ओपन नेटवर्क प्लेटफॉर्म पर छोटी-बड़ी कोई भी कंपनी बिना किसी भेदभाव के अपने उत्पाद रख सकेगी और अमेजन व फ्लिपकार्ट जैसी दिग्गज कंपनियों की बादशाहत खत्म होगी।पिछले कुछ समय के दौरान अमेरिकी रिटेलिंग दिग्गजों अमेजन और फ्लिपकार्ट के खिलाफ घरेलू किराना स्टोर्स और छोटी-छोटी निर्माता व विक्रेता कंपनियों ने उनसे भेदभाव समेत अन्य शिकायतों के साथ मोर्चा खोला हुआ था। इन कंपनियों की शिकायतों के निवारण के लिए सरकार ने शुक्रवार को ऐसी पेशकश की है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह भारतीय ऑनलाइन रिटेलिंग की शक्ल-सूरत को आने वाले दिनों में पूरी तरह बदलकर रख देगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेेतृत्व वाली केंद्र सरकार शुक्रवार को ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स यानी ओएनडीसी नामक प्लेटफॉर्म लांच कर रही है। इसकी शुरुआत दिल्ली-एनसीआर समेत पांच शहरों से करने की तैयारी है, जिसे बाद में अन्य शहरों तक विस्तार दिया जाएगा। जानकारों का कहना है कि यह प्लेटफॉर्म ऑनलाइन बाजार में न सिर्फ वालमार्ट और फ्लिपकार्ट जैसी दिग्गज कंपनियों की बादशाहत खत्म करेगा, बल्कि घरेलू बाजार में छोेटे-बड़े सभी विक्रेताओं को समान अवसर मुहैया कराकर ऑनलाइन रिटेलिंग को तेजी से फलने-फूलनेे में और मदद करेगा।
क्यों पड़ी ओएनडीसी की जरूरत
ऑनलाइन रिटेलिंग के मामले में भारत दुनियाभर में सबसे तेजी से विकास कर रहे बाजारों में एक है। ऐसे में घरेलू कंपनियों के अलावा विदेशी दिग्गजों ने भी इस बाजार में अपनी पैठ मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन्हीं कोशिशों को धार देने के लिए खासतौर पर पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान अमेरिकी रिटेलिंग दिग्गजों अमेजन इंक और वालमार्ट अपनी सहयोगी इकाई फ्लिपकार्ट के माध्यम से ने भारतीय बाजार में अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से गाहे-बगाहे डिस्काउंट और ऑफर्स की बरसात सी की हुई है। उनके इन ऑफर्स से ग्राहकों को जो भी और जितना भी फायदा मिला हो, लेकिन देशभर के किराना दुकानदारों और इन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से सामान बेच रहे छोटे कारोबारियो ने इन कंपनियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनकी दो मुख्य शिकायतें रही हैं। एक यह कि ये ऑनलाइन रिटेलिंग कंपनियां जिस तरह के डिस्काउंट्स दे रही हैं, वह घरेलू किराना कारोबारियों द्वारा दिया जाना बिल्कुल संभव नहीं है। भारत में छोटे कारोबारियों के संगठन फियो ने तो पिछले करीब दो वर्षों के दौरान कई बार सरकार से इन कंपनियों की यह कहकर शिकायत की है कि ये कंपनियां घरेलू किराना कारोबार को पूरी तरह खत्म कर देना चाहती हैं। हालांकि विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में देश के रिटेलिंग कारोबार में ऑनलाइन सेग्मेंट की आठ प्रतिशत से कम ही हिस्सेदारी है। लेकिन भारत में ई-कॉमर्स के पूरे बाजार की करीब 80 प्रतिशत हिस्सेदारी पर सिर्फ अमेजन और फ्लिपकार्ट का कब्जा है।
अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी अमेरिकी ऑनलाइन दिग्गज कंपनियों के खिलाफ घरेलू छोटे कारोबारियों और निर्माताओं की दूसरी शिकायत बेहद महत्वपूर्ण है और उसके निवारण में ओएनडीसी नामक यह पहल बेहद कारगर होने की बात कही जा रही है। घरेलू कारोबारी कहते हैं कि इन प्लेटफॉर्म्स पर उन्हें उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है, उनसे ज्यादा शुल्क लिया जा रहा है और उनके उत्पादों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म के लिए चुनिंदा रिटेलरों के साथ समझौता कर उनके साथ विशिष्ट व्यवहार करती हैं। करीब दो वर्ष पहले ऐसी शिकायत भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग यानी सीसीआई से छोटे रिटेलरों ने की थी, जिसकी जांच के तहत दो दिन पहले अमेजन के प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी क्लाउडटेल पर छापेमारी भी की गई है।
जानकारों का कहना है कि अगर देश के छोटे कारोबारियों को ऐेसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाए जहां उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो, तो देशभर के कारोबारियों को इससे बड़ा फायदा होगा। इससे उन स्थानीय कारीगरों और हस्त-शिल्पकारों को भी मदद मिलेगी, जो अपने उत्पादों के लिए भेदभावरहित मंच की तलाश कर रहे हैं।
नीलेकणि ने संभाला है जिम्मा
जानकारों का यह भी कहना है कि जिस तरह से इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को यह जिम्मा दिया गया है, उसे देखते हुए इस कार्यक्रम की सफलता में कोई संदेह नहीं है। उल्लेखनीय है कि नीलेकणि भारत में आधार जैसे कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लांच कर चुके हैं और यूपीआई को लोकप्रिय बनाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है।
ओएनडीसी से छोटे रिटेलर्स को क्या फायदा होगा
ओपेन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स से रिटेलर्स को कारोबार में लागत को कम करने में मदद मिलेगी और साथ ही आपूर्ति लागत को कम करने की भूमिका काफी अहम होगी। ओपेन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स का उद्देश्य आनलाइन प्लेटफार्म को सरल बनाना है जहां व्यापारी और ग्राहक छोटे से लेकर बड़ी चीज़ों को खरीद और बेंच सकें। सरकार की इस पहल के पीछे उन कंपनियों से टक्कर लेना है जो देश के रिटेल मार्केट पर अपना कब्जा जमा चुकी है।
एक तरह से छोटी दुकानों को रिटेल मार्केट में अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, क्योकि छोटे दुकानदार थोक के भाव में समान खरीदते है जो उन्हे रिटेल मार्केट में सस्ता मिलता है और वह किसी भी माध्यम से अपने सामान को बेचकर एक अच्छा लाभ कमाते है।
सूत्रों के अनुसार ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स को 17 बैंकों और वित्तीय संस्थानों से अपने प्रोजेक्ट के पहले चरण के लिए 157.5 करोड़ रुपये का फंड मिला है।प्लेटफॉर्म को अगले महीने कुछ अन्य खिलाड़ियों से फंड मिलने की उम्मीद है, जो कुल निवेश की गई राशि को 200 करोड़ रुपये तक ले जा सकता है।
अब तक ओपेन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स को भारतीय गुणवत्ता परिषद, प्रोटीन, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग बैंक (सिडबी), स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से निवेश मिला है।
ई-कॉमर्स को लेकर सरकार की क्या है नई नीति
इस प्लैटफॉर्म में सिर्फ वह ई-कॉमर्स कंपनी अपने सामानों की बिक्री करेगी जिनका उत्पादन वह खुद नही करता है। इसमें यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई वेंडर किसी पोर्टल पर ज्यादा-से-ज्यादा कितने सामान की बिक्री कर सकता है। नई नीति में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर किसी सप्लायर को विशेष सुविधा दिए जाने पर भी रोक लगाई गई है।
नई नीति के अनुसार कैशबैक, एक्सक्लूसिव सेल, ब्रैंड लॉन्चिंग, अमेजन प्राइम या फ्लिपकार्ट प्लस जैसी विशेष सेवाएं आदि पर रोक लगने जा रही है क्योंकि सरकार इन ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स को सचमुच निष्पक्ष बनाना चाहती है।
नियमों के कठोर होने से अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियों को सबसे बड़ा झटका लगने वाला है। वे बड़े-बड़े डिस्काउंट ऑफर्स के जरिए ग्राहकों को लुभाने में कामयाब रहे हैं लेकिन, नया नियम लागू होने पर ऐसा संभव नहीं हो पाएगा।
अगर किसी कंपनी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों के शेयर हैं या उस कंपनी की इन्वेंटरी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों का कंट्रोल है तो उसे उस मार्केटप्लेस प्लैटफॉर्म पर प्रॉडक्ट्स बेचने की अनुमति नहीं होगी। यानी, किसी ऑनलाइन मार्केटप्लेस से जुड़ी किसी भी कंपनी को उस मार्केटप्लेस पर उत्पादों की बिक्री नहीं करने दिया जाएगा। इसका मतलब है कि अब क्लाउडटेल अमेजनपर अपने उत्पाद नहीं बेच सकती है क्योंकि वह अमेजन और नारायणमूर्ति की कैटमैरन की जॉइंट वेंचर है।
नई नीति में इन्वेंटरी आधारित प्रावधानों को भी कठोर बनाया गया है। अगर किसी वेंडर की इन्वेंटरी की 25 प्रतिशत से ज्यादा की खरीद मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियां करती हैं, तो उसे ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के कंट्रोल की इन्वेंटरी ही माना जाएगा। इस प्रावधान से किसी ब्रैंड या सप्लायर किसी एक मार्केटप्लेस के साथ एक्लूसिवली नहीं जुड़ पाएंगे जैसा कि कई मोबाइल और वाइट गुड्स ब्रैंड्स करते रहे हैं।
नया नियम लागू होने के बाद ऑनलाइन शॉपिंग पर बड़ी छूट मिलना संभव नहीं हो पाएगा। साथ ही उन्हें मुफ्त या कैशबैक जैसी सुविधाएं भी नहीं मिल पाएंगी। ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को किसी भी रूप से खुद से जुड़े वेंडरों को काफी सेवाएं देने में काफी सतर्कता बरतनी होगी और उन्हें पक्षपात नहीं करना होगा। इससे कैशबैक और फास्ट डिलिवरी जैसी योजनाएं खत्म हो जाएंगी।
ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर वेंडरों को 25 प्रतिशत से ज्यादा प्रॉडक्ट्स को बेचने से रोका गया है, इसलिए कई छोटे आंट्रप्रन्योर्स को झटका लगेगा, खासकर सीमित उत्पादों का कारोबार करने वालों को। इन छोटे वेंडरों को नई जरूरतें पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी और इन्वेंटरीज में निवेश करना होगा।
नई गाइडलाइंस का सबसे बड़ा फायदा सुई से सीमेंट तक बेचने वाली बड़ी कंपनियों को होगा। पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन मार्केटप्लेस ने इन कंपनियों को बड़ा झटका दिया था। ऑनलाइन कंपनियों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए डिस्काउंट्स और कैशबैक्स जैसे आकर्षक ऑफर्स दिए। साथ ही, घर में ही सामान पहुंचाने का भी लाभ उन्हें मिला। अब जब कैशबैक्स और डिस्काउंट्स पर लगाम लगने जा रहा है, इससे वेंडर्स को लाभ होगा क्योंकि अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ग्राहकों के लिए बहुत आकर्षक नहीं रह जाएंगे। अखिल भारतीय व्यापारी संघ ने सरकार की नई नीति का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स और मल्टिनैशनल कंपनियों ने भारत में रिटेल व्यापार पर कंट्रोल करने के लिए हर तरह की रणनीति अपनाई है।
अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनीयों से टक्कर लेने के लिए जिन छोटी-छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों के पास अपार संसाधन नहीं हैं, उनके लिए नई नीति किसी वरदान से कम नहीं। एमाजॉन जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर खास वेंडरों को विशेष सुविधाएं दिए जाने से परेशान छोटे वेंडरों के लिए खुशखबरी है। ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग या इजी फाइनैंस ऑप्शन से संबंधित कोई सर्विस अब सभी वेंडर्स को देना होगा, न कि किसी खास को। ई-कॉमर्स कंपनियां इन विशेष सेवाओं के लिए किसी थर्ड पार्टी सेलर से अतिरिक्त रकम नहीं वसूल सकतीं।
ई-कॉमर्स पर नई नीति का असर विदेशी निवेश और नई नौकरियों पर भी पड़ेगा। अमेजन ने अपनी भारतीय इकाई में अरबों डॉलर निवेश किए जबकि वॉलमार्ट ने इसी वर्ष फ्लिपकार्ट को 16 अरब डॉलर में खरीदा। कारोबार बढ़ने के कारण अमेजनऔर फ्लिपकार्ट ने बड़ी संख्या में वेयरहाउस बनाए और सप्लाइ चेन से जुड़ी नौकरियां पैदा कीं। अब नई नीति से उनके कारोबार की वृद्धि की गति थम सकती है, जिसका सीधा असर निवेश और नौकरियों पर पड़ेगा।