पिछले दो दशकों में रिटेलिंग और सकल कारोबार का स्वरूप बहुत बदला है। कारोबार के इस बदलते स्वरूप में विज्ञापनों व ग्राहकों को आकर्षित करने पुराने तरीकों में बदलाव के साथ-साथ फर्जी रिव्यू व इंफ्लुएंसर मार्केटिंग जैसे कई ऐसे नए तरीके सामने आए हैं, जिनकी कुछ वर्ष पहले तक कल्पना नहीं की जा सकती थी। ऐसे में उपभोेक्ता संरक्षण के नए उपायों पर विचार करना भी बेहद स्वाभाविक, सामयिक और प्रासंगिक था। इसे देखते हुए वर्ष 2020 में केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकार (सीसीपीए) को अधिसूचित किया गया। सीसीपीए ने गहन विचार-विमर्श के बाद पिछले दिनों ग्राहकों के हितों की रक्षा के तहत भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए मानक जारी किए हैं। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव तथा सीसीपीए की पहली चीफ कमिश्नर निधि खरे (आइएएस) ने ग्राहक अधिकारों और उपभोक्ता संरक्षण के बदलते स्वरूप के साथ नियामकीय बदलावों की जरूरतों को लेकर ऑपर्च्यूनिटी इंडिया (ओआई) के एडिटर संजीव कुमार झा से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
ओआई: खुदरा व्यापार का स्वरूप बदलने और पिछले कुछ वर्षों में ई-कॉमर्स के विकास-विस्तार के बाद ग्राहकों के उपभोक्ता हितों के उल्लंघन के मामले तेजजी से बढ़े हैं। सीसीपीए इसे कितनी बड़ी चुनौती मान रहा है?
निधि खरे: ग्राहक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में अभी तक ग्राहक शिकायत निवारण की एक तीन-स्तरीय व्यवस्था रही है। कोई भी ग्राहक जिला, राज्य या राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में जाकर शिकायत कर सकता है। इसमें ग्राहक अपने मुकदमे की प्रकृति के आधार पर मुआवजे का दावा कर सकते हैं और मामले के आधार पर फोरम उचित मुआवजा स्वीकृत भी करता है।
पिछले एक दशक में, या कहें तो वर्ष 2010 के बाद से ई-कॉमर्स धीरे-धीरे ही सही, लेकिन बेहद प्रभावी रूप से ग्राहकों की जिंदगी का हिस्सा बननेे लगा। इस तरह के तमाम मामले सामने आने लगे जहां बड़ी संख्या में ग्राहकों पर ई-कॉमर्स का प्रभाव दिखने लगा। इसी को देखते हुए वर्ष 2019 में ग्राहक उपभोक्ता कानून सीपीआर में जो संशोधन हुए, जिसे वर्ष 2020 में अधिसूचित किया गया, उसमें नए दौर की चुनौतियों को देखते हुए ग्राहकों के हितों और उसके उल्लंघन की नए सिरे से व्याख्या की गई।
इसके तहत सीसीपीए का गठन किया गया, जिसे तीन मामलों में कार्रवाई का अधिकार दिया गया। इनमें सबसे पहला था उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन। अब, ग्राहकों के अधिकार क्या हैं? ग्राहकों का सर्वप्रथम अधिकार यह है कि वह जो भी प्रोडक्ट खरीद रहा है, उसके बारे में उसेे संपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जाए। प्रोडक्ट कहां बना है, उसमें क्या अवयव हैं और इस तरह की सभी जानकारियां ग्राहकों को मिलनी ही चाहिए।
दूसरा मामला कंपनियों द्वारा अनुचित कारोबारी गतिविधियों में संलग्न होने से जुड़ा है। अब देखिए, हाल के कुछ वर्षों में फ्री के कंसेप्ट ने खूूब गति पकड़ी है। कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट पर मोटे-मोटे अक्षरों में 80-90 प्रतिशत तक छूट दिखाती हैं। लेकिन जब आप उसे खरीदकर मूल्य भुगतान करने जाते हैं तो पता चलता है कि यह छूूट हासिल करने के लिए कम सेे कम इतने रकम की खरीदारी करनी पड़ेगी। बहुत सी कंपनियां अपने यहां ग्राहकों को सीधी छूट के बदले अगली खरीद पर छूट का कूपन दे देती हैं, ताकि उसे भुनाने के लिए ग्राहक को अगली बार शॉपिंग के लिए आना ही पड़े। यह भी एक तरह से अनुचित कारोबारी गतिविधि है।
तीसरा और महत्वपूर्ण मामला भ्रामक विज्ञापन का है। अगर आप अपने प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में गलत जानकारी देते हैं, कोई महत्वपूर्ण सूूचना छुपा लेते हैं या कोई ऐसी शर्त होती है जो सीधे दिखाई नहीं देती, लेेकिन खरीदारी पर या सर्विस लेेने पर सामने आती है, तो ये सभी चीजें भ्रामक विज्ञापन का हिस्सा मानी जाएंगी। ऐसे मामलों में सीसीपीए को कार्रवाई का अधिकार दिया गया है।
ओआई: सीसीपीए का पहला सामना ही भ्रामक विज्ञापनों से हुआ। इसे लेकर इतने वर्षों तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश क्यों नहीं आ पाया?
