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- बिक्री का माध्यम कोई भी हो, अपने ग्राहक की जरूरत और सूझबूझ का सम्मान कीजिए: पीयूष पांडे
पिछले कुछ समय के दौरान बिक्री के तौर-तरीके काफी बदले हैं। सिर पर टोकरी लेकर या साइकिल पर गली-गली फेरी लगाकर उत्पाद बेचने का तरीका अब ऑनलाइन माध्यम तक आ पहुंचा है, जहां हर प्रोडक्ट ग्राहक के एक क्लिक पर उपलब्ध है। जाहिर है कि प्रोडक्ट की बिक्री के लगभग पूूरी तरह से बदल चुके तौर-तरीकों की इस दुनिया में नए जमाने के कारोबारियों को लगता है कि उनके प्रोडक्ट को ब्रांड बनानेे के तौर-तरीकों में भी बदलाव की जरूरत है। दुनिया की शीर्ष ऑनलाइन रिटेलर अमेजन इंक ने इस सप्ताह बुधवार और गुरुवार को दो-दिवसीय अमेजन संभव कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में अमेजन के प्लेटफॉर्म पर सामानों की बिक्री करने वालेे विक्रेताओं से लेकर बहुत से संबंधित पक्षों ने हिस्सा लिया। इसमें चुनिंदा रिटेलर्स को विभिन्न कैटेगरी में अवार्ड्स भी दिएए गए। कार्यक्रम के दौरान महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा चर्चा-परिचर्चा के एक सत्र में गुरुवार को होल ट्रुथ फूड्स के संस्थापक व सीईओ शशांक मेहता और सिरोना हाइजीन के संस्थापक दीप बजाज ने विज्ञापन की दुनिया की मशहूर हस्ती, कैडबरी से लेकर एशियन पेंट्स और फेविकॉल तक के बेहद लोकप्रिय विज्ञापन और कई उत्पादों को मशहूर ब्रांड में बदल देने वाले पीयूष पांडे (सीसीओ वर्ल्डवाइड व एक्जीक्यूटिव चेयरमैन इंडिया, ओगिल्वी) से विभिन्न मुद्दों पर बात की। वैसे तो उनकी बातचीत डी-टु-सी के मौजूदा दौर में प्रोडक्ट के लिए विज्ञापन की बदलती जरूरत पर केंद्रित थी। लेकिन पांडे ने विभिन्न विषयों पर अपनी बेबाक राय रखी। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
शशांक मेहता : आपने पिछले चार दशकों से अधिक समय से दर्जनों प्रोडक्ट्स को ब्रांड्स का रूप दिया है। आपकी नजर में ब्रांड क्या है और क्या डी-टु-सी इंटरनेट के आज के जमाने में ब्रांड्स की पुरानी परिभाषा बदली है?
