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- आंध्र में दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा भंडारण परियोजना पर काम शुरू
ग्रीनको ग्रुप ने आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में अक्षय ऊर्जा भंडारण परियोजना का निर्माण शुरू किया। यह परियोजना 3 अरब डॉलर से ज्यादा के निवेश के साथ स्थापित जा रहा है। कंपनी ने कहा कि यह 5,230 मेगावाट आईआरईएसपी भारत में ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने और वैश्विक ऊर्जा संक्रमण को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने ग्रीनको ग्रुप द्वारा शुरू की जा रही परियोजना का पहला कंक्रीट डालने के समारोह मे वह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए थे।
ग्रीनको के अनुसार, यह पवन और सौर क्षमताओं के साथ अपनी तरह की पहली सिंगल लोकेशन एनर्जी स्टोरेज प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट को 3 अरब डॉलर से ज्यादा के निवेश के साथ लागू किया जा रहा है जिसमें पंप स्टोरेज (दैनिक भंडारण का 10,800 मेगावाट), सौर (3,000 मेगावाट) और पवन (550 मेगावाट) शामिल है।यह प्रोजेक्ट सालाना 15 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड से बचने में मदद करेगी जो तीन मिलियन वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन के बराबर है।
ग्रीनको ग्रुप के संस्थापक, सीईओ और एमडी अनिल चलमालासेट्टी ने कहा यह ग्रीनको के लिए बहुत गर्व का क्षण है कि हमने औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन और ऊर्जा में बदलाव के लिए 24 घंटे डिस्पैचेबल अक्षय ऊर्जा समाधान की वैश्विक महत्वाकांक्षा से आगे बढ़कर अग्रणी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत सहायता और जगन मोहन रेड्डी के दूरदर्शी नेतृत्व के कारण हासिल किया गया, जो आंध्र प्रदेश को एक स्थायी मैन्युफैक्चरिंग केंद्र में बदल रहा है। उनका मानना है कि पंपेड स्टोरेज प्लांट्स (पीएसपी) के लिए राज्य की अनुकूल स्थलाकृति को देखते हुए, आंध्र प्रदेश भारत की ऊर्जा भंडारण राजधानी बनने के लिए तैयार है।
यह एकीकृत समाधान राष्ट्र के लिए ऊर्जा स्वतंत्र बनने के लिए महत्वपूर्ण है और इसे डीकार्बोनाइज्ड अर्थव्यवस्थाओं के लीडर के रूप में स्थापित करता है। इस प्रोजेक्ट के साथ, ग्रीनको ने केंद्रीय उपयोगिताओं और बड़े उद्योगों के साथ स्टोरेज कॉन्ट्रैक्ट के कॉन्सेप्ट का बीड़ा उठाया है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना को 2023 की अंतिम तिमाही तक शुरू करने की योजना है।
ग्रीनको ग्रुप दुनिया की सबसे बड़ी रिन्यूएबल एनर्जी स्टोरेज और डीकार्बोनाइजेशन सॉल्यूशन कंपनी है। इसमें पवन, सौर और पनबिजली में लगभग 7.5 गीगावॉट की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता है, जबकि 10 गीगावॉट परियोजनाएं विकास के अधीन हैं।
ग्रीनको ने 7.5 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। 2.5 बिलियन डॉलर से ज्यादा की इक्विटी के साथ और पिछले 10 वर्षों में 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा के ग्लोबल ग्रीन बॉन्ड जुटाए है।
अक्षय ऊर्जा भंडारण क्या है
अक्षय ऊर्जा भंडारण का उपयोग आधुनिक दुनिया में कई रूप से किया गया है, जैसे पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल और ग्रिड-स्केल एनर्जी स्टोरेज। मौजूदा टेक्नोलॉजी में एनर्जी स्टोरेज का संबंध ली-आयन बैटरियों से है, जो सबसे बड़ी एनर्जी डेंसिटी को धारण करने की उनकी क्षमता के कारण बड़े पैमाने पर गति प्राप्त की है। वे पोर्टेबल बिजली की पेशकश करते हैं, मोबाइल फोन, लैपटॉप और टैबलेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को शक्ति प्रदान करते हैं। हाल ही में, ली-सल्फर और ली-एयर बैटरी ली-आयन बैटरियों का स्थान लेने के लिए उभरी हैं।
कोयला आधारित और हाइड्रो संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की जगह सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों से मिलने वाली बिजली के इस्तेमाल में अभी भी बड़ी चुनौती है लागत। यह बदलाव तकनीकी रूप से तो संभव है, लेकिन महंगा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने 2019 में 2021-22 की संभावित परिस्थितियों के आधार पर रिपार्ट जारी की थी, जब भारत में अक्षय ऊर्जा की क्षमता 36 प्रतिशत होने की उम्मीद की गई थी।
अनुमान था कि कोयला विद्युत संयंत्रों को 25 से 30 प्रतिशत क्षमता से कई घंटे चलाने की जरूरत होगी, ताकि अक्षय ऊर्जा को एब्जॉर्ब करने के लिए समय मिल सके। इसमे यह भी कहा गया की भारतीय कोयला संयंत्रों का 45 प्रतिशत से कम क्षमता पर चलना व्यवहार्य नहीं है। कोयला संयंत्र की कम क्षमता से चलने की अवधि में भी 0.3 रुपए से 0.4 रुपए की अतिरिक्त ईंधन लागत आएगी, साथ ही इस योग्यता को पाने में अन्य पूंजी और संचालन लागत भी बढ़ेगी।
ऊर्जा आज पूरी दुनिया में आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। ऊर्जा के बिना आधुनिक सभ्यता की कल्पना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि इसी से विकास के नए-नए रास्ते निकलते हैं। हमारा समस्त जीवन अब इसी ऊर्जा पर निर्भर है। पृथ्वी पर ऊर्जा के परंपरागत साधन बहुत ही सीमित रह गए हैं।
यह सब अगले 10-12 वर्षों में वास्तविकता में बदल जाए और मौजूदा केंद्रीकृत बिजली व्यवस्था की जगह पूरी तरह बंटा हुआ उत्पादन और खपत ले ले। लेकिन इनमें से कोई भी बदलाव अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ने की गति जितनी तेजी से नहीं हो रहा। इसलिए अक्षय ऊर्जा से जुड़ी छिपी हुई लागतों को पहचानना जरूरी है।
ऊर्जा का पर्यावरण से सीधा संबंध है। कोयला, गैस, पेट्रोलियम इत्यादि ऊर्जा के परंपरागत साधन सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत हानिकारक साबित हो रहे हैं। अक्षय ऊर्जा, जिसे ‘नवीकरणीय ऊर्जा’ के नाम से भी जाना जाता है, वास्तव में ऐसी ऊर्जा है जिसके स्रोत सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भू-ताप आदि हैं और ये स्रोत प्रदूषणकारक नहीं होते। इनका कभी क्षय भी नहीं होता। प्रकृति प्रदत्त सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल-विद्युत ऊर्जा, ज्वार-भाटे से प्राप्त ऊर्जा, बायोमास, जैव र्इंधन इत्यादि अक्षय ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
अक्षय ऊर्जा के इन विविध स्रोतों का अपार भंडार है और किसी भी राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए इन प्रदूषणरहित स्रोतों का समुचित उपयोग किए जाने की आवश्यकता भी है। यही कारण है कि भारत सरकार ने वर्ष 2004 में अक्षय ऊर्जा के विकास को लेकर जागरूकता अभियान चलाने के उद्देश्य से अक्षय ऊर्जा दिवस की शुरुआत की थी। आज देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर तेजी से बढ़ रहा है।
अक्षय ऊर्जा उत्पादन की देशभर में कई छोटी-छोटी इकाइयां हैं जिन्हें एक ग्रिड में लाना बेहद चुनौतीभरा काम है। इससे बिजली की गुणवत्ता प्रभावित होती है। भारत में अपार मात्रा में जैवीय पदार्थ, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस व लघु पनबिजली उत्पादक स्रोत हैं लेकिन इनसे ऊर्जा उत्पादन करने वाले उपकरणों का निर्माण देश में नहीं के बराबर होता है।