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- छोटी दुकानों के आगे बड़े अक्षरों में मराठी साइन बोर्ड लगाना ज़रूरी
महाराष्ट्र सरकार ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों से पहले राज्य में सभी दुकानों के लिए मराठी में साइन बोर्ड लगाने को अनिवार्य कर दिया है।
सीएम उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2017 को मंजूरी दी है। दस से कम कर्मचारियों वाली दुकानों को मराठी में साइन बोर्ड लगाना अनिवार्य है। मराठी-देवनागरी लिपि का फ़ॉन्ट अन्य भाषाओं की तुलना में छोटा नहीं हो सकता।
रिपोर्टों के अनुसार, मराठी साइन बोर्ड पर निर्णय शिवसेना की बीएमसी चुनावों के लिए मराठी वोट बैंक को लुभाने का प्रयास है, जो कुछ महीनों में होने की संभावना है।
मराठी भाषा के मंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता सुभाष देसाई ने कहा कि कानून लागू होने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने देखा कि दस से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठान और दुकानें नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं।
राज्य सरकार को ऐसी शिकायतें मिली थीं और इसके निवारण की मांग की गई थी। इसलिए, कैबिनेट ने खामियों को दूर करने के लिए 2017 अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया। इसलिए छोटी दुकानों को भी बड़ी दुकानों की तरह मराठी में अपने बोर्ड लगाने होंगे।
अब से हर दुकानदार को अपनी दुकान का नाम मराठी में लिखना होगा। साथ ही दुकान पर लगी पट्टी में मराठी भाषा में लिखा हुआ नाम बड़े अक्षरों में लिखना होगा। बोल्ड अक्षरों में दुकानों के नाम लिखने का आदेश खास तौर से उन दुकानदारों के लिए दिया गया है जिनकी दुकानों में नाम की पट्टी बड़े अंग्रेजी के अक्षरों में लिखी हुई होती थी और खानापूर्ति के लिए किसी एक साइड में मराठी में भी छोटे अक्षरों में नाम लिखे जाते थे।
मंत्री ने कहा कि सड़क के किनारे सभी दुकानों पर नेमप्लेट अब से मराठी लगाई जाएंगी क्योंकि अधिकांश प्रतिष्ठानों में दस से कम कर्मचारी हैं।उन्होने आगे कहा की मराठी-देवनागरी लिपि के अक्षरों को अन्य लिपियों के अक्षरों की तुलना में छोटे आकार में नहीं रखा जा सकता है और संशोधन को प्रभावी बनाने के लिए विधानसभा के बजट सत्र में एक विधेयक पेश किया जाएगा।
पिछले 2 वर्षों में महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में गठबंधन सहयोगी शिवसेना ने मराठी भाषा पर अपना एजेंडा आगे बढ़ाया है।
पिछले साल जुलाई में, राज्य विधायिका ने सभी सरकारी कार्यालयों में प्रशासनिक कार्यों में मराठी भाषा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम 1964 में संशोधन करने वाला विधेयक पारित किया था।
राज्य में सभी दुकानों के बोर्ड मराठी में अनिवार्य किए जाने के राज्य मंत्रिमंडल के बुधवार को पारित किए आदेश को लेकर व्यापारियों में नाराजगी है। मुंबई के रिटेल व्यापारियों की सबसे बड़ी संस्था फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स असोसिएशन के अध्यक्ष वीरेन शाह ने इस फैसले को महामारी के दौर में व्यापारियों पर एक और आघात बताया है। दरअसल महाराष्ट्र में दुकानों में बोर्ड पर मराठी नाम लिखने को लेकर फैसला 2017 में ही किया गया था लेकिन व्यवहार में ये लागू नहीं हो पा रहा था।
आपको को बता दे महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी दफ्तरों में मराठी भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य करने का आदेश दिया था। राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने सरकारी दफ्तरों को एक नया सर्कुलर जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि सभी कर्मचारी कामकाज के लिए मराठी भाषा का इस्तेमाल करेंगे। ऐसा नहीं करने वाले अधिकारी और कर्मचारी का इन्क्रीमेंट रोक दिया जाएगा।
हाल में महाराष्ट्र सरकार ने यह आदेश जारी किया था कि राज्य सरकार का समूचा काम-काज मराठी में होगा, लेकिन नौकरशाहों ने सरकार के इस आदेश को ठंडे बस्ते में डाल रखा है। आज भी सरकारी आदेश और गाइडलाइंस मराठी के अलावा अंग्रेजी में भी दी जाती हैं। व्यापारियों का कहना है कि जब सरकार ही मराठी इस्तेमाल नहीं करती, तो उनसे जबरदस्ती क्यों की जा रही है?
शिवसेना शुरू से ही मराठी भाषा के इस्तेमाल का मुद्दा उठाती रही है। फरवरी 2020 में महाराष्ट्र विधायिका में एक विधेयक पारित किया गया, जिसमें राज्य की क्षेत्रीय भाषा को सभी बोर्डों के स्कूलों में पहली से 10 वीं कक्षा तक अनिवार्य विषय बना दिया गया। इस आदेश का उल्लंघन करने वाले स्कूल से एक लाख रुपये जुर्माना वसूलने का प्रावधान किया गया था।