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- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकरों से कहा, छोटे व्यवसायों को ऋण देने में अधिक सक्रिय रहें
नमस्कार!
देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री श्री पंकज चौधरी जी, डॉक्टर भागवत कराड जी, भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर श्री शक्तिकांता दास जी बैंकिंग सेक्टर के सभी दिग्गज, भारतीय उद्योग जगत के सभी सम्मानित साथी, कार्यक्रम में जुड़े अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों, मैं जब से यहां आया हूं। जो कुछ भी सुना उसमें विश्वास ही विश्वास नजर आ रहा है। यानी हमारा आत्मविश्वास का स्तर इतना जीवंत हो, ये अपने आप में बहुत बड़ी संभावनाओं को संकल्प में परिवर्तित करते हैं और सब मिलकर के चले तो संकल्प को सिद्भी प्राप्त करने में मैं नहीं मानता हूं की देर लगेगी। किसी भी देश की विकास यात्रा में एक ऐसा समय आता है, जब वो देश नई छलांग के लिए नए संकल्प लेता है और फिर पूरे राष्ट्र की शक्ति उन संकल्पों को प्राप्त करने में जुट जाती है। अब आजादी का आंदोलन तो बहुत लंबा चला था। 1857 से तो विशेष रूप से उसको इतिहासकार एक सूत्र में बांधकर भी देखते हैं। लेकिन 1942 और 1930 दांडी यात्रा और क्विट इंडिया ये दो ऐसे टर्निंग पाइंट थे जिसको हम कह सकते हैं कि वो एक ऐसा टाइम था जो देश को छलांग लगाने का मूड बनाया था। 30 में जो वो छलांग लगी वो देश भर में एक माहौल बना दिया। और 42 में जो दूसरी छलांग लगी उसका परिणाम 1947 में आया। यानी मैं जो छलांग की बात कर रहा हूं। आजादी के 75 साल और अब ऐसी अवस्था में हम पहुंचे हैं कि सच्चे अर्थ में ये छलांग लगाने के लिए जमीन मजबूत है टारगेट तय है, बस चल पड़ना है। और मैंने लाल किले से कहा था, 15 अगस्त को कहा था, यही समय है, सही समय है। आप सभी राष्ट्र निर्माण के इस महायज्ञ के प्रमुख स्टेकहोल्डर्स हैं और इसलिए भविष्य की तैयारियों को लेकर आपका संवाद, ये दो दिवस का आपका मंथन, आपने मिल बैठकर के जो एक रोडमैप सोचा होगा, आपने जो निर्णय किए होंगे। में समझता हूं सारी बातें अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैं।
साथियों,
सरकार ने बीते 6-7 वर्षों में बैंकिंग सेक्टर में जो सुधार किए, बैंकिंग सेक्टर का हर तरह से सपोर्ट किया, उस वजह से आज देश का बैंकिंग सेक्टर बहुत ही मजबूत स्थिति में है। आप भी ये महसूस करते हैं कि बैंकों की वित्तीय स्वास्थ्य अब काफी सुधरी हुई स्थिति में है। 2014 के पहले की जितनी भी परेशानियां थीं, जितनी भी चुनौतियां थीं, हमने एक-एक करके उनके समाधान के रास्ते तलाशे हैं। हमने एनपीए की समस्या को एड्रेस किया, बैंकों को पुनर्पूंजीकरण किया, उनकी ताकत को बढ़ाया। हम आईबीसी जैसे रिफॉर्म लाए, अनेक कानूनों में सुधार किए और ऋण वसूली न्यायाधिकरण को सशक्त किया। कोरोना काल में देश में एक समर्पित तनावग्रस्त परिसंपत्ति प्रबंधन कार्यक्षेत्र का गठन भी किया गया। इन्हीं फैसलों से आज बैंकों की संकल्प और स्वास्थ्य लाभ बेहतर हो रही है, बैंकों की स्थिति मजबूत हो रही है और एक अंतर्निहित ताकत उसके भीतर पाई जा रही है। सरकार ने जिस पारदर्शिता और प्रतिबद्धता के साथ काम किया है, उसका एक प्रतिबिंब, बैंकों को वापस मिली राशि भी है। हमारे देश में जब बैंकों से कोई उठाकर भाग जाता है तो चर्चा बहुत होती