भारत, यूरोप, जापान और चीन जैसे प्रमुख देशों में नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर नए कदम उठाए जा रहे हैं। इन देशों के प्रयासों से CO2 उत्सर्जन में कमी और हरित ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि हो रही है। यूरोप और भारत जैसे क्षेत्रों में यह बदलाव तेजी से हो रहा है, जबकि जापान और चीन में भी ऊर्जा उत्पादन की दिशा में सुधार की कोशिशें जारी हैं। यह कदम पर्यावरण की रक्षा और भविष्य के लिए स्थिर ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
डॉ. गुंटर फ्रेडल, सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, पावरट्रेन सिस्टम्स, AVL ने CO2 उत्सर्जन को कम करने की चुनौती को लेकर महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ अगली एक दशक की बात नहीं है, बल्कि आने वाले कई दशकों, शायद पूरे अगले शताब्दी के लिए CO2 उत्सर्जन को कम करना एक महत्वपूर्ण कार्य होगा। यह एक बहुत व्यापक चुनौती है, और इसे केवल ऑटोमोबाइल्स के CO2 उत्सर्जन तक सीमित नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में, जब हम ऑटोमोटिव क्षेत्र में CO2 उत्सर्जन को कम करने की बात करते हैं, तो हमें वाहन से शुरुआत नहीं करनी चाहिए, बल्कि प्राथमिक ऊर्जा से शुरुआत करनी चाहिए।
प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों से शुरुआत
डॉ. फ्रेडल ने यह भी बताया कि हमें यह सोचना होगा कि कैसे हम जीवाश्म ईंधन को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे बायोमास, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत, और भू-तापीय ऊर्जा से बदल सकते हैं। इस प्रक्रिया में ऊर्जा वाहक और ऊर्जा भंडारण (एनर्जी स्टोरेज) की महत्वपूर्ण भूमिका है, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा के साथ, जहां स्टोरेज का मुद्दा अक्सर कम आंका जाता है। इसके बाद, सबसे महत्वपूर्ण कदम है इंफ्रास्ट्रक्चर, विशेषकर विद्युतीकरण, जो एक बड़ी चुनौती है।
वाहन पोर्टफोलियो को अनुकूलित करना
डॉ. फ्रेडल ने कहा कि जब हम ऊर्जा वाहकों के बारे में सोचते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभिन्न प्रकार के वाहन उन ऊर्जा वाहकों के अनुसार अनुकूलित हों जो सबसे उपयुक्त हों। इसमें सिर्फ बिजली तक सीमित रहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि हम कई प्रकार के नवीकरणीय ऊर्जा वाहकों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे तरल ऊर्जा वाहक या गैस ऊर्जा वाहक।
भारत की भूमिका
डॉ. फ्रेडल ने यह भी कहा कि भारत इस दिशा में सही कदम उठा रहा है। भारत विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को ध्यान में रखते हुए अपनी ऊर्जा नीतियों को विकसित कर रहा है। वहीं, यदि हम वैश्विक दृष्टिकोण से देखें, तो क्या हम वास्तव में इस तार्किक क्रम का पालन कर रहे हैं? यूरोप में कुछ क्षमताएं हैं, लेकिन प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों को फिर से देखना होगा।
नवीकरणीय ऊर्जा और CO2 उत्सर्जन: एक वैश्विक दृष्टिकोण
यूरोप में वर्तमान में लगभग 40% नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, लेकिन भारत और चीन जैसे देशों में कोयले पर निर्भरता अधिक है, जो CO2 उत्सर्जन को प्रभावित करता है। जापान में भी फुकुशिमा के बाद ऊर्जा उत्पादन में बदलाव आया है, और अब गैस और कोयले का मिश्रण इस्तेमाल किया जा रहा है।
डॉ. फ्रेडल ने 2050 के दृष्टिकोण से उम्मीद जताई है कि यूरोप में 77% और भारत में 73% नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा होगा। अगर इसमें बायोमास को भी जोड़ा जाए, तो यह आंकड़ा और अधिक बढ़ जाएगा। हालांकि, जापान के लिए टोपोग्राफ़ी के कारण नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण है, इसलिए जापान को इस दिशा में और अधिक प्रयास करने होंगे।
CO2 उत्सर्जन में कमी लाने की चुनौती
एसएई इंडिया इंटरनेशनल मोबिलिटी कॉन्फ्रेंस (एसआईआईएमसी) के कार्यक्रम के दौरान डॉ. फ्रेडल ने यह भी कहा कि CO2 उत्सर्जन को कितनी जल्दी कम किया जा सकता है, यह एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के तौर पर, नेशनल एनर्जी एजेंसी ने 2050 तक 75% से 90% तक नवीकरणीय ऊर्जा की उम्मीद जताई है, जबकि तीन साल पहले इस आंकड़े को 2040 तक प्राप्त होने का अनुमान था। इस बदलाव को देखते हुए, सतर्क रहना आवश्यक है और एक ऐसा परिदृश्य तैयार करना होगा, जो अधिक यथार्थवादी हो।
यूरोप का नेतृत्व और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
यूरोप वर्तमान में हरी ऊर्जा के मामले में नेतृत्व कर रहा है, लेकिन यूरोप एक देश नहीं है, बल्कि कई देशों का समूह है, और हर देश का ऊर्जा परिदृश्य अलग है। स्कैंडिनेविया जैसे क्षेत्रों में बहुत अधिक हरी ऊर्जा का उपयोग हो रहा है, जबकि पोलैंड जैसे देशों में स्थिति अलग है, जहां बैटरी बिजली का CO2 उत्सर्जन अधिक है, भले ही इसे 'वेल-टू-व्हील' आधार पर देखा जाए।
हालांकि, स्थिति बेहतर हो रही है, और हर साल ऊर्जा उत्पादन में CO2 उत्सर्जन में कमी आ रही है। जैसे-जैसे अधिक देश अपने ऊर्जा परिदृश्य को बदल रहे हैं, 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है।
निष्कर्ष
डॉ. फ्रेडल की बातों से यह स्पष्ट है कि CO2 उत्सर्जन को कम करने की दिशा में वैश्विक स्तर पर कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि कई देश तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं। यूरोप, भारत, चीन और जापान जैसे देशों के प्रयासों से यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दशकों में हम अधिक हरित ऊर्जा के उपयोग की ओर अग्रसर होंगे। लेकिन इस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए, हमें प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों, ऊर्जा वाहक, भंडारण, और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना होगा।