क्या आप अपने बचपन की रूचियों को पुनः याद करते हैं और क्या आप आज भी पब्लिक लाइब्रेरी से फिक्शन को लेकर गर्मी की छुट्टियों के दौरान पढ़ना चाहते हैं या फिर आराम से बैठकर शाम को पेंटिंग करना चाहते हैं या सिम्पल तरीके से अपने बिंदुओं को लिखना चाहते हैं या कोई कविता को प्रस्तुत करना चाहते हैं या फिर किसी प्यार भरे महौल में गिटार बजाना सीखना चाहते है? हैरान न हो क्योंकि अब आप ऐसा कर सकते हैं, यह कोई मायने नहीं रखता कि आपकी उम्र क्या है, क्योंकि वहां पर ऐसे लोग है जो आपके दिमाग का पढ़ लेते है, आपके व्यस्त दिनचर्या और समय की कमी पर विचार कर रहें है और आपको आपके बचपन के स्ट्रैसबस्टर प्रदान कर रहें है। बस इसके लिए आपको कुछ फीस देनी होगी। इसका सबसे रोचक हिस्सा यह है कि आप भी पैसे बना सकते है अपनी रूचि के जरिए इनकी फ्रेंचाइज़ लेकर!
आज उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी जोकि सत्यजीत रे के दादा थे का जन्मदिन है। वे भारत के जानेमाने लेखक, वॉयलन वादक, संगीतकार और पेंटर थे। आज का ही दिन है जिस दिन भारत के प्रसिद्ध उर्दू शायर और फिल्मी गीतकार कैफी आज़मी की मृत्यु हुई थी। ऐसे टैलेंट भरे दिन में यह गलत होगा यदि आप युवा पीढ़ी पर रोशनी न डाले जिन्होंने इन महान लोगों के टैलेंट का मंथन किया और अपने बचपन के दौरान वे इसके साथ जीएं, बढ़े हुए इसका अभ्यास करते हुए और अब हर तरह का प्रयास कर रहें है ताकि वे इन रूचियों को भूलने या मरने न दें।
इन “धीरे-धीरे मरती रूचियों“ को संपूर्ण महत्व को पहचानते हुए इनके राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास में आवश्यक एकता पर जोर दिया जाता है। बहुत से उद्यमी और संस्थान इन तरह की कक्षाओं को लेकर आ रहें है और कैजुअल सेशन को व्यवस्थिति कर रहें है ड्राइंग और पेंटिंग की उच्च मूल्यों की वास्तविक शुद्धता करने के लिए। साथ ही परंपरागत या फिर म्युजिकल इंडट्रूमेंट ट्रेनिंग, रिसर्च, स्टडी, टीचिंग और विकास करने के लिए। इसके अलावा बेहतरीन और लोक संगीत या फिर सामान्य रचनात्मक लेखन के महत्वपूर्ण बिंदुओ को आश्वस्त करना, साप्ताहिक/पाक्षिक कविता सत्र में किसी के बेसमेंट या फिर किसी विकेंड कैफे में आयोजित करना, आदि। आपके इस व्यवसाय में मजा और मस्ती है क्योंकि यह आपकी रूचि के विषय हैं।
हमारे देश को बहुत लंबे समय से साहित्य, कला और क्राफ्ट की भूमि के तौर पर जाना जाता है। इसके हर एक क्षेत्र की अपनी परंपरा है जिसमें लेखन और कला है जिसमें ड्राइंग, पेंटिंग, एम्ब्रोइडरी, कारविंग्स, आदि सभी शामिल हैं। इस पूरे ब्रम्हांड में इस तरह की विविधता और कहीं भी नहीं देखी जा सकती है। हम आपके लिए ऐसे ही तीन रूचि के कोर्नर लेकर आ रहें है जिन्हें आप अपने बच्चों या अपने भाई बहन के साथ या फिर अकेले भी जॉइंन कर सकते है। इसमें उम्र कोई सीमा नहीं है। आप इसें इस समर वैकेशन या उसके बाद भी कर सकते है।
कंसल्ट आर्ट (KONSULT ART)
