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- बचपन से ही उद्यमी बनने को तैयार होंगे प्रोमीथियस के छात्र : चेयरमैन
शिक्षा को लेकर भारत सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। जी-20 सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की जबदस्त चर्चा के बाद समय और जरूरत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार नए और बेहतर नियम बनाने को प्रयासरत है। इसी क्रम में कौशल विकास को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने और एआई का शिक्षा में प्रयोग भी शामिल है। ऐसे ही कई मुद्दों पर नोएडा स्थित प्रोमीथियस स्कूल के चेयरमैन मुकेश शर्मा ने ‘ऑपर्च्युनिटी इंडिया’ की वरिष्ठ संवाददाता सुषमाश्री से विस्तार से बात की। पेश हैं उस बातचीत के मुख्य अंश...
ओआई : अपने संघर्ष के दिनों के बारे में बताएं। यहां तक पहुंचने का आपका सफर कैसा रहा?
शर्मा : मेरा बचपन राजस्थान के पिलानी में बीता। मेरे पिता बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी (बिट्स पिलानी) में नन-टीचिंग स्टाफ थे। मेरी स्कूली शिक्षा बिरला हाइयर सेकेंडरी स्कूल से हुई। इंटरमीडिएट बिट्स पिलानी से की। मैं बचपन से ही उद्यमी बनना चाहता था। जब 11वीं कक्षा में था तो आगरा से जूते खरीदकर बिट्स पिलानी में बेचना चाहता था। लेकिन पूंजी नहीं थी। एक मित्र के पिताजी से मदद मांगी तो उन्होंने मेरे पिता को बतौर गारंटर बुलाने को कहा। पिताजी से मना कर दिया और पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा, लिहाजा मेरा वह सपना वहीं टूट गया। लेकिन मुझे भरोसा है कि यदि उस वक्त मुझे वह मौका मिल जाता तो मैं उसे बड़ा बनाने से नहीं चूकता।
यह एक बड़ी वजह है जिसके चलते अपने स्कूल में हम बच्चों को आंत्रप्रेन्योर या उद्यमी बनने के सभी तरीके सिखा रहे हैं। हम उन्हें इनक्यूबेशन सेंटर मुहैया करा रहे हैं, जहां स्टार्टअप चलाने के लिए उन्हें पूरी तरह से तैयार किया जा सके। हम उन बच्चों पर निवेश करने की भी सोच रहे हैं, जो कारोबार के नए-नवेले और काम किए जाने योग्य विचार लेकर हमारे पास आएंगे।
ओआईः कुल मिलाकर बिट्स पिलानी ने आपके अंदर के उद्यमी को बाहर निकाल दिया...
शर्माः यह सच है! बिट्स पिलानी में वह मेरा पहला साल था, जब मुझे महसूस हुआ कि अब मुझे कठिन मेहनत करनी होगी और मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। स्टाफ कोटे से फर्स्ट ईयर में मेरा एडमिशन हुआ लेकिन उसके बाद मैंने मेहनत की तो मुझे ड्यूएल डिग्री मिल गई। बिट्स पिलानी में मैंने अच्छे दोस्त बनाए। मैं स्टूडेंट यूनियन का प्रतिनिधि और स्पोर्ट्स का ज्वाइंट सेक्रेटरी बन गया था।
ओआईः नौकरी की शुरुआत, उद्यमिता की शुरुआत कैसे हुई?
