आज के समय में हर कोई अलग तरह का व्यवसाय शुरू करना चाहते है। व्यवसाय को शुरू करने के लिए लोगों की संख्या में भारी वृद्धि लगातार हो रही है, लेकिन समस्या यह है कि शुरूआत से बिजनेस को शुरू करना उस पर पैसा लगना थोड़ा मुशकिल काम है, लेकिन आपको बनी बनाई चीज मिल जाए और उसे चलाना फिर थोड़ा आसान काम हो जाता है आप समझ तो गए होंगे की हम फ्रेंचाइजी बिजनेस की बात करे रहे है। यदि आप भी खुद का व्यवसाय शुरू करने का सोच रहे है और आपके पास कोई बिज़नेस प्लान नही है, जो तेज़ी से आपको लाभ दे सके तो आप फ्रेंचाइजी बिज़नेस कर सकते है, लेकिन उससे पहले आप समझ लीजिए की फ्रेंचाइजी क्या है।
फ्रेंचाइजी क्या है
फ्रेंचाइजी एक ऐसा बिजनेस होता है जिसमे कंपनी का मालिक अपने लोगो, कंपनी का नाम, कंपनी मॉडल आदि के अधिकारों को किसी थर्ड पार्टी को बेचता है। कंपनी का मालिक जिस थर्ड पार्टी को अपने सारे अधिकार बेचता है उसे फ्रेंचाइजी कहते है।
फ्रैंचाइज़ी मे कम से कम दो पक्ष होते हैं, पहला फ्रेंचाइज़र जो ब्रांड का ट्रेडमार्क, बिजनेस नाम, बिजनेस सिस्टम सब कुछ स्थापित करवा चूका होता है और दूसरे पक्ष में फ्रैंचाइज़ी जो आम तौर पर एक व्यक्तीगत व्यक्ति होता है, जो फ्रेंचाइज़र के बिज़नेस नाम, लोगो, बिजनेस सिस्टम के अंतर्गत व्यापार करने के अधिकार प्राप्त करने के बदले रॉयल्टी या कुछ शुरूआती शुल्क का भुगतान करता है।
फ्रेंचाइजी के प्रकार
1.प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूशन फ्रैंचाइज़ बिजनेस :- कंपनी आपको अपने उत्पाद को बेचने की अनुमति देती है लेकिन वह आपको व्यापार चलाने में कोई मदद नहीं करती। साथ ही आप अपने तरीके से व्यापार कर सकते हैं इसमें कंपनी द्वारा कोई दिशा निर्देश या पाबंदी नहीं होती।
2.मैन्युफैक्चरिंग फ्रैंचाइज़ बिजनेस :- फ्रेंचाइजी लेने वाले व्यक्ति को लाइसेंस लेकर फ्रेंचाइजर का नाम और ट्रेडमार्क के साथ उत्पादों का उत्पादन करने और उन्हे बाजार मे देने की अनुमति मिल जाती है। उद्दमी उत्पादों की मार्केटिंग के लिए विज्ञापन का भी उपयोग कर सकते है। इस सिस्टम मे मूल रूप से उत्पाद का स्वामित्व रखने वाली कंपनी यानी फ्रैंचाइज़र को फ्रेंचाइजी द्वारा फ्रैंचाइज शुल्क और बेची गई यूनिट पर एक निश्चित भुगतान दिया जाता है।
3.बिजनेस फ्रैंचाइज़ वेंचर :- फ्रेंचाइजी द्वारा फ्रेंचाइजर से उत्पाद खरीदकर ग्राहको को बेचे जाते है। ऐसे मामलों में मूल कंपनी द्वारा फ्रैंचाइजी को अपना कस्टमर बेस प्रदान किया जाता है, जिन्हे फ्रेंचाइजी को बनाए रखना जरूरी होता है।
4.बिज़नेस फॉर्मेट फ्रैंचाइज़ :- इस प्रकार की फ्रेंचाइजी में आपको कंपनी का ब्रांड, नाम, कंपनी के व्यापार करने के तरीके का उपयोग करना होता है। इसी के साथ आपको कंपनी द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों को भी मानना पड़ता है, यानी की कंपनी का जो बिजनेस फॉर्मेट है आपको उसी फॉर्मेट पर चलकर व्यापार करना होता है। इस प्रकार की फ्रेंचाइजी बहुत ही सामान्य फ्रैंचाइज़ है जो कि ज्यादातर बिजनेस में उपयोग की जाती है।
फ्रेंचाइजी मॉडल चार अलग-अलग प्रकार के होते हैं। पहला कंपनी के स्वामित्व वाली कंपनी संचालित, दूसरा कंपनी के स्वामित्व वाली फ्रेंचाइजी संचालित, तीसरा फ्रेंचाइजी के स्वामित्व वाली कंपनी संचालित और चोथा फ्रेंचाइजी स्वामित्व वाली फ़्रैंचाइज़ी संचालित। अब इन के बारे मे भी जान लेते है।
