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- IESA का मिशन: इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को गति देने के लिए इनोवेशन और सहयोग
भारत में प्रदूषण और बढ़ते ईंधन खर्च को देखते हुए, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी (EV) को अपनाना समय की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। EV उद्योग में तेजी लाने के लिए चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास एक महत्वपूर्ण पहलू है। केंद्र और राज्य सरकारें, उद्योग संघ और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ इस दिशा में एक साथ काम कर रहे हैं।
इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ईवी के व्यापक उपयोग में एक अहम भूमिका निभाता है। चार्जिंग स्टेशन की उपलब्धता न केवल वाहनों को चार्जिंग के लिए एक आसान विकल्प प्रदान करती है, बल्कि उपभोक्ताओं के मन में EV के प्रति विश्वास भी बढ़ाती है। वर्तमान में, ईवी उपयोगकर्ता चार्जिंग समय, चार्जिंग पॉइंट की कमी और लागत जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन समस्याओं को हल करना EV को अपनाने की गति को और तेज़ करेगा।
आईईएसए के प्रेसिडेंट देबी प्रसाद दाश ने कहा इंडिया एनर्जी स्टोरेज अलायंस (IESA) पिछले 12 वर्षों से भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्षेत्र में काम कर रहा है और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को तेज़ी से अपनाने के लिए चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक महत्वपूर्ण संसाधन मानता है। आईईएसए ने देश के विभिन्न राज्यों में चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने वाले कई निर्माताओं और संस्थाओं (CPUs) के साथ मिलकर काम किया है।
सरकार की नई पहल: पीएमई ड्राइव
हाल ही में केंद्र सरकार ने पीएमई ड्राइव (PME Drive) की घोषणा की है, जिसके तहत 2000 करोड़ रुपये फास्ट चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटित किए गए हैं। यह पारंपरिक तकनीकों को बढ़ावा देने के बजाय तकनीकी उन्नति की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस योजना का लाभ दोपहिया, तिपहिया, चौपहिया और इलेक्ट्रिक बस सेगमेंट को मिलेगा। हालांकि, अभी सरकार द्वारा इस योजना का विस्तृत ढांचा जारी किया जाना बाकी है। सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि यह योजना राज्यवार, क्षेत्रीय मांग और राज्य नीतियों को ध्यान में रखकर तैयार की जाएगी। इससे पूरे देश में चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में मदद मिलेगी।
चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में इनोवेशन और अनुसंधान पर ध्यान
आईईएसए ने सुझाव दिया है कि चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारतीय परिस्थितियों, तापमान और उपयोग पैटर्न को ध्यान में रखकर इनोवेशन और अनुसंधान पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके अलावा, सरकार ने ANRF (Advanced National Research Foundation) के तहत चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र घोषित किया है, जो "महामिशन" (MHA) के तहत शामिल है। यह स्पष्ट संकेत है कि सरकार अब इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास दोनों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
सोलर चार्जिंग: एक नया मॉडल
देबी ने आगे कहा सोलर चार्जिंग को चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में एक नई अवधारणा के रूप में देखा जा रहा है। आमतौर पर यह सोचा गया है कि बड़े सोलर प्लांट्स के माध्यम से ग्रिड को ग्रीन बनाया जा सकता है, और ये चार्जिंग स्टेशन ग्रिड से ऊर्जा लेकर काम करेंगे। लेकिन, ऐसे क्षेत्रों में जहां ग्रिड विश्वसनीयता एक समस्या है, सोलर रूफटॉप का उपयोग करके चार्जिंग स्टेशन लगाए जा सकते हैं। यह एक नया और उभरता हुआ बिजनेस मॉडल है, जिसे भारत की कई कंपनियां अपनाने पर काम कर रही हैं। सोलर की कीमतें 2 रुपये और 3 रुपये प्रति यूनिट से भी कम होने के कारण, सोलर चार्जिंग प्रोग्राम के तहत चार्जिंग की लागत अधिक नहीं होगी।
IESA का दृष्टिकोण
आईईएसए ने सरकार की इस पहल की सराहना की है और इसके साथ ही उन्होंने सरकार से कुछ और अपेक्षाएं भी व्यक्त की हैं। आईईएसए(IESA) ने राज्य और केंद्र सरकारों के साथ मिलकर काम करने का वादा किया है ताकि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेज़ी से बढ़ावा दिया जा सके।
निष्कर्ष
सरकार की ये नई पहलें न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देंगी, बल्कि पूरे देश में चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करके पर्यावरण के अनुकूल और किफायती परिवहन प्रणाली के निर्माण में भी सहायक होंगी।