शर्माः दिल्ली आकर मैंने एक जगह जॉब की, जहां मुझे महज 2,000 रुपये मिलते थे। उतने में गुजारा होना मुश्किल था। मैं गणित में अच्छा था इसलिए उसकी ट्यूशन देनी शुरू कर दी। एक घंटे का 500 रुपये मिलता था यानी चार ट्यूशन एक दिन में पढ़ा लो, तो 2000 रुपये मिल जाते थे, जबकि पूरे महीने काम करने पर इंटर्नशिप के दौरान 2 हजार रुपये ही मिल पाते थे। तो एक समय मन में आया कि कोचिंग सेंटर ही शुरू कर लूं। लेकिन पूंजी नहीं थी तो यह विचार भी असमय मर गया। वैसे, मेरे साथ-साथ मेरे दोस्तों के अंदर भी कई बिजनेस आइडियाज आए और गए। फिर, हमने लोगों की ऑनलाइन समस्याओं का समाधान करना शुरू किया। हमें यह उम्मीद बंधने लगी कि इस काम को हम अच्छी तरह से कर लेंगे।
वर्ष 1996 में मैं बिट्स पिलानी से पास होकर निकला। तब से वर्ष 2003 तक मैंने कई कंपनियों में काम किया। अमेरिका गया और मेडिकल क्षेत्र में स्टार्टअप स्थापित करने के प्रयास किए। मैंने अपनी मां की स्वास्थ्य समस्याओं को देखा था और प्रेक्टो जैसा एप या वेबसाइट तैयार करने की सोच रहा था। मैंने कई योजनाएं बनाईं पर किसी को भी धरातल पर नहीं ला पाया। तब मैंने उस कंपनी से बात की जिसमें मैं काम कर रहा था और भारत में उनकी फ्रैंचाइजी के तौर पर काम करने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि मैं भारत में इसी बिजनेस में अपना काम शुरू करना चाहूं तो कर सकता हूं, क्योंकि वे किन्हीं कारणों से उन दिनों भारतीय बाजार में नहीं आना चाहते थे।
मैं भारत आ गया और काम शुरू किया। मैंने अपनी कंपनी तैयार कर ली थी, लेकिन काम नहीं आ रहा था। तब मैंने एक नौकरी ज्वॉइन कर ली। नौकरी ज्वाइन करने के बाद मुझे वहां से काम भेजा जाने लगा, लेकिन एक साल पूरा करने के बाद मैंने फिर से अपने काम पर ध्यान दिया। मैंने ‘क्यू इंफोटेक’ नामक एक सॉफ्टवेयर टेस्टिंग कंपनी शुरू की। वर्ष 2013-14 तक हम जाने-माने ब्रांड्स में गिने जाने लगे। भारत सरकार के साथ हमने नेशनल इंफोरमेटिक्स सेंटर (एनआईसी) में काम किया। इसके बाद हमारी कंपनी का पहले से भी ज्यादा नाम हो गया।
ओआईः कुल मिलाकर कहें तो आपके शुरुआती दिन बेहद रोमांचक रहे...
शर्माः जी हां। इस दौरान भी हमें अलग-अलग तरह की समस्याएं आईं। हम लोगों को प्रशिक्षित करते थे, लेकिन कुछ समय बाद वे हमें छोड़कर दूसरी कंपनियों में जाना चाहते थे। तब मैंने निर्णय लिया कि मैं एक ऐसी कंपनी बनाऊंगा, जिसे छोड़कर लोग जाना ही नहीं चाहेंगे। वर्ष 2013 तक ऐसा करने में मैं कामयाब भी हुआ।
इस पूरे सफर के दौरान हमेशा से मैं एक स्कूल खोलने का सपना देखता रहता था। हालांकि, मैं गरीबी रेखा से नीचे के टैलेंटेड बच्चों के लिए स्कूल बनाना चाहता था। लेकिन फिर महसूस हुआ कि पहले एक ऐसे स्कूल की जरूरत है, जो मेरे बाद भी आसानी से चलता रहे, ताकि गरीब बच्चों के लिए निःशुल्क स्कूल चलाने का भार भी वह अपने कंधों पर उठा सके। वर्ष 2017 में मैंने जेपी ग्रुप्स से जमीन खरीदी। वर्ष 2019 में हमारा स्कूल बनकर तैयार हो गया। अब इसे चलाने की तैयारी थी। बहुत सी चुनौतियां थीं। कुछ भी आसान नहीं था। जब इसे शुरू करने का समय आया तो मैंने तय कर लिया कि मैं एक ऐसा स्कूल शुरू करूंगा, जैसा दूर-दूर तक आसानी से उपलब्ध न हो। मैंने तय कर लिया कि इसे ‘बिल्कुल अलग’ बनाने के लिए मैं वहां आंत्रप्रेन्योर्स तैयार करूंगा।
ओआई : स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार प्रयासरत है। उसका कहना है कि जो भी संस्थान इसे बढ़ावा देने के लिए अपने पाठ्यक्रम में इसे शामिल करेंगे, उन्हें रैंकिंग में भी इसका लाभ दिया जाएगा। आपके संस्थान में कौशल विकास को लेकर क्या काम किए जा रहे हैं?
