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- कंपनियों के पास हो पूरा डाटाबेस, वापस लें पुरानी बैटरीज: IIT Roorkee
आज के समय में जब हर ओर इलेक्ट्रिक व्हीकल और ग्रीन हाइड्रोजन की बातें की जा रही हैं। पर्यावरण का ध्यान रखने और उसे सुधारने के लिए केंद्र सरकार भी इनके प्रयोग को बढ़ाने के लिए बातें कर रही है। दोनों पर काफी काम भी हो रहा है। ऐसे में यह सवाल सबके मन में उठता है कि आखिर दोनों में से कौन ज्यादा बेहतर है ? अगर हम इलेक्ट्रिक व्हीकल और ग्रीन हाइड्रोजन, दोनों के हर पहलू पर ध्यान देते हुए यह जानने की कोशिश करें तो दोनों में से आप किसे बेहतर कहेंगे? इस सवाल के जवाब में IIT Roorkee के निदेशक प्रोफेसर के. के. पंत क्या कहते हैं, आइए जानें...
हर तकनीक की कुछ खूबियां और कुछ कमियां होती हैं। जब हम उस तकनीक को पूर्ण रूप से देखते हैं और सस्टेनेबिलिटी (निरंतरता), सर्कुलर इकोनॉमी (परिपत्र अर्थव्यवस्था) और इको फ्रेंडली (पर्यावरण-अनुकूल) अप्रोच की बात करते हैं तो कई बातें निकलकर सामने आती हैं। बैटरी के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी। आज के समय में लीथियम बैटरी का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है क्योंकि उसकी एफिसिऐंसी (कार्यक्षमता) ज्यादा है और वह हल्की भी होती है। उसे चार्ज करने या डिस्चार्ज करने में समय कम लगता है। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हर बैटरी की एक लाइफ होती है। माना कि आज उससे कोई प्रदूषण नहीं हो रहा, लेकिन जब उसकी लाइफ पूरी हो जाती है तो उसे फेंकते हुए हम इस बात का ध्यान नहीं रखते कि यह कहां जा रहा है। उसमें कैडमियम, क्रोमियम जैसे कई हेवी मेटल्स होते हैं, जो बाद में हमारी मिट्टी और पानी में चला जाता है। मैं मानता हूं कि जब आप किसी भी तकनीक का प्रयोग करें तो उसके सर्कुलर इकोनॉमी और लाइफ साइकल एसेसमेंट (जीवन चक्र मूल्यांकन) पर विशेष ध्यान दें। बैटरी के मामले में भी यह इश्यु आएगा, आज नहीं तो 10-15 साल बाद। वे बैटरी कहां जाएंगी, कैसे रीसाइकल होंगी, इनका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
कंपनी के पास हो डाटाबेस
हर कंपनी, जो बैटरी सप्लाई कर रही है, उसके पास एक डाटाबेस होना चाहिए कि यह बैटरी कहां जा रही है। कंपनी हर साल कितनी बैटरी बेच रही है, इसका भी डाटा होना चाहिए। तीन साल बाद उस बैटरी को कंपनियों को ही वापस ले लेना चाहिए। हर चीज का पूरा डाटा और रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए ताकि कोई भी चीज बाहर न जाए। सबकुछ कंपनी के पास वापस लौटे। अगर सरकार ऐसी कोई पॉलिसी बनाती है तो यह सब फिर ठीक हो जाएगा। मैं मानता हूं कि यह हर आइटम के लिए होना चाहिए। अगर आप कोई टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन वगैरह कुछ भी खरीदते हैं तो उन्हें लेकर भी सरकार की ऐसी कोई पॉलिसी होनी चाहिए कि कंपनी उसे वापस लेने की जिम्मेदारी ले। जब खरीदार उसे फेंकना चाहे तो वह कंपनी को ही वह वापस लौटाए ताकि उसे कहीं भी फेंका नहीं जाए।
अगर इन सभी बातों का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाए तो बैटरी अच्छा है, अन्यथा ग्रीन हाइड्रोजन बेहतर है। जब हम ग्रीन हाइड्रोजन की बात करते हैं तो वह ग्रीन कैसे बनी, यह जानना बहुत जरूरी है। ग्रीन हाइड्रोजन का कॉन्सेप्ट तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक हाइड्रोजन 150 से 200 रुपये में तक न मिल जाए। ग्रीन हाइड्रोजन व्हीकल में कार्बन डाइऑक्साइड की थोड़ी भी मात्रा नहीं जानी चाहिए। इस हाइड्रोजन को बर्न करेंगे तो क्लीन वॉटर मिलेगा। इसके बाद सवाल आता है कि उस हाइड्रोजन को आप स्टोर कहां करेंगे। अगर आपको 500 किलोमीटर चलना है तो सात किलो हाइड्रोजन चाहिए। इसे कहां स्टोर करेंगे, उसे पाइप में कैसे ले जाएंगे, यह एक बड़ा चैलेंज है। ग्रीन हाइड्रोजन बेस्ट है अगर ये सारी चीजें सॉल्व हो जाएं।
फिलहाल इलेक्ट्रिक व्हीकल और ग्रीन हाइड्रोजन, दोनों पर काम चल रहा है। दोनों की कुछ खूबियां हैं तो कुछ खामियां भी। हमें दोनों की खूबियों को मिलाकर कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन (सीसीयू) के कॉन्सेप्ट के हिसाब से कुछ करने के बारे में सोचना चाहिए।
इस पूरे मुद्दे पर मूलतः तीन बातें महत्वपूर्ण हैं -
1. सर्कुलर इकोनॉमी होनी चाहिए।
2. कोई भी कार्बन डाइ ऑक्साइड उसमें नहीं जाना चाहिए।
3. कोई भी वेस्ट डिस्पॉजल नहीं होना चाहिए। उसको सेव डिस्पॉज करना चाहिए।