प्रकाशन का मोटे तौर पर मतलब है पुस्तकें, पत्रिकाएं और अन्य सामग्री को तैयार करने और उन्हें लोगों तक पहुंचाने से जुड़े हुए काम। इंसान के शुरूआती दिनों में उसने गुफा में जो तस्वीरें बनाई थी, उनसे लेकर आज तक के अनगिनत नए प्रकार इस व्यापक परिभाषा में आ जाते हैं, लेकिन आम तौर पर ‘प्रकाशन’ छपी हुई पुस्तकों और अब पोस्ट-मॉडर्न जमाने में ई-बुक्स को तैयार करने से जुड़ा हुआ है। मिट्टी के पटिये से लेकर रोल्स तक उद्योग ने सचमुच अद्भुत प्रगति की है। लिखने के तरीकों का विकास, कागज का ईजाद और सन् 1400 के करीब जोहानस गुटेनबर्ग का एक जगह से दूसरी जगह ले जाने योग्य छपाई खाने का आविष्कार, इन सबने छपाई और प्रकाशन व्यवसाय में क्रान्ति ला दी।
1500 के आसपास जब कॉपीराइट अधिकार ग्रहण करने तथा मुद्रण, वितरण, बिक्री और स्वामित्व के भुगतान का मॉडल यूरोप और अन्य देशों में फैला, तब सही मायने में उद्योग का बुनियादी ढांचा तैयार हुआ। आज वही मॉडल उद्योग के बुनियादी सिद्धांत के रूप में कायम है। एक उद्योग के रूप में प्रकाशन के कई पहलू हैं। लेखक, लिटरेरी एजेंट्स, चित्रकार, मुद्रित शोधक, कॉपी संपादक, टाइप सेटर्स, मुद्रक, बाइंडर्स, स्टॉकिस्ट्स, वितरक और मार्केटर्स - सभी इस उद्योग के भाग हैं। हर कोई छपे हुए साहित्य के प्रसार में और उद्योग को आधार देने में अहम् भूमिका निभाता है।
प्रकाशन उद्योग के कई पहलू हैं और उनके जरिए करियर के कई मौके मौजूद हैं। किसी भी अन्य उद्योग की तरह, प्रकाशन उद्योग में नौकरी करने में भी अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा और मेहनत-मशक्कत होती है और इस व्यवसाय में ना डगमगाने वाले ‘कर दिखाने वालों’ की जरूरत होती है। प्रकाशन उद्योग में बहुत तेज काम होता है और उसमें अक्सर संपादक, लेखक और प्रचारक जैसे कई हिस्सेदारों की अपेक्षाओं को सरलता और सफाई से करना पड़ता है।
प्रकाशन उद्योग में काम करना एक सम्पादक होने से कहीं अधिक होता है। उद्योग में ऐसी कई भूमिकाएं हैं, जिनके लिए अलग-अलग तरह के हुनर की जरूरत होती है। खुद की पसंद और खुबियों का तालमेल जमाने से एक कामयाब करियर बनाने में बहुत मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, संपादक नए टैलेंट्स खोजने, लेखन का सम्पादन करने और उसे शेल्फ में सजाने योग्य बढ़िया-सा अंतिम रूप देने के लिए व्यवसाय में होता है। उसी तरह चित्रकार साथ दिए गए ग्राफिक्स और रेखाचित्रों को सजाने के लिए जरूरी होता है, ताकि फाइनल प्रोडक्ट कुछ सीखाने के साथ ही पाठकों को आकर्षित करने वाला भी बने। मार्केटर्स और वितरकों की भूमिका प्रकाशित साहित्य की खासियत को रोशनी में लाने की और उसका ज्यादा से ज्यादा प्रचार करने की होती है, ताकि उसकी ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो सके।
वैसे तो प्रकाशन परंपरागत रूप से छपी हुई किताबों और साहित्य से जुड़ा हुआ है, लेकिन डिजिटल युग के आने से इस उद्योग में कुछ जबरदस्त बदलाव आए। तभी से ई-बुक्स से लेकर इंटरनेट पर अपना लिखा खुद पब्लिश करने तक, कई तरीकों से प्रकाशन उद्योग पर लगातार हमला हो रहा है। कुछ लोगों का दावा था कि प्रकाशन व्यवसाय मरने की कगार पर है। वह दावा तो झूठा साबित हुआ ही, उल्टा डिजिटल युग ने उद्योग को विकास अवसरों की नई राहें खुली कर दी हैं। डिजिटल मार्केटिंग, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया, पॉडकास्ट्स और ऑडियो बुक्स ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने विकास के नए मौके दिए हैं। ये सब डिजिटल युग की देन हैं।
डिजिटलाईजेशन और इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने प्रकाशन उद्योग पर गहरा असर किया है। किताबें कैसे प्रकाशित की जाती हैं, वितरित होती हैं, बेची जाती हैं और अंत में पाठक द्वारा कैसे पढ़ी जाती हैं - उद्योग की सम्पूर्ण वैल्यू-चेन में बुनियादी बदलाव आया है। अपना लिखा खुद छापना, मांग के मुताबिक छपाई और ई-बुक्स, ये आज उद्योग के प्रमुख आधार बन चुके हैं। इस प्रगति का एक बहुत अच्छा नतीजा ये है कि आज किसी क्रिएटिव चीज की निर्मित करना कम से कम कीमत में मुमकिन और ज्यादा आसान हो गया है। साहित्य का डिजिटल प्रसार किफायती तो है ही, वो अधिक पाठकों की बड़ी संख्या तक भी पहुँचता है।
प्रकाशन उद्योग आज भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। डिजिटाइजेशन, गोपनीयता और कुशल कारीगरों की कमी ये उनमें से प्रमुख हैं। उसी के साथ, प्रकाशन उद्योग में करियर बनाने के लिए जरूरी हुनर और काबिलियत का दायरा भी बढ़ गया है। इंटरनेट में महारत, डिजिटल की अच्छी समझ और प्रोग्रामिंग स्किल्स ये आज प्रकाशन में करियर करने के लिए जरूरी बन गए हैं। उन्होंने अपने टाइटल्स को उनके संभावित रीडर्स तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन मार्केटिंग से लेकर सोशल नेटवर्क के जरिए प्रमोशनल एक्टिविटीज तक नए और कारगर तरीके ढूंढ़ निकालना जरूरी हो गया है। इस तरह आज के प्रकाशन उद्योग में सिर्फ टैलेंट ढूंढ़ना, प्रूफ-रीड और एडिट करके लिखे हुए काम को आकर्षक बनाना, इतना ही काफी नहीं है। उसके साथ करियर बनाने की इच्छा रखने वाले को आज टेक्नॉलॉजी, डिजाइनिंग, ऑडियो-विजुअल प्रोडक्शन में माहिर होना पड़ता है और सोशल नेटवर्क की दुनिया में भी अपना झंडा फहराना पड़ता है।
आज के प्रकाशन उद्योग में कामयाबी पाने के लिए बहुत तेज तर्रार दिमाग की जरूरत है – ऐसा दिमाग जो हर चीज को पैनी नजर से भी देखे और जिसे इस काम के लिए जुनून भी हो, क्योंकि यह व्यवसाय जुनून और पागलपन की हद पर ही बसा हुआ है।