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- एआई और चैटजीपीटी जैसी तकनीक आपकी मदद के लिए हैं, डराने के लिए नहीं: डॉ. गुरिन्दर सिंह, एमिटी
भारतीय शिक्षा प्रणाली में बीते कुछ वर्षों में काफी बदलाव आए हैं। कोरोना काल के बाद से यहां तकनीक का प्रयोग भी काफी बढ़ गया है। इसके बावजूद शिक्षा जगत से यह शिकायत की जाती है कि वह ऐसे छात्र तैयार करने में अक्षम है, जो पढ़ाई पूरी करने के बाद सीधे किसी भी औद्योगिक संस्था या उद्योग से जुड़कर काम कर सकें और वहां अपने कौशल का प्रदर्शन कर बेहतर परिणाम भी दे सकें। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पद्धति में बीते कुछ वर्षों में क्या बदलाव आए हैं और खुद को बेहतर बनाने के लिए हमें किन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए? एआई और चैटजीपीटी से छोटे और मझोले उद्यमी आखिर क्यों डरे हुए हैं, जैसे कई महत्वपूर्ण सवालों पर एमिटी यूनिवर्सिटीज के ग्रुप वाइस चांसलर प्रो. (डॉ.) गुरिन्दर सिंह नेे अपॉरच्युनिटी इंडिया की वरिष्ठ संवाददाता सुषमाश्री से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं उसके प्रमुख अंश...
ओआई- आपको शिक्षा से जुड़े कई क्षेत्रों में 26 वर्षों से काम करने का अनुभव है। आपने देश-विदेश में एमिटी के कई परिसर स्थापित किए हैं। इस दौरान आपको किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा? उन्हें दूर करने के लिए आपने क्या किया?
डॉ. सिंह- 26 वर्षों के अपने करियर में मैंने विदेश में एमिटी यूनिवर्सिटी के कई कैंपस स्थापित किए हैं। इस दौरान मुझे अलग-अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- हर देश की अपनी अलग संस्कृति और कायदे-कानून हैं, जिन्हें मुझे हर बार समझना पड़ा। हमने वहां के स्थानीय लोगों के साथ साझेदारी की, जिससे हमें हर क्षेत्र की संस्कृति और कायदे-कानून को समझने में मदद मिली।
- एमिटी के हर कैंपस में शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हमने जीतोड़ मेहनत की है। हमने एक स्टैंडर्ड पाठ्यक्रम तैयार किया और मूल्यांकन का तरीका भी, जिसके लिए अपने शिक्षकों को प्रशिक्षित किया।
- आर्थिक निरंतरता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम अपने ज्यादातर कैंपस को आगे बढ़ाएं। इसके लिए सावधानी से योजना बनाने और वित्तीय प्रबंधन की भी आवश्यकता है। हमने मजबूत बजट और वित्तीय नियंत्रण के उपाय लागू किए।
- विदेश में कुशल प्रशिक्षकों और कर्मचारियों को अपने साथ जोड़ना भी चुनौतीपूर्ण था। हमने उन्हें अच्छी सैलरी ऑफर की, उन्हें प्रोफेशनल तौर पर विकास के अवसर दिखाए और काम करने के लिए उन्हें बेहतरीन माहौल उपलब्ध करवाया।
- विदेशों में छात्रों की भर्ती करना और लंबे समय तक उन्हें अपने साथ बनाए रखना आसान नहीं था। उन्हें ध्यान में रखकर हमने खास तरह की मार्केटिंग स्ट्रैटजी बनाई। स्कॉलरशिप और छात्रों के अनुभवों को ध्यान में रखकर अन्य सेवाएं भी उपलब्ध करवाईं।
- हर क्षेत्र में शिक्षा की जरूरतें और मांग अलग-अलग होती हैं। अपना पाठ्यक्रम तैयार करते समय हम वहां की जरूरतों को ध्यान में रखते हैं और एमिटी यूनिवर्सिटी की खासियत को बनाए रखना चाहते हैं।
- स्थानीय मान्यता और नियमों को पूरा करना महत्वपूर्ण था। हमने स्थानीय मान्यता प्राप्त निकायों के साथ काम किया और सुनिश्चित किया कि सभी कैंपस उन प्रासंगिक नियमों का पालन करें।
- विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे और सुविधाएं मुहैया कराना भी हमारे लिए एक बड़ी चुनौती थी। हमने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और उसे बनाए रखने की योजनाओं पर भी निवेश किया।
