व्यवसाय विचार

भारतीय कोचिंग उद्योग

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Sep 12, 2018 - 3 min read
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क्रिसिल रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, ट्यूटोरियल व्यवसाय 2010-11 के रु.40,187 करोड़ से बढ़ कर 2014-15 तक रु.75,629 करोड़ मूल्य का हो जाना, अनुमानित था।

अब वो दिन नहीं रहे जब पालक अपने बच्चों को ट्यूटर्स के पास जाने देने में शर्म महसूस करते थे। आजकल वो एक आम बात, या यूं कहें कि जरूरत बन गई है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद ही नहीं, बल्कि राजस्थान और बिहार की छोटी जगहें भी इस शब्द से अछूती नहीं रही हैं, जो एक समय बिलकुल अनजान-सा था। वो शब्द है - कोचिंग।

उद्योग का विकास

एसोचैम द्वारा हाल ही में किया गया एक अध्ययन जाहिर करता है कि सामाजिक वर्गीकरण के उच्चतम स्तर से नीचले स्तर तक 70% पालक शिक्षा के नाम पर कोचिंग संस्थानों को मोटी रकम देने के पक्ष में हैं। उन्हें विश्वास है कि कोचिंग क्लासेज उनके बच्चों को प्रतियोगिता स्पर्धाओं की तैयारी करने में मदद करते हैं और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी  तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए वही एक सुनिश्चित रास्ता है।  

पालकों के बीच इस तरह के आधार,  विश्वास और खर्च करने की इच्छुकता के कारण कोचिंग संस्थान ऐसा व्यवसाय बन गया है, जिस पर आर्थिक मंदी का कोई असर नहीं होता है। आईआईटी-जेईई (जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन) में सिर्फ 5,500 जगहें होती हैं, लेकिन हर साल 300,000 से भी ज्यादा छात्र परीक्षा देते हैं। आल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जामिनेशन में सिर्फ 9,000 सीट्स होती हैं लेकिन 525,000 जोड़ी आँखें उस पर टिकी होती हैं। 170,000 से भी ज्यादा छात्र आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट की 1,600 जगहों के लिए परीक्षा देते हैं। कुल उपलब्ध जगहों के लिए परीक्षा दे रहे छात्रों की कुल संख्या का ये बेहद दुखद अनुपात है, लेकिन  उनमें से लगभग हर कोई इस होड़ में जीतने के लिए कोचिंग क्लासेज में हाजिरी दे रहा है। 

क्या मैंने इसका जिक्र किया कि, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु की महज 80 जगहों के लिए देश के 9 क्षेत्रों में से 7,000 12 वीं कक्षा के छात्र परीक्षा के लिए उपस्थिति दर्ज करते हैं?  और फिर एमबीए के उन्माद का ये असर है कि, हर दिसंबर 6 आईआईएम और गिने-चुने अन्य संस्थानों की सिर्फ 1,300 जगहों के लिए अविश्वसनीय रूप में 155,000 छात्र कॉमन एंट्रेंस एग्जाम परीक्षा में किस्मत आजमाते हैं। अलग से कहने की जरूरत नहीं है कि हर वर्ष लाखो छात्र आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस जैसे उच्च संस्थानों में जगह पाने हेतु कोचिंग क्लासेज की फी चुकाने के लिए कठोर मेहनत करने और अपने अन्य खर्च कम करवाने के लिए इच्छुक हैं।  

बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी जैसे कई अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों को लेकर भी यही हाल है।  

"शिक्षा क्षेत्र के सारे परिमाण बदल चुके हैं और आप 7-8 वर्ष पहले जो मानसिकता थी, उसी को कायम रखते हुए आगे बढ़ नहीं सकते। पोस्ट द्वारा शिक्षा पाने के युग में, जो लोग ये समझते थे कि संगठित कक्षा में मिली शिक्षा प्राप्त करना उनके चुनाव की बात है, उन्होंने बाजार का हिस्सा खो दिया। आज जो ये सोच रहे हैं कि कक्षा ही एकमात्र जरिया है,  उनका भी नुकसान होगा। क्योंकि अब आपको डिजिटल मोड के बारे में भी सोचना पड़ेगा।" सीएल एजुकेट के चेयरमैन, नारायणन आर. आगाह करते हैं।

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