भारतीय स्पोर्ट्सवियर ब्रांड्स भारतीय बाजार में बड़ी छलांग मार रहे हैं और भारतीय स्पोर्ट्सवियर उद्योग पर राज करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांड्स को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। अगर ब्रांड भारतीय हो, तो लोगों के लिए उससे यकीनन एक भावनिक मूल्य और जुड़ाव होता है, लेकिन अन्य भी कई घटक हैं, जो भारतीय स्पोर्ट्सवियर ब्रांड्स को अपनी ही भूमि में अव्वल होने में मदद करते हैं। आइए, इस उद्योग में वृद्धि और एक खास श्रेणी में उसके रूपांतरण के बारे में जानने की कोशिश करें।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय एथलेटिक परिधान इस वर्ष $1.3 बिलियन मूल्य का उद्योग बन जाएगा। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों की संख्या में अचानक भारी बढोतरी होने के कारण उद्योग की वृद्धि हो रही है।
जिम्नैशियम, जॉगिंग ट्रैक्स और हेल्थ क्लब्ज की संख्या में भारी बढोतरी हुई है। क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों की बढ़ती लोकप्रियता ने भी भारतीय स्पोर्ट्सवियर इंडस्ट्री की वृद्धि में सहायता की है। इस वर्ष जनवरी में, सचिन तेंदुलकर ने ऑस्ट्रेलियाई खेल सामग्री और उपकरण कंपनी स्पार्टन स्पोर्ट्स इंटरनेशनल के साथ मिल कर अपने स्वयं के स्पोर्ट्सवियर और क्रिकेट सामग्री श्रेणी को बाजार में उतारा है। इसे नाम दिया गया है - सचिन बाइ स्पार्टन।
अगर हम फैशन उद्योग को बारीकी से देखते हैं, तो जिम या क्लब में जाते हुए स्पोर्ट्सवियर पहनना पसंद करने वाले युवाओं की संख्या अचानक बढ़ती हुई नजर आती है। उनकी इस पसंद के कारण भारतीय कंपनियों के टी-शर्ट्स, लोअर्स, शॉर्ट्स और जैकेट्स की बिक्री में तेजी आई है। नई दिल्ली की शिव नरेश स्पोर्ट्स एक लोकप्रिय स्पोर्ट्स कंपनी है और बॉलीवुड फिल्म ‘मैरी कोम’ के लिए आधिकारिक स्पोर्ट्स गियर भागीदार भी रह चुकी है। यह कंपनी स्पोर्ट्सवियर, स्पोर्ट्स शूज, सिंथेटिक ट्रैक, स्पोर्ट्स किट बैग, इलेक्ट्रॉनिक स्कोरबोर्ड और एलईडी डिसप्ले स्क्रीन के मान्यता प्राप्त निर्माता, प्रदायक और निर्यातकर्ता है।
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चुनौतियां
जागरूकता लाना बाजार संगठित करना
कीमतें
आगामी चुनौतियां
भारतीय स्पोर्ट्सवियर बाजार में असंगठित क्षेत्र में आने वाली कंपनियों के बीच कुछ जाने-माने नाम हैं। छोटे शहरों में ऐसे ब्रांड्स हैं, जो सिर्फ अपने शहर तक ही सीमित हैं और उससे आगे विकसित नहीं हो रहे हैं। ऐसी कंपनियां खुद तो अपने प्रोडक्ट्स कम कीमतों में बेचती ही हैं, कुल भारतीय स्पोर्ट्सवियर बाजार को भी नीचे गिराने में भूमिका निभाती हैं। समय की मांग ये है कि भारतीय ब्रांड्स और अधिक संख्या में संगठित स्टोर्स शुरु करें और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स की तरह मार्केटिंग और बिक्री की रणनीतियां अपनाएं। मुंबई स्थित सिल्वरट्रैक एक्टिव वियर ब्रांड की मालिक कंपनी क्वालिअंस इंटरनेशनल के प्रमुख कार्यकारी अधिकार, विपुल बदानी कहते हैं, “स्पोर्ट्सवियर एक विकसित हो रहा सेगमेंट है, जो पिछले कुछ् वर्षों में फिटनेस के प्रति जागरूक लोगों की बढ़ती संख्या के साथ अधिक लोकप्रिय हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती खेलों और एक्टिविटीज में किस तरह के कपड़े पहनने को लेकर ग्राहकों में जागरूकता लाने की। परम्परागत रूप से लोग ये मानते आए हैं कि सूती कपड़े स्पोर्टिंग के लिए सबसे अच्छे हैं और इसीलिए खेल या वर्जिश के लिए अलग से कपड़े खरीदने में पैसे खर्च करना नहीं चाहते हैं, लेकिन स्पोर्ट्स और ट्रेनिंग परिधान अब विकसित होकर उनमें और परिष्कृत, उपयोगी कपड़े जैसे कि हमारे द्वारा बनाए गए ‘स्वेट मैनेजमेंट टेक्नॉलॉजी’ कपड़ों का समावेश हुआ है। इस प्रकार के कपड़े पसीना सोखते हैं, जल्दी सूख जाते हैं, रोग और बदबू पैदा करने वाले सूक्ष्म कीटाणुओं का प्रतिरोध करके और ऐसे अन्य कई गुणों द्वारा आपकी परफॉर्मंस बढ़ाते हैं। इन कपड़ों के ये फायदे लोगों तक पहुंचाने चाहिए और इन्हें पहन कर उन्हें इसका अनुभव लेना चाहिए। हम लगातार अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया और ब्रांडिंग मटेरियल्स के जरिए इन विशेषताओं को लोगों तक लगातार पहुंचाते हुए स्पोर्ट्स और वर्कआउट के कपड़ों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं।”
आगे की राहें
यूरोमॉनिटर की रिपोर्ट के मुताबिक, स्पोर्ट्सवियर अनुमानित समय में 12% CAGR से सशक्त रिटेल मूल्य दिखाते रहेंगे और 2020 तक उनकी बिक्री 540 बिलियन को छू लेना अनुमानित है। देश में हेल्थ और वेलनेस का रूझान, उच्च कालोनी समूह तथा इंटरनेशनल स्कूल्स की बढ़ती संख्या और फुटबॉल, क्रिकेट और बास्केटबॉल जैसे खेलों की बढ़ती लोकप्रियता, इन सबके कारण स्पोर्ट्सवियर की मांग बढ़ते रहने और बने रहने की उम्मीद है। भारतीय स्पोर्ट्सवियर ब्रांड्स के जाने-माने नामों में प्रोलाइन इंडिया, शिव नरेश स्पोर्ट्स, डिडा स्पोर्ट्स और हाल ही में लॉन्च हुए रितिक रोशन के एचआरएक्स का शुमार है।