है लेकिन कोई दम वाली सरकार वापस लाती हैं तो इस देश में कोई चर्चा नहीं करता है। पहले की सरकारों के समय जो लाखों करोड़ रुपए फंसाए गए थे, उनमें से 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की रिकवरी की जा चुकी है। हो सकता है आप उस लेवल के लोग बैठे हैं आपको पांच लाख करोड़ बहुत बड़ा नहीं लगता होगा। क्योंकि जिस प्रकार से एक सोच बनी हुई थी यहां बैठे हुए उन लोगों की नहीं होगी, ऐसा मुझे पक्का पूरा विश्वास है। लेकिन ये सोच बनी हुई थी। बैंक हमारे ही है। बैंक में जो है वो भी हमारा ही है, वहां रहे या मेरे यहां रहे, क्या फर्क पड़ता है। और जो चाहा वो मांगा, जो मांगा वो मिला और बाद में पता नहीं था कि 2014 में देश निर्णय कुछ और कर देगा। सारी स्थितियां साफ हो गईं।
साथियों जो ये पैसा वापस लेने वाला हमारी कोशिश है। नीतियों का भी आधार लिया है, कानून का भी आधार लिया है। कूटनीतिक चैनल का भी उपयोग किया है और मैसेज भी बहुत साफ है की यही एक रास्ता है, लौट आइए और ये प्रक्रिया आज भी चल रही है। राष्ट्रीय संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी इसके गठन से और 30 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की सरकारी गारंटी से भी लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के दबावग्रस्त संपत्ति आने वाले समय में संकल्प होने का अनुमान है। हम सभी ये भी देख रहे हैं कि पब्लिक सेक्टर बैंकों के समेकन से पूरे बैंकिंग सेक्टर की प्रभाव बढ़ी है और मार्केट से फंड जुटाना करने में भी बैंकों को मदद मिल रही है।
साथियों,
ये जितने भी कदम उठाए गए हैं, जितने भी रिफॉर्म किए गए हैं, इससे आज बैंकों के पास एक विशाल और मजबूत कैपिटल बेस बना है। आज बैंकों के पास अच्छी-खासी लिक्विडिटी है, एनपीए की प्रोविजनिंग का बैकलॉग नहीं है। पब्लिक सेक्टर बैंकों के एनपीए आज 5 सालों में सबसे कम है ही, कोरोना काल के बावजूद, इस फाइनेंशियल ईयर के पहले हाफ में हमारे बैंकों की मजबूती ने सबका ध्यान खींचा है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय एजेंसीज भी भारत के बैंकिंग सेक्टर का आउटलुक अपग्रेड कर रही हैं।
साथियों,
आज भारत के बैंकों की ताकत इतनी बढ़ चुकी है कि वो देश की इकोनॉमी को नई ऊर्जा देने में, एक बड़ा धकेलना देने में, भारत को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। मैं इस चरण को भारत के बैंकिंग सेक्टर का एक बड़ा माइलस्टोन मानता हूं। लेकिन आपने देखा होगा, माइलस्टोन एक तरह से हमारी आगे की यात्रा का सूचक भी होता है। मैं इस चरण को भारत के बैंकों के एक नए स्टार्टिंग प्वाइंट के रूप में देख रहा हूं। आपके लिए ये देश में वेल्थ क्रिएटर्स और नौकरी देने वाले को सपोर्ट करने का समय है। जो अभी आरबीआई गवर्नर ने रोज़गार निर्माण की चर्चा की, मैं समझता हूं ये समय है। आज समय की मांग है कि अब भारत के बैंक अपनी बैलेंस शीट के साथ-साथ देश की बैलेंस-शीट को बढ़ाने के लिए भी प्रो-एक्टिव होकर काम करें। कस्टमर आपके पास, आपकी ब्रांच में आए, ये इंतज़ार मत कीजिए। आपको कस्टमर की, कंपनी की, एमएसएमई की, ज़रूरतों को एनालाइज़ करके, उनके पास जाना होगा, उनके लिए अनुकूलित समाधान देने होंगे। जैसे में उदाहरण देता हूं की उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में और तमिलनाडु में दो डिफेंस कॉरिडोर बने। अब सरकार तेजी से वहां