बीते दिनों बेंगलुरू में 'एजुकेशन इनोवेशन समिट 2023' का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान, शिक्षा के क्षेत्र के कई सब सेक्टर्स पर गहन चर्चा हुई, खासकर जिनका संबंध बचपन में सीखने से हो। इस मौके पर शिक्षा और तकनीक क्षेत्र से जुड़ी कई जानी-मानी हस्तियां कार्यक्रम में मौजूद रहीं। इनमें से कुछ ने कोरोना काल के दौरान छोटे बच्चों को दी जाने वाली ऑनलाइन शिक्षा को लेकर अपने विचार रखे।
चर्चा का विषय था- "प्रारंभिक शिक्षा में आया नया प्रचलनः बदलाव और चुनौतियां"। इस विषय पर चर्चा करने वाले पैनल में 'लर्निंग एज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड' के फाउंडर एंड मैनेजिंग डायरेक्टर विट्ठल भंडारी, 'जी लर्न लिमिटेड' के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर रितेश हांडा और 'बायसिल वुड्स इंस्टीट्यूशंस' के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आलोक भीमेश मौजूद थे। चर्चा की सूत्रधार थीं, 'आन्ट्रप्रेन्योर इंडिया' की एडिटर-इन-चीफ रितु मार्या।
छोटे बच्चों को सिखाने के लिए किट था जरूरी
कोरोना महामारी के दौरान बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने के क्रम में किस तरह की चुनौतियां सामने आईं, मुद्दे पर बोलते हुए 'जी लर्न लिमिटेड' के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर रितेश हांडा ने कहा, "महामारी के दौरान प्रारंभिक शिक्षा के दौरान बिलकुल छोटे बच्चों को सिखाने के लिए किट तैयार करना बहुत जरूरी था, क्योंकि दो से पांच साल तक के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना काफी मुश्किल था। अब महामारी दूर जा चुकी है। ऐसे में मुझे लगता है कि हर कोई स्कूल वापिस आना चाहता है और स्कूल में ही रहना चाहता है।
महामारी ने हमें 10 साल पीछे धकेल दिया
वह कहते हैं, "जरूरत अब इस बात की है कि हम अपने बच्चों को देश का एक अच्छा नागरिक बनाएं। अगर वे घर बैठे ऑनलाइन पढ़ाई करते रहे तो यह मुमकिन नहीं हो पाएगा। वैसे बच्चे, जिनका जन्म साल 2019 को हुआ है, वे तो अब तक स्कूल भी नहीं जा पाए हैं। कहना गलत न होगा कि महामारी ने हमें 10 साल पीछे धकेल दिया है। प्राथमिक शिक्षा में तकनीक का प्रयोग किसी भी तरह से सफल नहीं हो सकता, खासकर तब, जब छोटे बच्चों का परिचय पहले आसपास के लोगों और आसपास के माहौल से अच्छी तरह से नहीं करवा दिया जाता। "
बच्चे ज्यादा समय दूसरे बच्चों संग बिताएं
हांडा के अनुसार, "दो से पांच साल के बच्चों के लिए सबसे जरूरी होता है कि वे अपना ज्यादा से ज्यादा समय दूसरे बच्चों के साथ और उनके आसपास बिताएं। इससे उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलता है और वे यह भी समझ पाते हैं कि आखिर दूसरों के साथ किस तरह से रहना चाहिए या किस तरह से बातचीत करनी चाहिए, वगैरह। इसके लिए हमें टियर टू और टियर थ्री शहरों की ओर रुख करना चाहिए, और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आखिर वहां उन्हें किस तरह से शिक्षा के प्रति जागरुक किया जा रहा है?"
37 मिलियन बच्चे प्रारंभिक शिक्षा लेने में सक्षम नहीं
'लर्निंग ऐज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड' के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर विट्ठल भंडारी प्रारंभिक शिक्षा ट्रेंड्स के बारे में कहते हैं, "प्रारंभिक शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है। बच्चों को अकादमिक शिक्षा की ओर भेजने से पहले माता-पिता को कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। मैंने देखा है कि आज लोग इस बारे में काफी हद तक जागरुक हैं, लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह जागरुक हैं। अगर आप यूनेस्को की रिपोर्ट पर ध्यान दें तो 37 मिलियन बच्चे आज भी प्रारंभिक शिक्षा लेने में सक्षम नहीं हैं।
बच्चों का व्यावहारिक सीख से परिचय जरूरी
प्रारंभिक शिक्षा में तकनीक के प्रयोग का विरोध करते हुए वह कहते हैं, "मैं प्रारंभिक शिक्षा में तकनीक के प्रयोग के खिलाफ हूं। बचपन से अर्थ होता है कि बच्चों का व्यावहारिक सीख से परिचय करवाएं। इस उम्र में बच्चों को हमें मोबाइल स्क्रीन पर लाकर नहीं बिठा देना चाहिए।"
भंडारी की इस बात से सहमत होते हुए हांडा कहते हैं, "प्रारंभिक शिक्षा के दौरान तकनीक का प्रयोग सफल नहीं कहा जा सकता, बल्कि हमें बच्चों को भौतिक वातावरण में ले जाना चाहिए। इसके लिए हमें टियर टू, टियर थ्री शहरों में जाकर बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरुक करना चाहिए।"
'बायसिल वूड्स इंस्टीट्यूशंस' के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आलोक भीमेश ने भी उनके स्वर से स्वर मिलाते हुए कहा, "हमें एक उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली की जरूरत है। खासकर अगर किसी खास बच्चे की नींव को मजबूत करना है तो हमें एक उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता होगी।"
नैतिक मूल्यों पर दे रहे ज्यादा ध्यान
टीचर ट्रेनिंग के बारे में बोलते हुए हांडा कहते हैं, "हमने टीचर ट्रेनिंग को पूरी तरह से बदल दिया है क्योंकि हमें महसूस हुआ कि माता-पिता की ओर से भी आज जो मांग की जा रही है, वह पहले के मुकाबले पूरी तरह अलग है। अब हमने नैतिक मूल्यों की ओर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। साथ ही, हमने शिक्षकों को यह प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है कि बच्चों को समझाएं कि क्लास में फर्स्ट न भी आएं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हम उन्हें सिखाते हैं कि जीवन में आत्मविश्वासी और कम संकोची कैसे बनना चाहिए।"
खेलने को दूसरे बच्चों के साथ पार्क भेजें
दर्शक दीर्घा में बैठे एक प्रश्नकर्ता को जवाब देते हुए हांडा कहते हैं, "माता-पिता को उनके बच्चों को सेलफोन स्विच ऑफ करके देना चाहिए। मैं आप सभी को यही सलाह देना चाहूंगा कि अपने बच्चों को हर वक़्त मोबाइल, टेलीविज़न और कंप्यूटर के सामने न बिठाएं। खेलने के लिए उन्हें दूसरे बच्चों के साथ पार्क भेजें। फिर, वे खुद ही बहुत कुछ सीख जाएंगे।"