निधि खरे: सीसीपीए जुलाई, 2020 में अधिसूूचित हुआ था। उस समय पूरा देश कोरोना की चपेट में था और हम सब अनिश्चितता के माहौल में थे। यूं कहिए कि अस्तित्व में आते ही सीसीपीए को ऐसे भ्रामक विज्ञापनों से दो-चार होना पड़ा, जिनके प्रति वे उपभोक्ता खासा आकर्षित हो रहे थे जो विवेक का समुचित उपयोग करने में विफल थे। हमारे सामने ऐसे-ऐसे विज्ञापन आ रहे थे कि कोई कंपनी अपने मैट्रेस (गद्दे) को कोरोना रोधी बता रही थी तो कोई अपने किसी रसायन को कोरोना से लड़ने या प्रतिरोधी क्षमता बढ़ानेे में कारगर होने का दावा कर रही थी। कोई कोरोना रोधी पेंट बेच रहा था तो कोई अपने कपड़ों और शर्ट-पैंट पर कोरोना को बेअसर बता रहा था। फर्श और दीवारों के लिए तथाकथित कोरोना रोधी लैमिनेशंस आ गए। दिलचस्प यह है कि इनमें से ज्यादातर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। लेकिन लोगोें को किसी भी विधि से कोरोना से बचना था और कंपनियां इसका भरपूर फायदा उठा रही थीं।
तो, अस्तित्व में आते ही सीसीपीए ने ऐसी कंपनियों को नोटिस भेेजने शुरू किए और उन्हें अपने दावों पर खरा उतरने को कहा। तब अधिकतर कंपनियों नेे माना कि उनके दावों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। लेकिन दूसरी कंपनियों को ऐसा करते देख उन्होंने इस तरह के दावे किए। तब हमें लगा कि ऐसा एक दिशानिर्देश आना चाहिए जिससे उद्योग को अच्छी तरह से पता चल जाए कि किन विज्ञापनों को वैध और किन्हें अवैध बोला जाएगा।
असल में एक विज्ञापन के पीछे चार-पांच एजेंसियों की मेहनत लगी होती हैं। सबसे पहले आइडिएशन होता है, फिर क्रिएटिव टीम सामने आती है, फिर उसकी पैकेजिंग होती है, फिर उसकी मार्केटिंग होती है। हम नहीं चाहते थे कि हर बार छोटी-बड़ी बातों को लेेकर जुर्माना लगाएं या उन्हें चेतावनी दें, कंपनियां विज्ञापन हटाएं और उद्योेग हमेशा असमंजस में रहे। इसलिए हमें लगा कि विज्ञापनों को लेकर एक विस्तृत दिशानिर्देश की जरूरत है, जो किसी कंपनी के कारोबार में बाधा बने बिना उसे ग्राहकों के प्रति ज्यादा जिम्मेदार बनाए।
ओआई: सीसीपीए ने कई कंपनियों पर भ्रामक विज्ञापनों के आरोप में जुर्माना भी लगाया है। इसका कुछ असर दिख रहा है?
निधि खरे: भ्रामक विज्ञापनों पर कार्रवाई के तहत हमने पहली बार सेंसोडाइन (टूथपेस्ट), नापतौल (ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट) और श्योरविजन पर जुर्माना लगाया। नापतौल तो अपने विज्ञापन में 200 रुपये में गोल्ड ज्वैलरी देने का दावा कर रही थी। हमने जब उनसे पूछा तो उनका तर्क था कि ग्राहक को भी पता होना चाहिए कि 200 रुपये में गोल्ड ज्वैलरी कैसे मिल सकती है। दूसरी तरफ, ग्राहकों को यह लग सकता था कि ज्वैलरी है तो सचमुच सोने की, लेकिन यह नापतौल पर सिर्फ 200 रुपये की मिल रही है। ऐसे में कंपनी यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि ग्राहकों को पता होना चाहिए कि 200 रुपये में गोल्ड ज्वैलरी नहीं मिल सकती है।
खैर, हमारी कार्रवाई के बाद सेंसोेडाइन और नापतौल ने 10-10 लाख रुपये का जुर्माना भरा। श्योरविजन ने अपने विज्ञापन बंद कर दिए। उसके बाद हमने अनुचित कारोबारी गतिविधियों के आरोप में तीन कंपनियों को नोटिस भेजे। ये तीन ऐसी कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों को भेेजे गए थे, जिनके प्रोडक्ट के साथ कोई न कोई सुरक्षा मामला जुड़ा हुआ है, जैसेे गीजर या प्रेशर कुकर। ये आइटम अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर धड़ल्ले से उपलब्ध हैं। लेेकिन वहां मिलने वाले कई प्रोेडक्ट इनके सुरक्षा मानकों आईएसआई का पालन नहीं कर रहे हैं।
हमने अपने आदेश में इन सभी कंपनियों से कहा है कि जितने भी ऐसे प्रोडक्ट हैं जिनकी बिक्री में सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया है, उन्हें तत्काल ग्राहकों से वापस मंगाया जाए और उनकी रकम वापस लौटाई जाए। प्रेशर कुकर और हेलमेट जैसे प्रोडक्ट बिना आईएसआई मार्का के नहीं बिकेंगे, इसकी छानबीन देशभर में शुरू हो गई है। हमने पांच ई-कॉमर्स कंपनियों को भी नोटिस भेजे हैं।
ओआई: लेकिन देशभर में सड़कों के किनारे फुटपाथ पर घटिया क्वालिटी के हेलमेट बिक रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर में ही दर्जनों स्थानों पर ऐसे हेलमेट बिकते देखे जा सकते हैं। इसे रोकना क्यों मुश्किल है?
निधि खरे: इसे रोकना कतई मुश्किल नहीं है। लेकिन यह काम राज्य सरकारों, स्थानीय पुलिस और अन्य संबंधित प्राधिकारों को करना होगा। उन्हें इन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए। राजस्थान सरकार ने तो इन पर कार्रवाई करने का अधिकार स्थानीय पुलिस प्रशासन को दे दिया है। इसके साथ एक बात यह भी है कि ग्राहकों को भी जागरूक होना पड़ेगा। उन्हें भी यह पता होना चाहिए कि जो वस्तुएं वह खरीद रहे हैं, वे गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर कितनी खरी हैं।
ओआई: आम उपभोक्ताओं और ग्राहकों की एक सामान्य सोच है कि सरकार जुर्माना लगाती रहेगी, सक्षम कंपनियां इनका भुगतान करती रहेंगी और यह सब ऐसे ही चलता रहेगा। क्या आम ग्राहकों की यह सोच निराधार है?
