नेशनल मैन्युफैक्चरिंग डे हर साल देश के औद्योगिक विकास और आर्थिक समृद्धि में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि ये उद्यम भारत की औद्योगिक और आर्थिक संरचना की नींव माने जाते हैं।
एमएसएमई का महत्व इसलिए भी है क्योंकि वे बड़े उद्योगों की सप्लाई चेन का हिस्सा बनकर इनोवेशन और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, ये उद्यम कम पूंजी निवेश और स्थानीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग करके देश की औद्योगिक बुनियाद को मजबूत करते हैं। इस तरह, एमएसएमई न केवल मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक हैं, बल्कि वे समग्र रूप से आर्थिक प्रगति, निर्यात वृद्धि और सामाजिक-आर्थिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एमएसएमई का मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में योगदान
एमएसएमई भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का महत्वपूर्ण अंग हैं और इसके सतत विकास में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये उद्यम स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर छोटे उद्योगों को मजबूती देते हैं, जिससे देश के हर कोने में औद्योगिक गतिविधियाँ सजीव रहती हैं। आज भारत में करीब 6.3 करोड़ एमएसएमई हैं, जो देश की कुल GDP का 30 प्रतिशत और कुल निर्यात का लगभग 48 प्रतिशत योगदान देते हैं। इनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. रोजगार सृजन और स्थानीय संसाधनों का उपयोग: एमएसएमई देश में रोजगार के सबसे बड़े स्रोतों में से एक हैं, जो लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। ये उद्यम विशेषकर ग्रामीण इलाकों में स्थानीय कौशल और श्रम का उपयोग करते हुए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराते हैं, जिससे पलायन जैसी समस्याएं कम होती हैं। इसके साथ ही, एमएसएमई स्थानीय संसाधनों का कुशलता से उपयोग करके उत्पादन करते हैं, जिससे न केवल लागत में कमी आती है, बल्कि क्षेत्रीय आर्थिक विकास भी बढ़ता है। जैसे, कृषि-आधारित उद्योग, हस्तशिल्प और ग्रामोद्योग का विकास इन उद्यमों के माध्यम से संभव हुआ है।
2. सप्लाई चेन निर्माण और इनोवेशन: एमएसएमई बड़े उद्योगों की आपूर्ति श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये कच्चे माल की आपूर्ति, छोटे उपकरणों का निर्माण और विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं, जिससे बड़े उद्योगों को निर्बाध उत्पादन प्रक्रिया मिलती है और इससे पूरे विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता और दक्षता में सुधार होता है। हाल के वर्षों में, एमएसएमई ने नवाचार और तकनीकी सुधार को अपनाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं, जिससे इनकी उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि हुई है। डिजिटल युग में उनकी तकनीकी प्रगति ने उन्हें वैश्विक स्तर पर भी स्थापित करने में मदद की है।
इंडस्ट्रियलिस्ट और ऑन्त्रेप्रेन्योर भरत बोम्मई ने कहा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भारत के औद्योगिक इकोसिस्टम की जीवनरेखा हैं, जो इनोवेशन को बढ़ावा देते हैं, रोजगार सृजित करते हैं और सामाजिक-आर्थिक संरचना को सशक्त बनाते हैं। उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे न केवल उद्यमिता को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि उत्पादन क्षमताओं को भी बढ़ाते हैं, जिससे निर्यात में वृद्धि होती है और यह देश की GDP में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाते हैं।
भारत का लक्ष्य 2026-27 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का है, ऐसे में एमएसएमई क्षेत्र 2028 तक $1 ट्रिलियन तक पहुंचने के लिए तैयार है। FDI नीतियों में छूट और MSMEs के लिए कर प्रोत्साहन ने इस विकास को और तेज कर दिया है, जिससे वैश्विक निवेश आकर्षित हो रहे हैं और प्रतिस्पर्धात्मकता में भी वृद्धि हो रही है।
एमएसएमई अपनी उद्यमशीलता क्षमता के साथ, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में, समुदायों की मजबूत नींव की तरह हैं। वे इन जगहों पर लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करते हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हैं।डिजिटलाइजेशन, सतत प्रथाओं और कौशल विकास को अपनाकर, एमएसएमई न केवल वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ तालमेल बिठा रहे हैं बल्कि उसमें सफल भी हो रहे हैं।
