कोविड के दौरान जब लोगों को वैक्सीन की जरूरत पड़ी तो सीरम इंस्टीट्यूट और अदार पूनावाला का नाम चर्चा में आया। अदार पूनावाला सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ हैं। उन्होने अपनी पढ़ाई कैंटरबरी के सेंट एडमंड स्कूल से की है। इसके बाद उन्होने वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी से बिजनेस मे ग्रेजुएशन की। विदेश में पढ़ाई करने के बाद अदार वर्ष 2001 में इंडिया लौट आए और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से जुड़े। वर्ष 2011 मे अदार कंपनी के सीईओ बन गए। यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनियों मे से एक है। इस कंपनी की स्थापना वर्ष 1966 में उनके पिता सायरस पूनावाला द्वारा की गई थी। यह होल्डिंग कंपनी पूनावाला इन्वेस्टमेंट एंड इंडस्ट्रीज की एक सहायक कंपनी है। सायरस पूनावाला को 'भारत के वैक्सीन किंग' के नाम से भी जाना जाता है।
कितने एकड़ मे फैला है सीरम इंस्टीट्यूट
करीब 100 एकड़ में फैले सीरम इंस्टीट्यूट को दुनिया में सबसे ज्यादा वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में से एक माना जाता है। कंपनी हर साल अलग-अलग बीमारियों के लिए लगभग 1.3 अरब वैक्सीन का उत्पादन करती है। कंपनी का कहना है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की बनाई वैक्सीन का उपयोग दुनिया के 170 देशों में किया जाता है।
इस कंपनी को ज्यादातर पोलियो की वैक्सीन बनाने के लिए जाना जाता है, जिसने दुनियाभर में इस बीमारी को खत्म करने के लिए चलाए जा रहे अभियान में अहम भूमिका निभाई है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जिन वैक्सीन का उत्पादन करती है, उनमें टिटनस, डिप्थीरिया का टीका, परटूसिस यानी डीपीटी के टीके, सांप के जहर को खत्म करने वाला टीका, टीबी से बचने वाले बीसीजी के टीके, हेपेटाइटिस-बी के टीके, रोटावायरस के टीके, रूबेला यानी एमएमआर के टीके, मीजल्स और मंप के टीके शामिल हैं।
वर्ष 2012 मे कंपनी ने नीदरलैंड स्थित सरकारी वैक्सीन निर्माण कंपनी बिल्थोवेन बायोलॉजिकल का अधिग्रहण किया। फिर 2014 में उन्होने सीरम इंस्टीट्यूट के ओरल पोलियों वैक्सीन की शुरूआत की। वर्ष 2015 मे उनकी कंपनी ने 140 से ज्यादा देशों में आयात किया। दरहसल पहले इस कंपनी का काम भारत तक ही सीमित था। वर्ष 2001 में सीरम 35 दोशों को वैक्सीन की सप्लाई दिया करता था।
परिवार की कहानी
पूनावाला का परिवार ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी में पुणे आया। पार्सी परिवार जहां बसे उन शहरों के नाम उनके नाम में देखने को मिलते है। उसी तरह से अदार के परिवार का नाम पूनावाला पड़ा। आजादी से पहले के दौर में यह परिवार कंस्ट्रक्शन के कारोबार में था, लेकिन उससे ज्यादा इनका नाम घोड़ों के कारोबार से हुआ, आज भी इस परिवार को घोड़ों के कारोबार से लोग जानते है। घोड़ों का कारोबार अदार के दादा सोली पूनावाला ने शुरू किया था। इसके बाद बिजनेस का विस्तार करते हुए उन्होने वैक्सीन के क्षेत्र मे अपना कदम रखा।