काम कर रही है। क्या उस कॉरिडोर के आसपास जूड़ी हुई जितनी बैंक ब्रांचिज हैं। क्या कभी उनको आपने बुलाया उनसे मीटिंग की कि भई डिफेंस कॉरिडोर बन रहा है, मतलब एक पूरा डिफेंस का नया सेक्टर यहां आ रहा है। बैंक पूरी सक्रियता क्या कर सकती है? डिफेंस कॉरिडोर के आने से ये ये चींज आने की संभावना है। कौन-कौन कैप्टंस हैं जो इसमें आएंगे? कौन छोटे-छोटे चैन होंगे एमएसएमई होंगे जो इसके सपोर्ट सिस्टम में आएंगे? इसके लिए हमारा बैंक का पहुंचना क्या होगा? सक्रिय दृष्टिकोण क्या होगा? हमारी अलग-अलग बैंकों के बीच में प्रतियोगिता कैसे होगी? सबसे अच्छी सेवाएं कौन देता है? तब तो जाकर के भारत सरकार ने जिस डिफेंस कॉरिडोर की कल्पना की है, उसको धरती पर उतारने में विलम्ब नहीं लगेगा। लेकिन ठीक है भई, सरकार ने डिफेंस कॉरिडोर बनाया है। लेकिन मेरा तो उसी पर ध्यान है। क्यों 20 साल से हमारा एक अच्छी तरह से स्थापित ग्राहक है चल रही है गाड़ी, बैंक भी चल रही है, उसका भी चल रहा है, हो गया। इससे होने वाला नहीं है।
साथियों,
आप स्वीकृति प्रदान करने वाले हैं और सामने वाला आवेदक हैं, आप दाता हैं और सामने वाला याचक, इस भावना को छोड़कर अब बैंकों को पार्टनरशिप का मॉडल अपनाना होगा। जैसे अब बैंक ब्रांच के स्तर पर ये लक्ष्य तय किया जा सकता है कि वो अपने क्षेत्र के 10 नए युवाओं या 10 लघु उद्यमियों के साथ मिलकर, उनका व्यापार बढ़ाने में मदद करेगी। मैं जब स्कूल में पढ़ता था, उस जमाने में बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था। और उस समय मुझे बराबर याद है साल में कम से कम दो बार बैंक के लोग हमारे स्कूल में आते थे, स्कूल में और बैंक में खाता क्यों खोलना चाहिए, छोटे-छोटे बच्चों को गल्ला देकर उसमें पैसा क्यों बचाना चाहिए, यह समझाते थे क्योंकि तब वह सरकारीकरण नहीं हुआ था। तब आपको लगता था कि यह मेरी बैंक है, मुझे इसकी चिंता करनी है। एक प्रतियोगिता भी थी और बैंकिंग यानी फाईनेंसिशयल वर्ल्ड का बैंकिंग सेक्टर की आम सामान्य मानवीय को ट्रेनिंग भी जरूरी थी। सभी बैंकों ने यह काम किया है, राष्ट्रीयकरण होने के बाद शायद मिजाज बदला है। लेकिन 2014 में बैंक की इस शक्ति को मैंनें पहचान करके जब उनको आह्वान किया कि मुझे जनधन अकाउंट का मूवमेंट खड़ा करना है, मुझे गरीब की झोपड़ी तक जा करके उसके बैंक खाते खुलवाने हैं। जब मैं मेरे अफसरों से बात कर रहा था तो बहुत विश्वास का माहौल नहीं बनता था। आशंकाएं रहती थी कि यह कैसे होगा, तो मैं कहता था कि भई एक जमाना था कि बैंक के लोग स्कूल में आते थे। तय तो करो इतना बड़ा देश और सिर्फ 40 प्रतिशत लोग बैंक से जुड़े हो, 60 प्रतिशत बाहर हो, ऐसा कैसे हो सकता है। खैर, बात चल पड़ी और यहीं बैंकिंग सेक्टर के लोग, राष्ट्रीयकरण हो चुके बैंकों के लोग जो बड़े-बड़े उद्य़ोगपतियों के साथ ही बैठने की आदत बन चुके थे वो लोग जब देश के सामने एक लक्ष्य रखा कि हमें जनधन अकाउंट खोलना है, मैं आज गर्व के साथ सभी बैंकों का उल्लेख करना चांहूगा, सभी बैंकों के हर छोटे-मोटे मुलाजिम का उल्लेख करना चाँहूगा, जिन्होंने इस स्वप्न को साकार किया और जन-धन अकाउंट, वित्तीय समावेशन की दुनिया में दुनिया के सामने एक बेहतरीन उदाहरण बन गया। यह आप ही के तो पुरुषार्थ से तो हुआ है और मैं की मानता हूँ की प्रधानमंत्री जनधन जो मिशन निकला वो बीज बोया था तो 2014 में, लेकिन आज इस कठिन