इस नेशनल मैन्युफैक्चरिंग डे पर, हमें MSMEs की दृढ़ता, रचनात्मकता और उनके निरंतर प्रयासों को पहचानना और सराहना चाहिए। उनकी वृद्धि देश की प्रगति से सीधे जुड़ी हुई है, क्योंकि वे रोजगार उत्पन्न करते हैं, नवाचार को बढ़ावा देते हैं और भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
राष्ट्रीय आर्थिक विकास में MSMEs की भूमिका
एमएसएमई का महत्व केवल मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र तक सीमित नहीं है। वे समग्र आर्थिक विकास के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। एमएसएमई स्थानीय और क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये छोटे-छोटे कस्बों और गाँवों में उद्योगों की स्थापना कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होता है और वे शहरी विकास पर निर्भर नहीं रहते। इसके अलावा, एमएसएमई महिलाओं और युवाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यमिता के नए अवसर पैदा करते हैं, जिससे महिलाओं की बढ़ती भागीदारी आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक प्रगति का प्रतीक बनती है।
भारत के कुल निर्यात में एमएसएमई का लगभग 48 प्रतिशत योगदान है, जो न केवल देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं को भी साकार करने में मदद करता है। इसके अलावा, एमएसएमई ने कई बार आर्थिक संकट के समय देश को स्थिरता प्रदान की है; कोविड-19 महामारी के दौरान, जब बड़े उद्योग संकट में थे, एमएसएमई ने तेजी से खुद को पुनर्संगठित कर छोटे स्तर पर उत्पादन और आपूर्ति बनाए रखी, जिससे आर्थिक गतिविधियों में रुकावट नहीं आई।
थैनोस टेक्नोलॉजीज के सीईओ और को-फाउंडर प्रदीप पलेली ने कहा भारत की आर्थिक वृद्धि में MSMEs की अहम भूमिका है और वे देश के मैन्युफैक्चरिंग उद्योग की रीढ़ की हड्डी हैं। नेशनल मैन्युफैक्चरिंग डे के अवसर पर, यह बताना जरूरी है कि ये व्यवसाय कैसे इनोवेशन को बढ़ावा देते हैं, रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और सतत विकास (सस्टेनेबल ग्रोथ) का सपोर्ट करते हैं।
एमएसएमई के रूप में थैनोस टेक्नोलॉजीज (Thanos Technologies) ने तकनीकी क्षेत्र में छोटे योगदानकर्ता बनने से लेकर उद्योग में अग्रणी बनने तक का सफर तय किया है। हमारी कृषि ड्रोन समाधान श्रम समस्याओं को कम करने, पानी की बचत करने और हानिकारक मैनुअल प्रक्रियाओं को समाप्त करने में मदद करते हैं। भारत सरकार की 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देते हुए, हम गर्व से अपने सभी ड्रोन भारत में बनाते हैं, जो कि इस पहल के साथ भी मेल खाता है। हैदराबाद में निर्माण इकाइयाँ स्थापित करके, हम रोजगार पैदा कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारे उन्नत समाधान भारतीय किसानों के लिए सस्ती हों।
स्थानीय उत्पादन की यह पहल हमारी उद्योग की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है, जिससे हमें विदेशों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ती और हम अपने उत्पादों की गुणवत्ता को भी बेहतर बना सकते हैं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हम भारत की आर्थिक प्रगति में मदद करने के अपने लक्ष्य के प्रति सच्चे बने रहते हैं।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
एमएसएमई के समक्ष कई चुनौतियाँ भी हैं, जैसे - पूंजी की कमी, तकनीकी जानकारी का अभाव, सरकारी योजनाओं और ऋणों की जटिल प्रक्रिया आदि। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा।
सरकार ने हाल ही में कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे - ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’, ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘जीएसटी में छूट’, ‘ई-मार्केटप्लेस का विकास’, आदि, ताकि MSMEs को वित्तीय और तकनीकी सहायता मिल सके। इसके साथ ही, डिजिटलीकरण और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे MSMEs वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सकें।
निष्कर्ष
नेशनल मैन्युफैक्चरिंग डे के अवसर पर, हमें एमएसएमई की इस महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानना और उन्हें सपोर्ट देना चाहिए। वे न केवल मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की रीढ़ हैं, बल्कि आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और सामाजिक-आर्थिक संतुलन के महत्वपूर्ण स्तंभ भी हैं। एमएसएमई के विकास और सशक्तिकरण से ही भारत एक सशक्त, आत्मनिर्भर और समृद्ध राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सभी एमएसएमई को बढ़ावा देने और उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए मिलकर प्रयास करें, ताकि वे भविष्य में भी देश की आर्थिक प्रगति में अहम भूमिका निभा सकें।