इलेक्ट्रिक वाहन

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कई तकनीकों की जरूरत: डेविड बोथे

Nitika Ahluwalia
Nitika Ahluwalia Dec 30, 2024 - 4 min read
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डेविड बोथे के अनुसार, यूरोप की विफलताओं से सीखते हुए भारत को संतुलित और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन, बायोफ्यूल और सिंथेटिक ईंधन जैसी विभिन्न तकनीकों को समानांतर रूप से विकसित किया जाए।

आजकल परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इलेक्ट्रिफिकेशन पर जोर दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, प्रदूषण कम करने का एक प्रमुख उपाय माना जाता है, लेकिन सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भर होना पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही, अन्य तकनीकों को भी समानांतर रूप से अपनाना आवश्यक है ताकि एक स्थिर और प्रभावी समाधान मिल सके।

इलेक्ट्रिक वाहन पर्यावरण के लिए बेहतर हैं क्योंकि इनमें प्रदूषण कम होता है और ये तेल आधारित ईंधनों की बजाय बिजली से चलते हैं। इसके अलावा, इलेक्ट्रिफिकेशन से ऊर्जा की दक्षता भी बढ़ती है। हालांकि, इसके लिए पर्याप्त चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है, जिसे यूरोप जैसे देशों में अभी भी पूरी तरह से स्थापित नहीं किया गया है।

इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ हाइड्रोजन, बायोफ्यूल, और सिंथेटिक ईंधन जैसी तकनीकों को भी विकसित करना महत्वपूर्ण है। इन तकनीकों के उपयोग से परिवहन क्षेत्र के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन से चलने वाले वाहन और बायोफ्यूल से चलने वाले वाहनों का उपयोग बढ़ाने से परंपरागत ईंधन पर निर्भरता घट सकती है।

इलेक्ट्रिफिकेशन के साथ-साथ अन्य विकल्पों को अपनाना भविष्य के परिवहन क्षेत्र के लिए जरूरी है। केवल एक तकनीक पर निर्भर रहना सही समाधान नहीं हो सकता। विभिन्न तकनीकों को एक साथ अपनाने से हम एक लचीला और स्थिर परिवहन प्रणाली बना सकते हैं, जो पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद हो।

इसलिए, हमें सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में नहीं सोचना चाहिए, बल्कि हाइड्रोजन, बायोफ्यूल, और अन्य वैकल्पिक तकनीकों को भी समान रूप से बढ़ावा देना चाहिए। इससे न केवल कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि हर तकनीकी समाधान का उपयोग करके हम परिवहन क्षेत्र को और अधिक टिकाऊ बना सकते हैं।

फ्रंटियर इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर डेविड बोथे का मानना है कि यूरोप की परिवहन नीति से भारत को महत्वपूर्ण सीख मिल सकती है, खासकर कार्बन उत्सर्जन को कम करने और परिवहन क्षेत्र के डिकार्बोनाइजेशन के संदर्भ में। यूरोप ने परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिफिकेशन के जरिए CO2 उत्सर्जन को घटाने के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद, रोड ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में उत्सर्जन में कमी नहीं आ पाई है।

डेविड बोथे ने यूरोप की विफलताओं पर प्रकाश डालते हुए भारत को एक अधिक संतुलित और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी है। उनका कहना है कि भारत को सभी प्रकार की टेक्नोलॉजी, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन, बायोफ्यूल और सिंथेटिक ईंधन, को समानांतर रूप से विकसित करना चाहिए, ताकि कार्बन उत्सर्जन को जल्दी और प्रभावी तरीके से कम किया जा सके। उन्होंने बताया कि यूरोप में डिकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन घटाने) की प्रक्रिया अब तक सफल नहीं रही है, खासतौर पर परिवहन क्षेत्र में।

यूरोप की विफलता और कारण

वर्ष 1990 से यूरोप के अधिकांश क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी देखी गई है, लेकिन परिवहन क्षेत्र में यह उल्टा बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण सड़क परिवहन से होने वाला अधिक उत्सर्जन है।

यूरोप में नीति-निर्माण मुख्य रूप से इलेक्ट्रिफिकेशन पर केंद्रित रहा है। 2035 तक यूरोपीय कानून में "शून्य उत्सर्जन" का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिससे दहन इंजन (कम्बशन इंजन) पर प्रतिबंध लागू हो जाएगा। हालांकि, यह दृष्टिकोण अब तक सफल नहीं रहा है।

उदाहरण के तौर पर, जर्मनी ने 2030 तक 1.5 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहनों का लक्ष्य रखा था, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह लक्ष्य काफी दूर है। इसका मुख्य कारण चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी की सप्लाई में कमी है।

समाधान

डेविड बोथे ने सुझाव दिया कि केवल इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भर रहने के बजाय, विभिन्न प्रकार की टेक्नोलॉजी को समानांतर में अपनाने की आवश्यकता है। इनमें इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन ईंधन, सिंथेटिक ईंधन और सीएनजी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि उनकी एक अध्ययन रिपोर्ट में पाया गया कि अगर परिवहन क्षेत्र को पवन और सौर ऊर्जा पर चलाना है, तो बड़े पैमाने पर ऊर्जा इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होगी।

उदाहरण के लिए, 2030 तक सभी नए वाहन इलेक्ट्रिक होंगे तो 80,000 किलोमीटर नई पावर ट्रांसमिशन लाइन की आवश्यकता होगी, लेकिन वास्तविकता में इतनी तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना संभव नहीं है।

भारत के लिए सुझाव

1. इन्फ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दें: ऊर्जा उपलब्धता और पावरट्रेन का विकास समानांतर होना चाहिए।

2. एक ही समाधान पर निर्भर न रहें: इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन, बायोफ्यूल और सिंथेटिक ईंधन को समान महत्व दें।

3. तकनीकी इनोवेशन को प्रोत्साहित करें: सभी प्रकार की तकनीकों में सुधार और प्रतिस्पर्धा बनाए रखें।

4. लचीला दृष्टिकोण अपनाएं: कठोर नियमों से बचें और सभी प्रौद्योगिकियों को एक साथ अपनाने की दिशा में काम करें।

निष्कर्ष

डेविड बोथे ने बताया कि यूरोप की नीतियों की गलतियों को दोहराने से बचना चाहिए। भारत को एक संतुलित और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करे बल्कि आर्थिक और तकनीकी विकास को भी प्रोत्साहित करे।

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