आरबीआई ने एमएसएमई को बड़ी राहत देते हुए ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) के दायरे को बढ़ाया है। इस योजना से एमएसएमई को और आसानी से इनवॉयस के आधार पर भुगतान मिल जाएगा।
टीआरईडीएस योजना से एमएसएमई कॉरपोरेट, सरकारी विभाग या किसी सरकारी एजेंसी को जो गुड्स सप्लाई करता है, उस सप्लाई के इनवॉयस के आधार पर वित्तीय संस्था एमएसएमई को भुगतान कर देती है। बाद में वित्तीय संस्थाएं वह भुगतान कॉरपोरेट और सरकारी एजेंसी से लेती है। इस प्लेटफार्म पर अभी एमएसएमई से गुड्स खरीदने वाले, गुड्स बेचने वाले और वित्तीय संस्थान है, लेकिन अब इंश्योरेंस कंपनियां भी प्लेटफार्म का हिस्सा होंगी।
टीआरइडीएस के तहत एमएसएमई को सिर्फ अपना इनवॉयस अपलोड करना होता है और उस प्लेटफार्म पर मौजूद वित्तीय संस्थाएं उन्हें भुगतान की पेशकश करती है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले के मुताबिक जी-20 देशों से आने वाले लोग यूपीआई(यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस) के माध्यम से भुगतान कर सकेंगे।
शुरुआती दिनों में यह सुविधा चुनिंदा एयरपोर्ट पर होगी। बाद में इसे देश के अन्य हिस्सों में बहाल की जाएगी। इस साल भारत जी-20 समूह की अध्यक्षता कर रहा है और पूरे साल भारत के विभिन्न शहरों में जी-20 की बैठक आयोजित की जाएगी। यूपीआई से भुगातन के लिए विदेशी यात्रियों के खाते को यूपीआइ से जोड़ा जाएगा और आरबीआई के मुताबिक इस संबंध में विस्तृत गाइडलाइंस जारी की जाएगी।
ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम योजना क्या है
ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम एमएसएमई को कॉरपोरेट से मिलने वाले प्राप्यों के भुगतान के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक(आरबीआई) द्वारा शुरू की गई एक पहल है। इसका गठन आरबीआई द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 के तहत स्थापित नियामक ढांचे के तहत किया गया है।
ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम प्लेटफॉर्म का मुख्य उद्देश्य एमएसएमई की महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों जैसे-तत्काल प्राप्यों का नकदीकरण और ऋण जोखिम को समाप्त करने वाले दोहरे मुद्दों का समाधान करना है।
यह एक नीलामी तंत्र द्वारा सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित बड़े कॉरपोरेट के समक्ष एमएसएमई के विनिमय बिलों के बट्टाकरण में सहायता प्रदान करता है। इससे प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार दरों पर व्यापार प्राप्यों की त्वरित वसूली सुनिश्चित होती है।
भारत में विक्रेताओं के लिये फैक्टरिंग (जब एमएसएमई विक्रेता इनवॉयस अपलोड करता है और ब्याज़ लागत का वहन करता है, तो इसे ‘फैक्टरिंग’ कहा जाता है।) विदाउट रीकोर्स (लेनदार केवल बकाया कर्ज को पूरा करने के लिए गिरवी को देख सकता है, न कि देनदार की व्यक्तिगत संपत्ति) शुरू करने का एक प्रयास है, इससे एमएसएमई को प्राप्यों की त्वरित वसूली के साथ-साथ योग्य मूल्य का पता लगाने में सहायता होगी।
एमएसएमई विक्रेताओं के व्यापार प्राप्यों के वित्तपोषण के लिए विक्रेता और खरीदार दोनों ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम के जरिए लेन-देन शुरू कर सकते हैं।