अपने पति के काम को इन्होंने सिंगापुर के शिक्षा सैक्टर में करीब से देखा है क्योंकि उनकी उस देश में बहुत सी व्यवसाय यात्राएं होती थी। शाहीना अशरफ, फाउंडर, कंसलटेंट आर्ट एंड डिजाइन अकेडमी, सिंगापुर आर्ट स्कूल के इवेन्ट से काफी प्रभावित थे जिस तरह से यह कार्य करता है। (उसमें पति-पत्नी दोनों एक बार जज के तौर पर निमंत्रित थे।)इसका पाठ्यक्रम और वातावरण को देखकर हमेशा यह विचार आता है कि क्यों ऐसा कोई इंस्टीटयूट बैंगलोर में नहीं है जबकि यह शहर एक ग्लोबल शहर के तौर पर उभर रहा है। इसी के बाद से यह विचार आया और फिर बहुत गहन अध्ययन के बाद एक एडवायजरी बोर्ड का निर्माण किया गया जिसमें कलाकार और शिक्षकों को लिया गया और उन्होंने इसके अवधारणा पर काम करना शुरू किया। “हमारें पास 3 साल से लेकर 60 साल के बुजुर्ग के लिए एक सिस्टमैटिक आर्ट लर्निक है। हमने अपना स्वयं की स्टडी मटीरियल का विकास किया है और यह केवल ग्राफिक्स मात्र नहीं है।“ऐसा कहना है शाहीना का। “हमारा स्टडी मटीयिल का निर्माण हमारें कलाकारों की टीम ने बनाया है और बोर्ड ऑफ सीनियर आर्टिस्ट द्वारा बनाया गया है। “उन्होंने इस बात पर विशेष जोर देकर इसलिए भी बताया क्योंकि यह इनकी यूएसपी भी है।
ये अपने कंटेंट का विकास करने के लिए कार्य कर रहें है और अपनी पढ़ाने की पद्धति पर काम कर रहें लगभग पिछले एक साल से ही तब जाकर उन्होंने 2010 के अंत में कंसल्ट आर्ट को लॉन्च किया।
“हमने कंटेंट का विकास करने में बहुत मेहनत की है और अकादमिक को निर्माण करने के लिए भी जहां पर लर्निंग को एक व्यवस्थित या ढांचेगत तरीके से सिखाया जाता है। हमारा फोकस है “हैंड्स ऑन लर्निंग“ पर और इसलिए हमारी अध्ययन सामग्री 100 प्रतिशत तक प्रैक्टिकल है और हमारा पाठ्यक्रय पूरी तरह से व्यवस्थिति या ढांचागत है।“ शाहीना ने अपने कक्षाओं के बारें में बताते हुए साझा किया कि उनके यहां पर छात्रों को अपना आर्टवर्क बनाने क के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि उनकी रचनात्मकता बढ़ायी जा सकें और उन्हें “थिंक आउट ऑफ दि बॉक्स“ के लिए प्रेरित किया जाता है उन तकनीकों के माध्यम से जो उन्होंने उस दिन कक्षा में सीखी होती है एक आर्टिस्टिक वातावरण में बैठकर और एक गैलेरी भरे माहौल में जोकि अपने आप में छात्रों को प्रेरित करती है जो आर्ट को सीख रहें है।
यहां पर फीस प्रोग्राम की समय सीमा और जटिलता पर निर्भर करती है। जहां पर बच्चों के लिए एक औसत के लिए 150-200 रूपये प्रति घंटा फीस है वही वयस्कों के लिए 250-300 रूपये। आठ साल में केवल एक सैंटर से शुरूआत करने वाले ने अब देश में वर्तमान में 25 सैंटर हैं। “हमारे अनोखे फ्रेंचाइज़ सिस्टम ने महिला उद्यमियों को आर्ट लर्निंग सेंटर की शुरूआत मुंबई, रायपुर, कोयम्बटूर, चंडीगढ़, लुधियाना और बैंगलोर में की हैं।“ ऐसा कहना है शाहीना का जोकि ऊर्जावान, लक्ष्य को पाने वाले और जुनून भरे लोगों की तलाश में है फ्रेंचाइज़ियों के तौर पर। उनका कहना है कि उन्हें आर्टिस होने की आवश्यकता नहीं है मगर उन्हें रचनात्मकता से प्यार होना चाहिए।
