व्यवसाय विचार

दवा कंपनियों के लिए इसलिए जरूरी है रिवाइज्ड गुड मैन्युफैक्चरिंग नार्म्स

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Oct 18, 2023 - 5 min read
दवा कंपनियों के लिए इसलिए जरूरी है रिवाइज्ड गुड मैन्युफैक्चरिंग नार्म्स image
हाल ही में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस यानी कि जीएमपी के मानकों में संशोधन किया गया। लेकिन क्या आपको पता है कि ये नॉर्म्स क्या होते हैं? या फिर किसी भी दवा कंपनी को खोलने के लिए इनका पालन क्यूं जरूरी है? अगर नहीं तो भी परेशान न हों क्यूंकि इस आर्टिकल में हम आपको इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी दे रहे हैं...

दवा कंपनी शुरू करने जा रहे हैं और आपको नहीं पता है कि गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस यानी कि जीएमपी क्या होता है? तो एक बार इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें। यहां हम आपको बता रहे हैं कि क्या होता है गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस मानक और इसमें क्या संशोधन किया गया है और क्यूं किसी भी दवा कंपनी के लिए इन जीएमपी के परिवर्तित किये हुए मानकों का पालन करना अत्यंत जरूरी है? दरअसल हाल ही में भारत सरकार ने सभी फार्मास्यूटिकल कंपनियों के लिए गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस मानक में संशोधन का निर्देश जारी किया। साथ ही यह भी कहा गया कि ऐसी दवा कंपनियां जिनका व्यवसाय 250 करोड़ से अधिक का है, वे सभी छह महीने के अंदर और जिनका बाजार 250 करोड़ रूपए से कम का है वे सभी एक वर्ष के अंदर ही सरकार द्वारा जीएमपी के संशोधित नियमों को अपने व्यवसाय में लागू कर लें।

सबसे पहले जान लें कि क्या होता है गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी)?

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस से आशय है कि जो भी वस्तु ग्राहक को मिली है विनिर्माण कंपनी उसकी गांरटी लेती है कि वह वस्तु सख्त प्रोटोकॉल का पालन करते हुए निर्मित की गई है। इसमें ग्राहक को यह भरोसा दिलाया जाता है कि अमुक वस्तु का प्रयोग करना किसी भी प्रकार से सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं है। यानी कि यह एक ऐसी प्रणाली है, जो यह गांरटी देती है कि उत्पादों का उत्पादन और नियंत्रण तय मानकों के आधार पर ही किया गया है।

दवा कंपनियों के लिए क्यूं जरूरी है गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस का पालन

दरअसल दवा कंपनियों के लिए इसे इसलिए जरूरी करार दिया गया है ताकि यदि उत्पादन में किसी भी प्रकार का जोखिम पाया जाए तो उसे समय रहते ही चेक करके सही किया जा सके। मसलन दवाइयों में किसी भी प्रकार का संदूषण (ऐसे अवांछित पदार्थ जो कि दवा को अयोग्य बना देते हैं।) न हो, गलत लेबलिंग या फिर खुराक के बारे में कोई गलत जानकारी न हो, जो मरीज के लिए प्राणघातक साबित हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश भी बनाए हैं। हालांकि कई देशों ने अपने देश के अनुसार भी गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के नियम बनाए हैं या फिर उनमें अपने देश की जलवायु या पर्यावरण का ध्यान रखते हुए कुछ तब्दीलियां की हैं। भारत में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस प्रणाली को पहली बार वर्ष 1988 में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची ड में शामिल किया गया था। समय के साथ-साथ ही इसमें संशोधन भी किये गए हैं। अंतिम बार इसमें वर्ष 2005 में संशोधन किया गया।

अब जानें गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस में संशोधित दिशा-निर्देशों के बारे में

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस में जारी किये गए नए दिशा-निर्देश में औषधियों की संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया में गुणवत्ता का ध्यान रखने पर विशेष जोर दिया गया है। इसके अलावा दवा कंपनियों को उनके उत्पादों की गुणवत्ता के लिये संभावित जोखिमों की पहचान और उचित निवारण के लिए उपाय करने हेतु गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा उत्पादों की गुणवत्ता की नियमितरूप से समीक्षा करने की भी अनिवार्यता दर्ज की गई है ताकि उत्पादों के प्रयोग से किसी को भी किसी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े। गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के लिए संशोधित किए हुए नियमों में दवा कंपनियों को यह भी निर्देश दिए गये हैं कि दवाओं का उत्पादन अमुक स्थान के पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किया जाए। साथ ही इसपर समय-समय पर शोध-अध्ययन करना भी अनिवार्य किया है। इसमें दवाओं को निर्धारित तापमान और आर्द्रता के स्तर पर उनकी दीर्घकालिक स्थिरता के मूल्यांकन के लिये स्टेबिलिटी चैंबर्स में रखा जाता है, इसकी सुनिश्चितता तय करने की भी बात कही गई है। इसके अलावा कई स्थितियों में उत्पाद की स्थिरता का आंकलन करने के लिये त्वरित स्थिरता परीक्षण करने का भी निर्देश दिया गया है।

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के लिए इस पर भी दिया गया है जोर

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के लिए जारी किये गए संशोधित दिशा-निर्देशों में कम्प्यूटर पर काम करने को प्राथमिकता दी गई है। ऐसा इसलिए भी तय किया गया है ताकि डाटा में किसी भी तरह का हेर-फेर, कोई अनधिकृत पहुंच या फिर किसी और तरह की चूक न हो। दवाइयों संबंधित हर एक डाटा भी सुरक्षित होता रहे और आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग किया जा सके। नवीन ड अनुसूची, अतिरिक्त आवश्यक उत्पादों को भी सूचीबद्ध करती है, इसमें जैविक उत्पाद, रेडियोधर्मी सामग्री वाले अभिकर्त्ता या पादप-व्युत्पन्न उत्पाद भी शामिल हैं। नए दिशा-निर्देश नैदानिक परीक्षणों के लिये निर्मित किये जाने वाले आवश्यक परीक्षण उत्पादों को निर्धारित करते हैं। साथ ही नैदानिक परीक्षणों में उपयोग होने वाले आवश्यक उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हैं।

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस में इसलिए हुआ संशोधन

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के मानकों में संशोधन की आवश्यकता क्यूं महसूस हुई? अगर आप यह सोच रहे हैं, तो हाल ही की कुछ ऐसी घटनाएं थीं, जिनको ध्यान में रखते हुए मानकों में संशोधन किये गए। इसमें ऐसी कुछ घटनाएं थीं, जहां अन्य देशों ने भारत में बनें सिरप, आई-ड्रॉप और ऑंख में लगाई जाने वाली दवाइयों के बारे में संदूषण की सूचना दी। अमेरिका में 03 लोग, कैमरून में 06, गांबिया में 70 बच्चों और उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत को इन उत्पादों से जोड़ा गया है। इसके बाद हुए जोखिम-आधारित निरीक्षण में भारत की 162 विनिर्माण इकाइयों में कई खामियां पाई गईं, जिनमें कच्चे माल का अपर्याप्त परीक्षण, उत्पाद गुणवत्ता की समीक्षा में कमी, बुनियादी ढांचे और योग्य पेशेवरों की कमी प्रमुख से देखी गई। ऐसे में मानकों में संशोधन कर बेहतर मानक यह सुनिश्चित करेंगे कि दवा कंपनियां बिना लापरवाही बरते मानक प्रक्रियाओं, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों का पालन करेंगी। इससे भारत में उपलब्ध दवाओं के साथ-साथ वैश्विक बाजार में बेची जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।

भारत में मानकों को पूरा करतीं दवा निर्माण कंपनियां

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस की बात करें तो भारत में 10,500 में से केवल 2,000 ऐसी दवा निर्माण कंपनियां हैं, जो डब्ल्यूएचओ जीएमपी प्रमाणित हैं और वैश्विक मानकों को पूरा करती हैं।

निष्कर्ष: गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के मानकों में हुए संशोधन को लागू करने से दवा निर्माण कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होगा। भारत की घरेलु और वैश्विक बाजार में एक अलग छवि निखरेगी। दवाओं की खरीद-फरोख्त के प्रति भी नजरिया बदलेगा। साथ ही सेहत की बात करें तो रिस्क फैक्टर भी कम होगा।

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