आज के समय में हर किसी के पास टू-विलर या फिर फॉर-विलर वाहन होता है और हर कोई बिना वाहन के चलना पसंद नहीं करता है, एक तरह से वाहन अब लोगों की लाइफलान बन चुका है, लेकिन कभी किसी ने यह सोचा है कि वाहन कई पुराने होने के बाद उनके टायर भी ख़राब हो जाते है तो उन टायरों का क्या होता है और कैसे उसे रीसाइक्लिड किया जाता है और केंद्र सरकार ने इस पर कुछ बदलाव भी किये है। चलिए जानते है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल मामले के लिए उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत हर साल लगभग 275,000 टायरों को बेकार छोड़ देता है, लेकिन उनके निपटान के लिए व्यापक योजना नहीं है। इसके अलावा, लगभग 30 लाख वेस्ट टायर को रीसाइक्लिंग के लिए इम्पोर्ट किया जाता हैं। एनजीटी ने 19 सितंबर 2019 को एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स/वेस्ट टायर्स (ईएलटी) के उचित मैनेजमेंट से संबंधित एक मामले में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) को व्यापक वेस्ट मैनेजमेंट करने और वेस्ट टायरों और उनके रीसाइकिल की योजना को पेश करने का निर्देश दिया था। अब हम बात करते है की टायरों को कैसे रीसाइक्लिड किया जाता है।
दिल्ली में बाड़ा हिंदू राव के क्षेत्र में स्थित टायर मार्केट एक ऐसी जगह है, जहां पर आपको छोटे से लेकर बड़े सभी प्रकार के रिसाइकल किए गए टायर सस्ते दामों पर आसानी से मिल जाएंगे। नए टायरों के मुकाबले इन टायरों की कीमत 70 फीसदी तक कम होती है।
टायर व्यापारी थोक के भाव वजन के हिसाब से सैकड़ों की तादाद में टायर खरीदते हैं। उन टायरों में से रिसाइकल होने की हालत में जो टायर होते हैं उन्हें अलग करते है और स्क्रैप में भेजे जाने वाले टायरों को अलग किया जाता है।
रिसाइकल होने वाले टायरों को दिल्ली के बाहर फैक्ट्रियों में रिसाइकल के लिए भेजा जाता है। रिसाइकलिंग की प्रक्रिया के लिए फैक्ट्री में पहुंचे टायरों के सरफेस को सबसे पहले मशीन की सहायता से प्लेन किया जाता है। इसके बाद पूरे टायर को मोटे स्टीकर से कवर किया जाता है, फिर टायर को 2 घंटे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
सूखने के बाद टायर के ऊपर मोटी ग्रिप चढ़ाई जाती है। फिर टायरों को एक बड़ी मशीन में 2 घंटे के लिए रखा जाता है। मशीन में टायरों को लगभग 50 डिग्री सेल्सियस के टेम्प्रेचर पर 2 घंटे तक हीट किया जाता है, ताकि टायरों पर जो ग्रिप लगाई गई है वह अच्छे से चिपक जाए। मशीन से निकालने के बाद टायरों को एक से डेढ़ घंटे के लिए रखा जाता है। इसके बाद टायर नए जैसे हो जाते हैं।
अब नई गाइडलाइन क्या है चलिए बताते है। नई गाइडलाइन में 2022-23 के लिए ईपीआर (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी) दायित्व का उल्लेख है, क्योंकि 2020-21 में निर्मित/आयात किए गए नए टायरों की मात्रा का 35 प्रतिशत, 2023-24 का ईपीआर दायित्व देश में निर्मित/आयात किए गए नए टायरों की मात्रा का 70 प्रतिशत होगा। वर्ष 2021-22 और 2024-25 का ईपीआर दायित्व 2022-23 में निर्मित/आयातित नए टायरों की मात्रा का 100 प्रतिशत होगा।