1.कंपनी के स्वामित्व वाली कंपनी संचालित (कोको) - कंपनी किसी विशेष स्थान पर व्यवसाय का स्वामित्व और संचालन करती है। यह फ्रैंचाइज़िंग कंपनी है जो सभी पूंजी और परिचालन खर्च वहन करती है। यह मॉडल निम्नलिखित विशेषताओं वाले फ्रेंचाइज़र के लिए उपयुक्त है:
एक फ़्रैंचाइज़र किसी विशिष्ट स्थान के लिए उपयुक्त फ़्रैंचाइजी ढूंढने में असमर्थ होता है जहां उसे अच्छी व्यावसायिक क्षमता दिखाई देती है, तो ऐसे मे फ्रेंचाइज़र अपना आउटलेट खोलता है। फ्रैंचाइज़र जिनके पास बहुत पैसा होता है, उन्हें फ्रैंचाइज़ी के साथ लाभ साझा करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। एक फ्रेंचाइज़र शुरू में अपने आउटलेट्स से शुरुआत कर सकता है और फिर फ्रैंचाइज़िंग का रास्ता अपना सकता है। कुछ फ्रेंचाइज़र फ्लैगशिप स्टोर के रूप में आउटलेट खोलते हैं। यह भविष्य की फ्रैंचाइज़ी को आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर को देखने और आउटलेट के लुक को महसूस करने में सक्षम बनाता है।
2.कंपनी के स्वामित्व वाली फ्रैंचाइज़ संचालित फ्रेंचाइजी मॉडल (कोफो) - एक फ्रैंचाइज़िंग कंपनी कैपिटल एक्सपेंडिचर, साइट सिलेक्शन, प्रॉपर्टी डिपॉजिट और कुछ अन्य खर्च करती है। साथ ही, फ्रैंचाइज़ी अतिरिक्त परिचालन लागत जैसे वेतन, बिजली और विविध खर्चों का ध्यान रखती है। एक भुगतान जो किसी भी तरह से जा सकता है वह है किराया। कुछ मामलों में, फ्रेंचाइज़र किराया वहन करता है, और कुछ मामलों में, फ्रैंचाइज़ी इसका ध्यान रखती है। ऐसे में फ्रैंचाइज़ी के लिए शुरुआती खर्च कम होता है। याद रखने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि कम निवेश के साथ, फ्रैंचाइज़ी के लिए कम लाभ/राजस्व हिस्सेदारी होगी।
एक फ्रेंचाइज़र इस मॉडल का उपयोग तब करता है जब फ्रेंचाइज़र अपने परिचालन खर्च में वृद्धि नहीं करना चाहता है। फ्रेंचाइज़र के पास अपने कर्मचारियों के लिए सिस्टम और प्रक्रियाओं का प्रबंधन करने के लिए बैंडविड्थ नहीं है। जब एक फ्रेंचाइज़र को ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है, जो एक उद्यमी की तरह स्टोर चला सकें और उसका रखरखाव कर सकें।जब कोई कर्मचारी किसी स्टोर का प्रबंधन करता है और जब एक उद्यमी इसे चलाता है तो एक स्पष्ट अंतर होता है।
3.फ्रेंचाइजी स्वामित्व वाली कंपनी संचालित फ़्रैंचाइज़ मॉडल (फोको) - फ्रैंचाइज़ी व्यवसाय का मालिक है जबकि कंपनी इसे संचालित करती है। इसका मतलब यह है कि फ्रैंचाइज़ी निवेशक एक ही बार में लमसम भुगतान करते है जिसके आधार पर वे व्यवसाय स्थापित करते हैं। फ़्रैंचाइज़र फ़्रैंचाइजी द्वारा दिए गए पैसे के आधार पर सभी कानूनी और कागजी कार्रवाई को संभालते है।
4.फ्रेंचाइजी स्वामित्व वाली फ़्रैंचाइज़ संचालित फ़्रैंचाइज़ मॉडल (फोफो) - इस मॉडल में कंपनी फ्रेंचाइजी निवेशक को अपना ब्रांड नाम देती है। और वे इसे एक विशेष गैर-वापसी योग्य राशि (फ़्रैंचाइज़ी शुल्क) और पूर्व-सहमत समय अवधि के लिए देते हैं। आउटलेट के लिए कीमतें और मर्चेंडाइज ब्रांड द्वारा तय किए जाते हैं। इसलिए, फ्रैंचाइज़ निवेशक स्टोर का मालिक होता है, और सभी परिचालन लागतों को फ्रैंचाइज़ को ही वहन करना पड़ता है।
इसके अलावा, फ्रैंचाइज़ को ब्रांड को राजस्व (रॉयल्टी) का कुछ प्रतिशत हिस्सा भी देना पड़ता है।