उन्होंने घुड़साल बनाया जिसमें अलग किस्म के घोड़ों को रेस के लिए तैयार किया जाता था। ब्रिटिश अधिकारी, बड़े उद्योगपतियों से इस परिवार का रिश्ता घोड़ों के कारोबार के ज़रिए बना। पूनावाला साम्राज्य की नींव इसी कारोबार से पड़ी। वैक्सीन बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत कैसे हुई, दरअसल इसका कनेक्शन भी घोड़ों के कारोबार से जुड़ा हुआ था। अदार के पिता सायरस ने जब घोड़ों के कारोबार को बढ़ाने के बारे में सोचा तो उनका ध्यान एक ऐसी इंडस्ट्री पर गया जिसके बारे में ज़्यादा जानकारी मौजूद नहीं थी और ना ही कोई भविष्य की गारंटी दे सकता था। सायरस ने यह जोखिम उठाया और वैक्सीन बनाने के कारोबार में कदम रखा। यह वह दौर था जब भारत में सीमित स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन होता था और उसमें भी सरकार की भूमिका ज्यादा होती थी।तब मुंबई में हाफ़किन इंस्टीट्यूट वैक्सीन का उत्पादन करती थी। पूनावाला के फ़र्म से जो घोड़े बूढ़े हो जाते थे उनका उपयोग सर्पदंश और टिटनेस का टीका बनाने में होता था। इसकी वजह यह थी कि घोड़ों के रक्त में मौजूद सीरम से एंटीबॉडी का निर्माण किया जाता था। सायरस की नज़र इस पर गई तो उन्होंने अपने घोड़ों का उपयोग खुद ही करने का फैसला किया।
सायरस पूनावाला घोड़ों को मुंबई के हाफ़किन इंस्टीट्यूट को दिया करते थे। वहां के एक डॉक्टर ने सायरस को बताया कि आगर आपके पास घोड़े हैं, ज़मीन है और आप वैक्सीन उत्पादन में आना चाहते हैं तो आपको केवल एक प्लांट स्थापित करना है। इस सलाह में उन्होंने नई इंडस्ट्री के लिए अवसर देखा। वर्ष 1966 में उन्होंने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की स्थापना की।
यह वह दौर था जब भारत सहित दुनिया भर में संक्रामक बीमारियों के खिलाफ सरकारें टीकाकरण का अभियान चला रही थीं, जिसके चलते वैक्सीन रिसर्च, उसके विकास और उसके उपयोग पर ध्यान दिया जा रहा था। जल्द ही सीरम इंस्टीट्यूट ने कई बीमारियों के लिए वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर दिया।
हाफ़किन इंस्टीट्यूट के कई रिसर्चर सीरम आ गए। वर्ष 1971 में विकसित खसरा और कंठमाला रोग के टीके प्रभावी रहे। जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया, सीरम ने इस कार्यक्रम को अवसर के तौर पर देखा। सीरम ने यूरोप और अमेरिकी तकनीक लाकर अपना उत्पादन बढ़ाया और उत्पादों की कीमत सस्ती रखी। हालांकि सामाजिक स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम, मसलन टीकाकरण आज भी सरकार के हाथों में है, ऐसे में हर किसी को सरकार के प्रावधानों और अवरोधों का सामना करना पड़ता है, सीरम को भी इससे गुज़रना पड़ा।
सायरस पूनावाला ने बताया है की कई तरह के परमिट हासिल करने के लिए उसमें महीनों और सालों लग जाते थे। पहले 25 वर्ष तो काफी मुश्किल भरे रहे। इसके बाद हमारी वित्तीय स्थिति बेहतर हुई। पेपरवर्क करने के लिए हमारे पास उपयुक्त लोगों की टीम थी जो दिल्ली जाकर सरकारी अधिकारियों के रहमो-करम पर काम करते थे। ऐसी ही स्थिति आज भी है।
अगर इन सरकारी अधिकारियों का खयाल नहीं रखा जाए तो परमिट हासिल करने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। हालांकि इतने वर्षों के बाद सीरम इंस्टीट्यूट के आवेदन को संदेह की नज़र से नहीं देखा जाता है। सायरस के समय में ही सीरम इंस्टीट्यूट का वैक्सीन उत्पादन में दबदबा स्थापित हो गया। वह दुनिया भर के देशों में वैक्सीन की आपूर्ति करने लगे और सायरस की गिनती दुनिया के अमीर लोगों में होने लगी।