से कठिन कालखंड में दुनिया डगमगाई है, भारत का गरीब टिका रहा। क्योंकि जनधन अकाउंट की ताकत थी। जिन-जिन बैंक के कर्मचारियों ने जनधन अकाउंट खोलने के लिए मेहनत की है। गरीब की झोपड़ी में जाता था बैंक का बाबू कोट पैंट टाई पहनें हुए व्यक्ति गरीब के घर के सामने खड़े रहते थे। उस समय तो शायद लगा होगा सरकार का ये कार्यक्रम लेकिन मैं कहता हूं कि जिन्होंने इस काम को किया है इस व कोरोन महामारी के कालखंड में जो गरीब भूखा नहीं सोया है। उसका पुण्य उन बैंक के लोगों के खातों में जाता है। कोई काम कोई पुरुषार्थ कभी भी बेकार नहीं जाता है। एक सच्ची सोच के साथ सत्यनिष्ठा से किया हुआ काम एक कालखंड आता है जब परिणाम देता हैं। और जनधन अकाउंट कितना बड़ा परिणाम देता है। हम देख रहे हैं और हमें अर्थव्यवस्था ऐसी नहीं बनानी हैं की उपर इतनी मजबूत हो, उसकी मजबूती का बोझ इतना हो की नीचे सब कुछ दब जाए। हमें बैंकिंग वव्यवस्था नीचे भी गरीब से गरीब तक उतनी मजबूती देनी है ताकि उपर जाती हुई अर्थव्यवस्था जब उपर भी बड़ा बल्क बनेगा तो दोनों के सामर्थ से भारत पुष्ट होगा। और मैं मानता हूं कि हमने उसी एक सोच के साथ चलना चाहिए। आप कल्पना कर सकते हैं कि जब स्थानीय व्यापारियों को ये ऐहसास होगा कि बैंक और उसके कर्मचारी उनके साथ खड़े हैं, मदद के लिए खुद उनके पास आ रहे हैं, तो उनका आत्मविश्वास कितना बढ़ जाएगा। आपके बैंकिंग के अनुभवों का भी उन्हें बहुत लाभ होगा।
साथियों मैं जानता हूं कि बैंकिंग सिस्टम की हेल्थ के लिए ये बहुत जरूरी है कि व्यवहार्य परियोजनाएं में ही पैसा लगाएं। लेकिन साथ ही, परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाने में हम प्रो-एक्टिव भूमिका भी तो निभा सकते हैं। के लिए कुछ एक ही रीजन नहीं होते हैं। हमारे जो बैंक के साथी हैं, वो एक और काम कर व्यवहार्यता सकते हैं। आपको ये भली भांति पता होता है कि आपके क्षेत्र में किस-किस की आर्थिक क्षमता कितनी है। ब्रांच के नजर के दायरे में बाहर ये नहीं होता है जी। वो उस धरती की ताकत को जानता है। आज जो 5 करोड़ रुपए का लोन आपसे लेकर जा रहा है, ईमानदारी से समय पर लौटा रहा है, आप उसकी क्षमता बढ़ाने में भी तो मदद कर सकते हैं। आज जो 5 करोड़ रुपए का लोन लेकर, बैंक को वापस कर रहा है, उसमें कल को, कई गुना ज्यादा लोन लेकर, लौटाने का सामर्थ्य पैदा हो, इसके लिए आपको उसे आगे बढ़-चढ़कर के सपोर्ट करना चाहिए। अब जैसे आप सभी पीएलआई स्कीम के बारे में जानते हैं और आज इसका भी उल्लेख हुआ। इसमें सरकार भी कुछ ऐसा ही कर रही है। जो भारत के मैन्युफैक्चर्स हैं, वो अपनी कैपेसिटी कई गुना बढ़ाएं, खुद को ग्लोबल कंपनी में बदलें, इसके लिए सरकार उन्हें प्रोडक्शन पर इंसेंटिव दे रही है। आप खुद सोचिए, आज भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर पर रिकॉर्ड निवेश हो रहा है, लेकिन भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी बड़ी कंपनियां कितनी हैं भई? हम पिछली शताब्दी के जो इंफ्रास्ट्रक्चर थे, पिछली शताब्दी के इंफ्रास्ट्रक्चर के वो स्किल थे, पिछली शताब्दी के इंफ्रास्ट्रक्चर की जो प्रौद्योगिकी है, उसी में गुजारा करने वाले हमारे इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र की जो कंपनियां हैं वो काम करेगी, कोई 21वी सदी के सपने पूरे हो सकते हैं क्या? नहीं हो सकते। आज अगर उसको बड़ी बिल्डिंग बनाना है, बड़े