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- उद्यमियों संग मिलकर पर्यावरण-अनुकूल इंडस्ट्री लगा रहा IIT Roorkee : प्रो. केके पंत
केंद्र सरकार ‘विजन 2024’ में शिक्षा को गंभीरता से ले रही है। शिक्षा के क्षेत्र में वह लगातार प्रयास कर रही है कि हमारे छात्रों को आसानी से बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध हो सके। सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में विदेशी छात्र भी शिक्षा के लिए भारत आएं। उनकी कोशिश है कि विदेशी संस्थान जिस तरह से भारत के अलग-अलग शहरों में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं, ठीक उसी तरह भारतीय संस्थान भी देश के सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचने की कोशिश करें, जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्रों को शिक्षा के अवसर प्राप्त हो सकें। साथ ही, आर्थिक रूप से भी हमारा देश मजबूत बने। इस क्रम में भारतीय शिक्षा पद्धति को लेकर आईआईटी रूड़की के निदेशक प्रो. केके पंत से अपाॅरच्युनिटी इंडिया की वरिष्ठ संवाददाता सुषमाश्री ने विस्तार से चर्चा की। पेश हैं इसके मुख्य अंश...
ओआई: अब तक के अपने कौन से रिसर्च को IIT Roorkee सर्वश्रेष्ठ कहना चाहेगा?
प्रो. पंत: हमारे लिए हर रिसर्च महत्वपूर्ण है। हमारी फैकल्टी के सदस्यों को इंडस्ट्री और एकेडमिया की ओर से रिसर्च का काफी काम दिया जाता है। पिछले तीन वर्षों में हमने लगभग 150 स्टार्टअप्स शुरू किए हैं। हमने कोशिश की है कि एमएसएमई के साथ अपनी तकनीक को जोड़ें। अभी कुछ समय पहले ही हमने वाटर सोल्यूबल इंक का पेटेंट करवाया है। बहुत सारी इंडस्ट्रीज इसे लेने के लिए आगे आईं और इस तकनीक का उपयोग आज व्यावसायिक तौर पर किया जा रहा है। यह न केवल अपनी सस्टेनेबेलिटी (निरंतरता) बनाए रखता है, बल्कि पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाता।
हमारे कई रिसर्च स्वास्थ्य से संबंधित हैं। गाय की एक प्रजाति 'बद्री काव' के घी की क्वालिटी काफी अच्छी मानी जाती है। बाजार में इसकी कीमत प्रति किलो दो हजार रुपये है। फिलहाल हम किस तरह इसके उत्पाद को बाजार ले जाएं, पर काम कर रहे हैं। हमने पूरी कोशिश की है कि इस बात का भी ध्यान रख सकें कि लंबे समय तक यह घी अपनी गुणवत्ता कायम रखते हुए सहेजा जा सके। हमारी फैकल्टी ने एक ऐसा ऐप तैयार किया है, जो भूकंप आने से ठीक 40 सेकेंड पहले इसका पता लगा लेता है। जहां भी भूकंप आने वाला हो, वहां वाइब्रेशन के साथ इस ऐप का हूटर बजने लगता है। इससे स्थानीयों को समझ आ जाता है कि भूकंप आने वाला है और वे बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं।
आईआईटी रूड़की में हमने ऐसे ऐप विकसित किए हैं, जिनसे ग्रामीण महिलाओं और किसानों को काफी लाभ हो रहा है। उत्तराखंड की महिलाओं के लिए हमारे छात्रों ने 'स्वस्थ गर्भ' नामक एक ऐप तैयार किया है, जिसका लाभ विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को हो रहा है। इस ऐप के जरिए उन्हें यह पता चलता है कि उन्हें कब, कौन सी दवाएं लेनी हैं, डाॅक्टर के पास कब जाना है, कब-किन बातों का ध्यान रखना है। हमने किसानों के लिए भी ऐप बनाया है, जो उन्हें सिंचाई से जुड़ी जानकारी देती है, जैसे कि कौन सी फसल कब लगाई जाए, कौन सा फर्टिलाइजर डाला जाए, कितना पानी डाला जाए वगैरह। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करके छात्रों ने कई ऐसे तकनीक तैयार किए हैं, जिनसे किसानों को काफी फायदा होगा।