- एमिटी यूनिवर्सिटी को एक ब्रांड के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करना और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी था। वैश्विक पटल पर यूनिवर्सिटी की पहचान बनाने के लिए हमने स्ट्रैटजिक मार्केटिंग और साझेदारी को बढ़ाने के प्रयास भी किए।
- प्राकृतिक आपदाओं या भू-राजनीतिक मुद्दों जैसे अप्रत्याशित संकटों से निपटने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया और आकस्मिक योजना की आवश्यकता होती है, हमने वह भी किया।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमने एक सक्रिय और अनुकूल तरीका अपनाया। हमने अपने अनुभवों का लाभ उठाया और जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों की सलाह भी ली। इस तरह से हमने नवाचार और निरंतर सुधार की संस्कृति को बढ़ावा दिया। स्थानीय हितधारकों के साथ सहयोग, मजबूत योजना और अकादमिक उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता, इन चुनौतियों को सफलतापूर्वक हल करने और एमिटी विश्वविद्यालय की वैश्विक उपस्थिति स्थापित करने में प्रमुख कारक थे।
ओआई- देश और विदेश में शिक्षण संस्थान शुरू करने के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है? क्या देश के अलग-अलग राज्यों में संस्थान शुरू करना भी अलग अनुभव होगा?
डॉ. सिंह- एक शिक्षण संस्थान शुरू करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। शिक्षण संस्थान शुरू करने के लिए जरूरी है कि उस जगह को आप अच्छी तरह से समझें, वहां के कायदे-कानून को जानें, उसके बाद उन सभी को ध्यान में रखकर जरूरी गाइडलाइंस तैयार करें। एक शिक्षण संस्थान शुरू करने के लिए जरूरी है कि पहले अच्छी तरह से अपने मार्केट को समझें। वहां की मांग को समझना जरूरी है। साथ ही, उस क्षेत्र को ध्यान में रखकर यह जानने का प्रयास करना भी, कि आखिर आपको वहां क्या पढ़ाने की जरूरत है यानी कौन से प्रोग्राम या पाठ्यक्रम वहां के लोगों को आकर्षित करेंगे। एक शिक्षण संस्थान शुरू करने के लिए यह भी आवश्यक है कि आपका बुनियादी ढांचा, आपके शिक्षक और संस्थान की सहायता के लिए जरूरी स्रोत की उपलब्धता का भी ध्यान रखा जाए। यह भी जरूरी है कि आपका पाठ्यक्रम अन्य संस्थानों की तुलना में बेहतर हो, आपके शिक्षकों के पढ़ाने का तरीका खास हो और स्थानीय व वैश्विक छात्रों की जरूरतों को पूरा करने वाला हो। संस्थान को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए आवश्यक धन की उपलब्धता पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। वित्तीय संसाधनों, जिसमें ट्यूशन फीस, अनुदान और उद्योग भागीदारों के साथ संभावित सहयोग करना आदि शामिल हैं, का ध्यान रखना भी आवश्यक है। संस्थान की गुणवत्ता और वैधता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक मान्यता प्राप्त निकायों से अपनी पहचान प्राप्त करने की दिशा में काम करना भी आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्थानों की स्थापना करते हुए सांस्कृतिक बारीकियों और विविधता को पहचानना और उनका सम्मान करना जरूरी होता है। संस्था के संचालन के लिए एक मजबूत कानूनी और शासकीय ढांचा स्थापित करना जरूरी है, जिसमें नीतियां, प्रक्रियाएं और नैतिक मानक शामिल हों। छात्रों को आकर्षित करने और शैक्षिक समुदाय के भीतर सकारात्मक प्रतिष्ठा बनाने के लिए प्रभावी मार्केटिंग और आउटरीच रणनीतियों का विकास करना आवश्यक है।
निःसंदेह, भारत के विभिन्न राज्यों में विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के अनुभव के संबंध में कहा जा सकता है कि यह एक अलग तरह का अनुभव हो सकता है। भारत में प्रत्येक राज्य के अपने नियम, सांस्कृतिक विविधता और शैक्षिक आवश्यकताएं हो सकती हैं इसलिए जरूरी है कि आप अपनी पहुंच को उसी हिसाब से तैयार करें। अगर हर राज्य की अलग-अलग चुनौतियों और अवसरों को भली-भांति समझ लिया जाए तो संस्थान को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
ओआई- एक शिक्षण संस्थान चलाना और उसकी एक चेन चलाना, दोनों में क्या अंतर है? खर्च में कितना अंतर है? किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है? देश के अलग-अलग राज्यों और विदेश, दोनों को ध्यान में रखकर बताएं।
डॉ. सिंह- एक शिक्षण संस्थान चलाना और इसके कई चेन यानी इसकी कई श्रृंखलाएं चलाना, दोनों में काफी अंतर है। इसमें लागत और कायदे-कानून भी शामिल हैं। शिक्षण संस्थानों की श्रृंखला चलाने के क्रम में सबसे मुश्किल होता है, उसका प्रबंधन। इस काम में कई जटिलताएं सामने आती हैं। संस्थान के तय मानक के अनुरूप अलग-अलग जगहों पर उसे चलाना, आसपास की स्थिति और आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करना और संस्थान के स्तर के अनुसार उसकी गुणवत्ता बनाए रखते हुए उसके प्रबंधन का काम देखना, यह सब काफी मुश्किल होता है। इसकी तुलना में एक ही संस्थान चलाना आसान होता है। देश के अलग-अलग राज्यों और विदेशों में शिक्षा के मानक और नियम-कानून कुछ न कुछ अलग अवश्य होते हैं। ऐसे में चेन चलाने के लिए जरूरी होता है कि हर जगह की विविधता और उसकी खासियत को ध्यान में रखकर संस्थान चलाए जाएं। एक श्रृंखला चलाने में तुलनात्मक रूप से खर्च भी ज्यादा होता है। आपके लिए अपने संस्थान के विस्तार, शिक्षकों व कर्मचारियों की भर्ती और अलग-अलग स्थानों पर उन्हें प्रशिक्षण देना, बुनियादी ढांचे का रखरखाव और गुणवत्ता का स्तर बेहतर रखना भी आवश्यक है। संस्थान की कई चेन चलाते हुए गुणवत्ता का स्तर बनाए रखना भी एक चुनौती है। शिक्षण संस्थान के मानकों को ध्यान में रखते हुए आपको गुणवत्ता का ध्यान रखने वाली व्यवस्था, उस पर नजर रखने और प्रतिक्रिया लेने के तरीकों का इंतजाम करना जरूरी होता है। जब आप कई चेन चला रहे होते हैं तो आपके लिए अपने ब्रांड की प्रतिष्ठा बनाए रखना भी आसान नहीं होता। कोई मुद्दा हो या किसी एक स्थान पर सफलता मिलना, उसका असर पूरे ब्रांड की इमेज पर पड़ता है, जिससे ब्रांड का प्रबंधन पहले से ज्यादा मुश्किल हो जाता है। पाठ्यक्रम में मौजूद विषय-वस्तु और शिक्षकों द्वारा उसे पढ़ाने के तरीकों पर इस बात का बहुत ज्यादा असर होता है कि आपका संस्थान कहां स्थित है। जब हम इसकी पूरी चेन चला रहे होते हैं, तब यह और भी गंभीर मुद्दा हो जाता है। कई चेन चलाने वाले संस्थानों में ज्यादा से ज्यादा छात्रों तक पहुंचने की क्षमता होती है। इसके लिए जरूरी है कि अपनी चेन का विस्तार करने के लिए आप प्रयासरत हों। जब आप स्थानीय और वैश्विक शिक्षण संस्थान की पूरी श्रृंखला चला रहे होते हैं तो आपको हर जगह अलग-अलग तरह के संस्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होती है। यह आपकी मार्केटिंग और नामांकन प्रक्रिया को लेकर की जाने वाली कोशिशों को भी प्रभावित करता है।
कुल मिलाकर कहें तो एक संस्थान चलाने के मुकाबले उसकी पूरी श्रृंखला चलाने में ज्यादा खर्च होता है। भारत के अलग-अलग राज्यों की बात हो या फिर विदेश में संस्थान चलाना, चेन यानी श्रृंखला चलाना तुलनात्मक रूप से अधिक खर्चीला है।
ओआई- आपको देश-विदेश के अलग-अलग संस्थानों में जाकर पढ़ाने का अनुभव है। कृपया बताएं कि बीते कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में क्या बदलाव आए हैं?
डॉ. सिंह- बीते कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में काफी कुछ बदला है। मैं कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालता हूं। भारत हो या अन्य कोई भी देश, बीते कुछ वर्षों में डिजिटल लर्निंग में काफी बदलाव आए हैं। ऑनलाइन एजुकेशन, एमओओसी (मासिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेस) और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स को काफी प्रसिद्धि मिली है, खासकर कोविड के दौरान। आजकल इंटरडिसिप्लीनरी स्टडीज (कई विषयों को एक ही जगह समेटने की कोशिश) और रिसर्च पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय, जटिल वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए छात्रों और शिक्षकों को विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। शैक्षणिक संस्थान अधिक वैश्वीकृत होते जा रहे हैं। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों के बीच अंतरराष्ट्रीय भागीदारी, छात्र आदान-प्रदान और सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रवृत्ति बढ़ रही है। शिक्षा अब पहले से अधिक कौशल-उन्मुख और उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप होने लगे हैं। पारंपरिक शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावसायिक और व्यावहारिक कौशल का महत्व भी बढ़ रहा है। लैंगिक समानता, कम प्रतिनिधित्व वाले अल्पसंख्यकों और विकलांग छात्रों के लिए पहुंच पर ध्यान देने के साथ शिक्षा जगत को अधिक समावेशी और विविधतापूर्ण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
ओआई- हमारे देश में विदेशों से शिक्षा का क्षेत्र किस प्रकार अलग है? हमें दूसरे देशों से आगे निकलने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में क्या बदलाव करने होंगे या चाहिए?
डॉ. सिंह- भारतीय शैक्षणिक पद्धति अन्य देशों की शिक्षा पद्धति से कई मायनों में भिन्न है। भारत में अक्सर पाठ याद करने पर जोर दिया जाता है न कि आलोचनात्मक सोच या ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग पर। जेईई और एनईईटी जैसी उच्चस्तरीय परीक्षाएं छात्रों पर अत्यधिक दबाव डालती हैं, जिससे परीक्षा की तैयारी पर ध्यान कम हो जाता है। भारतीय छात्रों के पास कोर्स और विषयों के चुनाव की छूट, विदेशी छात्रों के मुकाबले बहुत कम है। भारतीय शैक्षणिक पद्धति में सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान के बीच अक्सर बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।
विदेशी शैक्षणिक पद्धति से हमें काफी कुछ सीखना चाहिए। वहां छात्रों को आलोचनात्मक सोच रखने और क्रिएटिव होने, समस्याओं का हल करने और नए-नए शोध करने के लिए प्रेरित किया जाता है। विदेशों में छात्रों पर परीक्षा का दबाव बहुत कम रखा जाता है। वहां उच्च जोखिम वाली परीक्षाओं के महत्व का पुनर्मूल्यांकन कर वैकल्पिक मूल्यांकन विधियों पर विचार करने पर जोर डाला जाता है, जो समग्र कौशल और ज्ञान का आकलन करते हैं। वहां छात्रों को अपने कोर्स और विषयों के चुनाव की छूट होती है। यही कारण है कि वे अपनी पसंद और लक्ष्य को ध्यान में रखकर विषयों का चुनाव आसानी से कर पाते हैं। सिद्धांत और उसके प्रयोग के बीच के अंतर को पाटने के लिए वहां छात्रों को अधिक व्यावहारिक अनुभवों से सीखने हेतु प्रेरित किया जाता है। भारत में शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि उन्हें और ज्यादा प्रोफेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम और ट्रेनिंग का हिस्सा बनाया जाए।
ओआई- पढ़ाने के तरीके में बीते कुछ वर्षों में किस तरह के और कितने बदलाव हुए हैं। आपकी नजर में वह कितना अच्छा या बुरा कहा जा सकता है और क्यों? कमियों को दूर करने के लिए हमारी शिक्षा पद्धति में किस तरह के बदलाव किए जाने की जरूरत है?
डॉ. सिंह- अपने अनुभवों के आधार पर बीते कुछ वर्षों में भारत में पढ़ाने के तरीकों में काफी बदलाव किए गए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
1- प्रौद्योगिकी को अपनानाः पढ़ाने और सीखने के अनुभवों को बेहतर करने के लिए डिजिटल लर्निंग प्लेटफार्म्स के प्रयोग के साथ-साथ ऑनलाइन संसाधनों, मल्टीमीडिया उपकरणों का उपयोग और कक्षाओं में प्रौद्योगिकी का एकीकरण यानी टेक्नोलॉजी आधारित शिक्षा देने का प्रचलन पहले के मुकाबले काफी बढ़ा है।
2- मिश्रित शिक्षाः कोरोना काल ने शिक्षा के मिश्रित दृष्टिकोण को अपनाने में तेजी ला दी है। इसने ऑनलाइन संसाधनों और दूरस्थ शिक्षा विकल्पों के साथ पारंपरिक क्लासरूम टीचिंग मैथड को जोड़कर पढ़ाने के मिश्रित शिक्षण दृष्टिकोण को अपनाने में तेजी ला दी है।
3- छात्र-केंद्रित शिक्षाः आजकल शिक्षा को छात्र-केंद्रित करने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। सक्रिय भागीदारी, आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान कौशल को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
4- कौशल आधारित शिक्षाः रटने के बजाय आजकल व्यावहारिक कौशल और रोजगारपरकता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। शिक्षा को कौशल आधारित बनाने पर जोर बढ़ गया है।
5- अंतःविषय शिक्षाः विषयों और वास्तविक दुनिया में उनके प्रयोग की समग्र समझ को बढ़ावा देने के लिए इंटरडिसिप्लीनरी स्टडीज (अंतः विषय अध्ययन) को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
6- समावेशी शिक्षाः शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने, विकलांग छात्रों की जरूरतों को पूरा करने और विविधता को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।
7- सतत मूल्यांकनः उच्च जोखिम वाली परीक्षाओं पर भारी निर्भरता से हटकर निरंतर मूल्यांकन विधियों की ओर कदम बढ़ाना, जो छात्रों की क्षमताओं का अधिक व्यापक मूल्यांकन करते हैं।
इन परिवर्तनों को अच्छा या बुरा माना जा सकता है या नहीं, यह विभिन्न कारकों और दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि उन्नत प्रौद्योगिकी एकीकरण और कौशल आधारित शिक्षा सकारात्मक विकास हैं, जो छात्रों को भविष्य के नौकरी बाजार के लिए तैयार करते हैं। अन्य लोग संभावित कमियों के बारे में चिंता व्यक्त कर सकते हैं, जैसे प्रौद्योगिकी पर अत्यधिक निर्भरता, पहुंच में असमानता, या मूलभूत ज्ञान की उपेक्षा का जोखिम।
हमारी शिक्षा प्रणाली की कुछ कमियों को दूर करने और सकारात्मक परिणाम सुनिश्चित करने के लिए हम निम्नलिखित परिवर्तनों पर विचार कर सकते हैं :-
टीचर ट्रेनिंगः शिक्षकों को ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षण हेतु तैयार करने और जरूरी कौशल से लैस करने के लिए टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में निवेश करें।
बुनियादी ढांचाः डिजिटल संसाधनों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना और स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के समग्र बुनियादी ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता है।
पाठ्यक्रम सुधारः समाज और नौकरी बाजार की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए पाठ्यक्रम को लगातार अपडेट और छात्रों के अनुकूल बनाने हेतु कार्य करें।
मूल्यांकन सुधार: निष्पक्ष और व्यापक मूल्यांकन विधियों का विकास करें, जो न केवल शैक्षणिक ज्ञान, बल्कि व्यावहारिक कौशल और सॉफ्ट कौशल का भी आकलन करे।
समावेशिता: सभी छात्रों की आवश्यकताओं को समायोजित करते हुए, समावेशिता को बढ़ावा देने वाली नीतियों और प्रथाओं को लागू करें।
अनुसंधान और नवाचार: सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करने और पढ़ाने व सीखने की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए शिक्षा में शोध और नवाचार को प्रोत्साहित करें।
माता-पिता और सामुदायिक जुड़ाव: स्कूलों, अभिभावकों और समुदायों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सीखने में मददगार वातावरण तैयार करने पर जोर दें।
संक्षेप में कह सकते हैं कि भारत में शिक्षण पद्धति में बदलाव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। हालांकि, ये बदलाव अच्छे हैं या बुरे, यह संदर्भ और परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है। कमियों को दूर करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है, जो टीचर ट्रेनिंग (शिक्षकों के प्रशिक्षण), इंफ्रास्ट्रक्चर में इंप्रूवमेंट (बुनियादी ढांचे में सुधार), पाठ्यक्रम और मूल्यांकन पद्धति में सुधार, समावेशिता, शोध और सामुदायिक सहभागिता युक्त हो।
ओआई- एमिटी में एंट्रप्रेन्योरशिप (उद्यमिता) को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन से कोर्सेस चलाए जा रहे हैं?
डॉ. सिंह- उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एमिटी यूनिवर्सिटी में कई कोर्सेस और प्रोग्राम्स चलाए जा रहे हैं। ये हैं-
आंत्रप्रेन्योरशिप में बैचलर स्नातक और मास्टर्स डिग्रीः ये कार्यक्रम उद्यमिता पर व्यापक शिक्षा प्रदान करते हैं। इसके अंतर्गत बिज़नेस प्लानिंग (व्यवसाय योजना), फिनांस (वित्त), मार्केटिंग (विपणन) और इनोवेशन (नवाचार) जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं।
आंत्रप्रेन्योरशिप बूटकैंप्सः इच्छुक उद्यमियों को व्यावहारिक कौशल और सलाह प्रदान करके उनके उद्यम को शुरू करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किए गए शॉर्ट टर्म यानी अल्पकालिक, इनटेन्सिव प्रोग्राम यानी गहन कार्यक्रम।
इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर प्रोग्राम्स: विश्वविद्यालयों में अक्सर स्टार्टअप इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर होते हैं, जो शुरुआती चरण के स्टार्टअप को संसाधन, सलाह और फंडिंग के अवसर प्रदान करते हैं।
आंत्रप्रेन्योरशिप इलेक्टिव्स: एमिटी यूनिवर्सिटी उद्यमिता पर केंद्रित कोर्सेस करवाता है, जो अलग-अलग विषयों के छात्रों को यह मौका प्रदान करता है कि प्राथमिक डिग्री के दौरान वे उद्यमिता कौशल हासिल कर सकें।
आंत्रप्रेन्योरशिप कॉम्पिटीशंस: विश्वविद्यालय उद्यमिता प्रतियोगिताओं का आयोजन कर सकते हैं, जहां छात्र अपने व्यावसायिक विचारों को पेश कर सकते हैं और पुरस्कार या फंडिंग अपने नाम कर सकते हैं।
वर्कशॉप्स कार्यशालाएं और सेमिनार: ये आयोजन छात्रों को व्यावहारिक अनुभव, इंडस्ट्री इनसाइट्स (उद्योग अंतर्दृष्टि) और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करते हैं।
आंत्रप्रेन्योरशिप रिसर्च सेंटर्स: एमिटी विश्वविद्यालयों में उद्यमिता के लिए समर्पित अनुसंधान केंद्र हैं, जो मूल्यवान अनुसंधान करते हैं और इच्छुक उद्यमियों के लिए संसाधन प्रदान करते हैं।
ध्यान रखें कि एमिटी विश्वविद्यालय, उद्यमिता शिक्षा की खोज कर रहे छात्रों के लिए लोकप्रिय स्थान है। यहां ऑफर किए गए पाठ्यक्रम और उसे पढ़ाने के तरीके अन्य के मुकाबले अलग और खास हैं।
ओआई- कोर्सेस कितने डायवर्सिफाय या विविधता उत्पन्न करने वाले हो रहे हैं?
डॉ. सिंह- पिछले कुछ वर्षों में भारतीय शिक्षा प्रणाली में विभिन्न परिवर्तन और विविधताएं देखने को मिली हैं। यहां मैं भारतीय शिक्षा पद्धति के कुछ नवीनतम रुझानों और विविधीकरण के क्षेत्रों से संबंधित विवरण दे रहा हूं-
ऑनलाइन एजुकेशन: ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्म और दूरस्थ शिक्षा को अपनाने में तेजी लाने का श्रेय तक कोविड-19 महामारी को जाता है। भारत में कई विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों ने ऑनलाइन पाठ्यक्रम और डिग्री कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिससे छात्रों को सीखने के पहले से ज्यादा विकल्प उपलब्ध हुए।
स्किल बेस्ड कोर्सेस: छात्रों को नौकरी बाजार के लिए तैयार करने वाले कौशल आधारित और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों पर, संस्थान पहले से कहीं ज्यादा जोर दे रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल, आतिथ्य और अन्य कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
इंटरडिसिप्लीनरी प्रोग्राम्स: शैक्षणिक संस्थान अंतःविषय अध्ययन या इंटरडिसिप्लीनरी प्रोग्राम्स (एक ही विषय के अंतर्गत कई विषयों या क्षेत्रों को समाहित करने की कोशिश) को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे छात्रों को व्यापक परिप्रेक्ष्य और कौशल हासिल करने के लिए विभिन्न विषयों को एक साथ करके पढ़ने की अनुमति मिल सके।
स्पेशलाइज्ड प्रोग्राम्स: नौकरी बाजार की उभरती मांगों को पूरा करने के लिए संस्थान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा विज्ञान, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों में भी कई प्रोग्राम पेश कर रहे हैं।
लिबरल आर्ट्स एजुकेशन: भारत में लिबरल आर्ट्स एजुकेशन, लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। विशेष कौशल के साथ-साथ संस्थान आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और सर्वांगीण शिक्षा को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
उद्योग सहयोग: पाठ्यक्रम और अनुसंधान के अवसरों को विकसित करने के लिए कई विश्वविद्यालय उद्योगों के साथ सहयोग कर रहे हैं। इसके पीछे विश्वविद्यालयों का मकसद छात्रों को व्यावहारिक और अप-टू-डेट ज्ञान प्राप्ति सुनिश्चित करना है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: शैक्षणिक संस्थान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी कर रहे हैं, जिससे छात्रों को वैश्विक शिक्षा के अवसरों और (एक्सचेंज प्रोग्राम्स) विनिमय कार्यक्रमों तक अपनी पहुंच बनाने के मौके मिल रहे हैं।
ओआई- इंडस्ट्री में डिमांड और सप्लाई में गैप कम करने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
डॉ. सिंह- भारतीय उद्योगों में मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटने के लिए एमिटी यूनिवर्सिटी कई कदम उठा रही है।
o करिकलम अलाइनमेंट पाठ्यक्रम संरेखण: उद्योगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर हम अपने शैक्षणिक कार्यक्रमों को अपडेट कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि हमारे छात्र, उद्योग जगत की जरूरत के अनुसार प्रासंगिक कौशल और ज्ञान से लैस हैं।
o उद्योग साझेदारी: छात्रों को वास्तविक दुनिया का अनुभव, इंटर्नशिप और नौकरी प्लेसमेंट के अवसर प्रदान करने के लिए हम व्यवसायों और उद्योगों के साथ साझेदारी कर रहे हैं।
o कौशल विकास कार्यक्रम: हम अतिरिक्त कौशल विकास और सर्टिफिकेशन प्रोग्राम (प्रमाणन कार्यक्रम) पेश कर रहे हैं, जिनकी विशिष्ट उद्योगों में मांग सबसे ज्यादा है।
o अनुसंधान और नवाचार: हम रिसर्च (अनुसंधान) और इनोवेशन (नवाचार) को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिससे उद्योग की चुनौतियों का समाधान हो सके और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सके।
o उद्यमिता समर्थन: नए व्यवसायों के विकास और रोजगार सृजन में योगदान देने के लिए हम छात्र उद्यमिता और स्टार्टअप का समर्थन कर रहे हैं।
o सतत सीखना: अपने लाइफलॉन्ग लर्निंग प्रोग्राम्स (आजीवन सीखने के कार्यक्रमों) के माध्यम से हम पेशेवरों और श्रमिकों को उनके कौशल और ज्ञान को उन्नत करने के अवसर दे रहे हैं।
ओआई- आंत्रप्रेन्योर यानी उद्यमी बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? पांच प्वाइंट्स बताएं।
डॉ. सिंह- अगर आप एक सफल उद्यमी बनना चाहते हैं तो ये पांच बातें आपको सदैव याद रखनी चाहिए-
1- जुनून और दूरदर्शिता: अपने बिजनेस आइडिया के प्रति स्पष्ट जुनून रखें और आप जो हासिल करना चाहते हैं, उसके लिए एक मजबूत दृष्टिकोण भी रखें। इससे आपको प्रेरित और केंद्रित रहने में मदद मिलेगी।
2- लचीलापन: उद्यमिता अक्सर असफलताओं और चुनौतियों के साथ आती है। दीर्घकालिक सफलता के लिए लचीला होना और असफलताओं से सीखने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है।