मैं मानता हूं कि, और यह मैंने कई बार कहा है और अपनी नई पुस्तक के माध्यम से फिर कह रहा हूं कि मैं क्लाइंट्स के लिए काम नहीं करता, ग्राहकों के लिए करता हूं। जिस किसी ने भी इसका अनुसरण किया है, चाहे उसने हर व्यक्ति तक पहुंच रखने वाले मास मीडिया एडवर्टाइजिंग की दुनिया में काम किया हो या ग्राहकों तक सीधे पहुंचने के किसी माध्यम में, अगर उसने इस बात को समझ लिया कि उसे ग्राहकों तक पहुंचना है, तो वह ग्राहकों के साथ बेहतर तरीके से संवाद कर सकता है। आज के डी-टु-सी जमाने या ऑनलाइन जमाने के कारोबार और उन बरसों पुराने परंपरागत कारोबार में, जो आज भी अच्छा कर रहे हैं, बुनियादी अंतर कह लें या समानता कह लें, यही है कि आप अपने ग्राहकों के साथ निकटता कितना और किस तरह से बढ़ाते हैं। ग्राहक आप पर कितना भरोसा करता है, बल्कि भरोसा बहुत बड़ा शब्द है। वह आपके मानने से नहीं आता बल्कि ग्राहकों की तरफ से आता है। आप ग्राहकों का वह भरोसा कैसे कमाते हैं यह महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप किसी भी माध्यम से ग्राहकों तक पहुंचें, वह एक सा रहने वाला है। इसे ऐसे समझिए कि आप किसी अनजान जगह पर पहुंचें और लोग वहां आपका स्वागत करें। मैं समझता हूं कि यह कभी नहीं बदलने वाला है, चाहे माध्यम कोई भी हो।
प्रोडक्ट के मामले में यह सही है कि लोग आपके बारे में, आपके उद्देश्यों के बारे में जानना चाहते हैं। अभी मैं अन्य बड़े उद्देश्यों की बात नहीं करूंगा, लेकिन लोग यह जरूर जानना चाहते हैं कि आप अपने प्रोडक्ट के माध्यम से उनके साथ एक विशिष्ट रिश्ता स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन कोई ब्रांड बनाने, और स्थायी ब्रांड बनाने का मेरा पहला मकसद उसके ग्राहकों से रिश्ता स्थापित करना है। मुझे अपने क्लाइंट की परवाह नहीं होती कि वह प्रोडक्ट से ज्यादा ग्राहकों को तवज्जो देने की मेरी इस आदत को पसंद करेगा कि नहीं। हो सकता है कि वह शुरू में पसंद नहीं करे, लेकिन जैसे-जैसे ग्राहकों को वह प्रोडक्ट अच्छा लगता जाएगा, क्लाइंट भी उसे पसंद करने लगेगा।
दीप बजाज : आप विज्ञापन के नजरिये से चीजों को कैसे देखते हैं क्या ब्रांड किसी प्रोडक्ट से जुड़ा हुआ होता है, या कैटेगरी से, या कि ये सब बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं। मेेरा मतलब यह है कि कैडबरी का कुछ खास है हम सभी में जैसा विज्ञापन हो या फेविकॉल का विज्ञापन, इनका प्रोडक्ट या कैटेगरी से कोई लेनादेेना नहीं है। आखिरकार सबकी जुबान पर चढ़ जाने वाले ऐसे विज्ञापनों के पीछे की सोच क्या रहती है?
मैं एक बार फिर कहूंगा, और एक दूसरी महत्वपूर्ण बात कहूंगा जिसका मुझे और मेरी जिंदगी को बड़ा फायदा मिला है। वह यह कि अपनेे ग्राहकों और उनकी समझ का सम्मान कीजिए। अगर किसी को पता है कि डिटर्जेंट का काम कपड़े धोना है, तो उसे ले जाकर प्रयोगशाला या फैक्ट्री नहीं दिखानी पड़ती कि डिटर्जेंट कैसे बनता है। देखिए, ब्रांड और प्रोडक्ट का अंतर बेहद सरल है। ग्राहकों की जरूरतेें पूरी करना प्रोडक्ट कहलाता है। लेकिन जब जरूरतें पूूरी करने का वह तरीका ग्राहकों को पसंद आने लगता है, तो वह ब्रांड बन जाता है। तो आपके पास एक वह उत्पाद हो सकता है जिसकी किसी को जरूरत हो। या आपके पास वह उत्पाद हो सकता है कि कोई ग्राहक चार दुकान जाकर पूछे और नहीं मिलने पर कहे कि मैं उसके लिए दो दिन इंतजार कर लूंगा। असल में यही ब्रांड है।
एक और बात कहूंगा। आपने मेरे कुछ विज्ञापनों का जिक्र किया। अब उनमें एशियन पेंट्स का उदाहरण देखिए। जब मैंने इसके लिए लिखा था कि हर घर कुछ कहता है... तो मुझे पता नहीं था कि इसका इतना जबरदस्त रिस्पांस मिलेगा। लेकिन मुझे इतना जरूर पता था कि मैं कुछ ऐसा लिख रहा हूं जिसका हर किसी के लिए कुछ मतलब है। और देखिए, यह पंक्ति एशियन पेंट्स के कारोेबार की फिलॉसफी बन गई। हमने लोगों में यह सोच भर दी कि उसका घर उसके व्यक्तित्व का आईना है। मैंनेे सोेचा नहीं था कि यह विज्ञापन इतना सफल होगा। इसके निहितार्थ हमारी सोच से कहीं आगे पहुंच गए।
शशांक मेहता : हर घर कुछ कहता है... अपने क्लांइट को यह लाइन समझा पाना कितना मुश्किल था?
