वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक को सौंपे गए एक बयान में, पीएचडी चैंबर ने सरकार से बैंकिंग मानदंडों को बदलने पर विचार करने का आग्रह किया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि बचत बैंक खातों पर बैंकों द्वारा भुगतान किए जाने वाले ब्याज के बराबर एमएसएमई को उनके चालू खाते की शेष राशि पर ब्याज का भुगतान करने की सलाह दी जाए।
बयान में कहा गया है कि एमएसएमई देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रमुख योगदानकर्ता हैं। पीएचडी चैंबर ने कहा कि यह क्षेत्र जीडीपी में अत्यधिक योगदान देता है। साथ ही, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के उद्यमिता विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे देश में बड़ी संख्या में लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। बयान में यह भी कहा गया है कि एमएसएमई इकाइयां देश के प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के साथ बैंकिंग कर रही हैं। सामूहिक रूप से अपने चालू खातों में ये पर्याप्त शेष राशि भी बनाए रखती हैं क्योंकि उन्हें बैंकों के साथ बचत बैंक खाते खोलने की अनुमति नहीं है।
अपने उधार खातों, जैसे- कैश क्रेडिट या ओवरड्राफ्ट आदि का संचालन करने वाले एमएसएमई, ऐसे खातों के माध्यम से अपने लेन-देन को रूट करते हैं, लेकिन किसी भी क्रेडिट सीमा का लाभ नहीं उठा पाते। वे ऐसे खातों में क्रेडिट बैलेंस बनाए रखते हुए अपने चालू खातों को संचालित करते हैं। पीएचडी चैंबर ने अपने बयान में कहा, "चूंकि बैंकों द्वारा चालू खातों पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, इसलिए एमएसएमई ऐसे क्रेडिट बैलेंस पर पर्याप्त ब्याज लाभ खो देते हैं। उनका पैसा चालू खातों में बेकार पड़ा रहता है, जिसका फायदा बैंकों को मिलता है। दूसरी ओर, बैंक चालू खाते में शेष राशि की न्यूनतम सीमा न बनाए रखने पर शुल्क लगाते हैं।"
"बैंकों (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र) के चालू खातों में एमएसएमई क्षेत्र की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है क्योंकि वे सभी व्यावसायिक उद्यमों का 99 प्रतिशत हिस्सा हैं। इन बैंकों ने एमएसएमई इकाइयों के चालू खातों में कोई ब्याज न देकर महत्वपूर्ण लाभ अर्जित किया है, जो उचित प्रतीत नहीं होता। ऐसे में बैंकों को यह सलाह दी जानी चाहिए कि एमएसएमई को उनके चालू खाते की शेष राशि पर ब्याज दी जाए। यह बचत बैंक खातों पर दिए जाने वाले ब्याज दर के बराबर होना चाहिए", पीएचडी चैंबर ने कहा। बता दें कि पीएचडी चैंबर ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय व नीति आयोग को भी यही बयान भेजा है।