वे हर आयु वर्ग के समूहों को सेवाएं दे रहें हे इसलिए उनका समय और शकैड्यूल लचीले है और एक छात्र की आवश्यकता के अनुसार कस्टमाइज़्ड है। ये पैन इंडिया में अपना विस्तार करने की योजना बना रहें है और साथ ही ये एशिया पैसेफिक क्षेत्र में भी बहुत से कलाकारों की मदद और महिलाओं को एक उद्यमी के तौर पर सशक्त करने के लिए कंसल्ट आर्ट लर्निंग सेंटर खोलने में मदद कर रहें है। “हमारा लक्ष्य है एशिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करना और इसलिए हमने अपनी फ्रेंचाइज़ सिस्टम को इतना सरल और आसान बनाया है। हमारें पास होम फ्रेंचाइज़ और सैंटर फ्रेंचाइज़ का सिस्टम है। कोई भी हमारें साथ बात करने के बाद 15 दिन के भीतर फ्रेंचाइज़ शुरू कर सकता है।“ उन्होंने यह भी बताया कि वे ट्रेनिंग प्रदान करते हैं - सैटअप, ऑपरेशन, पाठ्यक्रम और मार्केटिंग के लिए। साथ ही पूरा सहयोग देते है जब तक कि फ्रेंचाइज़ी पूरी तरह से स्थापित न हो जाएं।
काफिया
2015 की शुरूआत में काफिया का जन्म दिल्ली को भारत देश का ‘पोएट्री कैप्टिल‘ बनाने के लिया हुआ है और आगे चलकर दुनिया का भी। यासीन अनवर, संस्थापक, काफिया ने यह खुलासा किया, “इस अवधारणा का यह भी दृष्टिकोण है एक्टिव फोर्स बनने का जोकि देश के सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में शामिल हो। शुरूआत में हम तीन भाषाओं को प्राथमिकता दे रहें हैं और कविता की बहुत से प्रकारों को भी। हम कंपार्टमेन्टलाइज़ की आवश्यकता को पूरी तरह से समझते है और हम भी एकदम इसी के अनुसार कार्य कर रहें है। हम इस बात का आश्वासन देते है कि जो विरासत हमें दी गई है वह उसी तरह से बनी रहें और उसी समय नई आवाजें भी सामने आएं क्येंकि उन्हें भी अपने आपको यहां या वहां पर स्थापित करना है।“उनका यह मानना है कि जो वर्तमान की पीढ़ी लिख रही है वह कैंडिड, ताजा और “कई बार विद्रोही“ भी है। इसलिए यह आवश्यक है कि उन्हें जगह दी जाएं जिनके लायक वे है इससे पहले कि वे अपने आपको मुख्य कविता धारा से अनदेखा या निगलैक्टिड महसूस करें।
“हम लेखक से फीस नहीं लेते है। हम कलाकार से पैसे लेने में विश्वास नहीं रखते हैं। हम कोशिश करते है कि हम स्पोन्सरशिप से फंड का निर्माण करें।“ ऐस कहना है यासीन का जोकि फ्रेंचाइज़िंग के विचार के लिए खुले है और ऐसे लोगों की तलाश में हैं जो उनकी तरह की सोच रखते है और जो उनकी विचारधारा और काफिया की टीम के साथ तालमेल बिठा सकें और कविता को आगे ले जाने के लिए कार्य करें।
यासीन के पास बहुत सी योजनाएं है जिसके माध्यम से वे नए पहल से आनेवाले महीनों में कविता के साथ इसे मिश्रित करने अन्य प्रौडक्शन के साथ प्रोडक्शन जिसमें सिनेमा शामिल हो पर जोर दे रहें है। साथ ही वह यह भी पहल कर रहें है कि आज की युवा पीढ़ी में रचनात्मक लेखन की आग उनके दिलों में जली रहें वह भी तब जब आलस, मरती रचनात्मकता, डिजिटल युग में भी बनी रहें।
तानसेन संगीत महाविद्यालय