पैमाने पर काम करना है, बुलेट ट्रेन का काम करना है, एक्सप्रेसवे का काम करना है, तो उसको उपकरण भी बहुत महंगे लगेंगे। उसको पैसों की जरूरत पड़ेगी। हमारे बैंकिंग सेक्टर के लोगों के मन में आता है कि मेरी बैंक का एक ग्राहक ऐसा होगा जो इंफ्रास्ट्रक्चर में है, जो दुनिया के पांच बड़ों में उसका नाम भी होगा, ये इच्छा क्यों नहीं है भई? मेरी बैंक बड़ी हो वो तो ठीक है लेकिन मेरे देश के एक इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी जिसका अकाउंट मेरी बैंक में है वो भी दुनिया के टॉप 5 में उसका नाम आएगा। मुझे बताइए आपके बैंक की इज्जत बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी? मेरे देश की ताकत बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी? और हमें हर क्षेत्र में देखना है कि हम दुनिया में सबसे बड़े ऐसे अलग-अलग क्षेत्र में कितने महारथी तैयार करते हैं। हमारा एक खिलाड़ी जब एक गोल्ड मेडल लेकर के आता है ना, गोल्ड मेडल लाने वाला तो एक ही होता है लेकिन पूरा हिन्दुस्तान अपने आप को गोल्डन एरा में देखता है। ये ताकत जीवन के हर क्षेत्र में होती है जी। भारत का कोई एक बुद्धिमान व्यक्ति, कोई एक वैज्ञानिक अगर नोबेल प्राइज लेकर के आता है तो पूरे हिन्दुस्तान को लगता है हां ये मेरा नोबेल प्राइज है, ये ओनरशिप होती है। क्या हमारे बैंकिंग सेक्टर को, हमारे फाइनेंशियल वर्ल्ड को भी हम हिन्दुस्तान में ऐसी ऊंचाइयों पर एक-एक चीज को ले जाएंगे ताकि बैंकों को तो फायदा ही फायदा है, इसमें कोई नुकसान नहीं है।
साथियों,
बीते कुछ समय में देश में जो बड़े-बड़े परिवर्तन हुए हैं, जो योजनाएं लागू हुई हैं, उनसे जो देश में डेटा का बड़ा पूल क्रिएट हुआ है, उनका लाभ बैंकिंग सेक्टर को जरूर उठाना चाहिए। जैसे मैं जीएसटी की बात करूं तो आज हर व्यापारी का पूरा ट्रांजेक्शन, पारदर्शिता से होता है। व्यापारी की कितनी क्षमता है, उसका व्यापार कहां-कहां फैला हुआ है, उसकी कारोबारी हिस्ट्री कैसी है, इसका अब मजबूत डेटा देश के पास उपलब्ध है। क्या इस डेटा के आधार पर हमारे बैंक, उस व्यापारी के सपोर्ट के लिए खुद उसके पास नहीं जा सकते क्या कि भई तुम्हारा अच्छा कारोबार चल रहा है जी और बढ़ाओ, चलो बैंक तुम्हारे पास तैयार है, अरे हिम्मत करो और आगे निकलो, वो चार काम और अच्छे करेगा 10 लोगों को रोजगार देगा। ऐसे ही, मैं आपके बीच जैसे मैंने अभी डिफेंस कॉरिडोर की बात कही, मैं भारत सरकार के स्वामित्व योजना का भी जिक्र जरूर करना चाहूंगा। और मुझे पक्का विश्वास है मेरे बैंक के साथियों ने इस स्वामित्व योजना के संबंध में सुना होगा। आज सरकार और ये विषय ऐसा है जो लोग इंटरनेशनल इश्यूज को पढ़ते हैं उन्हें मालूम होगा कि सारी दुनिया इस मुद्दे से जूझ रही है, स्वामित्व के मुद्दे से, सारा विश्व। भारत ने रास्ता खोजा है, हो सकता है कि हम रिजल्ट पर ले आएंगे, ये है क्या? आज सरकार टेक्नोलॉजी की मदद से, ड्रोन से मैपिंग कराकर, देश के गांव-गांव में लोगों को प्रॉपर्टी की ओनरशिप के पेपर दे रही है। परंपरागत रूप से लोग उस घर में रह रहे हैं, कागज नहीं हैं उसके पास, प्रॉपर्टी के ऑफिशियल डॉक्यूमेंट नहीं हैं और उसके कारण उसको उन घर का उपयोग, किसी को किराये पर देने के लिये तो काम आ सकता है और किसी काम में नहीं आता है। अब ये स्वामित्व के ओनरशिप के पेपर्स जब उसके पास हैं, प्रामाणिक सरकार ने