व्यवसाय विचार

गैर-अंग्रेजी भाषी देशों की हमारी शिक्षा प्रणाली पर है नजर…

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Mar 03, 2023 - 3 min read
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कोरोना काल ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को काफी हद तक बदलने पर मजबूर कर दिया। इस बदलाव को हमारे शिक्षकों और छात्रों ने मिलकर अपनाया और आगे बढ़े। आगे भी कई बदलाव से होकर हमारी इस प्रणाली को गुजरना है, लेकिन इस क्रम में हमें यह नहीं भूलना है कि दुनिया के कई देश अब भी हमारी शिक्षा प्रणाली की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। हमें उनके लिए भी सोचना है।

बीते दिनों 'अपॉर्च्युनिटी इंडिया' ने बेंगलुरु में 'एजुकेशन इनोवेशन समिट 2023' का आयोजन किया। इस दौरान भारतीय शिक्षा पद्धति को केंद्र में लेकर 'विजन 2047' के लक्ष्य को पाने के लिए निजी 'के-12' शैक्षणिक संस्थानों के महत्व पर चर्चा की गई। चर्चा में ऑर्किड द इंटरनेशनल स्कूल की प्राध्यापक डॉ. अन्ना मारिया नोरोन्हा, सतलुज ग्रुप के को-चेयर गुर सेराई, 21-के स्कूल के को-फाउंडर यशवंत राज पारसमल, प्रेसिडेंसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन की निदेशक नफीसा अहमद और जेंडा (इंडिया) के निदेशक गौतम राघवन शामिल हुए। चर्चा के दौरान इन हस्तियों ने बाजार के आकार और अवसरों का विशेषकर ध्यान रखा।

शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहे कारोबारियों के अनुसार, आज के समय में शिक्षा के क्षेत्र में जो चुनौतियां हैं, उन्हें लेकर छात्रों को प्रशिक्षित करने की बड़ी जिम्मेदारी उनके सिर पर है। इस मुद्दे पर 'ऑर्किड द इंटरनेशनल' स्कूल की प्राध्यापक डॉ. अन्ना मारिया नोरोन्हा कहती हैं, "भारत मध्यवर्गीय परिवारों का देश है, जिन्हें रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए लगातार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियां हर उस व्यक्ति के लिए अवसर पैदा करती हैं, जो यहां किसी भी तरह के कारोबार से जुड़ना चाहते हैं। ऐसे में हमारी युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाना और उस राह में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें तैयार करने की जिम्मेदारी भी उनकी ही होती है।"

क्लासरूम मोड से मोबाइल स्क्रीन मोड पर

मारिया बताती हैं, "कोरोना काल ने शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हम सभी लोगों को रातोंरात क्लासरूम मोड से मोबाइल स्क्रीन मोड पर लाकर खड़ा कर दिया। उसने हमें मजबूर कर दिया कि हम अपने सभी टीचर्स को जल्द से जल्द इस काबिल बनाएं कि मोबाइल के जरिये भी वे बच्चों तक अपनी बात पहुंचाने में सहज और सफल हो सकें। यह सब संभव हो पाया क्योंकि इसमें सभी ने अपना सहयोग दिया।"

शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली इन चुनौतियों पर सतलुज ग्रुप के को-चेयर गुर सेराई कहते हैं, "अगर बीएड कॉलेज की बात करें तो हम वैश्विक स्तर पर इसमें काफी पिछड़े हुए हैं। यही वजह है कि हमारे यहां के बीएड कॉलेज से प्रशिक्षित शिक्षक भी वैश्विक स्तर पर अपना कोई अस्तित्व नहीं रख पाते। उनके पास कौशल की कमी होती है। यही वजह है कि हमने पंजाब यूनिवर्सिटी के साथ संपर्क किया और बीएड कॉलेज में शिक्षकों को प्रशिक्षित करके उनके कौशल को बढ़ाने के बजाय साझेदारी में काम करना शुरू कर दिया। वैसे भी, अपना अस्तित्व बचाए रखने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपनी सोच को बड़ा रखें।"

भारतीय शैक्षणिक प्रणाली को लेकर सम्मान

'21-के स्कूल' के को-फाउंडर यशवंत राज पारसमल की मानें तो वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी बोलने वाले देशों से इतर, कई देश ऐसे भी हैं, जिनके मन में भारत की शैक्षणिक प्रणाली को लेकर काफी सम्मान है। वे कहते हैं, "देश से बाहर भी भारतीय स्कूलों की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। कई भारतीय कारोबारी इसे गंभीरता से ले रहे हैं और इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, हमें इस बारे में भी विचार करने की जरूरत है कि आखिर किस तरह से हम भारतीय शिक्षा पद्धति को वैश्विक स्तर पर ले जा सकते हैं?"

प्रेसिडेंसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन की निदेशक नफीसा अहमद कहती हैं, "राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को बड़ी ही ख़ूबसूरती से तैयार किया गया है। यह महत्वाकांक्षी है, इसलिए इससे काफी उम्मीदें की जा सकती हैं। हमें यकीन है कि देश ने जो शैक्षणिक लक्ष्य तय किया है, बहुत जल्द हम उसे पाने में सक्षम होंगे।"

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