1972 में स्वर्गीय श्री आर. एस. वर्मा (संगीत आचार्या) ने इसकी स्थापना हापुड़ में की थी। इस अकादमी का लक्ष्य था विरासत में मिली भारतीय संगीत (और सभ्यता) को जीवित रखते हुए उसका विकास करना। उनके सुपुत्र स्वर्गीय श्री एम.एल. वर्मा, ने उनकी इस परंपरा को आगे बढ़ाया और वर्तमान में उनके ग्रैंड चिल्ड्रन की इसकी भागीदारी है। यह करीब 80 से ज्यादा फ्रेंचाइज़ियों के साथ भारत के 11 राज्यों तक फैला हुआ है और इसकी संख्या अभी भी बढ़ रही है।
संगीत एक रूचि है जोकि समय मुक्त है और सदा जीवित रहने वाली है। तानसेन संगीत महाविद्यालय छात्रों को अलग-अलग परिक्षाओं के लिए तैयार और प्रेरित करते है विशेषतौर पर प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद और ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन के लिए। “हालांकि हम उन्हें परंपरागत तरीकों से सीखाते है और आधारभूत चीजों पर ज्यादा जोर देते है। हम बॉलीवुड और हॉलीवुड (पाश्चात्य संगीत और वाद्य यंत्रों के लिए) भी सीखाते है, गाने और डांस सिक्वेन्स (पश्चिमी नृत्य में) के लिए भी। ऐसा कहना है पी. एस. गोसेन, डायरैक्टर, तानसेन संगीत महाविद्यालय। यहां पर समय-समय पर संगीत और नृत्य का आयोजन होता रहता है जहां पर सभी फ्रेंचाइज़ी सेंटर के छात्र भी निमंत्रित होते है। ये छात्र दुनिया के संगीत की सेलिब्रिटी जैसे बिरजू महाराज, कविता कृष्णमूर्ति, सरोज खान, जतिन पंडित, मास्अर मर्जी, इस्माइल दरबार, आदि के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं और छात्रों को अलग-अलग संगीत व नृत्य के कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं और टेलीविज़न रिएलिटी शो में भाग लेने के लिए भी प्रावधान किए जाते हैं।
इनका पैकेज तीन महीने, छह महीने और सालाना के आधार पर होता है। इनकी फीस जगह (शहर/राज्य) के आधार पर आधारित होती है। फ्रेंचाइज़ियों के लिए ये कम निवेश, शून्य के बराबर जोखिम और लाभकारी व्यवसाय मॉडल प्रदान करते है जोकि वर्तमान के सामाजिक-आर्थव्यवस्था के परिपेक्ष्य के साथ पूरी तरह से मेल खाता है। यह ऑफर दो तरह की फ्रेंचाइज़ी के लिए है। पहली मास्टर फ्रेंचाइज़ी है जोकि पूरे क्षेत्र के लिए होती है और दूसरी समुदाय या सेंटर फ्रेंचाइज़ी है जोकि किसी विशिष्ट समुदाय के सेंटर में सेवाएं प्रदान करता है। “दूसरे मॉडल में सामान्यतः यह नियम है कि एक पूरी तरह से कार्यरत सेंटर आपको ऑफर किया जाता है या फ्रेंचाइज़ी इसे शुरू करने के लिए अपना सकती है। सभी मामलों में, फ्रेंचाइज़ी को सेंटर चलाने के लिए पूरी मदद दी जाती है। “ ऐसा कहना गोसेन का। उन्होंने यह भी बताया कि तानसेन संगीत महाविद्यालय हमेशा नई फ्रेंचाइज़ के लिए अवसर देखता रहता है। लोग जो नई फ्रेंचाइज़ खोलने के इच्छुक है वे इंस्टीट्यूट से सीधे इस विषय पर बातचीत कर सकते हैं। “यहीं एक कारण है जिसकी वजह से तानसेन संगीत महाविद्यालय की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं और जल्द ही यह भारत के हर एक राज्य और हर एक शहर/नगर में होगा।“ अपनी इस आशा को व्यक्त करते हुए विदेशों में भी फ्रेंचाइज़ खोलने की योजना को अभिव्यक्त किया है जिस पर वे पहले से ही काम कर रहें है।