सायरस ने सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत पाँच लाख रुपये से की थी और फोर्ब्स की सूची के मुताबिक़ वे दुनिया के 165वें नंबर के अमीर शख़्स हैं। फोर्ब्स इंडिया की सूची के मुताबिक वे भारत के छठे सबसे अमीर आदमी हैं।कंपनी ने कुछ प्राइवेट इक्विटी के ज़रिए पैसा जुटाने की कोशिश भी की थी लेकिन वह संभव नहीं हो पाया, अगर ऐसा हुआ तो सीरम समूह आम लोगों के बीच पैसा जुटाने के लिए जाता।
कोरोना की वैक्सीन तैयार करने के लिए भी अदार पूनावाला ने तब बड़े निवेश का फैसला लिया जब वैक्सीन को लेकर रिसर्च का दौर शुरू ही हुआ था। उन्होंने मई, 2020 में ऐस्ट्राज़ेनेका से इस बारे में बातचीत की और वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया से जुड़े। एक दौर ऐसा भी आया जब हर साल 100 करोड़ डोज़ वैक्सीन तैयार करने का फ़ैसला लिया गया, लेकिन इसके लिए बड़े निवेश, बड़ी जगह, तकनीक, श्रमिक और कच्चे माल की ज़रूरत होती है। यह भी फ़ैसला लिया गया कि गरीब देशों को सस्ती वैक्सीन मुहैया कराने के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन से जुड़ा जाए।हालांकि कोरोना की वैक्सीन तैयार करने के लिए सीरम ने बड़े निवेश का जोख़िम उठाया। अदार पूनावाला ने कहा है की हमलोग जोख़िम उठाने में इसलिए सक्षम हुए क्योंकि यह लिस्टेड कंपनी नहीं है। अगर ऐसा होता तो हमें निवेशकों, बैंक और कई लोगों को जवाब देने होते।
अदार पूनावाला अपनी लग्जरियस लाइफस्टाइल के लिए भी जाने जाते हैं। जहां, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का कैंपस 100 एकड़ में फैला है। तो अदार के पास अपना 200 एकड़ का अलग फार्म हाउस है। वे मुंबई से पुणे स्थित कंपनी के दफ्तर जाने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग करते हैं। उनके पास अपना प्राइवेट जेट भी है। अदार पूनावाला महंगी कारों के बेहद शौकीन हैं, उनके पास 35 क्लासिक कारों का कलेक्शन है। जिसमें विंटेज सिल्वर क्लाउड और फैंटम रॉल्स-रॉयल्स भी शामिल हैं।
हाली में अदार पूनावाला ने कहा कि ऐसा पहली बार है कि भारत मे बनी कोई वैक्सीन यूरोप मे बेची जा रही है। हमारे पास 20 करोड़ वैक्सीन की डोस है और हम पहले ही यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रेलिया को 40 मिलियन डोस निर्यात कर चुके हैं। उन्होंने बताया हमने निजी अस्पतालों में वैक्सीन की डोस की कीमत और कम कर दी है। हम 225 रूपये चार्ज कर रहे हैं और इसमें अस्पताल वाले 150 रूपये अलग से प्रशासन शुल्क लेते हैं, जो कि 800 से 900 रूपये से काफी कम है। बता दें कि बीते दिनों अदार पूनावाला ने वैक्सीन की कीमतों को लेकर बड़ा ऐलान किया था। उन्होने निजी अस्पतालों के लिए कोविशील्ड वैक्सीन की कीमत 600 रूपये की जगह 225 रूपये करने का फैसला किया था। दूसरी तरफ बच्चों की वैक्सीन को लेकर उन्होने कहा की कोवोवैक्स का उपयोग बच्चों के लिए किया जाएगा। इसे ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा अनुमोदित किया गया है। हम भारत सरकार की प्रतिक्षा कर रहे हैं कि हम इसे कोविन ऐप पर डाल दें ताकि इसे सभी के लिए उप्लब्ध कराया जा सके। उन्होंने कहा की हम प्राइवेट मार्केट के लिए भी इसकी कीमत 225 रूपये ही रखेंगे।