शर्मा : हमारे यहां फाइनैन्शियल लिटरेसी (निजी वित्तीय प्रबंधन, बजट और निवेश समेत वित्तीय क्षमता का अलग-अलग तरह से प्रयोग और उसे समझने की क्षमता) है। आंत्रप्रेन्योरशिप हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा है। हम साइबर स्किल्स, फाइनेंशियल लिटरेसी और सॉफ्ट स्किल्स भी सिखाते हैं। हम लोगों ने एक स्टार्टअप शुरू किया है- ‘इट्सक्रेडिबल’, जिसकी फंडिंग भी मैं ही करता हूं। यह इंसान की क्षमता और कौशल का पता लगाता है। हम बच्चे की पहचान करते हैं, किसी भी डिजिटल बैज के जरिए। यह पूरे जीवन उसके पास होता है और यह फौरन सत्यापित भी किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने इसी काम के लिए ‘वन नेशन, वन आईडी’ स्कीम (अपार आईडी) की शुरुआत की है, हालांकि, उसकी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है। आधार आईडी ही काफी है। हमारे स्कूल में ऐसी तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है, जिसका काफी लाभ हमें मिलता है।
स्किल डेवलपमेंट वर्ष 2020 से ही हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा है। लेकिन मैं एक बात कहूंगा कि छोटे बच्चों को आप कम्प्यूटर से दूर रखें। प्राइमरी शिक्षा में कम्प्यूटर के प्रयोग को आप जीरो कर दें। आज के बच्चे पहले से ही डिजिटली स्मार्ट हैं। उन्हें डिजाइन थिंकिंग की जरूरत है। उन्हें समस्याएं दीजिए, काम दीजिए और देखिए कि वे उसे किस तरह से पूरा करते हैं? इस तरह आप उनकी लाइफ स्किल्स को समझ पाएंगे।
ओआई : नीति आयोग ने विकसित भारत का रोडमैप तैयार किया है। उसमें कहा गया है कि बच्चे ऑनलाइन या ऑफलाइन जैसे भी पढ़ना चाहते हों, पढ़ सकते हैं। यह पूरी तरह से उनकी पसंद पर निर्भर होगा। यह भी कहा गया है कि छात्र स्कूल में फेल नहीं होंगे। इन सब पर आप क्या कहना चाहेंगे?
शर्मा : यह अच्छा है। महज एक विषय से किसी भी बच्चे की ओवरऑल क्षमता (सम्पूर्ण व्यक्तित्व) को आप कैसे परख सकते हैं। एक ओर तो हम बच्चों को रिस्क लेने के लिए प्रेरित करते हैं और कहते हैं कि फेल होने से डरना नहीं है। दूसरी ओर, उसके अंदर फेल हो जाने का डर भी भर देना चाहते हैं। क्या फर्क पड़ता है। अगर वह कोई एक काम नहीं कर पा रहा है तो… कोई बात नहीं। आप सभी चीजों में अच्छे तो नहीं हो सकते। बच्चा जिस भी विषय में अच्छा है, उसे उसी चीज में और आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
ओआई : एक आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए क्या करना चाहिए, खासकर यदि कोई अपना स्कूल खोलना चाहे तो उसे क्या करना चाहिए?
शर्मा : बच्चा जब स्कूल जा रहा है तो वहां उन्हें ऐसा बनाएं, जिससे वह ज्यादा से ज्यादा सवाल कर सके। कोई अगर कुछ कर रहा है तो क्यों कर रहा है, पूछताछ कर सके। हमें बच्चों को ऐसा बनाना चाहिए कि वे समस्याओं का समाधान करने वाले बन सकें। उन्हें अपने आसपास हर मुद्दे पर कम से कम दो सवाल अवश्य पूछने चाहिए। पहला- हम क्या कर रहे हैं और दूसरा- हम क्यों कर रहे हैं? हर चीज को उन्हें सवाल करने की जरूरत है। साथ ही, यह भी सोचने की आवश्यकता है कि जो भी वे कर रहे हैं, क्या वे उसे और बेहतर ढंग से कर सकते हैं? अगर आप इतना समझ लेते हैं तो फिर आप उसे और बेहतर ढंग से करने का रास्ता ढूंढ़ निकालेंगे। बचपन से ही हमें बच्चों को बताना है कि आप किसी भी काम को करने के लिए रिस्क लें और अगर आप फेल भी होते हैं तो कोई बात नहीं है, दोबारा से कोशिश करें। इससे उनका आत्मविश्वास अलग ही स्तर पर पहुंच जाएगा।
स्कूल शुरू करने के लिए पूंजी सबसे महत्वपूर्ण है। फिर, आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए स्पेस, लीगल फ्रेमवर्क, कम्प्लायंस रिलेटेड हेल्प और फंड्स (जगह, कानूनी रूपरेखा, अनुपालन संबंधी मदद और वित्त संबंधी मदद) की भी जरूरत होती है। प्रोमीथियस में हम ये चारों चीजें देने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। बच्चे खुद मेरे पास आकर अपने आइडियाज पर चर्चा करते हैं और मैं मानता हूं कि कोई भी आइडिया बेकार नहीं होता।
मैंने हमेशा वह काम किया है, जिस बारे में लोग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि सरकार ने कुछ नहीं किया। मेरा कहना है कि अगर सरकार ने नहीं किया तो आपने उसे बदलने के लिए क्या किया? मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, वहां शिक्षक हमें पीटते थे, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मुझे एक ऐसा स्कूल खोलना है, जहां पढ़ने वाले बच्चे कहें कि आज छुट्टी क्यों है? मुझे स्कूल जाना है। मैं अपने देश के लिए बेहतर करने की कोशिश कर रहा हूं।
अपनी जिंदगी में मैंने जिस तरह की चुनौतियां देखीं, मैंने तय कर लिया कि मुझ जैसे किसी अन्य बच्चे को मैं वैसी चुनौतियों का सामना नहीं करने दूंगा। मेरी इस सोच को ‘स्टार्टअप इंडिया’ ने और भी तेजी से आगे बढ़ाने में मदद की। इसके तहत सरकार और सरकार की इस योजना को प्रमोट करने की मंशा रखने वाले कई संगठनों ने भी मेरी इस सोच को बल देने का काम किया। मैंने स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चों के अंदर भी स्टार्टअप आइडियाज देखे और उनके साथ मिलकर काम किया।
ओआई : आपका ग्रोथ प्लान क्या है?
