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- जानें क्यों कलात्मक शिक्षा को शिक्षा कार्यक्षेत्र में शामिल करने की है आवश्यकता
आज के स्कूल बौद्धिक कार्यो के अधार पर प्रोफेशनल ज्ञान और कुशलता के विकास पर जोर देते हैं। इसलिए यह बच्चों की शिक्षा में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है कि उनमें कला और सौंदर्य की आनंद लेने की क्षमता का भी विकास किया जाए।
कलात्मक शिक्षा बच्चों में सौंदर्य के भाव का विकास करता है। यह सुंदता के लिए और प्रकृति के प्रति समानुपात और पारस्परिक संबंधों में सुंदरता की ओर विकास करता है। नीचे कुछ ऐसे कारणों पर चर्चा की गई है जिससे आप कलात्मक शिक्षा को अपने व्यवसाय में शामिल करने के महत्व को समझ पाएंगे।
कलात्मक गुणों को देखने की क्षमता
एक बच्चे को प्राकृतिक चमत्कारों, आकारों, रंगों और चित्रों की प्रशंसा करने में सक्षम बनाने के लिए यह आवश्यक है कि वह पहले इन सभी की पहचान कर पाए। एक बच्चा किसी विशिष्ट आकार को पहचानने में असमर्थ हो सकता है यदि उस वस्तु या प्रकार को समझने की उसकी क्षमता का विकास ही न हुआ हो। अगर आपकी कलात्मक गुणों को समझने की क्षमता का विकास नहीं हुआ है तो हम उन्हें अनुभव ही नहीं कर सकते हैं।
कलात्मक संबंध तब बनते हैं जब आप कलात्मक गुणों को पहचान पाएं। इसे पहचानने की समर्थता में केवल भावनात्मक समर्थता ही शामिल नहीं है बल्कि तर्कसंगत एक मानसिक क्षमता और विशिष्ट प्रकार का ज्ञान भी शामिल है।
कलात्मक गुणों को अनुभव की क्षमता
कलात्मक गुणों में उत्साह, आनंद और आशावादी भावनाएं भी शामिल हैं। इस तरह के भावनात्मक परिस्थितियां किसी व्यक्ति विशेष को सक्षम करते हैं और उन्हें भी कला का निर्माण करने के लिए प्रेरित करते हैं। कलात्मकता अनुभव करने की क्षमता का विकास और विस्तार करना आवश्यक है। जो इस प्रक्रिया के ज्ञानात्मक तत्व है जिन्हें हम इस दौरान पहचानते हैं उनमें भी भावनात्मक टोन होनी चाहिए जिसके साथ हम अनुभव बनाते हैं और इसी के कारण कलात्मक अनुभव का निर्माण हो पाता है। कलात्मक गुणों के साथ हम बच्चों और युवाओं के भावनात्मक जीवन को संपन्न करते है और कलात्मक मूल्य की भावना का विकास करते है।
रचनात्मक क्षमता
यह बहुत आवश्यक है कि बच्चों को एक ऐसी गतिविधियों में हिस्सा लेने दिया जाएं ताकि उनकी रचनात्मक क्षमता का विकास हो सकें। यह वह रचनात्मकता है जो हर रोज के जीवन में सौंदर्य मूल्यों के निर्माण में, वातावरण और कार्यस्थल में सामान्य कलात्मक सभ्यता की देखभाल करता है।
हम सभी सामान्य रूप से रचनात्मक क्षमताओं के साथ जन्म नहीं लेते है बल्कि हमें उनका विकास करना पड़ता है। कलात्मक बोध पूरी तरह से बच्चे और कला के बीच के संबंध पर निर्भर करता है।
कलात्मक निर्णय
कलात्मक गुणों का निर्णया मूल्यांकन करने के लिए मूल्यांकन मापदंड का ढांचे की मांग करता है। सुंदरता को अपनी वास्तविक मूल्य को बताने के आधार पर हमें उसकी विशिष्टताओं और उसकी भाषा से परिचित होना आवश्यक है। ये कार्य सामान्य सभ्यता को मदद करता है, कला समीक्षकों के प्रोफेशनल ट्रेनिंग को नहीं।
कलात्मक शिक्षा के माध्यम से एक बच्चा एक सुंदर और जो सुंदर नहीं है के बीच अंतर को, कलात्मक मूल्यवान और गैर मूल्यवान के बीच का अंतर को और कलात्मक मूल्यवान कार्य को गैर मूल्यवान कार्य से अलग करने में सक्षम बनाता है। इस तरीके से बच्चे कलात्मक का निर्णय करने और मूल्यांकन करने की आधारभूत क्षमता का विकास कर पाएंगे।