश्किल रहा। असल में, छात्रों के साथ-साथ यहां शिक्षक, कर्मचारी और कई अन्य लोगों को भी तकनीकी रूप से शिक्षित करने की आवश्यकता होती है। शिक्षकों को टेक-सेवी बनाना कहीं ज्यादा जरूरी होता है, ताकि छात्रों को आने वाली समस्याओं का वे आसानी से समाधान कर सकें। इस पूरी प्रक्रिया में संस्थानों के सभी कर्मचारियों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने की आवश्यकता होती है। फिर, कुछ दिनों तक उनके साथ रहना होता है, ताकि बीच में कभी किसी भी तरह की समस्या आए तो उन्हें दूर किया जा सके। कई बार उनकी समस्याओं को दूर करते हुए हमें कई ऐसी बातों का भी भान होता है, जिससे समझ आता है कि हमारी तकनीक में कुछ बदलाव जरूरी है। तकनीक के साथ कई बार ये कंपनियां बहुत बेहतर करती हैं तो कई बार लगातार प्रयासरत रहकर बाजार के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती हैं। ऐसे में किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले हमारे लिए जरूरी होता है कि पहले हम उसे गहराई से समझने की कोशिश करें।
ज्यादातर कंपनियां करती हैं निजी निवेश
"एडटेक में ऐसी कई कंपनियां हैं, जो गहराई से इसके हर एक क्षेत्र को समझना चाहती हैं, फिर उसमें निवेश करके बाजार में खुद को प्रचारित करती हैं, ताकि उन्हें इस निवेश का उचित मूल्य मिल सके। ज्यादातर कंपनियां इसमें निजी निवेश करती हैं और इसका अच्छा लाभ भी कमाती हैं। इस तरह वे तेजी से आगे बढ़ती जाती हैं। काफी हद तक यह उनके लिए रेवेन्यू फाइनांसिंग लाने में मददगार होता है। टेक्नोलॉजी का विकास कई बार शिक्षकों के लिए पाठ्यक्रम साझा करने, छात्रों को बेहतर ढंग से पढ़ाई करने हेतु उनकी मदद करने के लिए, नोट्स साझा करने, पढ़ाने आदि में काफी हद तक मददगार होता है। रेवेन्यू जेनरेट करने के मॉडल पर ये पूरी तरह फिट होते हैं। एडटेक सेक्टर केवल शिक्षक और छात्र के बीच की बात नहीं है, यह और भी बहुत कुछ है। इसमें वह इंफ्रास्ट्रक्चर या आधारभूत संरचना भी आता है, जहां वे पढ़ा रहे हैं। वह कंटेंट भी आता है, जो वे पढ़ा रहे हैं। यह भी आता है कि कंटेंट को वे किस तरह से छात्रों तक पहुंचा रहे हैं या भविष्य में इस कंटेंट से उन छात्रों को कितना लाभ हो सकता है। ऐसे कितने ही क्षेत्र हैं, जो इसके अंतर्गत आते हैं। हालांकि, सबसे जरूरी यह है कि वे छात्रों को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं, उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कौन सा जरिया अपना रहे हैं और इन सबके साथ कंपनी को कितना रेवेन्यू मिल पा रहा है।"
- विक्रम रामासुब्रमण्यन, पार्टनर, इनफ्लेक्शन प्वॉइंट वेंचर्स
एडटेक क्षेत्र में अवसर और चुनौतियां
किसी भी इंडस्ट्री में बीटूबी (बिजनेस-टू-बिजनेस) या बीटूसी (बिजनेस-टू-कंज्यूमर) मॉडल अपनाया जाता है। शिक्षा भी इससे अलग नहीं है। आज के समय में ज्यादातर कारोबार बीटूसी मॉडल को अपना रहे हैं क्योंकि बीटूबी में कंपनियां अपने कंज्यूमर्स तक सीधे नहीं पहुंच पातीं। किसी भी अन्य इंडस्ट्री में अपने कंज्यूमर्स को पहचानना मुश्किल नहीं है, लेकिन शिक्षा का क्षेत्र ऐसा है, जहां खरीदार और उपयोगकर्ता, दो अलग-अलग लोग हैं। यहां आप छात्रों से डील कर रहे होते हैं जबकि आपके असल कंज्यूमर्स उनके माता-पिता होते हैं। के-12 में किशोर छात्र भी बमुश्किल खुद से आगे बढ़कर नई-नई चीजें ढूंढ़ते और उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
के-12 में एलटीवी लोन-टू-वैल्यू रेश्यो की मांग काफी बढ़ी है। यहां निवेश करने वाली कंपनियों का कहना है कि हम एक बच्चे को किंडरगार्डन में कुछ बेचेंगे और जब तक वह 12वीं की पढ़ाई करेगा, तब तक उनसे हम कुछ-न-कुछ लाभ अवश्य कमाएंगे। हालांकि, कागज पर एलटीवी जितना अच्छा लगता है, वास्तविक दुनिया में यह उतना ही मुश्किल है। यही वजह है कि इनमें से ज्यादातर कंपनियां झूठी होती हैं। अगर आप इनका रेन्युवल रेट देखें तो मुश्किल से सात प्रतिशत होंगी। हां, हाईयर एजुकेशन के लिए निवेश करने वाली कंपनियों का रेन्युवल रेट 25 से 27 प्रतिशत तक होता है। कई बार के-12 से भी कंपनियों को लाभ का अच्छा प्रतिशत मिल जाता है पर ऐसा किस्मत से ही हो पाता है।