शर्मा : मेरा कोई ग्रोथ प्लान नहीं है। मेरा बस एक सपना है कि हमारे स्कूल से आंत्रप्रेन्योर्स निकलें, जो नौकरी देने वाले बनें। हमारे स्कूल से वे लोग भी निकलेंगे, जो आंत्रप्रेन्योर नहीं बन पाएंगे, वे कॉलेज जाएंगे, वहां जाकर भी वे आंत्रप्रेन्योर बनने की कोशिश करेंगे। हो सकता है कि इसके बाद भी उन्हें परेशानी आए, वे फेल भी हो सकते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि ऐसे स्कूल होने चाहिए, जो इन बच्चों को अच्छे शिक्षकों की नौकरी दें और उन्हें अच्छा वेतन भी दें ताकि ये शिक्षक बच्चों के साथ-साथ अपने भविष्य को भी बेहतर बना सकें। आने वाले चार से पांच वर्षों में आप देखेंगे कि कॉलेज से बच्चे निकलेंगे और वे कहेंगे कि हम शिक्षक बनना चाहते हैं। हम बच्चों को बताना चाहते हैं कि आंत्रप्रेन्योर कैसे बन सकते हैं? हम आंत्रप्रेन्योर भले ही न बन पाए हों, लेकिन हमें मालूम है कि कैसे बन सकते हैं। मेरा ग्रोथ प्लान यही है कि हमारे स्कूल से आंत्रप्रेन्योर्स निकलें, ऐसे छात्र निकलें जो ओलंपिक में बेहतर करें, वर्ष 2032 में अगर हमारे स्कूल का कोई बच्चा ओलंपिक में गोल्ड मैडल ले आता है या जो हमारे यहां से प्रशिक्षण ले रहे हैं, वे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं तो मेरे लिए वही सबकुछ होगा।
ओआई : आने वाले कुछ वर्षों में शिक्षा में निवेश को लेकर आपकी क्या योजना है?
शर्मा : मैं तो हर दिन शिक्षा में निवेश कर रहा हूं। जहां तक वित्त की बात है तो इस वर्ष अपने स्कूल में 50 करोड़ से भी ज्यादा का निवेश करने की हमारी योजना है। मेरा मानना है कि यह वह समय है, जब हमें शिक्षकों को उनका मेहनताना लौटाने की जरूरत है। मैं चाहता हूं कि टीचिंग को ऐसा प्रोफेशन बना सकूं कि लोग उसे भी इज्जत भरी नजरों से देखें।
ओआईः अपनी अब तक की यात्रा से आपने क्या सीखा है जो आप सबको बताना चाहेंगे?
शर्माः अपनी जिंदगी में मैंने एक बात समझा कि यहां लोग वह कर रहे हैं, जो वे नहीं करना चाहते। जो वे करना चाहते हैं, वह वे नहीं कर पा रहे और जो वे नहीं करना चाहते हैं, उसे करने के लिए वे मजबूर हैं। हमने सोचा कि हमारे यहां वैसे ही बच्चे आ रहे हैं, जिनके माता-पिता यहां पढ़ाने का खर्च वहन कर सकते हैं। फिर क्यों न हम उनके माता-पिता के साथ मिलकर बच्चों की पसंद को समझकर उस पर बातचीत करें और बच्चे को उसकी पसंद के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, ताकि बड़े होकर वे वही करें, जो वे वाकई में करना चाहते हैं। मैंने तय कर लिया कि मैं बच्चों को जितनी ज्यादा चीजें संभव हों, उन सभी चीजों से उनका परिचय कराऊंगा। इसके बाद मैंने बच्चों के आइडियाज पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया।