शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि जल्द ही आईआईटी दिल्ली और आईआईटी चेन्नई देश से बाहर क्रमशः अबू धाबी (संयुक्त अरब अमीरात) और जंजीबार (अफ्रीका) में अपने कैंपस शुरू कर रहा है। इससे पहले सीबीएसई के दुबई में ऑफिस खोलने की खबर भी आ चुकी है। इसी तरह देश में कई विदेशी संस्थानों ने भी अपने कैंपस स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे में मन में दो तरह के सवाल उठते हैं कि विदेशी संस्थानों का भारत में अपने कैंपस स्थापित करना और भारतीय विश्वविद्यालयों का विदेशों में अपने कैंपस स्थापित करने के पीछे आखिर मकसद और फायदे क्या हैं? वहीं, दूसरा सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों नहीं होता कि हम देश के सुदूर क्षेत्रों तक भारतीय संस्थानों को फैलाने का काम करें ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्रों के लिए शिक्षा सुलभ हो सके और सस्ता भी।
बीते दिनों नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने बताया कि नीति आयोग वर्ष 2047 को ध्यान में रखकर एक विजन डाॅक्यूमेंट तैयार कर रहा है, जिसमें शिक्षा की अलग भूमिका पर जोर डाला जा रहा है। डाॅक्यूमेंट में वर्ष 2047 तक हमारा लक्ष्य कम से कम पांच लाख विदेशी छात्रों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत लाना रखा गया है। उच्च शिक्षा में हमें अपनी गुणवत्ता, ब्रांड वैल्यू और रैंकिंग को बेहतर बनाना है ताकि हम वैश्विक स्तर पर अपनी विशेष पहचान बना सकें और उच्च शिक्षा प्रदाता के तौर पर खुद को साबित कर सकें। उन्होंने '18वें फिक्की हाइयर एजुकेशन समिट 2023' को संबोधित करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में हमें कई शैक्षणिक शहर तैयार करने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने निजी संस्थानों को उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी का देश में विस्तार करने के लिए आगे आने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भारतीय छात्रों के साथ-साथ हम विदेशी छात्रों को भी भारत में उच्च शिक्षा के लिए आने के लिए आकर्षित करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा विदेशी छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए हमारे देश पहुंचें।
ताकि छात्रों को 'इंडस्ट्री रेडी' बनाया जा सके
सुब्रह्मण्यम ने जोर देकर कहा, उच्च शिक्षा क्षेत्र में हमें और भी ज्यादा प्रगतिशील, उन्नत और मौलिक होने की आवश्यकता है। हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था का पुनर्निर्माण करने की जरूरत है ताकि छात्रों को 'इंडस्ट्री रेडी' बनाया जा सके। भारतीय उच्च शिक्षा विभाग पर तकनीकी प्रभाव की महत्ता पर जोर डालते हुए उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा क्षेत्र पर तकनीक का प्रभाव आने वाले दिनों में और भी ज्यादा देखने को मिलेगा। विश्वविद्यालयों को बड़े पैमाने पर एआई का प्रयोग करने की जरूरत है ताकि वे समय के अनुकूल और प्रतिस्पर्धी बने रह सकें। उन्होंने कहा कि छात्र भारत का भविष्य हैं, जो अमृत काल में भारत की यात्रा के दौरान मुख्य भूमिका निभाएंगे। विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे छात्रों के विचारों को सही दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। उन्होंने भारत की विशाल जनसंख्या की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों के पास भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता का दोहन करने के लिए 25 वर्ष की अवधि है।
सुदूर क्षेत्रों में स्थापित हों भारतीय संस्थान
यकीनन, शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार लगातार कुछ न कुछ नया करने की कोशिश में जुटी है। इसी क्रम में जी-20 सम्मेलन के बाद कई विदेशी यूनिवर्सिटीज भारत में अपना कैंपस स्थापित करने को तैयार हैं। भारत सरकार भी इसमें उनकी मदद कर रही है। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने इस बाबत विदेशी यूनिवर्सिटीज के लिए कई नियम तय भी कर दिए हैं। इन सबके बावजूद इस सवाल से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता कि आखिर भारत में मौजूद भारतीय विश्वविद्यालय देश के सुदूर क्षेत्रों में पहुंचकर वहां के छात्रों की शिक्षा के लिए रास्ते क्यों नहीं तलाशते। इस मुद्दे पर आईआईटी रूड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत से हमने सवाल किया- जी-20 के बाद से हमारे देश में बहुत सारी विदेशी यूनिवर्सिटीज अपने कैंपस स्थापित कर रही हैं, लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम अपने देश के ज्यादा से ज्यादा विश्वविद्यालयों को देश के सुदूर क्षेत्रों तक स्थापित कर सकें?
इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर पंत ने कहा- वैश्वीकरण के इस दौर में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के नारे के अनुसार काम कर रहे हैं। हमारा मानना है कि पूरा विश्व एक है। भारत में कई शिक्षण संस्थाएं चल रही हैं और हम बहुत अच्छा भी कर रहे हैं। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हम बहुत हद तक मिलकर काम भी कर रहे हैं। हमारे छात्र और शिक्षक, दोनों ही आज के समय में देश और विदेश, हर जगह आ-जा रहे हैं। हर देश की अलग-अलग खासियतें हैं।
दोनों देशों के बीच संस्कृति और ज्ञान का आदान-प्रदान
ताइवान सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहा है। यही वजह है कि हमने ताइवान की तीन यूनिवर्सिटीज के साथ सेमी कंडक्टर मैटेरियल पर मिलकर काम करना शुरू किया है, इसके लिए हमने एक कोर्स भी शुरू किया है। उनके यहां सेमी कंडक्टर क्षेत्र से जुड़े लैब आदि की सारी जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं, जबकि कोर्स के मामले में हमारे यहां के छात्र अधिक मजबूत हैं। ऐसे में छात्र पहले साल हमारे यहां कोर्स करते हैं और दूसरे साल ताइवान जाकर वहां की यूनिवर्सिटीज के रिसर्च लैब में काम करते हैं। वे वहां का ज्ञान लेकर जब भारत आएंगे तो उससे हमारे देश को भी फायदा होगा। एनर्जी और सेंसर डिवाइस जैसे क्षेत्र में भारत को अभी बहुत कुछ जानना और करना है, जिनमें सेमी कंडक्टर मैटेरियल्स का बहुत बड़ा योगदान है, तो उन छात्रों के जरिए भारत को काफी लाभ होने की गुंजाइश है। यही वजह है कि ताइवान यूनिवर्सिटीज के साथ हमने एमटेक डिग्री के लिए बहुत सारे एमओयू साइन किए हैं। पीएचडी डिग्री के लिए हमारे छात्र जर्मनी भी जाते हैं। इसी तरह विदेशी यूनिवर्सिटीज भारत में जो अपने कैंपस स्थापित कर रही हैं, उनका उद्देश्य भी यही है कि एक साल छात्र उनके देश में पढ़ेंगे और एक साल भारत आकर। इससे दोनों देशों के बीच संस्कृति और ज्ञान का आदान-प्रदान भी हो पाएगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच रिश्ते भी बेहतर होंगे।
भारत में ‘युवा संगम’ नाम से अलग-अलग राज्यों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि छात्र एक-दूसरे की संस्कृति और ज्ञान को समझ सकें। हम अभी से यह सब करेंगे तभी भविष्य में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का लक्ष्य पा सकेंगे। मुझे लगता है कि इस लक्ष्य को पाने में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी। यही नहीं, आईआईटी भी विदेशों में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं, जैसे कि यूएई में। आज के समय में भारत के कई संस्थान विदेशों में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं, उसी तरह विदेशी यूनिवर्सिटीज भी हमारे देश में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं। यह विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए जरूरी भी है।