प्लास्टिक्स पर बैन लगने के बाद कागज उद्योग में भारी उछाल आया। इसका मूल कारण यह है कि प्लास्टिक्स जहां पर्यावरण के लिए खतरा है। वहीं सेहत पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन कागज संबंधी वस्तुओं के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। ये न तो पर्यावरण के लिए खतरा है और न ही सेहत के लिए। ऐसे में मांग बढ़ना लाजिमी है। इसके अलावा इसकी शुरुआत में भी किसी खास तरह की परेशानी नहीं है। तो आइए जान लें कि कागज संबंधी उद्योग लगाने के लिए आपको क्या-क्या कदम उठाने होंगे? साथ ही जानेंगे कि इसमें निवेश, जमीन, मशीन, रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस या फिर कर्मचारियों की संख्या कितनी होगी और किस तरह आप अपने इस कारोबार को एक शहर से दूसरे शहर में बढ़ाते जाएंगे?
कागज संबंधी उत्पादों की सबसे खास बात तो यह है कि इनमें किसी भी तरह का केमिकल नहीं मिला होता। साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद अनुकूल हैं यानी कि इसका बाजार बड़ा है। अगर आपको यह व्यवसाय करना है तो सबसे पहले कच्चा माल रद्दी, अखबार, पेपर रोल व पेपर बनाने की मशीन का एक कोटेशन ले लें। इसके बाद रजिस्ट्रेशन एवं लाइसेंस प्रक्रिया को पूरा करना होता है, जिसमें अपने व्यवसाय का एमएसएमई के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इसके बाद आपको अपनी विनिर्माण यूनिट के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी यानी कि नो ऑब्जेक्ट सर्टिफिकेट प्राप्त करना होगा। इस सर्टिफिकेट के बाद फैक्ट्री का लाइसेंस लेना होगा। यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद जीएसटी रजिस्ट्रेशन और अंत में आपको अपने ब्रांड के नाम का ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस तरह कंपनी शुरू करने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
कागज प्लेट्स निर्माण के लिए जरूरी हैं ये बातें भी
400 से 500 स्कॉयर फीट की जमीन पर कागज प्लेट्स निर्माण यूनिट की शुरुआत की जा सकती है। मशीनों की बात करें तो प्रति मशीन 80 हजार का खर्च आएगा। एक दिन में प्रति मशीन 10 से 40 हजार तक कप और प्लेट का निर्माण किया जा सकता है। यानी कि यह आपको तय करना होगा कि आपको एक साथ कई शहरों में बिक्री करनी है तो इसके आधार पर कितना उत्पादन चाहिए और इसी के अनुसार आप मशीनें खरीद सकते हैं। इसके बाद बात आती है कि आपके पास कितने कुशल श्रमिक हैं जो मशीनों को बेहतर तरीके से चलाना जानते हैं क्यूंकि बगैर इनके यूनिट में काम होना ही मुश्किल है तो 3 से 4 कुशल श्रमिकों का होना जरूरी है।
भारत के अलावा भी हो रहा निर्यात
यूं तो संपूर्ण देश में ही कागज से निर्मित होने वाले उत्पादों की मांग है लेकिन पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, चंडीगढ़ और हरियाणा में अधिक है। इसके अलावा यहां निर्मित होने वाले कागज संबंधी उत्पाद बाहर भी भेजे जाते हैं। इसमें म्यांमार, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भूटान जैसे देश शामिल हैं।
यहां जानें कितना बड़ा है कागज का बाजार
स्थानीय स्तर पर कागज के बाजार की बात करें तो इसका बाजार 80 हजार करोड़ का है और इसके सापेक्ष सालाना टर्नओवर 70 हजार करोड़ मिल रहा है। विश्व स्तर पर यह वर्ष 2021 में 35153 करोड़ डॉलर था। वर्ष 2022 में यह 35439 करोड़ डॉलर हो गया और 2029 तक इसके 37270 करोड़ डॉलर होने का अनुमान लगाया जा रहा है। खास बात यह है कि चीड़, देवदार, हेमलॉक, चिनार, सन्टी, हिकॉरी, मेपल और स्वीटगम से कागज बनाने के अलावा अब कृषि अपशिष्टों यानी कि पौधों के बचे हुए डंठल, पत्ते, घास, फूल, फलों के छिलके और अनाज के भूसे से भी कागज व अन्य संबंधित उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। इससे निर्मित होने वाली वस्तु से पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचेगा और धीरे-धीरे वस्तुओं की रिसाइक्लिंग प्रक्रिया को भी बल मिलेगा।