भारत में स्वास्थ्य सेवा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और पहुंच के मामले में यह 195 देशों में 145वें स्थान पर है। साथ ही यह स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के लिए खतरे के रूप में नागरिक और आपराधिक दायित्व का मार्ग प्रशस्त करता है। अनुपालन कानूनों और विनियमों की अद्यतन जानकारी तक पहुंच न होने के कारण, जो विकसित होते रहते हैं और समय की कमी के चलते इनका अनुपालन कठिन हो जाता है। इस आर्टिकल में हम आपको कुछ ऐसे नियमों की जानकारी दे रहें हैं, जिनके बिना आप हेल्थसेक्टर में बिजनेस शुरू ही नहीं कर सकते हैं, तो आइए इनके बारे में विस्तार से जान लें ताकि आप अपने व्यवसाय को बिना किसी व्यवधान शुरू कर सकें।
हेल्थ सेक्टर में बिजनेस करने के लिए कई ऑप्शन हैं और इन सभी के लिए जरूरी नियम और लाइसेंस भी अलग-अलग हैं। अगर आप अस्पताल संचालन का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी नियम-कायदे निम्नवत् हैं
सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 2001 के तहत पंजीकरण
यदि अस्पताल सोसायटी के स्वामित्व में स्थापित किया जा रहा है, तो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम की आवश्यकता होती है।
सोसायटी पंजीकरण अधिनियम
सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 एक केन्द्रीय अधिनियम है तथा इस एक्ट के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की चौरिटेबल एवं अव्यवसायिक संस्थाएं पंजीकृत की जाती हैं। यह एक्ट पूरे भारतवर्ष में समान रूप से लागू है। हालांकि प्रत्येक राज्य की नियमावली अलग-अलग है। हर राज्य इस अधिनियम में समय-समय पर अपनी आवश्यकतानुसार संशोधन करते रहते हैं।
कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकरण
कंपनी अधिनियम तब लागू होता है, जब अस्पताल ने इसे किसी निगम के स्वामित्व में स्थापित किया हो। अधिनियम के लिए आवश्यक है कि निगम पंजीकृत हो और एसोसिएशन के ज्ञापन, एसोसिएशन के लेख, पूंजी संरचना निर्माण, प्रतिभूतियों के आवंटन, खाता ऑडिट आदि जैसी निगमन की आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
यह जरूरी है किसी भी हेल्थ सेक्टर के बिजनेस में निदेशक पद के लिए
यदि आप हेल्थ सेक्टर संबंधित कोई कंपनी शुरू करना चाहते हैं, मसलन दवाओं के थोक व्यापार के लिए और उसमें निदेशकों की भी नियुक्ति की जानी है, तो यहां यह जान लें कि प्रत्येक निदेशक के लिए निदेशक सूचकांक संख्या (डीआईएन नंबर) का होना जरूरी होता है। यह भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आता है। यह प्रत्येक निदेशक के लिए एक अनिवार्य पंजीकरण है, जो किसी निगम का हिस्सा बनना चाहता है। यह निदेशकों के लिए एक बार का पंजीकरण है।
क्लिनिकल प्रतिष्ठान विधेयक
क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 भारत की संसद का एक अधिनियम है। यह भारत में सभी नैदानिक प्रतिष्ठानों को विनियमित करना चाहता है। 15 अप्रैल, 2010 को क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) विधेयक, 2010 पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। अधिनियम में सभी नैदानिक प्रतिष्ठानों को खुद को पंजीकृत करने की आवश्यकता है और यह सामान्य बीमारियों और स्थितियों के लिए मानक उपचार दिशानिर्देशों का एक सेट प्रदान करता है।
अग्नि सुरक्षा नियम
हेल्थ सेक्टर में बिजनेस कर रहे व्यावसायिओं के लिए अग्निशमन सुरक्षा प्रमाणपत्र परमिट लेना जरूरी होता है। इसे प्राप्त करने के लिए आपको नगर निगम मुख्यालय से संबंधित अग्निशमन विभाग से अनुमति लेनी होगी। ध्यान रखना होगा कि हॉस्पिटल या कंपनी, जिसका भी संचालन कर रहे हैं उसकी बिल्डिंग में फायर सेफ्टी का होना बहुत जरूरी है, नहीं तो खतरे की स्थिति में पैनिक होता है तब दुःखद घटना घटित होने की संभावना होती है। उक्त जरूरी दस्तावेजों के अलावा पेशेवरों की योग्यता अभ्यास और आचरण को नियंत्रित करने वाले कानूनों का भी पालन करना जरूरी होता है।
भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम
यह अधिनियम भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के गठन और भारत के लिए एक मेडिकल रजिस्टर के रखरखाव और उससे जुड़े मामलों का प्रावधान करता है। अधिनियम को 1964 और 1993 में संशोधित किया गया है। हेल्थ सेक्टर बिजनेस में इस अधिनियम के तहत पंजीयन होना बेहद जरूरी है।
भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम
अस्पताल स्थापित करने जा रहे हैं तो भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम के तहत पंजीकृत होना भी जरूरी है। यह भारत में नर्सों और नर्स शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय नियामक संस्था है, जो भारत सरकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है, जिसका गठन भारतीय संसद के भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम, 1947 की धारा 3(1) के तहत केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। मूल अधिनियम के अनुसार परिषद का कार्य नर्सिंग शिक्षा में एकरूपता प्रदान करना है।
दंत चिकित्सक अधिनियम
दंत चिकित्सा महाविद्यालय का संचालन करने जा रहे हैं या फिर दंत चिकित्सा क्लीनिक खोलने जा रहे हैं या फिर अस्पताल में ही दंत चिकित्सा विभाग शुरू करना चाहते हैं, तो दंत चिकित्सक अधिनियम का पालन भी जरूरी है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में दंत चिकित्सा शिक्षा, दंत चिकित्सा पेशे और दंत नैतिकता के मानक को विनियमित करना है और भारत सरकार को एक दंत महाविद्यालय शुरू करने, उच्च शिक्षा शुरू करने और दंत चिकित्सा में छात्रों के लिए सीटें बढ़ाने की अनुमति देने की सिफारिश भी करता है।
दवाओं और सुरक्षित दवाओं के भंडारण बिक्री को नियंत्रित करने वाला कानून
दवाओं के विनिर्माण, भंडारण, परिवहन, वितरण और वितरण को ड्रग्स और कॉस्मेटिक अधिनियम, 1940 के तहत लाइसेंस और विनियमित किया जाता है। हालांकि, ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियम, 1945 की अनुसूची ज्ञ के तहत, आरएमपी को ड्रग्स कंट्रोल से लाइसेंस लेने से छूट दी गई है। अपने मरीजों के लिए दवाओं के भंडारण और वितरण के लिए विभाग। स्थिति के अनुसार और एक व्यक्तिगत रोगी के उपयोग के लिए, बशर्ते कि दवाइयों को खुला न रखता हो, काउंटर पर बिक्री नहीं कर रहा हो या भारत में दवाओं के आयात, निर्माण, वितरण या बिक्री में लगा हुआ हो, एक हद तक जो उसे अधिनियम और नियमों के अध्याय ट के प्रावधानों के प्रति उत्तरदायी बनाता है।
वैट अधिनियम
वैट या मूल्य वर्धित कर एक प्रकार का कर है, जो केंद्र सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को सेवाओं और वस्तुओं की बिक्री पर लगाया जाता है। वैट का भुगतान सेवाओं और वस्तुओं के उत्पादकों द्वारा किया जाता है, लेकिन यह अंततः उन उपभोक्ताओं पर लगाया जाता है जो सेवाओं और वस्तुओं को खरीदते हैं जब वे इसके लिए भुगतान करते हैं।
फार्मेसी अधिनियम
यह अधिनियम फार्मेसी के पेशे और प्रैक्टिस के नियमन के लिए बनाया गया था। ऐसे में फार्मेसी संबंधित किसी भी व्यवसाय के लिए इसका पालन करना बेहद जरूरी है।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों के अंतर्गत रक्त बैंक नियमन
ब्लड बैंक यानी कि रक्त बैंक संबंधी कोई व्यवसाय शुरू करने जा रहे हैं या अस्पताल में ही ब्लड बैंक यूनिट लगाना चाहते हैं तो रक्त आधान सेवाएं औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत पंजीयन जरूरी है। यह औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 भारतीय रक्त आधान सेवाओं में अपनाई जाने वाली आवास, जनशक्ति, उपकरण, आपूर्ति और अभिकर्मकों, अच्छी विनिर्माण प्रथाओं और प्रक्रिया नियंत्रण के बारे में जानकारी प्रदान करता है। भारतीय रक्त बैंकिंग प्रणाली में विनियामक मामलों को भारत के औषधि महानियंत्रक के तहत केंद्रीय और प्रांतीय औषधि नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राष्ट्रीय रक्त नीति 2002 में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई थी और इसका उद्देश्य सुरक्षित, पर्याप्त मात्रा में रक्त, रक्त घटक और उत्पाद प्रदान करना है। इस नियम का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना वहन करना पड़ सकता है।
बायोमेडिकल रिसर्च को नियंत्रित करने वाला कानून
बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 भारत सरकार द्वारा 1998 में पर्यावरण की रक्षा के लिए कचरे के प्रभावी संग्रह, प्रबंधन और निपटान के लिए दिशानिर्देश और नियम प्रदान करने के लिए जारी किए गए थे। चूंकि स्वच्छ और हरित पर्यावरण के लिए प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है इसलिए इन विनियमों का नियमित रूप से निरीक्षण, परिवर्तन और अद्यतन किया जाता है। अस्पतालों और प्रयोगशालाओं द्वारा उत्पन्न इन बायोमेडिकल कचरे के संग्रह, पृथक्करण, उपचार और निपटान सुविधाओं को मजबूत करने और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए, भारत सरकार ने 2016 में बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के नाम से नियमों का एक नया सेट जारी करने का विकल्प चुना, जिसका अनुपालन करना हेल्थ सेक्टर के सभी व्यावसायिओं के लिए आवश्यक है।
पशुओं पर प्रजनन और प्रयोग संशोधन नियम
यह अधिनियम जानवरों को क्रूरता, अनावश्यक दर्द, अधिक काम, यातना और दुर्व्यवहार से बचाने और उनकी सुरक्षा का प्रावधान करता है। यह भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को सक्षम प्राधिकारी के रूप में नियुक्त करता है। यह जानवरों पर किए जाने वाले प्रयोगों के साथ-साथ सर्कस और अन्य आकर्षणों में प्रदर्शन करने वाले जानवरों के लिए भी नियम बनाता है। यह उपरोक्त प्रयोगों और प्रदर्शन से संबंधित गतिविधियों को प्रशिक्षण और प्रदर्शनी के रूप में आयोजित करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है। यह किसी भी क्रूरता या दुर्व्यवहार से बचने के लिए उन सभी परिसरों के निरीक्षण को अधिकृत करता है जहां जानवर काम करते हैं, खाते हैं, आराम करते हैं, प्रदर्शन करते हैं या उनका वध किया जाता है। हेल्थ सेक्टर में अन्य जरूरी नियमों की तरह इसका पालन करना भी बेहद जरूरी है।
भारतीय बॉयलर अधिनियम
भारतीय बॉयलर अधिनियम-1923 को मुख्य रूप से भाप बॉयलरों के विस्फोट के खतरे से व्यक्तियों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा प्रदान करने और भारत में बॉयलरों के संचालन और रखरखाव के दौरान पंजीकरण और निरीक्षण में एकरूपता प्राप्त करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस प्राप्त करने के लिए पात्रता मानदंड भी जान लें
लाइसेंस प्राप्त करने के लिए, आवेदक की आयु 18 वर्ष और उससे अधिक होनी चाहिए, उसका रिकॉर्ड साफ होना चाहिए और उसका व्यवसाय ऐसा होना चाहिए जिसे कानूनी रूप से अनुमति हो। इसके लिए अगर कोई व्यवसाय स्वामी हेल्थ ट्रेड लाइसेंस प्राप्त किए बिना व्यवसाय संचालन शुरू करता है, तो सरकार शुल्क और जुर्माने के रूप में दंडात्मक प्रावधान लगाएगी। इससे व्यवसाय संचालन भी बंद हो सकता है। इसलिए व्यवसाय शुरू करने से पहले लाइसेंस प्राप्त किया जाना चाहिए अन्यथा इससे जुर्माना लग सकता है और व्यवसाय बंद भी हो सकता है। स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस उन प्राथमिक लाइसेंसों में से एक है जो स्वास्थ्य विभाग में व्यवसाय संचालित करने के लिए आवश्यक है। यह उपभोक्ताओं और निवेशकों के लिए भी व्यवसाय को अधिक प्रामाणिक और भरोसेमंद बनाता है।
इनका अप्रूवल भी है जरूरी
हेल्थ सेक्टर में बिजनेस करने जा रहे हैं तो मेडिको-लीगल पहलुओं को नियंत्रित करने वाला कानून, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, आईपीसी धारा 52 और अस्पताल परिसर के भीतर मरीजों, जनता और कर्मचारियों की सुरक्षा, जनशक्ति के रोजगार को नियंत्रित करने वाले कानून, बाल श्रम अधिनियम, गैस सिलेंडर नियम, शस्त्र अधिनियम, टीकाकरण अधिनियम, बोनस एवं ग्रेच्युटी अधिनियम, ईएसआई अधिनियम, नियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण को नियंत्रित करने वाले कानून का पालन करना और इनसे संबंधित प्रपत्रों का होना बेहद जरूरी है। तो हेल्थकेयर उद्योग भारत और दुनिया में सबसे बड़ा और तेजी से बढ़ने वाला उद्योग है, इसलिए देश के कानूनों का पालन करना और उनका पूरी तरह से अनुपालन करना आवश्यक है। इसके अलावा, यह वित्तीय, अभियोजन और प्रतिष्ठा जोखिमों के कारण होने वाली विभिन्न देनदारियों और दंडात्मक मुकदमों से बचने में मदद करता है।