छात्रों तक अपनी बात पहुंचाने का तरीका सबसे अहम
कंटेंट की बात करें तो यह भी बहुत बड़ी समस्या नहीं होती। समस्या यह होती है कि उसे किस तरह से छात्रों तक पहुंचाया जाता है या कितने प्रतिशत छात्रों को सही मायने में वह समझ आता है। सबसे मुश्किल होता है कि आप बच्चों का ध्यान किस तरह से अपनी ओर खींचते हैं? बच्चों का ध्यान केंद्रित करवा पाना आसान नहीं होता। उम्मीद करनी चाहिए कि मेटावर्स और ऐसे ही कई तरीके आज के छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में काफी हद तक मददगार हों। यह सब बीटूसी का हिस्सा हैं। बीटूबी में समस्याएं ज्यादा हैं क्योंकि स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज सिस्टम, इन सभी ने सबकुछ बहुत ज्यादा विखंडित कर दिया है। ऐसा केवल भारत में ही नहीं है, दुनिया भर में यही हाल है। इन जगहों पर जाकर कंपनियों के लिए तकनीक लगाने को प्रेरित करना, एडमिनिस्ट्रेशन के लिए टेक इनेबिलिंग टूल्स लगाना, एलएमएस आदि प्रयोग में लाना, यह सब उन्हें बेचना आसान नहीं होता, हालांकि इन सभी क्षेत्रों में बीटूबी वाकई बेहतर काम करती है।
विखंडन आज की सबसे बड़ी समस्या
निवेशक कंपनियों के लिए यह सब बेचना इतना मुश्किल होता है कि कई बार कंपनियों को उनके निवेश का रिटर्न (आरओआई) तक नहीं मिल पाता। बीते दस वर्षों में अस्पतालों में बीटूबी शुरू करना तुलनात्मक रूप से फिर भी आसान रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में शिक्षा क्षेत्र में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा। कहा जा सकता है कि बीटूबी विखंडन आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। इसमें कोई शक नहीं कि बीते कुछ वर्षों में एडटेक कंपनियों व निवेशकों के हालात बुरे हुए हैं, लेकिन इससे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। किसी भी क्षेत्र में हालात हमेशा एक समान नहीं होते। कभी अच्छा तो कभी बुरा समय चलता ही रहता है। इसे हमें बुरे दौर की तरह लेना चाहिए, जो निःसंदेह बहुत जल्द दूर हो जाएगा, बस जरूरत है कि हम अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ करें।
एडटेक एकीकरण में हैं कई संभावनाएं
जहां तक एडटेक एकीकरण का मुद्दा है, तो यहां कई संभावनाएं हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शिक्षा के क्षेत्र में सबकुछ करने वाले सिर्फ टीचर्स होते हैं, अब चाहे वह वन-टू-वन नेटवर्किंग हो या वन-टू-मेनी, दोनों ही मामलों में सबकुछ करने वाले सिर्फ टीचर्स होते हैं। तकनीक नहीं होगा तो थोड़ी ज्यादा मुश्किल होगी, लेकिन अगर हुआ तब भी छात्रों के साथ उनके जुड़ने और उनके पढ़ाने के तरीके पर यह निर्भर होगा कि कितने लोग उनके ऐप को डाउनलोड करते और चलाते हैं। कई बार इन ऐप्स का प्रयोग टीचर्स को शिक्षित करने के लिए भी किया जाता है। ऐसे में जरूरत है कि सभी एक साथ आएं और मिलकर तकनीक का लाभ उठाएं। ऐसा हो, तभी निवेशकों को भी ज्यादा से ज्यादा लाभ हो पाएगा।
सरकार को इस क्षेत्र में आना चाहिए
शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक को लाने के मामले में सरकार, निजी संस्थानों और व्यावसायिक मानसिकता से यहां काम कर रहे लोग, अपने साथ जुड़े लोगों के साथ अपस्केलिंग और रीस्केलिंग का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार को इस क्षेत्र में जरूर आना चाहिए। राजनीति करने के लिए नहीं, विकास को ध्यान में रखकर। इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर वे अन्य क्षेत्रों में जिस तरह से काम कर रहे हैं, एडटेक सेक्टर में भी उन्हें उसी अंदाज में काम करना चाहिए। इसके अलावा, जहां तक रोजगार देने का मुद्दा है तो इस बारे में भी उन्हें अवश्य सोचना चाहिए। तकनीक का प्रयोग करने संबंधी ज्ञान केवल स्कूल या कॉलेज में ही नहीं, बल्कि सभी प्रोफेशनल्स को भी दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम जॉब के लिए तैयार नहीं हैं। शिक्षा के क्षेत्र में 'सिंपलीलर्न' की तरह काम करना चाहिए, जहां लोगों को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें मोटिवेट भी किया जाता है।