दिये हैं, क्या बैंकों को लगता है कि चलो हम उसके पास व्यवस्था है। अब मैं गांव के इन लोगों को जिसके पास अपनी संपत्ति है उसके आधार पर उसको कुछ पैसे देने की मैं ऑफर करूंगा, संभव है देखो तुम्हारे खेत में ये करना है तो तुमको थोड़ी मदद करता हूं, तुम ये कर सकते हो। तुम हैंडीक्राफ्ट में काम करते हो, गांव के अंदर लोहार हो, सुथार हो, मैं ये पैसे देता हूं, तुम ये काम कर सकते हो। अब तेरे घर के ऊपर तुम्हे ये पैसे मिल सकते हैं। देखिये ओनरशिप के पेपर्स बनने के बाद, बैंकों के लिए गांव के लोगों को, गांव के युवाओं को कर्ज देना अब और सुरक्षित हो जाएगा। लेकिन मैं ये भी कहूंगा कि जब बैंकों की वित्तीय सुरक्षा बढ़ी है तो बैंकों को भी गांव के लोगों को सपोर्ट करने के लिए खुद आगे बढ़कर आना होगा। अब ये आवश्यक है, हमारे देश में एग्रीकल्चर सेक्टर में इंवेस्टमेंट बहुत कम होता है। संगठित दुनिया का इंवेस्टमेंट तो करीब-करीब ना के बराबर है। जबकि फूड प्रोसेसिंग के लिये बहुत संभावना है, दुनिया में बहुत मार्किट है। गांव में फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर से जुड़ी मशीनरी, सोलर से जुड़े काम, अनेक नए फील्ड तैयार हो रहे हैं जहां आपकी मदद, गांव की तस्वीर बदल सकती है। इसी तरह एक और उदाहरण स्वनिधि योजना का भी है। प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना की वजह से हमारे रेहड़ी-पटरी वाले भाई और बहन हैं, पहली बार बैंकिंग सिस्टम से जुड़े हैं। अब उनकी भी एक डिजिटल हिस्ट्री बन रही है। बैंकों को इसका लाभ उठाते हुए, ऐसे साथियों की मदद के लिए और ज्यादा आगे आना चाहिए और मैंने बैंकों से भी आग्रह कहा है और मेरे यहां अर्बन मिनिस्ट्री को भी आग्रह कहा है और मैंने सभी मेयर्स को भी आग्रह किया है कि आपके नगर के अंदर ये जो रेहड़ी-पटरी वाले हैं उनको मोबाइल फोन पर डिजिटल ट्रांजेक्शन सिखाइए। वो थोक में माल लेगा, वो भी डिजिटली लेगा, वो बिक्री करेगा तो भी डिजिटली करेगा और ये सब कोई मुश्किल काम नहीं है, हिन्दुस्तान ने करके दिखाया है उसको। उसको अपनी हिस्ट्री तैयार होगी, आज उसको 50,000 दिया है, कल आप उसको 80,000 दे सकते हैं, परसों डेढ़ लाख रुपया दे सकते हैं, उसका कारोबार बढ़ता चला जाएगा। वो ज्यादा सामान खरीदेगा, ज्यादा सामान बेचेगा। एक गांव में कर रहा है तो तीन गांव में करना शुरू कर देगा।
साथियों,
आज जब देश वित्तीय समावेशन पर इतनी मेहनत कर रहा है तब नागरिकों के उत्पादक क्षमता को अनलॉक करना बहुत जरूरी है। और मैं अनलॉक करना यहां तीन-चार बार सुन चुका हूं। जैसे अभी बैंकिंग सेक्टर की ही एक रिसर्च में सामने आया है, ये आप ही की तरफ से आया है कि जिन राज्यों में जनधन खाते जितने ज्यादा खुले हैं, और जितने ज्यादा जनधन खाते जीवंत हैं, गतिविधि लगातार उन जनधन खातों में चल रही है। बैंकों का रिपोर्ट एक नई बात लेकर के आया है और जिसे सुनकर के मुझे खुद को आनंद हुआ कि बैंक रिपोर्ट कह रहा है कि इसके कारण क्राइम रेट कम हुए हैं। यानी बैंक वालों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मैं पुलिस का भी काम कर रहा हूं, लेकिन बाय प्रोडक्ट है। एक हेल्दी सोसायटी का एटमॉस्फेयर क्रिएट हो रहा है। एक जनधन अकाउंट किसी को क्राइम की दुनिया से बाहर ले आता है, इससे बड़ा जिन्दगी का पुण्य क्या होगा। इससे बड़ी समाज की सेवा क्या होती। यानि बैंकों का जब स्थानीय लोगों