जब आप किसी फ्रैंचाइज़ को खरीदने की बात करते हैं, तो सबसे पहला दिमाक मे यह आता है कि आप किस प्रकार की फ्रैंचाइज़ लेना चाहते हैं, फिर आप उसे चुनते है। भारत कई प्रकार के उद्योगों जैसे सौंदर्य, रिटेल, फैशन, फुड और ऑटोमोटिव आदि के फ्रैंचाइज़ी सफल हुई है, इसलिए सभी प्रकार के फ्रेंचाइजियों पर रिसर्च करना जरूरी है और पता करे कौन सा व्यवसाय लक्ष्यों को पूरा करता है और स्थानीय बाजार में कौन से व्यवसाय के सफल होने की संभावना ज़्यादा है। मौजूदा बाजार की स्थितियों और ग्राहको के बदलते ट्रेंड की व्यापक समझ प्राप्त करना आपके फ्रैंचाइज़ आउटलेट को शुरू करने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होता है। एक भावी फ्रैंचाइज़ मालिक के लिए मौजूदा व्यवसाय के मालिको से बात करना और बाज़ार की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझना बहुत ज़रूरी है।यह आपको यह आकलन करने में मदद करता है कि क्या आपके लिए किस प्रकार की फ्रैंचाइज़ी सही और लाभदायक साबित होगी।
इससे पहले कि आप एक फ्रैंचाइज़ व्यवसाय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करें, ध्यान से व्यवसाय की वित्तपोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले माध्यमो की जानकारी ले, क्योकि कई फ्रैंचाइज़ व्यवसाय मालिकों को फ्रैंचाइज़ी आउटलेट के मालिकों से एक अग्रिम शुल्क की आवश्यकता होती है। आम तौर पर फ्रैंचाइज़, इन्वेंट्री, सेटअप शुल्क, रॉयल्टी शुल्क और कार्यशील पूंजी की ज़रूरतो के लिए पैसो की आवश्यकता होती है।
संभावित फ्रेंचाइज़र की एक सूची बनाएं, जिसके साथ आप काम करने में रुचि रखते हैं और फ्रैंचाइज़ ब्रांडों को शॉर्टलिस्ट करे, जो आपको सही लगते है या जो आपके हितों, व्यवसाय के लक्ष्यों और निवेश अमाउंट के हिसाब से सटीक तरीके से भरपूर है, एक बार इस सूची को अंतिम रूप देने के बाद, व्यापक रिसर्च करना ज़रूरी है।
किसी भी कंपनी कि फ्रैंचाइज़ लेने लिए सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि आप किस चीज़ कि फ्रैंचाइज़ लेना चाहते है और क्या वह काम आपके शहर या गाँव में चल सकता है। यह सब पता लगा लेने के बाद आपको अपने बजट के हिसाब से फ्रैंचाइज़ मॉडल और ब्रांड चुनना होगा और उसके बाद आप उस ब्रांड कि वेबसाइट पर जाकर फ्रैंचाइज़ लेने के लिए आवेदन कर सकते है।
कोई भी व्यवसाय शुरू करने से पहले कुछ जरूरी दस्तावेज की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर ही आपको फ्रैंचाइज़ दी जाएगी ऐसे में कुछ दस्तावेजों में आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र, फोटो शामिल है। यह आप पर निर्भर करता है की आप किस कंपनी की फ्रैंचाइज़ ले रहे हैं, अगर आप किसी बड़ी और नामी कंपनी की फ्रैंचाइज़ लेते हैं तो इसके लिए आपको ज्यादा निवेश करना होगा, वही अगर आप किसी मध्यम या नई कंपनी की फ्रैंचाइज़ लेंगे तो आपको कम निवेश में फ्रैंचाइज़ मिल सकती है।
ब्रांड चुनने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, फ्रैंचाइज़ सलाहकारों के माध्यम से फ्रेंचाइज़र के साथ मीटिंग करे और जितना संभव हो उतना फ्रेंचाइज़र के बारे में जानें और उनकी विश्वसनीयता, वित्तीय और मौजूदा फ्रैंचाइज़ नेटवर्क की जाँच करें और वे आपके द्वारा होने वाले समझौते की गहरी जाँच करें।