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वर्तमान समय की जरूरत है हाइब्रिड लर्निंग

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk May 13, 2022 - 5 min read
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कोरोना संक्रमण के पिछले दो वर्षों के दौर ने शिक्षा जगत को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। इन दो वर्षों ने पढ़ने-पढ़ाने के हाइब्रिड मॉडल को भविष्य के लिए शिक्षा हासिल करने के सबसे अच्छे विकल्प के रूप में पेश किया है।

शिक्षा हासिल करने में किसी भी तरह की बाधा को खत्म करने और पठन-पाठन के तौर-तरीकों को बेहतर बनाने का सबसे अच्छा उपाय हाइब्रिड लर्निंग है। सरल शब्दों में कहें तो हाइब्रिड लर्निंग का मतलब ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से शिक्षा हासिल करना है। या कहें, तो छात्र स्कूल-कॉलेज में हो या घर में, उसे उसी स्थान पर विभिन्न माध्यमों से बेहतरीन शिक्षा हासिल करने का विकल्प प्रदान करना हाइब्रिड लर्निंग का हिस्सा है।

कोरोना संकट के पिछले दोे वर्षों के दौरान हमने देखा है कि छात्रों की पढ़ाई-लिखाई सबसे ज्यादा प्रभावित हुई। सच यह है कि इस अवधि में कोरोना ने शिक्षा के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। पिछले दो वर्षों में देेशभर के करीब 70 प्रतिशत बच्चों को पढ़ाई-लिखाई का उचित और औपचारिक मंच नसीब नहीं हुआ। इन परिस्थितियों ने हाइब्रिड लर्निंग को वर्तमान और भविष्य की जरूरत बना दिया है।

कोरोना के बाद मिली गति

वैसे, ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोरोना संकट से पहले हाइब्रिड लर्निंग का कोई अस्तित्व नहीं था। यह बात और है कि इसके विकास की गति धीमी थी, लेकिन यह ऐसा प्लेटफॉॅर्म है जो कोरोना से पहले भी चलन में था और दुनिया कुछ वर्ष पहले ही डिजिटल लर्निंग मोड में प्रवेश कर गई थी। कोरोना संकट के समय लोगों का ध्यान एकदम से इस मॉडल की ओर गया और पिछले दो वर्षों के अनुभव के बाद हाइब्रिड या डिजिटल लर्निंग अब समय की मांग बन गई है।

इस तरह के लर्निंग प्लेटफॉर्म का एक बड़ा फायदा यह है कि छात्रों को ध्यान भटकाने वाली चीजों, क्लासरूम के बेवजह शोर, अपनी हिचकिचाहट और अन्य दूसरी चुनौतियों से पूरी मुक्ति मिल जाती है। इससे छात्र और शिक्षक दोनों का आपसी तालमेल और समन्वय बेहतर बनता है।

हाइब्रिड या स्मार्ट लर्निंग छात्रों और अभिभावकों को ऐसे उपकरण उपलब्ध कराती है, जिससे वे घर में बैठे-बैठे रचनात्मक और समयबद्ध ज्ञान पा सकें। इसकी सबसे बड़ी खूबियों में एक यह है कि इसमें छात्र अपनी गति में और अपने माहौल में सीखने के तौर-तरीके निर्धारित कर सकते हैं। इसमें छात्रों को अपनी सहूलियत के हिसाब से पढ़ाई का वक्त और माहौल चुननेे की छूट मिल जाती है।

इसमें छात्रोें के लिए अलग-अलग तरह की गतिविधियां होती हैं, विषयोें व पाठ्यक्रम का चुनाव होता है और अध्ययन की सामग्री होती है। इन सभी नई खासियतों के चलते यह शिक्षण के बरसों से चले आ रहे पुराने तौर-तरीकों को नए जमाने के तरीकों से बदल रही है।

