भारत में इस वक्त प्री-स्कूल फ्रैंचाइजिस का बोलबाला है। पालक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सचेत हैं और उन्हें प्री-स्कूल के स्तर से ही सबसे अच्छी शिक्षा देने हेतु पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं। इसीलिए भारत में प्री-स्कूल फ्रैंचाइजी व्यवसाय शुरू करना एक फायदेमंद फैसला हो सकता है, लेकिन फ्रैंचाइजर्स को फ्रैंचाइजिस के साथ और फ्रैंचाइजिंग उद्योग में अच्छी साख बनाने के लिए एक नैतिक संरचना, एथिकल फ्रैमवर्क बनानी चाहिए और उसका पालन करना चाहिए।
प्री-स्कूल शुरू करने से पहले नीचे दिए गए फ्रैंचाइजी एथिक्स का ध्यान रखना जरूरी है:
डिसक्लोजर
फ्रैंचाइजर को मार्केटिंग और बिक्री करते हुए हमेशा ईमानदार रहना चाहिए और फ्रैंचाइजी को झूठी उम्मीदें बंधावानी नहीं चाहिए। सोचे गए सारे कोड्स में से फ्रैंचाइजी डिसक्लोजर की जिम्मेदारी कानून द्वारा लागू की गई है। एथिक्स के अनुसार किसी भी अनुबंध को अमल में लाने से पहले, संभावित फ्रैंचाइजी को फ्रैंचाइजी के बारे में सभी और सही जानकारी के दस्तावेज मुनासिब वक्त में दिखा दिना (डिसक्लोज करना) जरूरी है। ये हर संभावित फ्रैंचाइजी की भी जिम्मेदारी होती है कि वे किसी भी फ्रैंचाइजी अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से पहले फ्रैंचाइजी-प्रणाली पूरी तरह समझ लें, सक्षम कानूनी और अन्य सलाहकारों को नियुक्त करें और फ्रैंचाइजी डिसक्लोजर दस्तावेज की सभी शर्तों को जान लें।
इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी (बौद्धिक संपत्ति)
बौद्धिक संपत्ति अधिकार और उससे लेकर सारी जिम्मेदारियां हर तरह से कानून के दायरे में आते हैं। चूंकि एथिक्स के सभी कोड संबंधित कानून के मुताबिक होना जरूरी है, बौद्धिक संपत्ति अधिकारों का सम्मान करने की जिम्मेदारी भी उसी जरूरत में शामिल है। लाइसेंसर को उसकी बौद्धिक संपत्ति की रक्षा करने और अगर वह उसकी बौद्धिक संपत्ति के इस्तेमाल का अधिकार किसी को दे रहा है, तो उसके लिए शर्तें तय करने का अधिकार होता है। फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट में दी गई शर्तें फ्रैंचाइजिस को दिया गया लाइसेंस निर्धारित करती हैं और फ्रैंचाइजर तथा फ्रैंचाइजी के आपसी संबंध भी उसी के मुताबिक होने चाहिए।
सलाह
फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट पर दस्तखत करने से पहले, संभावित फ्रैंचाइजी ने फ्रैंचाइजर को हस्ताक्षरित निवेदन देना जरूरी है कि उन्होंने प्रस्तावित फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट के बारे में वकील, व्यावसायिक सलाहकार या लेखापाल की स्वतन्त्र रूप से सलाह ली है या फिर ये कि उन्हें इस तरह की सलाह लेने के लिए कहा गया जा चुका है, मगर उन्होंने वैसा ना करने का फैसला किया है।
विराम-काल
कोई भी फ्रैंचाइजी, एग्रीमेंट पर दस्तखत करने के बाद सात दिन होने से पहले या फिर कोई भी नॉन-रिफंडेबल रकम देने से पहले – इन दोनों में से जो पहले आए- फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट रद्द कर सकते हैं। इस वक्त को ‘कूलिंग ऑफ’ कहते हैं। अगर फ्रैंचाइजी अपने कूलिंग-ऑफ के अधिकारों का उपयोग करना चाहे तो, फ्रैंचाइजर को उन्हें 30 दिनों में लिया हुआ पैसा वापस करना होग। अगर उस बीच कोई वाजिब खर्च हुआ हो, तो फ्रैंचाइजी उस रकम को घटा कर बाकी पैसे दे सकता है।
फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट को ट्रान्सफर (हस्तांतरित) करना
अगर फ्रैंचाइजी किसी और को एग्रीमेंट ट्रान्सफर करना चाहें, तो फ्रैंचाइजी, फ्रैंचाइजर को लिखित निवेदन देगी। अगर फ्रैंचाइजर लिखित निवेदन देने के बाद 60 दिनों में कोई आपत्ति नहीं लेते, तो माना जाएगा कि ट्रान्सफर के लिए उनकी मंजूरी है। वे फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट के ट्रान्सफर को गैरवाजिब तरीके से रोक नहीं सकते।
एग्रीमेंट को रद्द करना
जब एक फ्रैंचाइजर, फ्रैंचाइजी द्वारा एग्रीमेंट के तोड़े जाने पर उसे रद्द कर देना चाहता है, तब उसने फ्रैंचाइजी को अपनी गलती सुधारने के लिए मुनासिब वक्त देना चाहिए। अगर उस गलती को समय में सुधारा जाता है, तो फ्रैंचाइजर ने उस गलती के लिए एग्रीमेंट को समाप्त नहीं करना चाहिए। फ्रैंचाइजी एग्रीमेंट की शर्तों के तहत, फ्रैंचाइजर को तय किया हुआ वक्त खत्म होने से पहले एग्रीमेंट समाप्त करने का अधिकार हो सकता है। फ्रैंचाइजर ने कोई भी शर्त ना तोड़ी हो या उसकी एग्रीमेंट समाप्त करने के लिए मंजूरी नहीं हो, तब भी फ्रैंचाइजर ऐसा कर सकता है। मगर ऐसे में फ्रैंचाइजर ने फ्रैंचाइजी को प्रस्तावित समाप्ति और उसके कारणों की सही तरह से जानकारी देनी चाहिए।
विवाद का हल निकालना
फ्रैंचाइजी अनुबंध में एक ‘डिसप्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर’ तय की जानी चाहिए, जो कोड के मुताबिक हो। जब भी कोई विवाद हो, तब आपको सबसे पहले अपने एग्रीमेंट अनुबंध में जो डिसप्यूट रिजोल्यूशन प्रोसीजर तय की है, उसका हवाला लेना चाहिए। हालांकि कोड के अनुसार शिकायतकर्ता को दूसरे पक्ष की विवाद की जानकारी लिखित में देना जरूरी है। फिर दोनों पक्षों को विवाद किस तरह सुलझाना चाहिए, इस बात पर सहमत होने के लिए कोशिश करनी चाहिए। अगर वे तीन हफ्तों में विवाद सुलझाने को लेकर सहमत नहीं हो पाते, तब वे इस मामले को किसी मध्यस्थ के पास ले जा सकते हैं। दोनों पक्षों को मध्यस्थता में हाजिर रह कर विवाद सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। वरना विवाद सुलझाने में मध्यस्थता या मदद के लिए जो भी खर्चा आया हो, उसके लिए दोनों पक्ष समान रूप से जिम्मेदार होंगे।