देश- दुनिया पर अपनी सुरीली आवाज से सबके दिलों में छाने वाली लता मंगेशवर ने अब सबको अलविदा कह दिया है। उन्होंने 6 फरवरी को ब्रीच कैंडी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। चलिए आपको बताते है बचपन से लेकर अब तक का सफर।
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को एक मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक थियेटर कलाकार थे और गायक भी थे। लता का पहले नाम हेमा था, लेकिन पिता दीनानाथ मंगेशकर ने नाटक 'भाव बंधन' में एक चरित्र लतिका से प्रभावित होकर बेटी का नाम लता कर दिया था। उन्होंने 5 वर्ष की उम्र में अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के संगीत नाटकों में गायन और अभिनय शुरू किया था।
स्कूल में अपने पहले दिन ही लता मंगेशकर ने अन्य बच्चों को संगीत की शिक्षा देना शुरू कर दिया था और जब शिक्षक ने उन्हे रोक दिया था तो ये बात लता को इतनी बुरी लगी थी कि उन्होंने स्कूल जाना बंद कर दिया था। हालांकि, कुछ सूत्रों का दावा रहा है कि वह अपनी छोटी बहन आशा के साथ स्कूल जाती थीं, इस पर स्कूल ने आपत्ति जताई थी, इसलिए उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था।
लता मंगेशकर जब 13 वर्ष की थीं, तभी पिता दीनानाथ मंगेशकर की हृदयाघात की वजह से निधन हो गया था। इसके बाद लता पर परिवार को चलाने का बोझ आ गया था। उन्होंने 1940 के दशक में संगीत की दुनिया में खुद को स्थापित करने के लिए कठोर संघर्ष किया। उन्होंने पहला गीत 1942 में मराठी फिल्म 'किती हसाल' में गाया था लेकिन ये फिल्म रिलीज नहीं हो सकी थी।लता मंगेशकर को पहली बार मंच पर गाने के लिए 25 रुपये दिए गए थे। यही उनकी पहली कमाई थी।
वर्ष 1945 में लता मंगेशकर मुंबई चली गईं, लेकिन उनका पहला गीत 1949 में हिट हुआ फिल्म थी 'महल' और वह गाना था 'आएगा आने वाला', इसके बाद वह हिंदी सिनेमा की सबसे अधिक मांग वाली आवाजों में से एक बन गई थीं।
वर्ष1963 में जब लता मंगेशकर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गीत गाया था, तब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू छलक पड़े थे। 1974 में वह पहली भारतीय शख्सियत बनीं जिसने लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में अपनी प्रस्तुति दी थी।
लता मंगेशकर संगीत निर्देशक गुलाम हैदर को अपना गॉडफादर मानती थीं क्योंकि बतौर लता गुलाम हैदर ने ही सबसे पहले उनकी प्रतिभा में पूरा विश्वास जताया था।
बॉलीवुड के शो मैन राजकपूर ने लता मंगेशकर की ही जिंदगी पर फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम बनाई थी। इस फिल्म में लता मंगेशकर ने अभिनय करने का वादा किया था लेकिन बाद में उन्होंने मना कर दिया था। बाद में ज़ीनत अमान ने उनके कैरेक्टर रूपा का रोल निभाया था।
लता मंगेशकर के गाए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है 'ऐ मेरे वतन के लोगो। पहले लता ने कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि वह रिहर्सल के लिए वक्त नहीं निकाल पा रही थीं। कवि प्रदीप ने किसी तरह उन्हें इसे गाने के लिए मना लिया। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह पर हुई। लता इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थीं। दोनों साथ में इसकी रिहर्सल कर भी चुकी थीं। मगर इसे गाने के लिए दिल्ली जाने से एक दिन पहले आशा ने जाने से इनकार कर दिया। तब लता मंगेशकर ने अकेले ही इस गीत को आवाज दी और यह अमर हो गया।
उन्होने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, जो किसी के लिए एक रिकॉर्ड है। करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी। 1960 से 2000 तक दौर था, जब लता की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं। 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया था। आखिरी गाना 2015 में आई फिल्म डुन्नो वाय में था।
लता मंगेशकर को 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। इससे पहले पद्म विभूषण, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के सम्मान समेत कई सम्मान मिल चुके थे। कम लोग जानते हैं कि लताजी संगीतकार भी थीं और उनका अपना फिल्म प्रोडक्शन भी था, जिसके बैनर तले बनी फिल्म "लेकिन" थी। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट गायिका का नेशनल अवॉर्ड मिला था। 61 साल की उम्र में गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड पाने वाली वे एकमात्र गायिका हैं। फिल्म "लेकिन" को 5 और नेशनल अवॉर्ड मिले थे।
अपको बता दे कोरोना और निमोनिया के कारण उनका निधन हो गया था और रविवार शाम 7 बजकर 16 मिनट पर उन्हें मुखाग्नि दी गई। उनका अंतिम संस्कार मुंबई के शिवाजी पार्क में किया गया। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े लोग आए और करीब से श्रद्धांजलि दी।