व्यवसाय विचार

यूनियन बैंक ने एमएसएमई सह-ऋण व्यवसाय के लिए वास्तु हाउसिंग से मिलाया हाथ

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Aug 10, 2023 - 4 min read
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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य महाप्रबंधक सी एम मिनोचा ने कहा कि हमारा बैंक अंतिम लाभार्थी को किफायती लागत पर धन उपलब्ध कराने के लिए आरबीआई द्वारा शुरू किए गए सह-उधार मॉडल के तहत एमएसएमई व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

देश के प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने वास्तु हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एमएसएमई ऋण के लिए सह-उधार समझौता किया है। सह-उधार मॉडल में परेशानी सुनिश्चित करने के लिए एनबीएफसी और बैंकों द्वारा संयुक्त ऋण देने की परिकल्पना की गई है। समाज के वंचित वर्ग को ऋण का मुक्त प्रवाह। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य महाप्रबंधक सी एम मिनोचा ने कहा कि हमारा बैंक अंतिम लाभार्थी को किफायती लागत पर धन उपलब्ध कराने के लिए आरबीआई द्वारा शुरू किए गए सह-उधार मॉडल के तहत एमएसएमई व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

मिनोचा ने कहा कि वास्तु हाउसिंग फाइनेंस के साथ इस सहयोग से बैंक को एक गुणवत्तापूर्ण एमएसएमई ऋण पोर्टफोलियो बनाने में मदद मिलेगी और यह व्यापक पहुंच वाले एनबीएफसी और ग्राहकों के लिए फायदेमंद होगा, जिन्हें बैंकों से सस्ती दरों पर ऋण की सुविधा मिलेगी। इससे एमएसएमई क्षेत्र में बैंक का वितरण नेटवर्क बढ़ेगा। इस समझौते पर मुंबई में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य महाप्रबंधक सी एम मिनोचा और वास्तु हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के मुख्य जोखिम अधिकारी शकील खान के बीच हस्ताक्षर किए गए।

सह-उधार समझौते

हाल ही में कई बैंकों ने पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के साथ सह-उधार 'मास्टर समझौते' किये हैं। वर्ष 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक पूर्व समझौते के आधार पर सह-उधार मॉडल की अनुमति दी थी।

हालांकि सह-उधार से जुड़ी कुछ आलोचनाएं भी हैं।

प्रमुख बिंदु:

सह-उधार मॉडल:

पृष्ठभूमि:

सितंबर 2018 में आरबीआई ने बैंकों और NBFC द्वारा प्राथमिकता क्षेत्रकों को ऋण देने के लिये ऋण की सह-उधार की घोषणा की थी।
इस व्यवस्था में क्रेडिट का संयुक्त योगदान और ज़ोखिमों तथा पुरस्कारों को साझा करना शामिल था। सह-उधार या सह-उत्पत्ति एक ऐसी व्यवस्था है जहां बैंक और गैर-बैंक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिये ऋण के संयुक्त योगदान की व्यवस्था करते हैं।
इन दिशानिर्देशों को वर्ष 2020 में संशोधित किया गया और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों तथा मॉडल में कुछ बदलावों को शामिल करके सह-उधार मॉडल (CLM) के रूप में फिर से नाम दिया गया।
प्राथमिकता क्षेत्रकों के मानदंडों के तहत बैंकों को अपने फंड का एक विशेष हिस्सा समाज के कमज़ोर वर्गों, कृषि, एमएसएमई और सामाजिक बुनियादी ढांचे जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों को उधार देना अनिवार्य है।

उद्देश्य:

'सह-उधार मॉडल' (CLM) का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था के असेवित और कम सेवा वाले क्षेत्र को ऋण के प्रवाह में सुधार करना है।
इसमें अंतिम लाभार्थी को वहनीय लागत पर धन उपलब्ध कराने की भी परिकल्पना की गई है।

अंतर्निहित/आधारभूत विचार:

सह-उधार में ज़ोखिम:

अधिकांश ज़िम्मेदारी बैंकों के पास:


बैंकिंग में कार्पोरेट्स:

आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर बड़े कार्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी है, लेकिन NBFC ज़्यादातर कॉरपोरेट घरानों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। यह जोखिम भरा है, खासकर जब चार बड़ी निजी वित्त कंपनियां - IL&FS, DHFL, SREI और रिलायंस कैपिटा आरबीआई द्वारा कड़ी निगरानी के बावजूद पिछले तीन वर्षों में ध्वस्त हो गई हैं।

NBFC की सीमित पहुंच:

जबकि आरबीआई ने "NBFC की अधिक पहुंच" का उल्लेख किया है, 100-शाखा नेटवर्क वाले छोटे NBFCs कम सेवा प्राप्त और असेवित क्षेत्रों में सेवा देने में कम हो जाएँगे।

आगे की राह

निर्णय लेने की प्रक्रिया के संचालन, समीक्षा करने और निरीक्षण करने के लिये बैंक के बोर्ड को अधिक अधिकार देने की आवश्यकता है तथा इसके लिये योग्य व्यक्तियों की भर्ती की जानी चाहिये। साथ ही एक अधिक मज़बूत जोखिम प्रबंधन तंत्र की आवश्यकता है।
अब विदेशी बाजारों को देखने की और उपयुक्त व्यावसायिक नीतियां (वैश्विक स्थान और इन बैंकों द्वारा लक्षित उत्पाद के संदर्भ में) स्थापित करने की ज़रूरत है, जो इन बैंकों की दक्षता तथा उनके वैश्विक समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने में मदद करेगी।

निम्नलिखित के संबंध में निरंतर सुधार किये जाने चाहिये,
उत्पाद नवीनता,
प्रौद्योगिकियों में निवेश,
बेहतर बैक-एंड प्रक्रियाएं,
टर्नअराउंड समय में कमी

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