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- क्या महिलाएं ऑफिस में यौन उत्पीड़न अधिनियम के बारे में जानती है
देश में महिलाओं और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत से कानून बनाए गए हैं। हर महिला को उससे जानना बेहद जरूरी है,तभी तो वो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा पाएगी।आज जब हम महिला सशक्तिूकरण की बात करते हैं, तो यह समझ लेना जरूरी है कि सिर्फ नौकरी करने या स्वावलंबी होने से ही महिलाएं सशक्त नहीं बन सकतीं,इसके लिए जरूरी है कि उन्हें अपने अधिकारों के बारे में भी मालूम हो, पर क्या भारत की शतप्रतिशत महिलाएं अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के बारे में जानती है, आगर वह नहीं जानती तो उन्हे जानना बेहद जरूरी है ताकि आगो कोई भी महिलाओं के साथ कुछ भी होता है तो वह उस अधिनियम के अनुसार अपनी बात को रख सकती है। चलिए जानते है ऑफिस में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न अधिनियम के बारे में।
महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न अधिनियम 9 दिसम्बर, 2013, में प्रभाव में आया था। जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है।
ये अधिनियम बहुत से अन्य प्रावधानों को भी निहित करता है जैसे की शिकायत समितियों को सबूत जुटाने में सिविल कोर्ट वाली शक्तियाँ प्रदान की है, यदि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने में असफल होता है तो उसे 50,000 रुपये से अधिक अर्थदंड भरना पड़ेगा, ये अधिनियम अपने क्षेत्र में गैर-संगठित क्षेत्रों जैसे ठेके के व्यवसाय में दैनिक मजदूरी वाले श्रमिक या घरों में काम करने वाली नौकरानियाँ या आयाएं आदि को भी शामिल करता है।
इस तरह से ये अधिनियम कार्यशील महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिये युक्ति है और इसके प्रावधानों का पालन करने के लिये नियोक्ताओं पर एक सांविधिक दायित्व अनिवार्य कर देता है। हांलाकि, इस अधिनियम में कुछ कमियां भी है जैसे कि ये यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में नहीं रखता बस केवल नागरिक दोष माना जाता है जो सबसे मुख्य कमी है, जब पीड़ित इस अपराध के रुप में दर्ज करने की इच्छा रखती है तब ही केवल इसे एक अपराध के रुप में शिकायत दर्ज की जाती है, इसके साथ ही पीड़ित पर अपने कर्मचारी द्वारा शिकायत वापस लेने के लिये दबाव डालने की भी संभावनाएं अधिक रहती है।
कानून के अनुसार निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को महिला कर्मचारियों की कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिये कानूनी अनिवार्यता के अन्तर्गत लिया गया है लेकिन समस्या इसके लागू करने और इसकी जटिलताओं में है। ये अभी अपने शुरुआती दिनों में है और अधिकांश संगठन, कुछ बड़े संगठनों को छोड़कर, प्रावधान के साथ जुड़े हुये नहीं है, यहां तक कि वो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिये बनाये गये कानून क्या है और इसके लिये क्या अर्थदंड है और क्या इसका निवारक तंत्र है, इन सब नियमों और कानूनों को सार्वजनिक करने वाले नियमों को सूत्रबद्ध भी नहीं करता। यहां तक कि वहां आन्तरिक शिकायत समिति भी नहीं है।
पीओएसएच (यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण) अधिनियम, 2013
पीओएसएच अधिनियम महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने और इस तरह महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है।
पीओएसएच अधिनियम, अनिवार्य अनुपालन के रूप में, दस से अधिक कर्मचारियों वाली प्रत्येक कंपनी को निर्धारित तरीके से एक आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का गठन करने की आवश्यकता है ताकि महिलाओं से किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न की शिकायतों को समयबद्ध और अत्यंत समय में प्राप्त किया जा सके और उनका समाधान गोपनीय तरीके से किया जा सके।
जो व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है वह महिला होना चाहिए, पीओएसएच अधिनियम जेंडर-न्यूट्रल नहीं है।
यह अधिनियम क्या करता है
1.यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता हैl
2.यह क़ानून यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है, और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है।
3.यह कानून हर उस महिला के लिए बना है जिसका किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ होl इस कानून में यह ज़रूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है, वह वहां नौकरी करती हो।
4.कार्यस्थल कोई भी कार्यालय/दफ्तर हो सकता है,चाहे वह निजी संस्थान हो या सरकारी।
व्यवहार
1.इच्छा के खिलाफ छूना या छूने की कोशिश करना जैसे यदि एक तैराकी कोच छात्रा को तैराकी सिखाने के लिए स्पर्श करता है तो वह यौन उत्पीड़न नहीं कहलाएगा।पर यदि वह पूल के बाहर, क्लास ख़त्म होने के बाद छात्रा को छूता है और वह असहज महसूस करती है, तो यह यौन उत्पीड़न है l
2.शारीरिक रिश्ता/यौन सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना जैसे यदि विभाग का प्रमुख, किसी जूनियर को प्रमोशन का प्रलोभन दे कर शारीरिक रिश्ता बनाने को कहता है,तो यह यौन उत्पीड़न है l
3 अश्लील तसवीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना जैसे यदि आपका सहकर्मी आपकी इच्छा के खिलाफ आपको अश्लील वीडियो भेजता है, तो यह यौन उत्पीड़न हैl कोई अन्यकर्मी यौन प्रकृति के हों, जो बातचीत द्वारा, लिख कर या छू कर किये गए हों।
शिकायत कैसे की जानी चाहिए?
शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी वजह से पीड़ित लिखित रूप में शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की ज़िम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने में पीड़ित की मदद करें।
उदाहरण दे कर समझाते है,अगर महिला पढ़ी लिखी नहीं हैऔर उसके पास लिखित में शिकायत लिखवाने का कोई ज़रिया नहीं है तो वह समिति को इसकी जानकारी दे सकती है, और समिति की ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की पीड़ित की शिकायत बारीक़ी से दर्ज़ की जाए l
शिकायत दर्ज करने के बाद क्या होता है?
यदि महिला चाहती है की मामले को कंसिलिएशन की प्रक्रिया से सुलझाया जाए, तो इस प्रक्रिया में दोनों पक्ष समझौते पर आने की कोशिश करते हैं और ऐसे किसी भी समझौते में पैसे के भुगतान द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता है l
यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो जांच की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे आंतरिक शिकायत समिति को 90 दिन में पूरा करना होगा l यह जांच संस्था या कंपनी द्वारा तय की गई प्रकिया पर की जा सकती है, यदि संस्था या कंपनी की कोई तय प्रकिया नहीं है तो सामान्य कानून लागू होगा l समिति पीड़ित, आरोपी और गवाहों से पूछ ताछ कर सकती है और मुद्दे से जुड़े दस्तावेज़ भी माँग सकती हैl समिति के सामने वकीलों को पेश होने की अनुमति नहीं है।
जाँच के ख़त्म होने पर यदि समिति आरोपी को यौन उत्पीडन का दोषी पाती है तो समिति नियोक्ता को आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए सुझाव देगी। नियोक्ता अपने नियमों के अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं जैसे की लिखित माफी, चेतावनी, प्रमोशन या वेतन वृद्धि रोकना, सामुदायिक सेवा की व्यवस्था करना, नौकरी से निकाल देना शामिल है।