भारत के चंद्रयान-3 ने आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर जैसे ही चांद पर कदम रखा, पूरे देश में खुशियों की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया में एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला दौड़ पड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण अफ्रीका से देशवासियों और इसरो को विशेषतौर पर इसकी बधाई दी। लैंडिंग के सबसे तनाव वाले आखिरी 15 मिनट के समय प्रधानमंत्री ऑनलाइन मौजूदगी के साथ इसरो के विज्ञानियों का संबल बने रहे और इस दौर के साक्षी भी बने।
अमेरिका, चीन और रूस के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन चुका है, जो चांद पर सफलतापूर्वक उतर चुका है। वहीं, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला, भारत दुनिया का पहला देश बन चुका है। निःसंदेह भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। विशेषकर इसलिए, क्योंकि हमारी अंतरिक्ष एजेंसी 'इसरो' काफी कम खर्च में हर महत्वपूर्ण काम को अंजाम देती है। आज 25 किलोमीटर की ऊंचाई से शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की साॅफ्ट लैंडिंग कराई गई।
रूस, अमेरिका, जापान और साउथ कोरिया जैसे देशों में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने को लेकर पहले से ही होड़ मची हुई थी, लेकिन हमने यह बाजी मार ली है। रूस का लूना-25 मिशन फेल होने के बाद भारत के चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग ने इतिहास रच दिया है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना काफी मुश्किल है। यही वजह है कि लूना-25 और चंद्रयान से पहले लाॅन्च हुए सभी यानों ने चंद्रमा की भूमध्य रेखा पर उतरने का प्रयास किया।
मिट्टी की जांच से नई जानकारियां मिलेंगी
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बने गड्ढों में दो अरब वर्षों से सूर्य की रोशनी नहीं पहुंची है। माना जा रहा है कि यहां का तापमान माइनस (-) 230 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। बेहद कम तापमान के कारण यहां की मिट्टी में जमा चीजें लाखों वर्षों से वैसी ही हैं। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यहां की मिट्टी की जांच से कई नई जानकारियां मालूम होगी। चंद्रयान-3 की खोज देश ही नहीं, दुनिया भर के लिए काफी अहम साबित होगी। चंद्रयान-3 के शोध से सौर परिवार के जन्म, चंद्रमा और पृथ्वी के जन्म के रहस्यों जैसी कई बातों का पता चल सकता है। चंद्रयान-3 की खोज चांद पर अर्थव्यवस्था बनाने के बड़े दरवाजे भी खोल देगी। यकीनन हमारे पास वहां की नई जानकरियां होंगी तो वहां बिजनेस के नए-नए तरीके भी हम अपनाएंगे।
कुछ वर्ष पूर्व (25 सितंबर 2009 को) इसरो ने चांद पर पानी होने की घोषणा की थी। चांद पर पानी है तो वहां बेस भी बनाया जा सकता है। माना तो यह भी जा रहा है कि यहां पानी बर्फ के रूप में मौजूद हो सकती है। ऐसे में वहां इंसानों को बसाने की प्लानिंग भी हो सकती है। मालूम हो कि भारत ने जिस हेवी लिफ्ट लाॅन्च व्हीकल से चंद्रयान-3 को लाॅन्च किया है, उसका नाम एलवीएम3-एम4 है। कुछ समय पूर्व एरो स्पेस, स्पेस एक्सप्लोरेशन और लॉन्च सर्विस प्रदाता कंपनी 'ब्लू ओरिजिन' के फाउंडर जेफ बेजोस ने इसरो के एलवीएम3 राॅकेट के उपयोग को लेकर रुचि दिखाई थी। कंपनी इसरो के राॅकेट का उपयोग व्यावसायिक और अंतरिक्ष पर्यटन के लिए करना चाहती है। एलन मस्क की स्पेस एक्स जैसी कई कंपनियां चांद तक जाने की सुविधाएं देना चाहती हैं। वे इसे एक बड़ा बिजनेस मान रही हैं। सरकारों के अलावा आईस्पेस और एस्ट्राॅबाॅटिक जैसी निजी कंपनियां चांद तक कार्गो ले जाने की तैयारी कर रही हैं।
कई क्षेत्रों की कमाई से अर्थव्यवस्था में आएगा उछाल
बात सिर्फ परिवहन विभाग तक नहीं है। भारत के पास जो डाटा होगा, उससे भी बिजनेस किया जा सकता है। कई देश हैं, जो चांद पर सफल लैंडिंग नहीं कर सकते हैं। वे शोध के लिए भारत से करोड़ों डाॅलर में डाटा खरीद सकते हैं। इससे वे चांद पर गए बगैर भी कुछ शोध कर सकते हैं। चांद पर पानी मिलता है तो उस पानी से ऑक्सीजन बनाया जा सकता है। इससे भविष्य में वहां बेस भी बनाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार साल 2030 तक चांद पर 40 और साल 2040 तक 1000 अंतरिक्ष यात्री रह रहे होंगे। इसके लिए चंद्रयान-3 की रिसर्च काफी काम आएगी।
साल 2040 तक चंद्रमा की अर्थव्यवस्था के 4200 करोड़ डाॅलर के होने का अनुमान है। यह अनुमान दुनिया की सबसे बड़ी प्रोफेशनल सर्विसेज फर्मों में से एक और चार बड़ी लेखा फर्मों में से सबसे बड़ी फर्म 'प्राइस वाॅटरहाउस कूपर' (पीडब्ल्यूसी) का है। इसके अनुसार चांद तक परिवहन का व्यवसाय 2040 तक 42 अरब डाॅलर तक जा सकता है। इसके अनुसार चंद्रमा की अर्थव्यवस्था के 2026 से 2030 तक 19 अरब डाॅलर, 2031 सेे 2035 तक 32 अरब डाॅलर और 2036 से 2040 तक 42 अरब डाॅलर तक जाने का अनुमान जताया गया है।
एसोचैम ने इसरो के विज्ञानियों और इंजीनियरों को दी बधाई
भारत के वाणिज्य संघों की प्रतिनिधि संस्था 'भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल' (एसोचैम) ने चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने के इस ऐतिहासिक मौके पर इसरो के विज्ञानियों और इंजीनियरों को बधाई दी। एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा, "यह चंद्रमा पर भारत का वक्त है।" उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस बात को याद दिलाया कि किसी भी देश के लिए पहली बार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना अब तक संभव नहीं हो पाया था। ऐसे में सबसे पहले वहां हमारे कदम पड़ना विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की ठोस नींव पर आधारित अन्वेषण की हमारी यात्रा में, सभी बाधाओं को पार करने के भारत के नए संकल्प को दर्शाता है।
इस खास मौके पर इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ को बधाई देते हुए सूद ने कहा, "भारत के लिए विज्ञानियों की आपकी टीम बेशकीमती है। जैसे ही आपने सफलता भरे ये शब्द कहे, "भारत चंद्रमा पर है", पूरे भारत ने दिल से आपके विज्ञानियों को सलामी दी। ब्रह्मांड में अपने देश की खोज को जारी रखने की उनकी बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा देश सलाम करता है।"
सूद ने कहा कि इसरो ने दुनिया के सामने अविश्वसनीय रूप से यह दिखा दिया है कि सीमित बजट में भी विवेकपूर्ण तरीके अपनाकर कैसे बड़ी से बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। इसरो के काम करने की इस शैली को लेकर दुनिया के विकसित देशों की आंखें खुल गई हैं। उन्हें समझ आने लगा है कि वित्तीय संसाधनों की कमी भी राष्ट्रीय लक्ष्य को पाने के रास्ते की बाधा नहीं बन सकती। आज चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के भारत के लक्ष्य की दिशा में हमारे निर्णायक कदम हैं।