एडुइक्नॉमी का असल कार्य है एकीकृत शिक्षा तंत्र का हमारें छात्रों के परिणाम और इम्प्लॉयर की मांग पर हमारी अर्थव्यवस्था में शिक्षा को प्रदान करने के असल कारण को खोजने पर लागू होता है। हम सभी शिक्षा को अपनी सबसे बड़ी क्षमता को और पोषित करने वाला मानते है क्योंकि हम सभी के भीतर एक स्वप्न होता है जिसे इसके माध्यम से पूरा किया जाता है और यह सभी के लिए लाभ के रूप में व देश की बड़ी क्षमता के रूप में बदल सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय और निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या इस बात को दर्शाती है कि भारत का शिक्षा तंत्र स्वस्थ है। वास्तव में, केवल 29 प्रतिशत बच्चे ही निजी स्कूलों में जाते है जबकि बाकी बचे छात्र सरकारी या राज्य सरकार द्वारा अनुदान दिए शिक्षा तंत्र में। इसलिए भारत की शिक्षा तंत्र की वास्तविकता को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें देश के सरकारी स्कूलों के दरवाजों से परे देखना होगा।
शिक्षकों का चेहरा बदलना
भारत के सरकारी स्कूलों की असल छवि को केवल तभी सुधारा जा सकता है जब सरकार न सिर्फ फैंसी नामों के साथ आगे आएं जैसे ‘टीच इंडिया‘ बल्कि वह वास्तव में ग्रामीण क्षेत्र में जाएं और इस बात का आश्वासन प्राप्त करें कि बच्चों को सबसे बेहतर शिक्षा दी जाएं।
सरकार के साथ ही साथ व्यक्तियों के लिए ग्रामीण शिक्षा और सुविधा से वंचितों की शिक्षा एक गंभीर विषय हैं। इंडस्ट्री मांग कर रहीं है देश के सबसे उपेक्षित क्षेत्र यानी ग्रामीण क्षेत्र में सही शिक्षा प्रदान करने के लिए कोई त्वरित कार्रवाई के लिए। और गरीबी से बाहर आने का शायद यहीं एकमात्र तरीका है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
कैसे शिक्षा और अर्थव्यवस्था एक साथ प्रभावी ढंग से काम करें इस पर बयान देते हुए अनिल शहस्रबुद्ध, चेयरमैन, एआईसीटीई ने कहा, “कक्षा में छात्र को सही विवेचन या व्याख्या दी जानी चाहिए। और जैसा कि हम सभी जानते है कि विघटन पूरी तरह से तैयार है उड़ान भरने वालो रंगों के साथ जोकि दुनियाभर में नए मंचों से आने वाले है।“ “पाठ्यक्रम को इस तरीके से तैयार करना चाहिए कि उसमें एक ऐसी इनोवेटिव ताकत हो जो उसके अंतःस्थापित हो। ऐसा उन्होंने कहा
आतिशी मर्लेना, एडवायज़र, डिप्टी सीएम, नई दिल्ली ने कहा, “हम देश के हर एक बच्चे को उच्च-गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करा सकें उसे लिए कार्य करने की आवश्यकता है। मेरे विचार से समस्या यह है कि यह शायद केवल 5 प्रतिशत तक के छात्रों तक ही पहुंच पा रही है। हमें वाकई में कुछ बेहतरीन इनोवेशन और विचारों की आवश्यकता है कि कैसे देश के हर के बच्चे को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त हो फिर चाहें उनकी पैसे देने की क्षमता जो भी हो।“
मर्लेना ने कहा, “हमें प्राथमिक ध्यान अपने पढ़ाने के तरीके, हमारें पाठ्यक्रम और हमारें स्पोर्ट सिस्टम को बदलने पर होना चाहिए ताकि इन बच्चों को स्कूल से निकलते ही अपनी जीवन की राह मिल सकें।“
सरकारी स्कूलों में सुधार लाना केवल एक मात्र जटिल परेशानी नहीं है जिसका सामना सरकार कर रही है। इस पर मर्लेना ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इन महत्वपूर्ण बदलावों को लाने के लिए सरकार ने सबसे पहले अपने शिक्षा बजट को दुगुना कर दिया है। यह एकदम सही है कि इन सभी के लिए सरकार को आर्थिक निवेश करने की आवश्यकता है। दिल्ली सरकार अपने बजट का 25 प्रतिशत शिक्षा पर निवेश कर रहें हैं।
माननीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, डीपीएस राजेश के ओएसडी का मानना है कि, “ग्रामीण आबादी को इससे वंचित किया गया है, यह अब भी वंचित है और यदि सरकार इसमें सक्रिय भूमिका न निभाएं तो भविष्य में भी यह स्थिति ऐसे ही बनी रहेगी। यहां पर सक्रिय हस्तक्षेप होना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा स्वयं ठोस सूची में है। वे नीति से इनकार कर सकते है और वे केवल उसे उस सीमा तक बढ़ा सकते है जोकि उपयुक्त हो। एक राज्य विशेष की शिक्षा पैटर्न अन्य राज्यों के लिए उपयुक्त हो, यह जरूरी नहीं है। यह बहुत आवश्यक है कि सरकार जहां तक संभव सकें अपना पूरा प्रयास करें।“
एडुइकॉनोमी के सपने को वास्तविकता में बदलने के लिए हमारें देश के सभी लीडर जैसे शिक्षा, व्यवसाय और सरकार पर समान रूप से निर्भर करता है।