से कनेक्ट बढ़ा, जब लोगों के लिए बैंकों के दरवाजे खुले तो इसका प्रभाव लोगों के जीवन जीने के तरीके पर भी आया। बैंकिंग सेक्टर की इस ताकत को समझते हुए ही मैं समझता हूं कि हमारे बैंकिंग सेक्टर के साथियों को आगे बढ़ना चाहिए। मैं जानता हूं, यहां जो लोग बैठे हैं उन से संबंधित बाते मैं नहीं बोल रहा हूं क्योंकि यहां जो प्रतिनिधि आए थे उन्होंने अपनी बात बताई, मैं दूसरों के प्रतिनिधित्व की बात बता रहा हूं। लेकिन करने वाले बैंकिंग सेक्टर के हैं इसलिये मेरी सारी बातचीत का सेंटर पॉइंट मेरा बैंकिंग सेक्टर है, उसके लीडर्स हैं। पब्लिक बैंक हों या फिर प्राइवेट सेक्टर के बैंक, जितना हम नागरिकों में Invest करेंगे, उतना ही नए रोजगार का निर्माण होगा, उतना ही देश के युवाओं को, महिलाओं को, मध्यम वर्ग को लाभ होगा।
साथियों,
हमने आत्मनिर्भर भारत अभियान के दौरान जो ऐतिहासिक रिफॉर्म्स किए उन्होंने देश में नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। आज कॉर्पोरेट्स और स्टार्टअप जिस स्केल पर आगे आ रहे हैं, वो अभूतपूर्व है। ऐसे में भारत की आकांक्षाओं को मजबूत करने का, फंड करने का, उनमें इन्वेस्ट करने का इससे बेहतरीन समय क्या हो सकता है दोस्तो? भारत में और ये बात हमारे बैंकिंग सेक्टर को समझना ही होगा, भारत में ये विचारों पर इन्वेस्टमेंट का दौर है, स्टार्ट अप्स को सपोर्ट करने का दौर है, स्टार्ट अप के मूल में एक आइडिया होता है। आप उसको पूछने जाओगे, ऐसे क्या है, फलाना कुछ नहीं होता है, आइडिया होता है।
साथियों,
आपके पास रिसोर्सेस की कोई कमी नहीं है। आपके पास डेटा की कोई कमी नहीं है। आप जो रिफॉर्म चाहते थे, वो सरकार ने किया भी है और आगे भी करती रहेगी। अब आपको राष्ट्रीय संकल्पों के साथ, राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ खुद को जोड़कर आगे चलना है। मुझे बताया गया है कि मंत्रालयों और बैंकों को एक साथ लाने के लिए अभी हमारे सचिव महोदय उल्लेख कर रहे थे वेब आधारित प्रोजेक्ट फंडिंग ट्रैकर बनाना तय हुआ है। अच्छी बात है, काफी सुविधा बढ़ेगी उसके कारण, लेकिन मेरा उसमें एक सुझाव है, ये प्रयास अच्छा है लेकिन क्या ये बेहतर नहीं हो सकता है कि हम गतिशक्ति पोर्टल में ही एक इंटरफेस के तौर पर इस नए पहल को जोड़ दें। आज़ादी के इस अमृतकाल में, भारत का बैंकिंग सेक्टर बड़ी सोच और अभिनव अप्रोच के साथ आगे बढ़ेगा।
साथियों,
एक और विषय है जिसमें अगर हम देर करेंगे तो हम पीछे रह जाएंगे और वो है फिनटेक। भारत के लोगों की हर नई चीज को अपनाने करने की जो ताकत है ना वो अद्भुत है। आज आपने देखा होगा कि फ्रूट बेचने वाले, सब्जी बेचने वाले क्यूआर कोड लगाकर के बैठते हैं और कहते हैं आप पैसे दो। मंदिरों में भी डोनेशन वाले क्यूआर कोड लगा दीजिए, चलेगा। मतलब कि फिनटेक की तरफ एक वातावरण बना है। क्या हम तय कर सकते हैं और मैं तो चाहता हूं नियमित प्रतियोगिता का एक वातावरण बने कि हर बैंक ब्रांच at कम से कम 100, ज्यादा मैं नहीं कह रहा हूं, सौ फीसदी डिजिटल ट्रांजेक्शन वाला क्लाइंट होंगे और टॉप में से होंगे। ऐसा नहीं कि भई कोई हजार-दो हजार रुपये वाला आया और उसको आपने वैसे 100 का जो बड़े-बड़े हैं, सौ फीसदी वो डिजिटली करेगा, जो भी कारोबार करेगा, ऑनलाइन डिजिटली करेगा। दुनिया का सबसे बड़ा मजबूत हमारे पास यूपीआई प्लेटफॉर्म है जी, हम क्यों नहीं करते हैं जी? अब हम ये