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- रेंज-एक्सटेंडेड वाहनों का भविष्य: चीन, यूरोप और भारत की रणनीतियाँ
रेंज-एक्सटेंडेड वाहन (REVs) आजकल ऑटोमोटिव उद्योग में एक प्रमुख और विकसित होते हुए ट्रेंड के रूप में उभर रहे हैं। यह वाहन विशेष रूप से इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड तकनीकों का मिश्रण होते हैं, जो वाहन की रेंज बढ़ाने के लिए बैटरी और दहन इंजन का संयोजन करते हैं। ऐसे वाहन आज बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, खासकर चीन, यूरोप और भारत जैसे प्रमुख बाजारों में, जहां पर्यावरणीय चिंताओं और ऊर्जा दक्षता की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए इनका विकास हो रहा है।
पावरट्रेन सिस्टम AVL के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉ. गुंटर फ्रेडल ने ऊर्जा वाहकों और स्टोरेज के क्षेत्र में रेंज-एक्सटेंडेड वाहनों की बढ़ती भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि चीन में इन वाहनों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, खासकर बड़े SUVs में, जो बैटरी और दहन इंजन के संयोजन से लंबी रेंज प्रदान करते हैं। इसके साथ ही, उन्होंने ऊर्जा दक्षता, पर्यावरणीय प्रभाव और वैश्विक बाजारों में विभिन्न रणनीतियों पर भी विचार व्यक्त किया।
ऊर्जा वाहक और स्टोरेज की भूमिका
डॉ. गुंटर फ्रेडल ने ऊर्जा वाहक और स्टोरेज पर चर्चा करते हुए कहा कि स्टोरेज एक ऐसा पहलू है जिसे कम आंका गया है, जबकि यह दुनिया को हरित बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के लिए ऊर्जा का भंडारण बेहद जरूरी है, क्योंकि ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग हमेशा एक साथ नहीं होता। जर्मनी का उदाहरण लेते हुए उन्होंने बताया कि अनुमानित 30 TWh की स्टोरेज क्षमता की आवश्यकता होगी, जबकि वर्तमान में यह क्षमता बहुत कम है।
बैटरी स्टोरेज की आवश्यकता
वर्ष 2050 में बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEV) के व्यापक उपयोग के बावजूद, जर्मनी में स्टोरेज क्षमता की मांग 0.14 TWh तक सीमित हो सकती है। लेकिन वास्तविकता में, वर्तमान में यह क्षमता 0.04 TWh है। अमेरिका में स्थित सबसे बड़े बैटरी स्टोरेज सिस्टम भी इस जरूरत को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। भारत की सक्रियता की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि देश बैटरी स्टोरेज और नवीकरणीय ऊर्जा स्टोरेज के क्षेत्र में उभर रहा है।
BEV की बाजार स्थिरता और सब्सिडी का प्रभाव
बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में स्थिरता का अभाव है। 2022 में जर्मनी में औसतन 40,000 यूनिट प्रति माह की बिक्री हुई, लेकिन 2023 में यह घटकर 30,000 रह गई। इसकी प्रमुख वजह सब्सिडी में बदलाव है। जब भी सब्सिडी घटाई जाती है, बिक्री घट जाती है। नॉर्वे जैसे समृद्ध देशों में BEV की बिक्री 90% है, जबकि दक्षिणी यूरोप में यह केवल 5% है। सब्सिडी और मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर ही बैटरी वाहनों की सफलता के मूल आधार हैं।
CO2 उत्सर्जन और बाजार चुनौतियां
यूरोप के ऑटोमोटिव उद्योग को CO2 उत्सर्जन घटाने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। फ्लीट उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ानी होगी, अन्यथा कंपनियों को भारी जुर्माना भुगतना पड़ेगा। लेकिन बिक्री में गिरावट से आर्थिक दबाव बढ़ रहा है।
भविष्य की चुनौतियां और विकास में देरी
वर्ष 2030 तक बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री की भविष्यवाणियां संशोधित की गई हैं। यूरोप में इस विकास में दो साल, चीन में तीन साल, और अमेरिका में दस साल की देरी हो रही है। इस देरी के चलते ICE (इंटरनल कंबशन इंजन) वाहनों का उपयोग अपेक्षा से अधिक समय तक जारी रह सकता है।
भारत की स्थिति और स्थानीय उत्पादन की उम्मीदें
भारत में पेट्रोल-इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के उत्पादन में तेजी आने की संभावना है। देश स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तैयारी कर रहा है। यह ऊर्जा वाहनों के क्षेत्र में भारत की मजबूती और इसकी स्थिर रणनीतियों का संकेत है। डॉ. फ्रेडल का कहना है कि वैश्विक बाजारों में अस्थिरता के बावजूद, बैटरी वाहनों का भविष्य मजबूत है, लेकिन इसकी गति और समय-सीमा अनिश्चित है। उन्होंने जोर दिया कि स्थिर नीतियां और मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर इस क्षेत्र की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
डॉ. गुंटर फ्रेडल ने कहा कि एक नया खिलाड़ी, जिसे रेंज-एक्सटेंडेड वाहन कहा जाता है, मैदान में आया है। यह वाहन विशेष रूप से चीन में उभर रहा है और वर्तमान में यह बड़े SUVs के साथ एक महत्वपूर्ण ट्रेंड बन गया है। चीन में, इस प्रकार के वाहन तेजी से बढ़ रहे हैं। बैंगनी रंग का यह रेंज-एक्सटेंडेड वाहन अब वहाँ के बाजार का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। साथ ही, PGE (प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक) वाहन भी वहां बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
चीन में विद्युतीकरण की परिभाषा अलग है। यहां नए ऊर्जा वाहनों को पंजीकरण और सब्सिडी में लाभ मिलता है। ये सिर्फ पेट्रोल-इलेक्ट्रिक वाहन नहीं होते, बल्कि इसमें PGE प्लग-इन हाइब्रिड और रेंज-एक्सटेंडेड वाहन भी शामिल हैं। अब यह पूर्ण उत्पादन मात्रा में देखा जा सकता है। वर्ष 2020 में इन नए ऊर्जा वाहनों में 80% पेट्रोल-इलेक्ट्रिक वाहन थे। लेकिन आज यह 55-45 के अनुपात के करीब है। रेंज-एक्सटेंडेड वाहनों ने पहले ही लगभग 10-12% का बाजार हिस्सा कवर कर लिया है और इसमें अगले वर्ष और वृद्धि की संभावना है।
इस बदलाव के पीछे SUVs का बड़ा बाजार है, जहां इन वाहनों ने सफलता पाई है। हालांकि, रेंज-एक्सटेंडेड वाहन का आविष्कार चीन में नहीं हुआ। BMW i3 पहले से ही बाजार में था। 2010 में Audi ने इस तकनीक का प्रयास किया और General Motors ने भी इस दिशा में पहल की थी।
रेंज-एक्सटेंडेड वाहन की तकनीक विशेष रूप से बड़े SUVs में प्रभावी है। इन वाहनों में बड़ी बैटरियां लगाई जाती हैं, जो लगभग 200 किलोमीटर की इलेक्ट्रिक रेंज देती हैं। टैंक की जगह होने से कुल रेंज 1,000 किलोमीटर से अधिक हो सकती है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चार्जिंग यूनिट, दहन इंजन और जनरेटर को कैसे एकीकृत किया जाए।
चीनी कंपनियों ने इस समस्या का समाधान कर लिया है। वे रेंज-एक्सटेंडेड और बैटरी-बैक्ड वाहनों को एक ही उत्पादन लाइन पर चला रहे हैं। इसके विपरीत, यूरोप ने दो प्लेटफॉर्म विकसित किए हैं, जो लचीलापन कम करते हैं और मांग के अनुसार बदलाव मुश्किल बनाते हैं। चीनी कंपनियां दहन इंजन की दक्षता पर भी ध्यान दे रही हैं। यहां 42% से अधिक दक्षता वाले 20 से अधिक नए इंजन लॉन्च हुए हैं। डायरेक्ट इंजेक्शन और हाइब्रिड सहयोग के साथ, यह दक्षता 44% तक पहुंच गई है।
जापान का ध्यान हाइब्रिड वाहनों पर है। जापानी तरीका, जीवनचक्र उत्सर्जन और लागत के संदर्भ में, यूरोपीय तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी है। डॉ. फ्रेडल ने कहा कि यूरोप ने अपने फैसलों में गलतियां की हैं। उदाहरण के लिए, प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों और स्टोरेज में कमी को नजरअंदाज किया गया। यूक्रेन युद्ध ने एनर्जी स्टोरेज की कमी को उजागर किया।
निष्कर्ष
डॉ. फ्रेडल ने कहा कि प्रत्येक क्षेत्र को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित रणनीतियां बनानी होंगी। भारत के पास भी इस क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं हैं। हरित ऊर्जा, बायोफ्यूल्स और बायोगैस का मिश्रण भारत को एक बेहतर समाधान दे सकता है।ग्राहक की जरूरतों के अनुसार, ऊर्जा स्रोतों और वाहन प्रदर्शन के बीच तालमेल बनाकर, एक स्थायी भविष्य की ओर बढ़ना होगा।