निधि खरे: ऐसा नहीं है। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में इसका विशेष ध्यान रखा गया है। जुर्माने की राशि 10 लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक है। कंपनियां अगर जुर्माना लगाए जाने के बाद भी कानूनों का उल्लंघन करती हैं तो उन पर मुकदमा चलाने का प्रावधान है। कंपनियां यह जुर्माना भर भी रही हैं, और दोबारा ऐसी गलती नहीं करने का वादा भी कर रही हैं।
तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि ग्राहक हितों से समझौता अब चलता नहीं रहेगा। हम ग्राहकों को जागरूक और कंपनियों को जिम्मेदार व जवाबदेह बनाने की दिशा में लगातार काम करते रहेंगे। अब ग्राहकों और नियामकों, दोनों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने-समझने का समय आ गया है।
ओआई: एक बड़ा मामला, और बड़ा महत्वपूर्ण मामला फर्जी रिव्यू का है। ग्राहक किसी भी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर प्रोडक्ट का रिव्यू देखकर, स्टार रेटिंग देखकर सामान खरीदते हैं। अगर वह रिव्यू फर्जी या खरीदा हुआ है, तो यह ग्राहकों के साथ सरासर धोखा है। इसके साथ ही कई प्रोडक्ट्स के मामले में तो यह सुरक्षा मानकों से खिलवाड़ के ही बराबर है। इससे निपटने के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और सीसीपीए में किस तरह का विमर्श चल रहा है?
निधि खरे: यह बात सही है कि फर्जी रिव्यू का मामला बड़ा है। वर्तमान दौर के उपभोक्ताओं के पास दुकान या स्टोर तक जाने और चीजों को उलट-पलटकर देखनेे व भरोसा करने के बाद खरीदारी के मौके घटते जा रहे हैं। ऐसे में वे ऑनलाइन शॉपिंग पर ज्यादा निर्भर रहने लगे हैं। इसमें वे विज्ञापन से भी ज्यादा रिव्यू पर भरोसा करते हैं। इसके साथ ही यह भी सच है कि बहुत सी कंपनियां पेड रिव्यू पर चल रही हैं। ई-कॉमर्स साइट्स पर फर्जी रिव्यू की बाढ़ सी है।
इस समस्या के समाधान के लिए मेरी अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। इसमें सभी उद्योग संगठनों, सेवा प्रदाता क्षेत्रों और कंपनियों के संगठनों, ई-कॉमर्स कंपनियों के प्रतिनिधि, ग्राहक अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य संबंधित पक्षों के प्रतिनिधि शामिल किए गए हैं। यह समिति छह सप्ताह में इस मुद्देे की जांच करेगी और उसके बाद उपभोक्ता मामलोें के मंत्रालय को अपनी राय देगी। उसी के आधार पर निर्धारित किया जाएगा कि फर्जी रिव्यू को किस तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
ओआई: इससे जुड़ा एक और मामला इंफ्लुएंसर मार्केटिंग का है....
निधि खरे: ये सभी मामले किसी न किसी रूप में पेड रिव्यू यानी पैसे देकर खरीदे गए रिव्यू से जुड़े हुए हैं। इंफ्लुएंसर्स को, प्रभावी व्यक्तियों और व्यक्तित्व को कंपनियों और उत्पादों के पक्ष में अच्छा-अच्छा लिखने, उनके सामानों का विज्ञापन से इतर अन्य तरीकों से प्रचार-प्रसार करने तथा उनके पक्ष में माहौल बनाने के लिए भुगतान किया जा रहा है। उन्हें नियंत्रित करने के तरीके भी पेेड रिव्यूू को नियंत्रित करने जैसे ही होंगे।
ओआई: बहुत सी छोटी कंपनियों व खुदरा रिटेलरों की एक धारणा यह है कि अमेजन और फ्लिपकार्ट समेत कई ई-कॉमर्स कंपनियां इतनी बड़ी हो गई हैं कि सरकार के लिए उन पर नियंत्रण रख पाना मुश्किल हो रहा है। क्या वाकई यह काम मुश्किल है?
