इंसान की कला और उसका हुनर, उसे फर्श से अर्श तक पहुंचाने का माद्दा रखते हैं। बस जरूरत होती है कि उसे कोई थोड़ा सा निखार दे, ताकि वो कोयले की खान में भी हीरे की चमक से रोशन हो। कुछ ऐसी ही उम्मीद के साथ 'कॉयर कारीगरों के विकास' को ध्यान में रखकर महाराष्ट्र में एक 'प्रदर्शनी सह संगोष्ठी' का आयोजन किया जा रहा है। यहां कॉयर यानि नारियल के छिलकों से अपनी कला का परिचय देने वाले कारीगरों का जमावड़ा होगा, जिसका फायदा कार्यक्रम में शामिल हर शख्स को अवश्य होगा।
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के कंकावली में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) 'एमएसएमई की वृद्धि और विकास के अवसर' पर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी सह प्रदर्शनी आयोजित करने जा रहा है। यह प्रदर्शनी 19 से 21 फरवरी, 2023 तक चलेगी। इस अवसर पर केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री नारायण राणे और एमएसएमई राज्य मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा उपस्थित होंगे।
संगोष्ठी और प्रदर्शनी के लिए एमएसएमई मंत्रालय द्वारा विभिन्न पहलों की योजना बनाई गई है। इसमें उद्यम सहायता पोर्टल के अंतर्गत सहायता प्राप्त अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों को प्रमाण पत्रों का वितरण, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हब (एनएसएसएच) के अंतर्गत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों को प्रमाण पत्रों का वितरण, नवगठित खादी संस्था, जनसमृद्धि खादी ग्रामोद्योग संस्था, सिंधुदुर्ग को चरखा और करघा वितरण शामिल है।
योजनाओं को लेकर जागरुकता
इस आयोजन में 19 से 21 फरवरी तक पीएमईजीपी तथा ग्रामोद्योग लाभार्थियों के लिए तीन दिवसीय प्रदर्शनी, 18 से 20 फरवरी तक नारियल के छिलकों से बने (कॉयर) उत्पादों पर तीन दिवसीय प्रदर्शनी और 19 से 20 फरवरी, 2023 को प्रदर्शनी सहित दो दिवसीय 'विक्रेता विकास कार्यक्रम' का भी आयोजन होगा।
राष्ट्रीय संगोष्ठी एमएसएमई योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाएगी और युवाओं को उद्यमिता अपनाने के लिए प्रेरित करेगी। साथ ही 'आत्मनिर्भर भारत' के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करेगी। उद्यमियों के लिए यह प्रदर्शनी अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने तथा व्यावसायिक अवसरों का पता लगाने का एक अनूठा अवसर होंगी।
आजीविका साधन के रूप में कॉयर
कॉयर उद्योग कृषि आधारित ग्रामोद्योग है, जिससे देश के प्रमुख नारियल उत्पादक राज्यों के सात लाख से अधिक श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। यह निर्यात उन्मुखी उद्योग है, जिसने वर्ष 2018-19 के दौरान देश के लिए 2192 करोड़ रु. (जनवरी, 2019 तक) से अधिक की आय अर्जित की है। कॉयर से जुड़े प्रसंस्करण कार्यकलापों से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा आदि जैसे देश के नारियल उत्पादक राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों को रोज़गार प्राप्त होता है।
कभी भारत के प्रत्येक आवास, विशेषकर दक्षिण भारतीय अवासों में, खुद की रोप कोट मशीन हुआ करती थी और लोग बातचीत करते हुए काम किया करते थे। चटाइयों से लेकर कॉयर प्लांट पोट तक सभी में प्राकृतिक फाइबर कॉयर का उपयोग चलन में था। लेकिन वक्त के साथ, वैश्विक बाज़ार में प्राकृतिक फाइबर एवं इसके उत्पादों का इस्तेमाल चलन से बाहर होता चला गया।
केरल के 'गोल्डन फाइबर' का इतिहास
यदि हम वर्ष 2012 से पूर्व के इतिहास का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि केरल के इस 'गोल्डन फाइबर' ने अपना आधिपत्य खो दिया है और विश्व स्तर पर इसका नगण्य या नहीं के बराबर प्रतिनिधित्व रह गया है। परम्परागत उद्योगों पर भी इसका काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भावी फाइबर के रूप में कॉयर की अहमियत को फिर से कायम करने के लिए दीर्घकालिक वातावरण के सृजन में 'पर्यावरण-अनुकूल फाइबर की प्रासंगिकता' आज चिंता की बात है।
कॉयर को नारियल की हस्क से निकाला जाता है। कॉयर का नाता केरल राज्य से है, जहां बड़े पैमाने पर नारियल के पेड़ लगाए जाते हैं। यहां दक्षिण के समुद्री तट पर संस्कृति से लेकर खान-पान तक सभी जगह नारियल का बहुत अधिक महत्व है। केरल को 'भगवान के देश' के रूप में जाना जाता है। यह राज्य अकेले ही कुल नारियल के उत्पादन का 61 प्रतिशत एवं कुल कॉयर उत्पाद का 85 प्रतिशत हिस्सा प्रदान करता है।
पाश्चात्य संस्कृति का कॉयर उद्योग पर असर
सदियों पूर्व कॉयर ने केरल में अपनी छोटी सी शुरुआत से बड़ा ही लंबा रास्ता तय कर लिया है। वर्तमान में, यह एक व्यावसायिक एवं आधुनिक उद्योग है, जो कि भारत के तटीय क्षेत्र में फैला है। सामान्यतः केरल के अलप्पूझा जिले की सहस्त्रों महिलाएं नारियल हस्क के ढेर उठा कर लातीं हैं तथा उन्हें मशीनों में डाल देती हैं, जिससे कॉयर दैनिक उपयोग के धागों में तब्दील हो जाता है।
हालांकि, पाश्चात्य संस्कृति के रूझान में वृद्धि होने की वजह से कॉयर से संबंधित घरेलू उद्योगों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। समय के साथ, भारत में कॉयर उद्योग समेत कॉयर एवं कॉयर उत्पादों के निर्यात के बाज़ारों का विकास करने के लिए संसद में कुछ अधिनियम बनाये गए। कॉयर उद्योग अधिनियम, 1953 (1953 का 45) के अंर्तगत भारत सरकार ने वर्ष 1954 में कॉयर बोर्ड का गठन किया और पुराना चलन फिर से लौट आया।
केरल के कोच्चि में स्थित कॉयर हाउस इस बोर्ड का मुख्यालय है। भारत के विभिन्न भागों में यह बोर्ड 48 स्थापनाओं का संचालन करता है। यह बोर्ड सभी स्टैकहोल्डर्स की सहायता से मौजूद उद्योगों की मदद करने तथा नए उद्यमों के निर्माण को बढ़ावा देने में जूता है। इससे रोज़गार सृजन एवं आय अर्जन करने सहित कॉयर उद्योग की वृद्धि एवं विकास का संवर्धन करने की सरकार की योजना है।