![भारतीय के-12 शिक्षा प्रणालीः विजन 2030](https://franchiseindia.s3.ap-south-1.amazonaws.com/uploads/content/edu/art/education-858cc07046.jpg)
के-12 विद्यालयीन शिक्षा, छात्र के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है, जो उस लक्ष्य और उद्देश्य को परिभाषित करने में मदद करती है, जो उसे हासिल करने होते हैं। इस प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में जीवित रहने के लिए भोजन और शिक्षा दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश के संवहनीय विकास और समाज को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली एक आवश्यकता बन गई है। पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रणालियों में से एक होने के लिए भारतीय सरकार और निजी निवेशकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भले ही भारत में शिक्षा में एक निश्चित स्तर हासिल किया गया है, फिर भी वास्तविक परिदृश्य में अपने कौशल दिखाने की बात आने पर छात्र पिछड़ जाते हैं। शिक्षाविदों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए समाधान ढूंढने चाहिए और छात्रों को उन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए, जो जीवन में उनके सामने आएगी। विद्यालय छात्रों को मार्गदर्शन और समाज में कार्य करने और भाग लेने के तरीके बताते हैं। विद्यालयीन शिक्षा 3.0 के लिए परिकल्पना पर ई.वाय.-एफ.आई.सी.सी.आई. की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारतीय विद्यालयीन शिक्षा के वर्तमान आंकड़े इस प्रकार हैः
वर्तमान आंकड़ेः
- वार्षिक भारतीय सरकारी व्यय रूपये 323 हजार करोड़ है।
- वार्षिक सरकारी व्यय प्रति नामांकित छात्र रूपये5 लाख है।
- भारत में विद्यालयों की मौजूदा संख्या 5 मिलियन है।
- नामांकन 260 मिलियन छात्रों तक बढ़ गया है।
- 75 प्रतिशत विद्यालय सरकारी है और 25 प्रतिशत निजी है।
- 57 प्रतिशत छात्र सरकारी विद्यालयों में और 43 प्रतिशत निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।
- निजी क्षेत्र का हिस्सा 2005 में 16 प्रतिशत से लगातार बढ़ते हुए 2016 में 25 प्रतिशत हो गया है।
बेहतर स्तर तक पहुंचने के रास्ते
ई.वाय.-एफ.आई.सी.सी.आई. की रिपोर्ट के अनुसार के-12 भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए बेहतर स्तर हासिल करने के लिए कुछ उपायः
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षकों का समुचित प्रशिक्षण और विकास सुनिश्चित करना।
- छात्रों के बेहतर भविष्य के लिए परिणाम केंद्रित शिक्षण पद्धतियों को अपनाना
- निवेशों को आकर्षित करके और प्रोत्साहित करके शिक्षा की आपूर्ति में वृद्धि
- सभी को समान अवसर प्रदान करने के लिए शिक्षा में पहुंच और निष्पक्षता बढ़ाएं।
- अध्ययन के लिए शिक्षा पर आधारित दृष्टिकोण अपनाने से रूचि उत्पन्न की जा सकती है और पढ़ाई छोड़ने की दर में कमी लाई जा सकती है।
- कौशल विकास की शिक्षा और विश्लेषणात्मक शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- विद्यालयों के पाठ्यक्रम में बदलाव लाने की आवश्यकता है और अभिनव तथा शिक्षार्थी केंद्रित दृष्टिकोण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की ज़रुरत है।
बेहतर भारत और विजन 2030 को हासिल करने के लिए के-12 विद्यालयों को इन सभी कारकों को अपनाने की जरूरत है।
विशेषज्ञ कहते हैं
डॉलफिन पी.ओ.डी. की सह-संस्थापक शोभना महानसरिया का कहना है, ‘भविष्य में, केवल शिक्षा एक बच्चे की सफलता का निर्धारण नहीं करेगी। यह प्रेरणा और दृढ़ता का उसका जीवन कौशल होगा, जो उसे वहां ले जाएगा जहां वह जाना चाहता है। प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण को श्रेणी से अधिक की अपेक्षा होती है। यह किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए आपकी क्षमता और शक्ति मांगता है और आज कंपनियाँ यही देख रही हैं। श्रेणी महत्वपूर्ण है, लेकिन रचनात्मकता और क्षमता उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।’
3-डेक्सटर के सह-संस्थापक नमन सिंघल कहते हैं, ‘पिछले पाँच वर्षों में हर उद्योग में डिजिटल बदलाव आया है और इनके साथ ही शिक्षा में भी आया है। अब विद्यालय नई तकनीकों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए ज्यादा तैयार है। वस्तुतः विद्यालयों ने 3डी छपाई, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवाचार प्रयोगशालाएं इत्यादि जैसी प्रोद्योगिकियों में तेजी से निवेश करना प्रारंभ कर दिया है। धीरे-धीरे और व्यवस्थित रूप से हमारी शिक्षा प्रणाली ने पाठ्य पुस्तकों से पढ़ाने और अवधारणाओं को याद करने की सदियों पुरानी पारंपरिक पद्धतियों से अलग होना शुरू कर दिया है। अब व्यावहारिक शिक्षा और स्थान-विषयक बुद्धिमत्ता पर जोर दिया जाता है।’
अब न सिर्फ विद्यालय बल्कि सरकार भी ऊंचा दांव लगाने के लिए कदम उठा रही है। अपने हालिया कदमों जैसे ‘स्वयं’ (युवा आकांक्षी दिमाग की सक्रिय शिक्षा के लिए अध्ययन वेबसाइट्स) योजना प्रारंभ करना हो या अटल नवाचार मिशन हो, यह सभी कदम कक्षाओं में नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में ही हैं। यदि शिक्षा क्षेत्र को नियमित रूप से सरकार से इस तरह का समर्थन प्राप्त होता रहेगा, तो अगले दस सालों में विद्यालय पूरी तरह से परिवर्तित हो सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत की के-12 शिक्षा प्रणाली के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जो शिक्षार्थियों के विकास को सीमित कर रही हैं। विजन 2030 को हासिल करने के लिए गुणवत्ता, निष्पक्षता, शासन और प्रासंगिक ज्ञान के नियोजन में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। निजी और सरकारी विद्यालयों द्वारा ज्यादा नई पहलों, निवेश और नए दृष्टिकोणों को अपनाए जाने की आवश्यकता है। के-12 विद्यालय एक व्यवसाय है, जो अच्छा प्रतिफल तो देगा, लेकिन लंबी अवधि के बाद और वह भी तब, जब विद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करेंगे।