
भारत में 2014 में शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' पहल ने ऑटोमोबाइल उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। इस पहल के अंतर्गत नीतिगत सुधारों, राजकोषीय प्रोत्साहनों और आधारभूत ढांचे के विकास ने देश को एक उभरते हुए वैश्विक ऑटोमोटिव केंद्र में बदल दिया है। घरेलू कार उत्पादन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण तक, हर क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है।
ऑटोमोबाइल उद्योग का विकास
1991 में लाइसेंस मुक्त प्रणाली और 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति मिलने के बाद से भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। वर्ष 1991-92 में जहां वाहन उत्पादन 2 मिलियन यूनिट था, वहीं 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 28 मिलियन यूनिट तक पहुँच गई। लगभग सभी प्रमुख वैश्विक ऑटोमोबाइल कंपनियों ने भारत में अपने मैन्युफैक्चरिंग केंद्र स्थापित किए हैं।
भारतीय ऑटो उद्योग अब 240 बिलियन अमेरिकी डॉलर (20 लाख करोड़ रुपये) के कारोबार तक पहुँच चुका है और देश की अर्थव्यवस्था में 6 प्रतिशत का योगदान देता है। भारी उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस उद्योग ने लगभग 30 मिलियन नौकरियाँ सृजित की हैं, जिसमें 4.2 मिलियन प्रत्यक्ष और 26.5 मिलियन अप्रत्यक्ष रोजगार शामिल हैं।
ऑटो कंपोनेंट उद्योग: आत्मनिर्भर भारत की रीढ़
ऑटोमोबाइल उद्योग की मजबूती में ऑटो कंपोनेंट सेक्टर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र इंजन, ट्रांसमिशन, ब्रेकिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, बॉडी और चेसिस पार्ट्स सहित विविध उत्पादों का निर्माण करता है। भारत की लागत प्रतिस्पर्धा, कुशल कार्यबल और अनुकूल नीतियों ने इसे वैश्विक स्तर पर एक मजबूत आपूर्तिकर्ता बना दिया है।
वित्त वर्ष 2024 में इस क्षेत्र का कारोबार 6.14 लाख करोड़ रुपये (74.1 बिलियन डॉलर) रहा। इसका 54% हिस्सा घरेलू ओईएम आपूर्ति और 18% निर्यात से आया। यह क्षेत्र अपने उत्पादन का 25% से अधिक हिस्सा यूरोप, अमेरिका और एशियाई देशों को निर्यात करता है। 2030 तक इस सेक्टर के 100 बिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल करने की उम्मीद है।
ईवी क्रांति और सरकार की पहल
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। अगस्त 2024 तक देश में 4.4 मिलियन ईवी पंजीकृत हो चुके हैं। सरकार ने इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं:
फेम इंडिया योजना (FAME II) – 11,500 करोड़ रुपये के बजट के साथ दोपहिया, तिपहिया, बसों और चार्जिंग स्टेशनों को प्रोत्साहन।
PLI ऑटो योजना – 25,938 करोड़ रुपये का प्रावधान, उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी उत्पादों को बढ़ावा।
ACC बैटरी योजना – 18,100 करोड़ रुपये का परिव्यय, 50 गीगावॉट घंटे की बैटरी निर्माण क्षमता लक्ष्य।
पीएम ई-ड्राइव योजना – 10,900 करोड़ रुपये की योजना, विभिन्न ईवी श्रेणियों को सहायता।
ई-बस सेवा योजना (PSM) – 3,435 करोड़ रुपये के समर्थन से 38,000 इलेक्ट्रिक बसों को सहायता।
एसएमईसी योजना – ईवी कार विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 4,150 करोड़ रुपये न्यूनतम निवेश की अनिवार्यता।
नीतिगत सपोर्ट और विदेशी निवेश
पिछले चार वर्षों में भारत ने ऑटो क्षेत्र में 36 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है। हुंडई, मर्सिडीज-बेंज और टोयोटा जैसी कंपनियां भारत में बड़े निवेश की घोषणाएं कर चुकी हैं। इसके साथ ही, जीएसटी दरों में कटौती, ईवी चार्जिंग मानकों के दिशा-निर्देश और भवन उपनियमों में संशोधन जैसी पहलें भी इस क्षेत्र को सशक्त बना रही हैं।
निष्कर्ष
मेक इन इंडिया ने भारतीय ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट उद्योग को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है। ईवी सेगमेंट में तेजी, इनोवेशन को बढ़ावा और वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा ने इस क्षेत्र को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। आने वाले वर्षों में भारत न केवल दुनिया का उत्पादन केंद्र बनेगा बल्कि हरित और सतत मोबिलिटी के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाएगा।