व्यवसाय विचार

एम्बिट फिनवेस्ट और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने की को-लेंडिंग साझेदारी की घोषणा

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Sep 22, 2023 - 4 min read
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आरबीआई का को-लेंडिंग ढांचा एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण का प्रतीक है, जो प्राथमिकता वाले क्षेत्र में ऋण मुहैया करने को बढ़ावा देने के लिए बैंकों और एनबीएफसी की पूरक शक्तियों का उपयोग करता है।

एम्बिट समूह की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) एम्बिट फिनवेस्ट प्राइवेट लिमिटेड ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को ऋण मुहैया करने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर को-लेंडिंग अरेंजमेंट यानी सह ऋण व्यवस्था की सुविधा मुहैया की है।

एम्बिट फिनवेस्ट के सीईओ संजय अग्रवाल ने कहा, “हमें अपनी पहुंच का विस्तार करने और एमएसएमई की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के साथ हाथ मिलाकर खुशी हो रही है। यह रणनीतिक गठबंधन एम्बिट फिनवेस्ट को अपनी सेवाओं को व्यापक भौगोलिक स्पेक्ट्रम तक विस्तारित करने के लिए सशक्त बनाता है, जो कई एमएसएमई को व्यावसायिक ऋण पर प्रतिस्पर्धी ब्याज दरों की पेशकश करता है, जिन्हें पहले उच्च ब्याज दरों के कारण बैंकिंग सेवाओं तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। इसके अलावा, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया जैसे अग्रणी संस्थान के साथ सहयोग करने से एम्बिट फिनवेस्ट को एमएसएमई क्षेत्र में अपने पदचिह्नों का और विस्तार करने में मदद मिलती है।''

को-लेंडिंग पारस्परिक रूप से एक लाभप्रद रणनीति प्रस्तुत करता है, जिसमें छोटे एनबीएफसी, जो अक्सर दूर-दराज के क्षेत्रों में काम करते हैं और विकास और सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, बैंक की मजबूत बैलेंस शीट का लाभ उठाकर अपनी व्यावसायिक पहुंच और आय का विस्तार करने के लिए समर्थन प्राप्त करते हैं। इस बीच, जोखिम और ईनाम साझा करने के माध्यम से बैंक अपनी भौगोलिक पहुंच का विस्तार कर सकते हैं और अपने प्राथमिकता क्षेत्र वाले ऋण दायित्वों को पूरा कर सकते हैं। ऐसी साझेदारियों के अंतिम लाभार्थी एमएसएमई हैं, जो अधिक तेजी से और अधिक किफायती दरों पर ऋण तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।

एम्बिट फिनवेस्ट, एम्बिट ग्रुप की महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है। इसने अब तक विभिन्न उद्योगों में 50,000 से अधिक एमएसएमई व्यवसाय मालिकों को उनके व्यवसाय की वास्तविक क्षमता का एहसास कराने में मदद की है और उन्हें बढ़ने में मदद की है। पिछले पांच वर्षों में, एम्बिट फिनवेस्ट ने 3,500+ करोड़ रुपये मूल्य के ऋण वितरित किए हैं और अपने एयूएम को ~50 प्रतिशत की सीएजीआर पर बढ़ाया है। वर्तमान में इसकी एयूएम 2,750+ करोड़ रुपये है और इसकी 150+ शाखाओं और 1,700+ कर्मचारियों के माध्यम से 11 राज्यों में पहुंच चुके हैं।

को-लेंडिंग

को-लेंडिंग का 'को' जब किसी भी शब्द के आगे लग जाए तो उसका अर्थ होता है- सहभागिता या साहचर्य। वहीं, लेंडिंग का अर्थ है- उधार देना। दोनों को मिला लें तो को-लेंडिंग का मतलब हुआ 'मिलकर उधार देना'। दरअसल, आरबीआई के एक निर्णय के अनुसार, अब बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) दोनों मिलकर ज़रूरतमंद लोगों को कर्ज़ दे सकते हैं। पहले यह काम दोनों अलग-अलग कर रहे थे, लेकिन अब कई बैंक और एनबीएफसी मिलकर ऐसा कर रहे हैं। साल 1956 के कंपनीज़ एक्ट के तहत रजिस्टर्ड ये कंपनियां लोन, स्टॉक, बॉन्ड्स, इंश्योरेंस, चिटफंड वगैरह का व्यापार करती हैं जबकि बैंक, मुख्य रूप से हमारे पैसे को सुरक्षित रखने और उसके लेन-देने का काम करती हैं।

यहां जब भी हम एनबीएफसी की बात करें तो इसका मतलब एनबीएफसी के साथ एचएफसी (हाउसिंग फाइनांस कंपनी) भी होगा। 21 सितंबर 2018 को आरबीआई ने एक नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें उसने बैंक और एनबीएफसी द्वारा सम्मिलित रूप से प्रायोरिटी सेक्टर के ग्राहकों को लोन देने के कुछ नियम तय किए थे। लोन का को-ओरिजिनेशन कैसे होगा, लोन में हिस्सेदारी क्या होगी, सब कुछ बताया गया था। इस अरेंजमेंट में ये भी बताया गया था कि बैंक और एनबीएफसी मिलकर रिस्क और रिवॉर्ड को शेयर करेंगे।

5 नवंबर 2020 को आरबीआई ने एक और नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें लिखा था- ‘स्टेकहोल्डर्स से मिले फीडबैक के आधार पर कर्ज़ देने वाली संस्थाओं को ज्यादा ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी देने का निर्णय लिया गया है। ताकि बैंक और एनबीएफसी अपने सम्मिलित प्रयासों से ज्यादा लाभ कमा सकें। इसके लिए उन्हें रेगुलेटरी गाइडलाइन्स को फॉलो करना होगा। इस रिवाइज्ड स्कीम (जिसे को लेंडिंग मॉडल नाम दिया गया है) का प्रमुख उद्देश्य अर्थव्यवस्था के अनसर्व और अंडरसर्व सेक्टर को बैंक और एनबीएफसी के जरिये कम ब्याज पर क्रेडिट दिलाना है।’ यहां अनसर्व और अंडरसर्व सेक्टर का मतलब है वो छोटे बिज़नेस जिन्हें प्रॉफिट कमाने वाले बड़े फाइनेंस आर्गेनाईजेशंस से पूंजी, पैसा और दूसरे संसाधन आसानी से नहीं मिल पाते हैं। कह सकते हैं कि इस मामले में इन्हें इग्नोर किया जाता है इसीलिए ये फंड्स की कमी का सामना करते हैं।

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