‘शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग करके आप दुनिया को बदल सकते हैं।’ - नेल्सन मंडेला
भारत में सरकारी विद्यालयों को हमेशा उपेक्षित या कम करके आंका गया है। कुछ ऐसे राज्य है, जो अपने विद्यालयों और इन विद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा को गंभीरता से लेते हैं और बाकी सभी विद्यालयों ने समाचार चैनलों में पहले ही अपने लिए जगह बना ली है, जहाँ पर इन विद्यालयों में सोते हुए शिक्षकों या दोपहर का भोजन बनाने के बर्तनों में छात्रों के गिरने का मजाक उड़ाया जा रहा है।
कुछ विद्यालय है, जो इतने उल्लेखनीय परिणाम दे रहे हैं कि उन राज्यों में निजी विद्यालयों की भूमिका गौण हो गई है और दूसरी तरफ कुछ ऐसे विद्यालय है, जो ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के नाम पर डाटा में केवल संख्याएं भरने के लिए खुले हुए हैं।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण बदलाव दिए गए हैं, जो शीर्ष क्रम के सरकारी विद्यालयों द्वारा अपनाए गए हैं।
भारत के अधिकांश हिस्सों में गरीब, निम्न मध्यमवर्गीय और गरीबी रेखा के नीचे लोग हैं, जो अपने बच्चों को विद्यालय में भेजने में असमर्थ होते हैं।
इसके अलावा, उन्हें लगता है कि अतिरिक्त हाथ उन्हें परिवार के लिए रोटी कमाने में मदद करेंगे। इसलिए संबंधित विद्यालयों के लिए नियुक्त शिक्षकों द्वारा इन क्षेत्रों में, दैनिक जीवन में शिक्षा के महत्व के विषय में जागरूकता लाना अत्यंत आवश्यक है।
माता-पिता को अपने बच्चों को विद्यालय में भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें यह समझाना बहुत जरूरी है कि शिक्षा एक परिवार या समुदाय में क्या-क्या बदलाव ला सकती है।
विभिन्न प्रकार के छात्र होते हैं, जो अलग-अलग बुद्धिमत्ता के साथ अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं। इसके अलावा शारीरिक रूप से विकलांग या मानसिक समस्या से ग्रस्त छात्र भी होते हैं, जिनके साथ घुलने-मिलने में बाकी छात्रों का कदाचित थोड़ा समय लगता है या ऐसे छात्रों को दूसरे छात्रों के साथ मिलाना एक दिलचस्प, लेकिन कठिन काम हो सकता है।
इसलिए विद्यालयों में मजेदार गतिविधियों की शुरूआत करने से उन्हें उनके दैनिक जीवन में आने वाली मुश्किलों को सामना करने में मदद मिलेगी। इससे इन बच्चों की असली प्रतिभा को उजागर करने में मदद मिलेगी।
वैसे भी बच्चों के साथ व्यवहार करने के विभिन्न तरीके होते हैं और मजेदार गतिविधियाँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम, थियेटर और नाटक साथ करने से उन्हें उनकी छिपी प्रतिभा का एहसास हो जाता है।
कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन्स आसानी से उपलब्ध हैं और सरकार यह चीजें, माध्यमिक और उच्च-माध्यमिक शिक्षा के लिए विद्यालयों को मुफ्त में देती है।
कुछ विद्यालय है, जो छात्रों को तकनीकी ज्ञान और अध्ययन में इसका उपयोग करने के बारे में जागरूक करने के लिए इन तकनीकों का फायदा उठाते हैं।
छात्रों को अध्ययन में तकनीकी उपयोग के बारे में जागरूक करने से उन्हें भविष्य में नौकरी और शोध के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी।
विभिन्न विषय होते हैं, जिनके बारे में छात्र, विद्यालय में रहते हुए जान सकते हैं। इसलिए उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने के लिए डेमो कक्षाएं आयोजित की जा सकती है।
इन डेमो कक्षाओं में उन्हें राजनीति पढ़ाने और राजनीति में विभिन्न पदों की भूमिका निभाते हुए निर्णय लेना और उस पर काम करना सिखाया जा सकता है। इससे वह जिम्मेदार बनते है और साथ ही विषय को गहराई से सीखने में मदद मिलती है।
शैक्षणिक दृष्टि से कमज़ोर छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं आयोजित की जा सकती है, जिसमें शैक्षणिक दृष्टि से अच्छे छात्र, शिक्षक की भूमिका निभा सकते हैं और अपने शिक्षण कौशल को बढ़ा सकते हैं।
छात्रों द्वारा राजनीति, साहित्य, शिक्षण, बागवानी और बहुत से विषयों पर डेमो कक्षाएं की जा सकती है।
इसलिए यह शिक्षक के साथ ही माता-पिता का भी कर्तव्य है कि वह बच्चों के दिमाग को जीवन में अपने मूल्य का आंकलन करने, समझने, जानने और विकसित करने का मौका दे।
जैसे एक कहावत है, ‘बच्चे गीले सीमेंट की तरह होते हैं, जो कुछ भी उन पर गिरता है, वह एक छाप बना देता है’ - हैम जिनोट, बाल मनोवैज्ञानिक।