-आने वाले दिनों में नई तकनीकों से लैस होगा मानसिक सेहत का बाजार, मरीजों की मदद के साथ ही अर्थव्यवस्था में भी होगा योगदान
कहते हैं कि हर खराब से खराब स्थिति में कुछ न कुछ तो अच्छा छिपा ही होता है। तो कुछ ऐसा ही किया है कोविड-19 ने। इसने भले ही कितनी तबाही मचाई हो लेकिन इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य को समझने वालों की लिस्ट भी लंबी हो गई। लोगों ने समझा कि कितना जरूरी है किसी भी व्यक्ति के तनाव को समय रहते खत्म कर देना ताकि वह गंभीर समस्या के रूप में न उभरे। कई बार तो ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां किसी ने छोटी सी बात पर जान दे दी या फिर किसी की जान ले ली। अब इस मामले को अगर समझने का प्रयास किया जाए तो यह जाना जा सकता है कि सामने वाला व्यक्ति किस मानसिक परेशानी से जूझ रहा था, जो उसने ऐसा कदम उठाया। ऐसी स्थिति को नजरअंदाज न करके अगर समय रहते ही इलाज शुरू हो जाए तो सोचिए कितने लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस आर्टिकल के जरिए हम जानेंगे कि कैसे मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मुख्य धारा से जुड़ रही हैं और मानसिक सेहत का बाजार कितना बड़ा है? साथ ही यह भी जानेंगे कि कैसे ये बाजार मानसिक स्वास्थ्य को संवार रहे हैं?
130 करोड़ भारतीय में 13 से 26 करोड़ हैं इसके शिकार
माइंड रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक रिपुदमन छाबड़ा बताते हैं कि भारत में कुल आबादी के सापेक्ष लगभग 13 से 26 करोड़ ऐसे भारतीय हैं, जो किसी न किसी तरह के तनाव से गुजर रहे हैं या उनकी जिंदगी में ऐसा कोई दौर आया था कभी। इसके अलावा अगर तनाव के अगले स्वरूप यानी कि चरण डिप्रेशन की बात की जाए तो करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग इसके शिकार होंगे। ऐसे लोगों की मानसिक स्थिति में सुधार करने के लिए कई बार चिकित्सीय सहयोग की आवश्यकता होती है तो कई बार अन्य मनोवैज्ञानिक उपायों के जरिए भी इन्हें ठीक किया जा सकता है।
करोड़ों का है मानसिक सेहत संवारने का बाजार
रिपुदमन छाबड़ा बताते हैं कि उनकी संस्था माइंड रिसर्च फाउंडेशन कई शहरों मसलन दिल्ली, नोएडा, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरू, मुंबई, पुणे, विजयवाड़ा सहित अन्य जगहों पर मानसिक सेहत पर काम कर रही है। इन जगहों के अलावा कई अन्य शहर हैं, जहां पर संस्था प्रस्तावित है और विदेश की बात करें तो आबुधाबी और दुबई में भी जल्द ही इसकी शाखा खोली जाएगी। इस संस्था के जरिए मानसिक समस्या झेल रहे मरीजों को कभी एआई के टूल्स से तो कभी एक ही सवाल को कई तरह से पूछकर या फिर 250 अन्य मॉड्यूल्स यानी कि तौर-तरीकों का प्रयोग करके उन्हें सही करने का प्रयास किया जाता है। इस तरह इस व्यवसाय में साल भर में होने वाली जो आय है वह प्रति संस्था एक करोड़ के आसपास है, जिसमें नई खुली हुई संस्थाओं को पहले वर्ष में 70 से 80 लाख का ही मुनाफा मिल पाता है। हालांकि पहले वर्ष के बाद आने वाले वर्षों में इसमें लाभ ही लाभ मिलता है। रिपुदमन बताते हैं कि आने वाले 10 से 12 वर्षों में यह कारोबार इतना बढ़ जाएगा कि अर्थव्यवस्था में इसका योगदान आप साफतौर पर देख पाएंगे।
ताकि बिगड़ने ही न पाए मानसिक सेहत