ओआई: देश में मौजूद सभी आईआईटीज में से रूड़की पांचवें स्थान पर आता है। इसे टाॅप पर ले जाने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
प्रो. पंत: हेल्दी काॅम्पिटीशन हमेशा ही बेहतर होता है। इसके जरिए हमें अपनी कमियों को दूर करने का मौका मिलता है। रैंकिंग में जो स्कोर्स आते हैं, हमारी टीम उस पर ध्यान दे रही है। हम कोशिश कर रहे हैं कि आईआईटी रूड़की की आउटरीच बढ़ाई जाए। हमारे करीब 50 हजार पूर्व छात्र हैं, 176 साल पुराना हमारा इंस्टीट्यूट है। इस संस्थान की अपनी गरिमा है। विश्व में इस संस्थान की अपनी पहचान है। अब हमें जरूरत है कि हमारे पूर्व छात्र आईआईटी रूड़की के बारे में लोगों को बताएं, ताकि लोग इस संस्थान को जान सकें। दिल्ली से यहां दो से तीन घंटे में पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए आज सारी सुविधाएं हैं। अपने फैकल्टी से मैं कहता हूं कि आप लगातार प्रयास करते रहें। जिस भी क्षेत्र में आप काम कर रहे हैं, वहां अपना शत-प्रतिशत दें। उच्च स्तरीय जर्नल्स में अपने शोधपत्र प्रकाशित करें क्योंकि उससे आपकी विजिबिलिटी बढ़ती है। किसी भी संस्थान की फैकल्टी कैसा काम कर रही है, वह उसके रिसर्च पब्लिकेशन से जाना जाता है। जब हम अच्छे जर्नल्स में अपने शोधपत्र प्रकाशित करते हैं तो इंस्टीट्यूट का नाम बनता है, उस खास फैकल्टी को भी लोग नाम से जानने लगते हैं। अपना टैलेंट दिखाने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है।
हमारे यहां से जो भी छात्र निकलते हैं, हमारी कोशिश होती है कि उनका सर्वांगीण विकास हो और वे जहां भी जाएं, जो भी करें, बेहतर ढंग से करें। अपने पूर्व छात्रों से हम हमेशा कहते हैं कि समाज की बेहतरी के लिए अपनी शिक्षा के जरिए जितना बेहतर कर सकते हैं, करें। ग्रामीण इलाकों के बारे में सोचें, देश के विकास के बारे में सोचें। इससे इंस्टीट्यूट का नाम बढ़ता है। पूर्व छात्रों का समाज को योगदान, बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, इन सब बातों पर ध्यान दिया जाए तो संस्थान खुद ही रैंकिंग में आगे आ जाएगा। हमारे यहां डीआरडीओ, सेंटर फोर साइंस एंड टेक्नोलाॅजी का भी एक सेंटर है। यहां जो वैज्ञानिक और फैकल्टीज हैं, वे अपना काफी योगदान दे रहे हैं। इसरो चंद्रयान अभियान में हमारा भी योगदान था। हमारे यहां नेशनल डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट भी है। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति की वजह से हमारे यहां कई बार भूकंप आते हैं, लैंड स्लाइड हो जाती हैं, हमारी फैकल्टी इन सबको दूर करने या कम करने के लिए मेहनत कर रही है।
उत्तराखंड के स्थानीय लोगों के लिए हम नौकरी के अवसर भी तैयार कर रहे हैं। उत्तराखंड के उद्यमियों के साथ मिलकर हम ऐसी इंडस्ट्रीज लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बनाया रखा जा सके। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि स्वच्छ पर्यावरण, बेहतर खान-पान, बिजली और साफ पानी, सभी को मिले। इसके लिए हमारे यहां कई रिसर्च किए जा रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि इसके जरिए धीरे-धीरे आईआईटी रूड़की पहले से ज्यादा प्रसिद्धि पा लेगा।
ओआई: उद्यमी बनाने के लिए आईआईटी रूड़की किस प्रकार मदद कर रहा है?
