अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को महिलाओं की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक आर्थिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।दिन का उद्देश्य लैंगिक समानता का संदेश फैलाना और एक बेहतर समाज को बढ़ावा देना है जहां कोई लिंग पूर्वाग्रह नहीं है। यहां 5 प्रमुख भारतीय कानून हैं जिन्हें हर महिला को जानना चाहिए।
1. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 - वेतन असमानता एक ऐसी समस्या है जो पूरी दुनिया में व्याप्त है।लेकिन, भारत में, हमारे पास एक कानून है जो पुरुषों और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करता है। बता दे, केन्द्रीय क्षेत्र में समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 को लागू करने का कार्य मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) को सौंपा गया है जो केन्द्रीय औद्योगिक सम्पर्क मशीनरी (सीआईआरएम) का प्रमुख होता है। केन्द्र सरकार ने समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के प्रावधानों का कर्मचारियों जिन्हें फॉर्म डी में कर्मचारियों के रॉल का रखरखाव करना अपेक्षित है, द्वारा संगत पंजिकाओं/अभिलेखों को प्रस्तुत कर पालन किया जा रहा है अथवा नहीं, कर की जांच करने के उद्देश्य से निरीक्षक के रूप में श्रम इन्फोर्समेंट अधिकारियों की नियुक्ति की है। अधिनियम के किसी प्रावधान के उलंघन के संबंध में शिकायतों तथा पुरुष और महिला कामगारों को समान दर पर मजदूरी का भुगतान नहीं करने से उत्पन्न दावों की सुनवाई तथा निवारण करने के उद्देश्य के लिए प्राधिकरणों के रूप में सहायक श्रम आयुक्तों की नियुक्ति की गई है। सहायक श्रम आयुक्त द्वारा किए गए निर्णय के संबंध में शिकायतों की सुनवाई करने के लिए अपीलीय प्राधिकरणके रूप में क्षेत्रीय श्रम आयुक्तों की नियुक्ति की गई है।
2.कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 - इस कानून के मुताबिक, कार्यस्थल पर 5 तरह के व्यवहार होते हैं जिन्हें यौन उत्पीड़न माना जाता है।इनमें शारीरिक संपर्क और अग्रिम, यौन एहसान की मांग या अनुरोध, यौन रूप से रंगीन टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना और यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण शामिल है। ये अधिनियम, 9 दिसम्बर, 2013, में प्रभाव में आया था। जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में, पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है।
ये अधिनियम विशाखा केस में दिये गये लगभग सभी दिशा-निर्देशों को धारण करता है और ये बहुत से अन्य प्रावधानों को भी निहित करता है जैसे: शिकायत समितियों को सबूत जुटाने में सिविल कोर्ट वाली शक्तियाँ प्रदान की है; यदि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने में असफल होता है तो उसे 50,000 रुपये से अधिक अर्थदंड भरना पड़ेगा, ये अधिनियम अपने क्षेत्र में गैर-संगठित क्षेत्रों जैसे ठेके के व्यवसाय में दैनिक मजदूरी वाले श्रमिक या घरों में काम करने वाली नौकरानियाँ या आयाएं आदि को भी शामिल करता है।
कानून के अनुसार निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को महिला कर्मचारियों की कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिये कानूनी अनिवार्यता के अन्तर्गत लिया गया है
3. भारतीय तलाक (संशोधन) अधिनियम, 2001 - यह हर उस महिला के लिए जरूरी है जो शादीशुदा है या शादी करने की योजना बना रही है।इस कानून के अनुसार वैवाहिक बलात्कार और संचारी एसटीडी (विवाह से पहले दो साल या उससे अधिक की अवधि के लिए) तलाक के आधार हैं।
4.मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 - यदि बच्चा होने से आपके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, तो आपके लिए पहली तिमाही में गर्भपात कराना कानूनी है।इसके अलावा, अगर कुछ परिस्थितियां मातृत्व के पक्ष में नहीं हैं, तो यह गर्भपात के लिए वैध आधार है।
5.घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार -2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के अधिनियमन के आधार पर प्रत्येक महिला घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार की हकदार है।
घरेलू हिंसा में न केवल शारीरिक शोषण बल्कि मानसिक, यौन और आर्थिक शोषण भी शामिल है।
बता दे महिलाओं की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005बनाया गया था। इसके तहत एक महिला को यह अधिकार दिया गया है, कि अगर उसके साथ पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, इमोशनल, सैक्शुअल या फाइनेंशियल तरीके से अत्याचार करते हैं या शोषण करते हैं, तो पीड़िता उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है