3- बाज़ार अनुसंधान: अपने टारगेट मार्केट यानी जिस बाजार में आप प्रवेश करना चाहते हैं, उसे अच्छी तरह से समझें। ग्राहकों की जरूरतों, प्राथमिकताओं व रुझानों की पहचान करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपका उत्पाद या सेवा, बाजार की मांग को पूरा करती है या नहीं, पहले मार्केट रिसर्च करें।
4- अनुकूलनशीलता: आवश्यकता पड़ने पर चीजों को स्वीकारने या हालात के साथ ढलने और आगे बढ़ने के लिए तैयार रहें। व्यावसायिक परिदृश्य तेजी से बदल सकता है और सफल उद्यमी वही है, जो इन परिवर्तनों पर तत्काल प्रतिक्रिया देने को लेकर सदैव सजग रहे।
5- प्रभावी टीम निर्माण: खुद को एक कुशल और प्रेरित करने वाली टीम का हिस्सा बनाएं। आपके व्यवसाय को बढ़ाने और लंबे समय तक उसे सर्वश्रेष्ठ बनाए रखने के लिए कंप्लीमेंटरी (पूरक) कौशल वाली मजबूत टीम बनाना आवश्यक है।
याद रखें कि उद्यमिता एक यात्रा है और ये बिंदु, इस रास्ते में आपके लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में काम कर सकते हैं।
ओआई- जी-20 में शिक्षा के क्षेत्र को लेकर काफी चर्चा हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लेकर कई देशों और विदेशी संस्थानों ने भारत में निवेश करने का निर्णय लिया है। इससे राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों को कितना फायदा या कितना नुकसान होने की संभावना है? ऐसे में भारतीय शिक्षण संस्थानों को किस तरह की चुनौतियों से दो-चार होना पड़ सकता है? इसके लिए इन संस्थानों को किस तरह की तैयारियां करने की जरूरत है?
डॉ. सिंह- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कारण भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में निवेश पर सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं।
कुछ संभावित लाभ -
निवेश बढ़ने से बुनियादी ढांचे, पाठ्यक्रम और शिक्षण गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, जिससे समग्र शैक्षिक अनुभव में वृद्धि हो सकती है।
निवेश, शिक्षण विधियों और प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, जिससे शिक्षा अधिक आकर्षक और सुलभ हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग, भारतीय संस्थानों में वैश्विक दृष्टिकोण और विशेषज्ञता ला सकता है, जिससे सीखने का माहौल समृद्ध हो सकता है।
निवेश, संस्थानों को कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने, शिक्षा को उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़ने और रोजगार क्षमता बढ़ाने में सक्षम बना सकता है।
कुछ संभावित चुनौतियां -
निवेश से सभी वर्गों (हाशिए पर रहने वाले समुदायों को भी) को लाभ होगा, यह कहना चुनौतीपूर्ण है। शिक्षा में अभिजात्यवाद से बचना महत्वपूर्ण है।
भारत का जटिल नियामक ढांचा, विदेशी संस्थानों और निवेशकों के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है। इन विनियमों का पालन करना, समय लेने वाला और महंगा हो सकता है।
भारत में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आवश्यक निवेश का पैमाना बहुत बड़ा है। बुनियादी ढांचे की कमी पर काबू पाना एक महत्वपूर्ण चुनौती हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों को अपनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो उनकी प्रभावशीलता पर असर डाल सकता है।
चुनौतियों पर काबू पाने के तरीके -
यह सुनिश्चित करना होगा कि निवेश केवल शहरी या विशेषाधिकार प्राप्त क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने पर केंद्रित हो।
नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और नौकरशाही बाधाओं को कम करने के लिए सरकारी निकायों, शैक्षणिक संस्थानों और निवेशकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना भी जरूरी है।
बुनियादी ढांचे के विकास का बोझ साझा करने और कुशल संसाधन के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक और निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना आवश्यक होगा।
अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को सांस्कृतिक प्रशिक्षण में भी निवेश करना चाहिए और अपनी शिक्षण विधियों को भारतीय संदर्भ के अनुरूप बनाना चाहिए।
निवेश के प्रभाव को ट्रैक करने और जरूरी एडजस्टमेंट करने के लिए मजबूत निगरानी और मूल्यांकन तंत्र लागू करें।
कुल मिलाकर, सावधानीपूर्वक योजना और सहयोग के साथ, भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में निवेश फायदेमंद हो सकता है, लेकिन लाभों को व्यापक रूप से वितरित और निरंतर सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करना आवश्यक है।
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