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- चार में से तीन उपभोक्ता रेस्टोरेंट में सर्विस चार्ज देने को तैयार नहीं:सर्वे
उपभोक्ताओं ने सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) द्वारा रेस्तरां और होटलों को खानें के बिलों पर सर्विस चार्ज लगाने से रोकने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थगन पर नाराजगी दिखाई है। किसी भी रेस्तरां में जाने वाले 70 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि वे सर्विस टैक्स का भुगतान नहीं करेंगे, या फिर ऐसे रेस्टोरेंट्स में जाएंगे ही नहीं जो खाने के बिल पर सर्विस चार्ज लगाते हैं। हालांकि 28 प्रतिशत ने यह भी कहा कि अगर सर्विस चार्ज बिल का हिस्सा हो, तो वे इसका भुगतान कर सकते हैं। वहीं, दो प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है।
लोकल सर्किल ने एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया जिस से पता चला कि भारत के 291 जिलों के उपभोक्ताओं से 21,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं मिलीं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि पहले चरण के सर्वे में उपभोक्ताओं से केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकार (सीसीपीए) के आदेश पर दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थगन के बारे में उनके विचार और रेस्तरां में जाने के दौरान उनके दृष्टिकोण के बारे में पूछा गया था। उपभोक्ताओं का तर्क यह है कि वातानुकूलित रेस्तरां में डिनर करने पर सर्विस की क्वालिटी के अनुसार कर्मचारियों को सामान्य तरीके से टिप देते हैं।
लोकल सर्किल के इस सर्वे में उत्तरदाताओं में 66 प्रतिशत पुरुष थे जबकि 34 प्रतिशत महिलाएं थीं। 44 प्रतिशत उत्तरदाता टियर 1 से थे, 33 प्रतिशत टियर 2 से थे और 23 प्रतिशत उत्तरदाता टियर 3, 4 और ग्रामीण जिलों से थे। सर्विस चार्ज का विरोध करने वालों से पता चलता है कि 20 प्रतिशत ने शुल्क का भुगतान नहीं करने तथा इस मामले को ऊपरी अदालतों तक ले जाने की योजना बनाई है। वहीं, 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उन रेस्तरां में नहीं जाने का फैसला किया है जो सर्विस चार्ज लेते हैं, जबकि 13 प्रतिशत ग्राहक तो अब किसी भी रेस्तरां में जाने का ही विचार त्यागने की बात करते हैं।
फैसले से उपभोक्ता कतई खुश नहीं
लोकल सर्किल के इस सर्वे से ऐसा लगता है कि उपभोक्ताओं को सर्विस चार्ज लगाने का फैसला कतई रास नहीं आया है और रेस्टोरेंट में जाकर खाने-पीने के प्रति वे उदासीन हो रहे हैं। वैसे, रेस्टोरेंट्स एसोसिएशन अपनी इस राय पर कायम हैं कि सर्विस चार्ज कर्मचारियों और उपभोक्ताओं की भी मदद करता है। वैसे, उपभोक्ताओं को सर्विस चार्ज देने में सबसे अधिक दिक्कत उन मामलों में हो रही है जहां रेस्टोरेंट की सेवा ठीक नहीं है।
लोकल सर्किल ने उपभोक्ताओं से पूछा कि क्या पिछले पांच वर्षों में उनके पास इस तरह के एक या अधिक अनुभव हैं, जहां एक वातानुकूलित रेस्तरां द्वारा सर्विस चार्ज बिल में लगाया गया था, लेकिन सेवा उम्मीदों के अनुरूप नहीं थी। 71 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में इस तरह का अनुभव हुआ है। खराब या औसत सेवा अनुभव वाले लोगों में, 23 प्रतिशत ने कहा कि यह एक या दो बार हुआ था, 18 प्रतिशत ने कहा कि यह तीन से पांच बार हुआ और इससे भी बदतर, 24 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने खुलासा किया कि यह 6 से 10 बार हुआ था, जबकि 6 प्रतिशत ऐसे लोग थे, जिन्हें बिल बहुत ज्यादा सर्विस चार्ज लगाने के बावजूद बेहद खराब सर्विस का अनुभव हुआ था।
सीसीपीए के चार जुलाई के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) और फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश ने सर्विस चार्ज लगाने के विवादास्पद मुद्दे को फिर से खोला है।
निष्कर्ष
सर्वेक्षण में स्पष्ट किया गया है कि बड़े पैमाने पर सीसीपीए के दिशा-निर्देशों पर दिल्ली उच्च न्यायालय के रोक से खुश नहीं हैं। लगभग 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने लड़ाई करने और अतिरिक्त शुल्क का भुगतान नहीं करने की योजना बनाई है। वहीं, 37 प्रतिशत ऐसे किसी भी रेस्तरां में जाने से बचेंगे जो सर्विस चार्ज वसूलते हैं।
13 प्रतिशत लोगों ने शर्मिंदगी की दुविधा और अनिश्चितता से बचने के लिए रेस्तरां जाना बंद कर दिया है। साथ ही, सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन 71 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने बीते पांच वर्षों में खराब सर्विस के बावजूद सर्विस चार्ज लगाने की बात कही है, उनकी बातें पूरी तरह गलत नहीं हैं।
कुल मिलाकर, सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि अगर रेस्टोरेंट्स को सर्विस चार्ज लिए बिना कारोबार चलाने में दिक्कत हो रही है तो उन्हें खाद्य पदार्थों की कीमत में बढ़ोतरी कर इसकी भरपाई करनी चाहिए। लेकिन रेस्टोरेंट्स को यह सुनिश्चित करना ही होगा कि अगर उन्होंने सर्विस चार्ज लिया है, तो सेवा की गुणवत्ता बेहतर रखनी ही होगी।