बिल्कुल नहीं। मुझे लगता है कि क्लाइंट को समझाने के मामले में वह मेरी जिंदगी के सबसे आसान मौकोें में एक था। साथ ही, यह एकमात्र ऐसी लाइन थी जिसमें मैंने कोई बिंदी, कोई मात्रा जोड़ी-घटाई नहीं थी। मैंने एशियन पेंट्स में तत्कालीन कॉमर्शियल ऑफिसर अमिल सिंघल और सीईओ केबीएस आनंद को अपने ऑफिस बुलाया, उन्हें यह लाइन सुनाई और हम तीनों की आंखों में आंसू थे।
दीप बजाज : बिल्कुल यही बात मैं कैडबरीज के लिए पूछना चाहता था। मैं तो मानता हूं कि चॉकलेेट के विज्ञापन के लिए कोई चाहे कितना भी अलग सोच ले, हद से हद यही कहेगा कि इसमें दुनिया का सबसे अच्छा कोकोआ है, दूध है या फिर कुछ और। लेकिन आपने "कुछ खास है हम सभी में" जैसी लाइन कहां से ली?
आप 25-30 साल पहले का समय याद करें तो अमूमन चॉकलेट का ग्राहक पिता होेता था और उपभोक्ता बच्चा, या कभी-कभी पिता भी। कभी-कभी पिता भी उपभोेक्ता होता था। अब वह बच्चा बड़ा हो गया, और कभी चॉॅकलेट खाता भी है, लेकिन ऐसे जैसे कि कोई देख नहीं ले। ऐसे में अगर आप पिता या वयस्क के ऊपर चॉकलेट का विज्ञापन बनाएंगे तो बच्चों का जो बड़ा ग्राहक वर्ग है, उसे मिस कर देंगे। हम सब जानते हैं कि हर किसी वयस्क में एक बच्चा जिंदा होता है। उस बच्चे को जिंदा रखना चाहिए।
शशांक मेहता : हाल के दिनों तक बड़ी एफएमसीजी कंपनियों के पास डी-टु-सी ब्रांड्स के रूप में पर्सनलकेयर और फूड ब्रांड्स ही होते थे। ऐडमैन के तौर पर इन दोनों को आप कैसे देखते हैं। क्या इनके लिए अलग रणनीति होनी चाहिए?
कतई नहीं। आप सिर्फ अपनी आंख-कान खुले रखें। बचपन की अपनी स्मृतियों को कभी मरने नहीं दें। आप यकीन मानिए, मेरे काम, मेरे आइडिया का एक बड़ा हिस्सा वहीं से आता है। मैं बचपन में कहां रहता था, कैसे घर में था और किस तरह के रिश्ते थे, वहां आज भी कुछ भी नहीं बदला है। मैं कभी इन्हें कैैटेगरी में नहीं बांटता। क्या किसी ग्राहक ने कभी अपनी जरूरतों को कैटेगरी में बांटा है मैंने तोे नहीं सुना। ग्राहक तो सिर्फ अपनी जरूरत के बारेे में सोचता है। अगर हम उसकी जरूरत की पूर्ति कर देते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़़ता कि उस तक पहुंचने के लिए आप किस माध्यम का उपयोग कर रहे हैं।