सोचें हमारे बैंकिंग सेक्टर में पहले क्या स्थिति थी, क्लाइंट आते थे फिर हम उन्हें टोकन देते थे, फिर वो नोटें ले के आता था, चार बार गिनते थे यूं-यूं करते रहते थे। फिर दूसरा भी गिनकर के वेरीफाई करता था। फिर सही नोट हैं, गलत नोट हैं उसमें भी दिमाग खपाते थे। यानी एक क्लाइंट 20 मिनट, 25 मिनट, आधे घंटे से बड़ी मुश्किल से जाता था। आज मशीन काम कर रहा है, नोट भी मशीन गिन रहा है। सारे काम मशीन कर रही हैं। तो वहां तो आपको टेक्नोलॉजी का बड़ा मजा आता है। लेकिन अभी भी हम डिजिटल ट्रांजेक्शन इस विषय को किस बात के लिये संकोच करते हैं, मैं समझ नहीं पा रहा हूं जी। नफा या घाटा उसी के तराजू से इसको मत सोचिए दोस्तों, वो जो छलांग लगाने का कालखंड हैं ना उसमें फिनटेक भी एक बहुत बड़ी पटरी है, जिस पटरी से गाड़ी दौड़ने वाली है। और इसलिये मेरा आग्रह है हर बैंक ब्रांच कम से कम 100, ये आजादी के अमृत महोत्सव में हम इसको साकार करते रहें कि 2022 पन्द्रह अगस्त के पहले इस देश में एक भी बैंक की ब्रांच नहीं होगी जिसमें कम से कम 100 ऐसे क्लाइंट नहीं होंगे, जो सौ फीसदी अपना कारोबार लेनदेन डिजिटली न करते हों। अब देखिये बदलाव आपको पता चलेगा। जनधन ने जो ताकत का आपको अनुभव करावाया है उससे अनेक गुना ताकत की अनुभूति ये छोटे-छोटे सामर्थ्य से दिखेगी। हमने देखा है महिला स्वयं सहायता समूह मुझे लंबे समय तक राज्य में सेवा करने का मौका मिला तब हर साल बैंक के लोगों के साथ बैठते थे और इश्यू रिजोल्व करना और आगे का सोचना, ये सब चर्चाएं करते थे और मैंने अनुभव किया कि एक बात के लिये सभी बैंक बड़े गौरव से एक बात कहते थे और वो कहते थे साहब एक महिला स्वयं सहायता समूह को हम पैसे देते हैं। समय से पहले लौटाते हैं, पूरा का पूरा लौटा देते हैं, हमें कभी चिंता नहीं रहती है। जब आपका इतना बढ़िया सकारात्मक अनुभव है तो इसको बल देने के लिए आपकी प्रोएक्टिव कोई योजना है क्या। हमारे महिला स्वयं सहायता समूह की क्षमता इतना ज्यादा है जी, हमारा इकोनॉमी का जमीनी स्तर का एक बहुत बड़ा प्रेरक शक्ति वो बन सकते हैं। मैंने बड़े-बड़े लोगों की बात देखी हैं, मैंने छोटे-छोटों से बात की है कि पता है कि धरती पर फाइनेंस की आधुनिक व्यवस्थाएं हैं। सामान्य नागरिक की आर्थिक मजबूती का बहुत बड़ा आधार बन सकती है। मैं चाहता हूं इस नई सोच के साथ नए संकल्प के साथ छलांग लगाने का मौका है ही है। जमीन तैयार है दोस्तों और सबसे बड़ी बात जिसको मैं बार-बार कह चुका हूं, बैंक वालों को पचास बार कह चुका हूं मैं आपके साथ हूं। देश हित में सत्य निष्ठा से किये हुए किसी भी काम के लिये आप मेरे शब्द लिख कर के रखिए, ये मेरी वीडियो क्लिपिंग को अपने पास रखिए, मैं आपके साथ हूं, मैं आपके पास हूं, आपके लिये हूं। सत्य निष्ठा से, प्रामाणिकता से देश हित के लिये काम में कभी गलतियां भी होती हैं, अगर ऐसी कोई कठिनाई आती है तो मैं दीवार बनकर के खड़ा रहने के लिये तैयार हूं। लेकिन अब देश को आगे ले जाने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ही होगा। इतनी बढ़िया मजबूत जमीन हो, इतना बड़ा अवसर हो, आसमान को छूने की संभावनाएं हैं और हम सोचने में समय बीता दें तो मैं समझता हूं कि आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।
मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामना है! धन्यवाद!
सपना भारद्वाज द्वारा प्रतिलेखन