प्रो. पंत: हमारे यहां स्पोन्सर्ड रिसर्च और इंडस्ट्री कल्चर सेंटर है, जिसके जरिए हमारी फैकल्टी अपने प्रोजेक्ट्स जमा करती है। यह दो या दो से अधिक लोगों या यूनिवर्सिटीज या विभाग के बीच भी हो सकता है। सरकार की कई योजनाओं के तहत कई अप्लायड रिसर्च भी किए जाते हैं। इसके अंतर्गत कोई फैकल्टी स्टार्टअप के जरिए, प्रोजेक्ट लेकर या खुद भी रिसर्च कर सकता है। हमारे यहां स्टार्टअप्स को प्रमोट करने के लिए TIDES (टेक्नोलाॅजी इन्क्यूबेशन एंड आंत्रप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट सोसायटी) है। अगर किसी छात्र को लगता है कि उसका स्टार्टअप सफल हो रहा है तो वह संबंधित इंडस्ट्री से संपर्क करता है। फिर, इंडस्ट्री आर्थिक रूप से उनकी मदद करती है। तकनीकी रूप से शोध सफल हो जाए तो उसे बाजार में उतारने की तैयारी की जाती है।
iHub में आईटी संबंधित रिसर्च होता है। छात्र या फैकल्टी इस रिसर्च के लिए एक या दो साल की छुट्टी लेकर काम करना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए भी मौका दिया जाता है। इसके बाद फैकल्टी इस तकनीक को इंडस्ट्री को सौंप सकती है। TIDES और iHUB जैसी पहल से 150 से ज्यादा स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है। अनुसंधान और परामर्श परियोजनाओं में हमने क्रमशः 504.39 और 205.49 करोड़ रुपये निवेश किए हैं। हमने 424 पेटेंट दाखिल किये हैं, जिनमें से 121 स्वीकृत हो चुके हैं। इसके अलावा हमारे पास सेक्शन 8 कंपनी भी है। अगर किसी के पास नया फंड आता है और किसी खास क्षेत्र में कोई अपनी कंपनी खोलना चाहता है तो वह सेक्शन 8 कंपनी के नाम पर खोल सकता है और उसमें अपना काम शुरू कर सकता है।
ओआई: जी-20 के बाद हमारे देश में कई विदेशी यूनिवर्सिटीज अपने कैंपस स्थापित कर रही हैं, इसका क्या लाभ होगा?
प्रो. पंत: वैश्वीकरण के इस दौर में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ नारे के अनुसार काम कर रहे हैं। भारत में कई शिक्षण संस्थाएं चल रही हैं और हम बहुत अच्छा भी कर रहे हैं। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विदेशी संस्थानों के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं। हमारे छात्र और शिक्षक देश-विदेश, हर जगह आ-जा रहे हैं। हर देश की अलग-अलग खासियतें हैं। ताइवान सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहा है इसलिए ताइवान की तीन यूनिवर्सिटीज के साथ हमने एमटेक डिग्री के लिए एमओयू साइन किए हैं, एक कोर्स भी शुरू किया है। उनके यहां सेमी कंडक्टर क्षेत्र से जुड़े लैब आदि की सारी जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं, जबकि कोर्स के मामले में हमारे यहां के छात्र अधिक मजबूत हैं। ऐसे में छात्र पहले साल कोर्स हमारे यहां करते हैं और दूसरे साल ताइवान जाकर वहां की यूनिवर्सिटीज के रिसर्च लैब में काम करते हैं। वे वहां का ज्ञान लेकर जब भारत आएंगे तो उससे हमारे देश को भी फायदा होगा। एनर्जी और सेंसर डिवाइस जैसे क्षेत्र में भारत को अभी बहुत कुछ जानना और करना है, जिनमें सेमी कंडक्टर मैटेरियल्स का बहुत बड़ा योगदान है, तो उन छात्रों के जरिए भारत को काफी लाभ होने की संभावना है।
इसी तरह विदेशी यूनिवर्सिटीज भारत में जो अपने कैंपस स्थापित कर रही हैं, उनका उद्देश्य भी यही है कि एक साल छात्र उनके देश में पढ़ें और एक साल भारत आकर। इससे दोनों देशों के बीच संस्कृति और ज्ञान का आदान-प्रदान होगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच रिश्ते भी बेहतर होंगे। भारत में ‘युवा संगम’ नाम से अलग-अलग राज्यों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि छात्र एक-दूसरे की संस्कृति और ज्ञान को समझ सकें। हम अभी से यह सब करेंगे तभी भविष्य में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का लक्ष्य पा सकेंगे। इस लक्ष्य को पाने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। आज के समय में भारत के कई संस्थान भी विदेशों में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं, उसी तरह विदेशी यूनिवर्सिटीज भी हमारे देश में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं। यह विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए जरूरी भी है।