सीखने के नए तरीके मिलते हैं

हाइब्रिड लर्निंग की बहुत सी दूसरी खासियतों में एक यह है कि इसमें छात्रों और उनके शिक्षकों में आपसी समझ बढ़ती है। इससे शिक्षक अपने छात्र को पढ़ानेे के लिए परंपरागत और गैर-परंपरागत दोनों तरह के तरीकों का उपयोग करने को स्वतंत्र होते हैं। यहां एक और बात समझने योग्य है। वह यह कि हाइब्रिड लर्निंग में क्लासरूम की पढ़ाई समाप्त नहीं हो जाती है, बल्कि क्लासरूम के बाहर एक और नए माध्यम से पढ़ाई का तरीका जुड़ता है। इसलिए क्लासरूम में बच्चों को जो ज्ञान मिलता है, उसमें हाइब्रिड लर्निंग के माध्यम से इजाफा हो जाता है और उस छात्र के लिए सीखने और परीक्षा के नतीजे बेहतर आते हैं।

भारत के संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यहां की शिक्षा व्यवस्था पर मौसम की मार, छात्रोें की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों या परिवार में अचानक हुई कोई घटना जैसे कारकों के असर का अंदेशा लगातार बना रहता है। हाइब्रिड लर्निंग की व्यवस्था इन सभी दिक्कतों को खत्म कर देती है, क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में भी छात्र अपनी सुविधा के समय पर पढ़ाई जारी रख सकता है।

हाइब्रिड लर्निंग का यह जो तरीका उभरकर सामने आया है, वह कई मायनों में छात्रों के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें छात्रों को पढ़ाई का अपना समय चुनने की छूट मिल जाती है, पढ़ाई का तुरंत मूल्यांकन हो जाता है, छात्रों को स्वमूल्यांकन का भी बेहतर मौका मिलता है और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई की मदद से सीखने की गुणवत्ता बहुत सुधर जाती है। इस तरीके में पढ़ाई की भौगोलिक बाधाएं खत्म हो गई हैं, क्योंकि छात्र और शिक्षक देश के दो अलग-अलग छोर पर भी हो सकते हैं। इसमें छात्र व शिक्षक समय की अपनी-अपनी सुविधाओं के हिसाब से आपस में बातचीत कर सकते हैं।

वैसे, कोरोना के बाद भारत में एजुकेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों का जिस तेजी से विकास व विस्तार हुआ है, उसमें सस्ते मोबाइल डाटा की भी बहुत बड़ी भूमिका रही है। वर्तमान में भारत में मोबाइल डाटा की दरें दुनियाभर में सबसे कम हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजिटल लर्निंग में लोकेशन, समय और कक्षा में शामिल हो रहे छात्रों की संख्या को लेकर कोई बंधन नहीं होता। यही वजह है कि अब तोे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी डिजिटल लर्निंग का खूब उपयोग हो रहा है।

हाल के एक सर्वेे में पता चला है कि 67.8 प्रतिशत शिक्षकों नेे पठन-पाठन के लिए हाइब्रिड लर्निंग को पसंद किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में भी शिक्षण के लिए तकनीक आधारित तरीकों पर जोर दिया गया है। इसमें शिक्षा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करनेे, बचपन में शिक्षा पर जोर तथा कम से कम पांचवीं कक्षा तक एक से अधिक भाषा में अध्ययन की बात कही गई है।

हाइब्रिड लर्निंग ने पिछलेे कुछ वर्षों में जिस तरह की शक्ल ली है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्तमान सदी पर इसी का राज रहने वाला है। इसमें सॉफ्टवेयर व टेक्नोलॉजी में नए विकास होने वाले हैं। अगर बुनियादी शिक्षा व्यवस्था से अलग भी देखें, तो आने वाले दिनों में कौशल विकास और रोजगारपरक प्रशिक्षण में डिजिटल लर्निंग की भूूमिका बहुत बढ़ने वाली हैै। यह एजुकेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नई उभरती कंपनियों के लिए भी संभावनाओं के नए द्वार खोलने वाला है।
                                                      (तूलिका सिंह एक एजुकेशन टेक्नोलॉजी स्टार्टअप कंपनी किजोई की सह-संस्थापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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