निधि खरे: ऐसा कुछ नहीं है। हां, इतना जरूर है कि पिछले दो दशकों के दौरान ऑनलाइन की दुनिया तेजी से बदली। इस दौर में ई-कॉमर्स कंपनियों का जिस तेजी से विकास व विस्तार हुआ, उस तेजी से समय-समय पर संबंधित नियम-कानूनों में उचित बदलाव या संशोधन नहीं हो पाया। तकनीकें बदल गई हैं, खरीदारी के पैटर्न बदल गए हैं। सबसे बड़ी बात है कि ई-कॉमर्स कंपनियां वर्तमान की तकनीकों का उपयोग करते हुए भविष्य की ओर जा रही हैं और हमारे समक्ष अतीत की तकनीकों के साथ नियामकीय मामलेे में उनसेे एक कदम आगे रहने की चुनौती है। यह भी सही है कि कंपनियां एक अरब से अधिक ग्राहक वर्ग वाले इस देश में कारोबार में बने रहने के लिए अपने-अपनेे तरीके आजमाती रहेंगी। लेकिन यह कतई नहीं होगा कि वे देश के कानूनों का उल्लंघन करेंगी।
इसलिए हमारे सामने आज यह सवाल ज्यादा प्रासंगिक है कि क्या हमारा वर्तमान नियामकीय ढांचा इन बदली परिस्थितियों का सामना और ग्राहकों के हितों की रक्षा करनेे में सक्षम है? इन बदली परिस्थितियों में हमें भी नियम-कानूनों में उचित बदलाव करने होंगे। इसके लिए हमें इन कंपनियोें से भी अनिवार्य रूप से बेहतर संबंध स्थापित करने होंगे। उन्हें यह पता रहना चाहिए कि जब तक ग्राहकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित होती रहेगी और वे कारोबार में अनुचित गतिविधियों से दूर रहेंगे, तब तक सरकार उनकी बात सुनती रहेगी। इसलिए अब हम पक्षों के साथ चौतरफा विचार-विमर्श के बाद समयोचित और प्रासंगिक समाधान लाना चाह रहे हैं।
ओआई: ग्राहकों की जागरूकता और उनकी शिकायतों का समय पर समाधान - इन मुद्दों को सीसीपीए किस नजरिए से देखता है?
निधि खरे: ये दोनों ही मुद्दे उचित कारोबारी गतिविधि सुनिश्चित करने के लिए दो बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। वर्तमान ग्राहकों से इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वह बैलगाड़ी के जमाने का ग्राहक नहीं हो। इसके लिए हमें भी डिजिटल माध्यम से उपभोक्ता संरक्षण कानूनोें और उनके अधिकारों का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना होगा।
यही सोचकर हमने उपभोक्ता शिकायत हेल्पलाइन नंबर चार अंकों वाला 1915 रखा है। इन पर आने वालेे कॉल्स की लगातार निगरानी होती है, हर भाषा में निगरानी होती है, समस्याओं को विभिन्न वर्गों में बांटा जाता है। इन्हीं कॉल्स के आधार पर तो हमने ओला और उबर जैसी एप आधारित कैब सेवा प्रदाता कंपनियों को नोटिस भेजे और उन्हें रिकॉर्ड के साथ बताया कि ड्राइवर द्वारा बुकिंग रद किए जाने के खिलाफ कितनी शिकायतें आती हैं।
ओआई: अगर आप खुद को एक उपभोक्ता के रूप में देखें, तो आपके हिसाब से मंत्रालय या सीसीपीए की चार-पांच प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?
निधि खरे: मेरे हिसाब से सबसे पहला तो यह होना चाहिए कि 1915 को देशभर का बच्चा-बच्चा जाने। जिस तरह अमेरिका में 911 हर संकट के समाधान का एक सरकारी नंबर है, उसी तरह देश में उपभोक्ताओं की किसी भी समस्या का समाधान 1915 पर हो जाना चाहिए। हां, यह जरूर है कि ग्राहकों को भी अगर किसी प्रोेडक्ट में कोई दिक्कत नजर आती है तो वह सबसे पहले उस कंपनी और फिर रिटेलर से संपर्क करे जहां से उसे बेचा और बनाया गया है। वहां उसकी समस्या का निवारण नहीं हुआ तो सीसीपीए शिकायत सुनने के लिए तैयार बैठा है।
दूसरी बात यह है कि हमें गंभीर शिकायतों के निपटारे में तेजी लानी चाहिए। शिकायत निपटारे में तेजी से ग्राहकों का तो मनोबल बढ़ता ही है, कंपनियों को भी पता चल जाता है कि ग्राहकों के साथ गड़बड़ी कर वे लंबे समय तक बच नहीं सकतीं। तीसरी बात मैं यह कहूंगी कि ग्राहकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में लगातार जानकारी देनी होगी, एक से अधिक माध्यम से देनी होगी।