रिपुदमन बताते हैं कि जिनकी मानसिक सेहत खराब हो चुकी है उन्हें संवारने के साथ ही हम फोकस कर रहे हैं कि लोगों को तनाव हो ही न और हम पहले ही उन्हें बता कि इस समस्या से उन्हें निपटना कैसे है? इस पद्धति को समस्या से पूर्व निदान कहते हैं। विदेश में खासतौर पर कार्यालयों में इसका खूब प्रयोग किया जा रहा है। हालांकि धीरे-धीरे अब भारत में भी कुछ कॉरपोरेट कार्यालयों ने इसमें अपना हाथ आजमाना शुरू किया है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि कई बार कर्मचारी व्यक्तिगत, व्यवाहारिक या फिर सामाजिक कारणों के चलते परेशान होते हैं और इसका सीधा असर उनके कार्य को प्रभावित करता है और कंपनी को कई बार इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। विदेश में ऐसे मामलों में कई करोड़ डॉलर का नुकसान दर्ज किया गया, जिसके बाद से कार्यक्षेत्र में समस्या पूर्व निदान थेरेपी का प्रयोग किया जाने लगा है।
ये स्टार्टअप दे रहे हैं सेवाएं
माइंड रिसर्च फाउंडेशन जहां मानसिक सेहत व्यवसाय में अपने पांव पसार रहा है वहीं कुछ अन्य स्टार्टअप भी हैं जो इस क्षेत्र में तेजी से उभर रहे हैं। इसमें योर दोस्त, टिकटॉकटू, होप क्योर वेलनेस, जूनो क्लीनिक, काहा माइंड प्रमुख हैं। ये स्टार्टअप स्वमूल्यांकन, परिवार, दोस्त, तनाव, डिप्रेशन, एंग्जाइटी और रिलेशनशिप जैसे कई मुद्दों पर ऑनलाइन-ऑफलाइन त्वरित मदद उपलब्ध कराते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये स्टार्टअप हाल ही के कुछ वर्षों में स्थापित हुए हैं और बहुत कम समय में कई छोटे-मझोले शहरों से भी इनकी सेवाओं की मांग आने लगी है। अगर आप भी कुछ ऐसा ही तलाश रहे हैं, जिसमें नुकसान की गुंजाइश न के बराबर हो और भविष्य में केवल मुनाफा ही मुनाफा हो तो आप मानसिक सेहत के बाजार को बतौर व्यवसाय चुन सकते हैं। हां, बस यहां यह ध्यान रखना होगा कि बताए गये स्टार्टअप की ही तरह आपको बदलते वक्त के साथ कदमताल करनी होगी यानी कि जल्दी से जल्दी मरीजों की मानसिक सेहत को संवारने में मदद करने के साथ ही उन्हें नॉर्मल लाइफ की ओर जाने के लिए भी प्रेरित करते रहना होगा।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी एआई की धूम
चिकित्सा के क्षेत्र में जहां एक ओर एआई का सहयोग लेकर शरीर संबंधी बिमारियों को दूर किया जा रहा है, वहीं मानसिक सेहत को सुधारने के लिए भी अब इसकी मदद ली जा रही है। अब बात कर लेते हैं सर्वे की भी तो ग्लोबलडेटा ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिसमें अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, ब्रिटेन, जापान, ब्राजील, कनाडा, भारत और मैक्सिकों के 574 मरीजों पर एआई को लेकर जुलाई 2023 से लेकर अगस्त 2023 के मध्य एक सर्वे किया गया। इसमें पाया गया कि 60 प्रतिशत मरीज न केवल एआई के बारे में जानते थे बल्कि अपने इलाज में वह उसकी मदद भी ले रहे थे। इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि केवल 7 प्रतिशत ही ऐसे मरीज थे, जिन्हें एआई के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ग्लोबलडेटा की मार्केट रिसर्च की वरिष्ठ निदेशक उर्टे जकीमाविसिय्यूट ने बताया कि एआई कैंसर जैसी बीमारी को समझने में भी सक्षम है। यही वजह है कि इसे हेल्थकेयर सेक्टर में अन्य बीमारियों के इलाज के लिए भी प्रयोग में लाने की कोशिश और निवेश दोनों ही किए जा रहे हैं। यानी कि अब वह दिन दूर नहीं जब मानसिक सेहत को संवारने के लिए वर्तमान की तरह एक-दो जगह नहीं बल्कि कई संस्थाओं में आपको एआई नजर आएगा और यह आपके व्यवसाय का नया आयाम भी देगा।